एक बार जयराम भी कर चुके हैं बारह करोड़ का जिक्र
क्या कांग्रेस पत्र लिखने वालों को चिन्हित कर पायेगी
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस को लेकर पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमति सोनिया गांधी को पचास से अधिक लोगों द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र भेजा जाना इन दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से चर्चा का विषय बना हुआ है। इस पत्र में प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर के खिलाफ कुछ आरोप लगाते हुए यह कहा गया है कि वह संगठन को चलाने में असमर्थ हैं। राठौर के अतिरिक्त पत्र में अन्य ग्यारह वरिष्ठ नेताओं कौल सिंह ठाकुर, आशा कुमारी, रामलाल ठाकुर, जी एस बाली, सुखविन्दर सिंह सुक्खु, मुकेश अग्निहोत्री, हर्षवर्धन चौहान, राजमाता प्रतिभा सिंह, सुधीर शर्मा, राजेन्द्र राणा और विपल्व ठाकुर को लेकर भी टिप्पणीयां की गयीं हैं। इसमें राम लाल ठाकुर को छोड़कर शेष सभी नेताओं की छवि पर कुछ न कुछ सवाल उठाते हुए यह कहने का प्रयास किया गया है कि यह लोग नेतृत्व के योग्य नहीं हैं। बड़ी चालाकी से इन नेताओं के बीच एक दिवार खड़ी करने का प्रयास किया गया है। इस समय प्रदेश में चार उपचुनाव होनें हैं और सभी दल इन चुनावों की तैयारियों में लग गये हैं। इन उपचुनावों के बाद अगले वर्ष नगर-निगम शिमला के चुनाव होने हैं। इस नगर निगम को प्रदेश की मिनी विधानसभा के रूप में देखा जाता है। इसके परिणामों का असर विधानसभा चुनावों पर पड़ता है जो इसके बाद होंगे। इस समय नगर निगम शिमला पर भाजपा का कब्जा है और भाजपा के पार्षदों ने ही अपनी मेयर के खिलाफ किस कदर मोर्चा खोल रखा है वह सबके सामने आ चुका है। इससे नगर निगम से लेकर विधानसभा तक का आकलन करना आसान हो जाता है। इस परिदृश्य में कांगेस पार्टी को लेकर इस समय लिखे गये पत्र का मतलब आसानी से समझा जा सकता है।
इसी परिपेक्ष में यदि पत्र के तथ्यों पर विचार किया जाये तो इसमें सबसे बड़ा आरोप अध्यक्ष के खिलाफ यह लगाया गया है कि उसने इस कोरोना काल में 12 करोड़ का जाली खर्च किया जाना दिखाया है। इसके लिये फर्जी बिल तैयार करने का आरोप है। इस आरोप पर विचार करने पर सबसे पहले ता यह सामने आता है कि आरोप लगाने वाले ने यह खुलासा नहीं किया है कि प्रदेश ईकाई के पास यह 12 करोड़ आये कहां से? क्या केन्द्र ने दिये या कार्यकर्ताओं द्वारा इकट्ठे किये गये। क्या यह बिल बनाकर केन्द्र को भेजे जाने थे और केन्द्र ने यह पैसा प्रदेश को देना था। क्या यह पैसा यदि आना भी था तो क्या पार्टी के खाते में आना था या कुलदीप राठौर के नीजि खाते में आना था। इन स्वभाविक सवालों से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह बारह करोड़ का आरोप केवल गंभीरता लाने के लिये ही लगाया गया है। वैसे यह बारह करोड़ का जिक्र एक समय मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर भी कर चुके हैं। वैसे इस पत्र में जितने भी नेताओं की जिक्र किया गया है उनमें से अधिकांश के खिलाफ भाजपा के आरोप पत्रों में आरोप रहे हैं। कुलदीप राठौर कभी विधायक या मन्त्री नहीं रहे हैं इस नाते वह आरोपों से बचे हुए हैं। दूसरी और भाजपा की कार्यशैली ही यह है कि वह आरोपों और जांच ऐजैन्सीयों के सहारे ही अपने विरोधियों पर हावी होने का प्रयास करती है। 2014 और 2019 के चुनावों में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी से लेकर नीचे प्रदेश नेताओं तक ने कैसे स्व. वीरभद्र के खिलाफ आयकर, ईडी और सीबीआई द्वारा बनाये गये केसों को उछाला था यह पूरा प्रदेश जानता है। लेकिन आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा के पास ऐसा कोई हथियार कांग्रेस और उसके नेताओं के खिलाफ नहीं होगा। कानून के जानकारों के मुताबिक वीरभद्र के खिलाफ बनाये गये केसों का परिवार पर कोई प्रभाव नहीं होगा क्योंकि सभी मामलों में मुख्य दोषी वही थे।
इस वस्तुस्थिति में यह पत्र लिखकर कांग्रेस को कमज़ोर करने का जो प्रयास किया गया है उससे कांग्रेस का नुकसान होने की कोई संभावना नहीं रह जाती है। यहां यह उल्लेखनीय है कि कुलदीप राठौर ने जनवरी 2019 में प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सम्भाली थी। उस समय राठौर के नाम पर वीरभद्र सिंह, आन्न्द शर्मा, आशा कुमारी और मुकेश अग्निहोत्री सभी ने लिखित में सहमति दी है। उस समय भी हाई कमान के सामने सभी नाम थे और उन पर हाई कमान की सहमति नहीं थी। इसलिये अब अध्यक्ष को परफारमैन्स के आधार पर ही बदलने की बात आ सकती है। राठौर ने जिम्मेवारी संभालने के बाद 2019 के लोकसभा और फिर दो उपचुनाव हुए हैं। लोकसभा चुनाव में किस तरह स्व. वीरभद्र और पंडित सुखराम के अहंकार का टकराव रहा है उससे चुनाव में नुकसान होना तय था, शैल ने उस समय यह स्पष्ट लिखा हुआ है। लोकसभा चुनाव लड़ने तक के लिये वरिष्ठ नेता तैयार नहीं थे। उपचुनाव तक वही स्थिति बनी रही। लेकिन इसके बाद जब राष्ट्रीय स्तर पर हालात बदलने लगे तो उसका लाभ प्रदेश की पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में मिला। जब चार नगर निगमों के चुनाव पार्टी चिन्ह पर लड़े गये तब दो निगमों में हुई सीधी जीत ने पार्टी और उसके सामूहिक नेतृत्व की क्षमता पर मोहर लगा दी है। इस समय मोदी और भाजपा के खिलाफ जासूसी प्रकरण तथा किसान आन्दोलन से राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह की परिस्थितियों का निर्माण होता जा रहा है उससे आने वाले समय में निश्चित रूप से कांग्रेस को लाभ मिलेगा। फिर जिन राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच तीसरा कोई नहीं है वहीं पर काग्रेंस को सत्ता में आने से रोकना कठिन है। हिमाचल में तीसरा कोई नहीं है ऐसे में इस तरह के पत्रों और कुछ तीसरों को खड़ा करने जैसे प्रयास आने वाले दिनों में देखने को मिलते रहेंगे ऐसा माना जा रहा है। कांग्रेस ऐसी चुनौतियों का कैसे सामना करेगी यह देखना दिलचस्प होगा।
शिमला/शैल। प्रदेश सरकार के पर्यावरण विभाग में कार्यरत अतिरिक्त निदेशक प्रवीण गुप्ता ने शिमला के थाना सदर में एक एफआईआर 20 जुलाई को दर्ज करवाई है। गुप्ता ने पुलिस को दी शिकायत में कहा है कि बद्दी - बरोटीवाला - नालागढ़ फार्मा एण्ड ड्रग ऐसोसियेशन की ओर से सोशल मीडिया में एक जाली और मनघडंत पत्र वायरल हो रहा है। गुप्ता ने दावा किया है कि उक्त ऐसोसियेशन की ओर से ऐसा कोई पत्र जारी नहीं किया है क्योंकि उन्होंने इस बारे में इन्कार किया है। प्रवीण गुप्ता ने आरोप लगाया है कि इस पत्र में उनके और उनके परिवार के सदस्यों को घटिया झूठे और आधारहीन आरोप लगाकर उन्हें परिवार सहित बदनाम करने का प्रयास किया गया है। पुलिस ने गुप्ता की इस शिकायत पर आई पीसी की धाराओं 505(2) 500 और 504 में एफआईआर दर्ज करके इस मामले की छानबीन एसएचओ संदीप चौधरी को सौंपी है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक शिकायत का आधार बने पत्र में भ्रष्टाचार और सरकार के संरक्षण तथा कई अन्य आरोप भी हैं।
प्रवीण गुप्ता इस समय पर्यावरण विभाग में अतिरिक्त निदेशक प्रदुषण नियन्त्रण बोर्ड में अधीक्षण अभियन्ता और पर्यावरण इम्पैक्ट असैसमैन्ट अप्रेज़ल विशेषज्ञ कमेटी के सदस्य सचिव की भी जिम्मेदारी निभा रहे हैं अभी पिछले दिनों प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड में मुख्य अभियन्ताओं के भी दो पद सृजित किये गये हैं। माना जा रहा है कि शीघ्र ही बोर्ड में इस पद पर भी उनकी पदोन्नति हो जायेगी। स्मरणीय है कि जब 2016 में Preservation of Kasauli and its Environs ने एनजीटी में एक याचिका दायर की थी उसमें जब प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के अधिकारी पेश हुए थे तो उनकी भूमिका पर एनजीटी ने बड़ी कड़ी टिप्पणी की थी। उनजीटी के समक्ष पेश हुए अधिकारियों में यह प्रवीण गुप्ता भी शामिल थे। एनजीटी की टिप्पणीयों पर आज तक किसी भी सरकार ने किसी भी अधिकारी के खिलाफ कोई कारवाई नहीं की है।
अब जब प्रवीण गुप्ता ने थाना सदर में एफआईआर दर्ज करवायी है और उस पर पुलिस ने जो धाराएं लगाई है उससे अनचाहे ही एक नयी चर्चा छिड़ गयी है। कानून के जानकारों के मुताबिक आईपीसी की जिन धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है वह शायद इसमें बनती ही नहीं है। क्योंकि यह मामला धारा 505 (2), 500 और 504 के तहत दर्ज किया गया है। इसमें धारा 500 और 504 दोनो संज्ञेय नही है। यह शैडयूल के मुताबिक Non Cognizable धाराएं हैं। इनमें Defamation का मामला सीधा अदालत में दायर होता है। धारा 505(2) उन मामलों में आकर्षित होती है जहां पर किसी लिखित, प्रकाशित या मौखिक ब्यान-कथन से दो वर्गों/समुदायों के बीच शत्रुता आदि बढ़ने की संभावना हो वहां यह धारा आकर्षित होती है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या प्रवीण गुप्ता पर लगाये आरोपों से दो समुदायों के बीच विभिन्न वर्गों के बीच घृणा, शत्रुता या दुर्भावना पैदा हो सकती है। यदि किसी कर्मचारी या अधिकारी के खिलाफ बेबुनियाद और फर्जी शिकायत में भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गये हो तो क्या उससे सामाजिक सदभाव बिगड़ने की आशंका हो सकती है?
यदि पुलिस को प्रवीण गुप्ता की शिकायत पर सामाजिक सदभाव बिगड़ने की संभावना नज़र आयी है तो उससे तो यह स्वतः ही प्रमाणित हो जाता है कि गुप्ता एक प्रभावशाली व्यक्ति है। तब इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि ऐसे प्रभावशाली व्यक्ति के खिलाफ कोई भी सीधे सामने आकर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने का साहस कैसे करेगा? क्या तब कोई गुमनाम या फर्जी शिकायत कर्ता होने का ही रास्ता नहीं लेगा? पुलिस द्वारा इसमें यह एक धारा 505(2) लगाये जाने से सारे मामले की गंभीरता ही बदल जाती है। पुलिस इस मामले की जांच कैसे आगे बढ़ाती है और अदालत क्या संज्ञान लेती है यह देखना रोचक होगा। वैसे गुप्ता द्वारा दी गयी शिकायत में यह खुलासा नहीं किया गया है कि यह फर्जी पत्र उनके पास या इस ऐसोसियेशन के पास किस माध्यम से आया है। कानून के जानकारों के मुताबिक इस शिकायत की जांच और उसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे तथा कईयों पर इसके छीटें पड़ेंगे क्योंकि अब यह मामला सार्वजनिक विषय बन गया है।
यह है दर्ज हुई एफआईआर
1:- Case FIR No. 143/21 Dated 20.07.2021 u/s 505(2),500,504 IPC has been registered at PS Sadar on the complaint of Sh. Parveen Gupta Additional Director, Department of Environment, Science and Technology, Paryavaran Bhawan, Near US Club, Shimla that one forged, fabricated letter has been circulated on behalf of the Baddi Barotiwala Nalagarh Parma and Drug association whereby certain derogatory, false, baseless and wild allegations have been leveled against him and his family. This letter has not been issued by and on behalf of the Baddi Barotiwala Nalagarh Parma and Drug association as denied by them. This letter has been issued by some vested interest persons, tarnishing him and his family image. Insp/ SHO Sandeep Choudhary PS Sadar is investigating the case
यह हैं आईपीसी की धाराएं
Section 505. Statements conducing to public mischief.
1[505. Statements conducing to public mischief.-- 2[(1)] Whoever makes, publishes or circulates any statement, rumour or report,
(a) with intent to cause, or which is likely to cause, any officer, soldier, 3 [sailor or airman] in the Army, 4 [Navy or Air Force] 5 [of India] to mutiny or otherwise disregard or fail in his duty as such; or
(b) with intent to cause, or which is likely to cause, fear or alarm to the public, or to any section of the public whereby any person may be induced to commit an offence against the State or against the public tranquility; or
(c) with intent to incite, or which is likely to incite, any class or community of persons to commit any offence against any other class or community,
shall be punished with imprisonment which may extend to 6[three years], or with fine, or with both.
7[(2) Statements creating or promoting enmity, hatred or ill-will between classes. Whoever makes, publishes or circulates any statement or report containing rumour or alarming news with intent to create or promote, or which is likely to create or promote, on grounds of religion, race, place of birth, residence, language, caste or community or any other ground whatsoever, feelings of enmity, hatred or illwill between different religious, racial, language or regional groups or castes or communities, shall be punished with imprisonment which may extend to three years, or with fine, or with both.
(3) Offence under sub-section (2) committed in place of worship, etc.Whoever commits an offence specified in sub- section (2) in any place of worship or in any assembly engaged in the performance of religious worship or religious ceremonies, shall be punished with imprisonment which may extend to five years and shall also be liable to fine.]
Exception.It does not amount to an offence, within the meaning of this section, when the person making, publishing or circulating any such statement, rumour or report, has reasonable grounds for believing that such statement, rumour or report is true and makes, publishes or circulates it 2 [in good faith and] without any such intent as aforesaid.]
शिमला/शैल। प्रदेश में चार उपचुनाव होने जा रहे हैं जिनमें तीन विधानसभा के लिये और एक लोकसभा के लिये। विधानसभा के तीन रिक्त स्थानों में 2017 में दो कांग्रेस के पास और एक भाजपा के पास रहा है। लोकसभा की चारों सीटें 2014 में भी और 2019 में भी भाजपा के पास ही रही है। बल्कि जीत का अन्तर 2019 में 2014 के मुकाबले कही ज्यादा रहा है। 2014 के बाद हुए सभी चुनाव कांग्रेस हार गयी है। केवल इस बार चार नगर निगमों के लिये हुए चुनावों में कांग्रेस सोलन और पालमपुर की नगर निगम में जीत कर इस पर ब्रेक लगाने में सफल हुई है। इस वस्तुस्थिति में आज दोनों पार्टीयां कांग्रेस और भाजपा की साख दांव पर लगी हुई है। भाजपा और जयराम सरकार के लिये यह आवश्यक होगा कि वह चारों सीटों पर जीत दर्ज करे। यदि जयराम के नेतृत्व में भाजपा ऐसा कर पाती है तभी जयराम का कब्जा नेतृत्व पर बना रहेगा। अन्यथा उस पर सवाल लगने शुरू हो जायेंगे। इन उपचुनावों में शायद प्रधानमन्त्री और गृह मन्त्री अमितशाह चुनाव प्रचार के लिये न आ पायें। इसलिये यह उपचुनाव पूरी तरह प्रदेश नेतृत्व की ही परीक्षा माने जायेंगे।
इन चुनावों में टिकटों का बंटवारा भी एक बड़ा सवाल होगा। क्योंकि चारों स्थानों के लिये कई कई प्रत्याक्षी दावेदारी जताने पर आ गये हैं। विधानसभा के लिये फतेहपुर जुब्बल कोटखाई और अर्की तीनों ही स्थानों पर पार्टी में बगावत के स्वर सामने आने लग पड़े है। फतेहपुर में राजन सुशांत लम्बे अरसे से ओल्ड पैन्शन स्कीम के मुद्दे पर कर्मचारीयों का समर्थन जुटाने के लिये धरने पर हैं। राजन सुशांत को मनाने के लिये पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती का उनसे मिलना चर्चा में आ चुका है और इसी से वहां पर पार्टी के कार्यकर्ताओं में और रोष पनप गया है। अर्की में 2017 में वहां से दो बार विधायक रह चुके गोविन्द राम शर्मा का टिकट काट कर रतन पाल को उम्मीदवार बनाया गया था। वह वीरभद्र सिंह से चुनाव हार गये थे। लेकिन हारने के बाद भी उनकी सरकार और संगठन में ताजपोशी कर दी गयी। जबकि गोविन्द राम शर्मा के साथ उस समय किये गये वायदे आज तक वफा नही हुये हैं। इस बेवफाई पर गोविन्द और उनके समर्थकों का नाराज होना स्वभाविक है। अब जब अर्की में उपचुनाव आ खड़ा हुआ है तब गोविन्द और उनके समर्थकों को अपनी नाराज़गी जाहिर करने का मौका मिल गया। दाड़लाघाट में अपने समर्थकों के साथ एक बैठक करके गोविन्द ने इस नाराज़गी को उजागर भी कर दिया है। इस नाराजगी के बाहर आते ही प्रभारी को अर्की पहुंचना पड़ा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार गोविन्द राम शर्मा से किये गये वायदे कितने सिरे चढ़ते हैं।
जुब्बल कोटखाई में जो रार एक समय स्व.बरागटा और शहरी विकास मन्त्री सुरेश भारद्वाज के बीच रही है वह शायद अब भी पूरी तरह खत्म नही हुई है। सुरेश भारद्वाज को जब इस उप चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई थी तब यह पुराने प्रंसग एक बार फिर सामने आ चुके हैं। इसी स्थिति को जानकर आज मुख्यमन्त्री को यहां पर चुनावों से पहले दो एसडीएम कार्यालय खोलने की घोषणा करनी पड़ी है। चुनावों के लिये किये गये वायदे कितने पूरे होते हैं यह सभी जानते हैं। इसी तरह मण्डी लोकसभा के लिये तो स्थिति और भी रोचक होगी। इस चुनाव की जिम्मेदारी संभाले जल शक्ति मन्त्री महेन्द्र सिंह के ब्यानों से पैदा हुए विवादों को राजनीतिक विश्लेषक एक सोची समझी चाल मान रहे हैं। फिर यहां पर स्व. रामस्वरूप शर्मा की आत्महत्या का मामला अभी तक सुलझा नहीं है। दिल्ली पुलिस की अब तक की जांच के बाद राम स्वरूप शर्मा के बेटे ने भी इसे आत्महत्या का मामला मानने की बजाये इस हत्या का मामला मानकर जांच करने की मांग कर दी है। वह इस संद्धर्भ में केन्द्रिय मन्त्री नितिन गडकरी से भी इस आश्य की गुहार लगा चुका हैं। रामस्वरूप के बेटे के इस ब्यान का कोई खण्डन नही कर पाया है। यह सवाल इस चुनाव में अहम मुद्दा बन सकता है। इस परिदृश्य में मण्डी लोकसभा के लिये उम्मीदवार का चयन करना आसान नही होगा।
शिमला/शैल। इस समय भाजपा शासित किसी भी राज्य में महिला मुख्यमन्त्री नहीं है। केन्द्रिय मन्त्रीमण्डल के फेरबदल मे इस बार महिलाओं को अधिमान दिया गया है। लेकिन कोई भी महिला मुख्यमन्त्री न होना भाजपा हाई कमान में सूत्रों के मुताबिक चिन्ता और चिन्तन का विषय बना हुआ है। प्रदेश भाजपा कोर कमेटी की जब शिमला और धर्मशाला में मन्थन बैठक हुई थी और उसमें सरकार तथा संगठन के काम काज का आकलन हुआ था। तब उसी दौरान दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा तथा प्रदेश से राज्य सभा सांसद महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महामन्त्री इन्दु गोस्वामी में भी एक बैठक हुई थी। प्रदेश कोर कमेटी की बैठक के बाद तैयार हुई रिपोर्ट कार्ड में बड़े पैमाने पर नान परफारमैन्स का जिक्र हुआ है यह बाहर आ चुका है। इसी के साथ जलशक्ति मन्त्री महेन्द्र सिंह के कुछ ब्यानों ने भी विवाद की स्थिति पैदा कर दी है। सरकार की वर्किंग को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गये हैं। प्रदेश के 47 कॉलिजों में नियमित प्रिंसिपल नहीं है। एचपीएमसी के परवाणु प्लांट से 60 लाख के जूस के गायब पाये जाने पर अभी कोई कारवाई सामने नहीं आयी है। परिवहन निगम द्वारा दो सौ बसें खरीदने का प्रयास किया जाना जबकि फील्ड से इस तरह की कोई मांग न आयी हो। बल्कि पहले से खरीदी हुई कई बसें अभी तक ऑपरेशन में ही नहीं आ पायी हैं। निगम में ड्राईवरों और परिचालकों के कई पर रिक्त हैं। सेवनिवृत कर्मीयों को पैन्शन आदि का नियमित भुगतान न हो पाने पर यही कर्मी पत्रकार वार्ताओं के माध्यम से अपनी समस्या सरकार और निगम प्रबन्धन के सामने रख चुके हैं। ऐसे हालात में भी नयी बसें खरीदने की कवायद करना सरकार की नियत और नीति पर सवाल उठायेगा ही। ऐसी वस्तुस्थिति जब हाई कमान के संज्ञान में आयेगी तो निश्चित रूप से इसका कड़ा संज्ञान लिया ही जायेगा।
सूत्रों की माने तो हाई कमान के सामने यह सारे मुद्दे आ चुके हैं। कोर कमेटी की बैठक के बाद जब प्रवक्ता ने नेतृत्व के प्रश्न पर जवाब दिया था उस जवाब पर भी शायद बीएल सन्तोष ने अप्रसन्नता व्यक्त की थी। प्रदेश की इन परिस्थितियों के परिदृश्य में अब जब मुख्यमन्त्री दिल्ली गये थे तब यह चर्चा फैल गयी थी कि शायद हाई कमान प्रदेश में महिला मुख्यमन्त्री लाने का प्रयोग करने जा रहा है। इस प्रयोग में इन्दु गोस्वामी का नाम सामने आया था। कांगड़ा में तो यह चर्चा बहुत जोरों पर थी बल्कि सचिवालय तक भी आ पहुंची थी। सूत्रों के मुताबिक इन्दु गोस्वामी के संज्ञान में भी यह सब रहा है और उन्होंने ऐसी चर्चाओं का कोई खण्डन भी नहीं किया है। माना जा रहा है कि भाजपा हाईकमान महिला मुख्यमन्त्री लाने का गंभीरता से विचार कर रहा है। यह प्रयोग हिमाचल में किया जाता है या किसी अन्य प्रदेश में इस पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। ऐसे में यदि मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर अपनी टीम में नॉन परफार्मरज़ के खिलाफ कोई कदम नही उठा पाते हैं तो आने वाले दिनों में कुछ कठिनाईयां बढ़ना तय है। वैसे इस नॉन परफार्मिंग का पता इन आने वाले उपचुनावों में लग जायेगा।