शिमला/शैल। क्या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का बदलाव होगा? क्या विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के होने वाले मुख्यमन्त्री के नाम की घोषणा कर दी जायेगी? यदि ऐसी घोषणा हो जाती है तो वह चेहरा कौन होगा? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जो एक कांग्रेस कार्यकर्ता से लेकर प्रदेश के आम आदमी के सामने आने लग पड़े हैं। क्योंकि इसी वर्ष के अंत में चुनाव होने हैं। भाजपा से सत्ता छीनने का सवाल होगा और इसमें यह हर समय सामने रहेगा कि संसाधनों के नाम पर कांग्रेस भाजपा का मुकाबला नहीं कर पायेगी। क्योंकि केंद्र और प्रदेश में दोनों जगह भाजपा की सरकारें हैं। फिर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और जेपी नड्डा से लेकर दर्जनों केंद्रीय मंत्री चुनाव प्रचार में आयेंगे। कांग्रेस को भाजपा के एक व्यवहारिक पक्ष को सामने रखकर अपनी तैयारियां करनी होगी। इसलिये यह सवाल अहम हो जाता है कि प्रदेश कांग्रेस का आकलन इस परिदृश्य में किया जाये। क्योंकि भाजपा का आकलन उस पर लगे आरोपों के आईने में कांग्रेस का उसकी अक्रमकता के आईने में किया जायेगा।
स्मरणीय है कि 2017 के चुनाव के समय स्व. वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री और सुखविंदर सिंह सुक्खू पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे। कांग्रेस चुनाव हार गयी थी। इस हार के बाद जब कांग्रेस विधायक दल का नेता चुनने की बात आयी तब हाईकमान ने यह जिम्मेदारी ना तो स्व. वीरभद्र सिंह को दी और ना ही सुक्खू को। यह जिम्मेदारी मुकेश अग्निहोत्री को दी गयी। जबकि शायद 17 लोगों ने स्व. वीरभद्र सिंह के पक्ष में हस्ताक्षर करके उन्हें यह जिम्मेदारी दिये जाने की मांग की थी। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सुक्खू को हटाकर कुलदीप राठौर को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। पार्टी 2019 में लोकसभा की चारों सीटें हार गयी। सोलन में राजेंद्र राणा और पालमपुर में मुकेश अग्निहोत्री के हाथों में कमान थी। नगर निगम के बाद अब तीन विधानसभा और एक लोकसभा उपचुनाव पार्टी जीत गयी। मंडी लोकसभा की जिम्मेदारी फिर मुकेश अग्निहोत्री के पास थी। जिन्होंने 17 विधानसभा क्षेत्रों का संचालन किया।
इस परिपेक्ष में यह सवाल उठता है कि इस दौरान प्रदेश कांग्रेस की कार्यशैली विधानसभा के भीतर और बाहर क्या रही। विधानसभा के भीतर बतौर नेता प्रतिपक्ष जिस कदर मुकेश अग्निहोत्री जयराम और उनकी सरकार पर आक्रामक रहे हैं उसके कारण वह आज मुख्यमंत्री से लेकर भाजपा के हर छोटे बड़े नेता के निशाने पर चल रहे हैं। जब विधानसभा में राज्यपाल से ही टकराव की स्थिति धरने प्रदर्शन तक पहुंच गई थी तब संगठन की ओर से कोई बड़ा योगदान नहीं मिल पाया है यह कई दिन चर्चा का विषय बना रहा था। आज भी सदन के भीतर जो आक्रमकता कांग्रेस की सामने आती है उसके मुकाबले में संगठन सदन के बाहर कोई प्रभावी भूमिका नहीं निभा पा रहा है। अभी तक कांग्रेस का आरोप पत्र सामने नहीं आ पाया है। जबकि भाजपा ने हर चुनाव में कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ व्यक्तिगत स्तर पर आरोप लगाये हैं। स्व.वीरभद्र सिंह के खिलाफ बने मामलों को प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा के हर नेता ने हर चुनाव में उछाला है। यह अब एक चुनावी संस्कृति बन गयी है कि जब तक विरोधी को व्यक्तिगत स्तर पर नहीं घेरा जायेगा तब तक जनता आपको गंभीरता से नहीं लेती हैं। प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व अभी तक मुख्यमंत्री जयराम और उनके दूसरे सहयोगियों को व्यक्तिगत स्तर पर नहीं घेर पाया है। जबकि दर्जनों गंभीर मामले सामने हैं। अभी घटे शराब कांड में ही भाजपा के दो बड़े नेताओं के नाम हर आदमी की जुबान पर हैं। लेकिन कांग्रेस नेता यह नाम लेने से बच रहे हैं। आज शायद प्रदेश के सात-आठ ठेकेदारों के पास ही सात सौ करोड़ से अधिक के ठेके हैं। एक मंत्री का भाई तो शायद पूरे जिले को संभाल रहा है। जनता में यह चर्चायें आम है लेकिन कांग्रेस मौन है। कांग्रेस का यह मौन तोड़ने के लिए हाईकमान को समय रहते नेतृत्व के सवालों को सुलझा लेना होगा अन्यथा नुकसान हो सकता है। जातीय समीकरण भी प्रभावी रहते हैं इस पर अगले अंक में चर्चा की जायेगी।
केंद्रीय बजट से निराश होकर राज्य सरकार से अपने बजट में इन्हें पूरा करने को कहा
देश के जीडीपी का 45% किसानी बागवानी से आता है
रोजगार के सबसे ज्यादा अवसर भी यही क्षेत्र पैदा करता है
शिमला/शैल। किसान की राजनीतिक ताकत कितनी और क्या है इसका एहसास तेरह माह चले किसान आंदोलन ने सबको करवा दिया है। इसी आंदोलन के कारण अंततः सरकार को विवादित कृषि कानून वापस लेने पड़े। किसानों के खिलाफ बनाये गये आपराधिक मामले वापस लेने और एम एस पी के लिए कमेटी गठित करने की घोषणाएं करनी पड़ी। संसद में जब कृषि कानून वापस लेने का बिल पारित हो गया तो उसके बाद किसानों ने अपना आंदोलन वापस लिया। लेकिन व्यवहारिक रुप से जब मामले वापस लेने और एम एस पी के लिए कमेटी गठित करने की घोषणाओं पर अमल नहीं हो सका तब किसान यूनियन ने फिर से आंदोलन की घोषणा कर दी है। 2023 में भी आंदोलन जारी रखने का ऐलान किसान नेताओं की ओर से आ गया है। इसके लिए किसान संगठन ने जो रणनीति अपनाई है उसके तहत एक पूरे शोध के बाद कुछ किसान समस्याओं को चिन्हित करने के बाद इन्हें राज्य सरकारों को भेजा गया है। हिमाचल में भी भारतीय किसान यूनियन ने इसके अध्यक्ष अनेंदर सिंह नॉटी की अध्यक्षता में राज्य सरकार को एक ग्यारह सूत्रीय मांग पत्र सौंपा है। मांग पत्र में साफ कहा गया है कि केंद्र सरकार के बजट से किसानों को घोर निराशा हुई है। इसलिए राज्य सरकार से मांग की गई है कि वह अपने बजट में किसानों की इन मांगों को पूरा करने के लिए निश्चित और ठोस कदम उठाये। इस मांग पत्र में साफ कहा गया है कि प्रदेश की 80% जनता कृषि और बागवानी पर आश्रित है रोजगार के सबसे ज्यादा अवसर भी यही क्षेत्र पैदा करता है मांग पत्र में यह भी साफ कर दिया गया है कि सरकार जिस गंभीरता से प्रदेश के कर्मचारियों वर्ग को लेती है किसानों को उससे भी ज्यादा गंभीरता से लें ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि क्या जयराम सरकार अपने बजट में किसानों की मांगों को पूरा करने के लिए व्यवहारिक कदम उठा पाती है या नहीं
यह है किसानों का मांग पत्र
1. केंद्र सरकार की फसल बीमा योजना हिमाचल प्रदेश के किसानों को लाभ पहुंचाने में पूर्णत विफल रही है इसलिए स्थानीय परिस्थितियों और मौसम को देखते हुए राज्य सरकार अपने स्तर पर फसल बीमा योजना लाए ताकि हिमाचल के किसानों को इसका असली लाभ मिल सके।
2. हिमाचल प्रदेश के किसानों , बागवानों, खासतौर पर ऊपरी क्षेत्र के बागवानों हेतु यूटिलिटी तथा पिकअप जैसे वाहन जो अभी तक ’व्यवसायिक श्रेणी’ में रखे गए हैं उनको ’प्राइवेट रजिस्ट्रेशन’ के दायरे में लाया जाए तथा इस पर भी ’ट्रैक्टर’ की तर्ज पर सरकार सब्सिडी दे क्योंकि पहाड़ी क्षेत्र में ट्रैक्टर से अधिक इन वाहन की जरूरत पड़ती है तथा खेती में उपयोग होने वाली वस्तुओं से लेकर अपनी फसल की ढुलाई के लिए इन वाहनों की सारा साल जरूरत पड़ती है। निजी उपयोग के बावजूद व्यवसायिक श्रेणी में होने के कारण किसानों को ’रोड टैक्स, पासिंग और इंश्योरेंस’ के रूप में भारी-भरकम पैसा सरकार को भरना पड़ता है।
3. कृषि उपज मंडी समिति की आय का खर्च भी किसानों के लिए होना चाहिए और किसी अन्य मद में इसका पैसा खर्च ना हो। एपीएमसी की आय का एक हिस्सा ’कोल्ड स्टोर बनाने और खेती में रिसर्च’ हेतु रखा जाए। हिमाचल प्रदेश में हर ब्लॉक स्तर पर एक नई मंडी बनाई जाए तथा पहले से मौजूद मंडियों की क्षमता और सुविधा बढ़ाई जाए। टमाटर, अदरक, लहसुन,सेब, स्टोन फ्रूट पर आधारित पल्प प्लांट्स को लगाया और बढ़ावा दिया जाए फल सब्जी साथ मटर आदि के कैनिंग यूनिट भी कृषि मंडी में लगाए जाएं।
4. पहाड़ी क्षेत्रों में जहां सड़क नहीं है वहां फसलों को सड़क तक लाने हेतु छोटे रोपवे पर भी सरकार 80% तक सब्सिडी का प्रावधान करें इससे सुदूर पहाड़ों पर बगीचों में नए होमस्टे भी खुलेंगे तथा किसान पर्यटन के द्वारा भी अपनी आर्थिकी को मजबूत कर पाएंगे।
5. गेहूं के साथ मक्की हिमाचल प्रदेश में सबसे अधिक बोई जाने वाली फसल है, इसलिए सरकार 2022 वर्ष से मक्की की फसल की भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद सुनिश्चित करे तथा हिमाचल प्रदेश की मक्की का आटा पूरे भारत में सबसे अधिक पौष्टिक तथा गुणवत्ता वाला है इसलिए सरकारी डिपो में गेहूं के साथ-साथ मक्की का आटा भी उपलब्ध करवाया जाए ताकि हिमाचल प्रदेश में खरीदी गई ’मक्की का आटा हिमाचल प्रदेश में ही रसोई घरों’ तक पहुंचे।
6. हिमाचल प्रदेश में किसानों की सुविधा तथा फसलों के भंडारण के लिए कोल्ड स्टोर चेन के लिए उचित बजट का प्रावधान हो तथा हिमाचल प्रदेश में ’कोल्ड स्टोर कॉरपोरेशन’ की स्थापना करके अलग से विभाग बनाया जाए।
7. भांग व अफीम के औषधीय और औद्योगिक उपयोग के लिए सरकार इसकी खेती को कानूनी दर्जा जल्द से जल्द प्रदान करें।
8. इस वर्ष हिमाचल प्रदेश में धान की खरीद में किसानों को बहुत दिक्कत आई जिसका मुख्य कारण किसी प्रादेशिक एजेंसी का मध्यस्थ ना होना रहा है अतः सिविल सप्लाई कॉरपोरेशन व कृषि उपज मंडी समिति को खरीद में मध्यस्थ नियुक्त किया जाए तथा टोकन की व्यवस्था को और सरल किया जाए।
9. जिला सिरमौर स्थित धौलकुआं में कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर की स्थापना हो ताकि किसानों के बच्चे कृषि के विषय में पढ़ाई कर सकें।इसके अतिरिक्त स्कूली पाठ्यक्रम में भी कृषि बागवानी को दसवीं तक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
10. बड़े शहरों में किसान हाट हेतु जगह उपलब्ध करवाई जाए जहां किसान अपने उत्पाद सीधे बेच पाए और उपभोक्ता को भी ताजे फल सब्जी सीधे सस्ते मिलें।
11. दिल्ली चंडीगढ़ देहरादून जैसे शहरों हिमाचल के फलों और सब्जी के अपने आउटलेट हों और हिमाचली ब्रांड के तहत सीधे किसानों से खरीद कर कृषि विभाग वहां फल सब्जी बेचे।
सुरेश भारद्वाज के इस ब्यान से पार्टी में बढ़ी हलचल
जयराम की धूमल और अनुराग से बैठकें चर्चा में
शिमला/शैल। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर संगठन के मण्डल मिलन कार्यक्रमों के तहत जब हमीरपुर और कांगड़ा के दौरे पर आये तो पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के साथ हुई उनकी बैठक को लेकर प्रदेश के राजनीतिक हलकों में एक बार फिर चर्चाओं का दौर चल पड़ा है। इस दौर से पहले वह दिल्ली भी गये थे कुछ केंद्रीय नेताओं से मिलने। दिल्ली के दौरे में भी पहले अनुराग ठाकुर को मिले और फिर उनको साथ लेकर अन्य नेताओं से मिले। धूमल और अनुराग से जयराम का यह मिलना इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि पिछले दिनों हुए उपचुनाव में चारों सीटें हारने का ठीकरा जयराम से जुड़े एक वर्ग ने सीधे धूमल के सिर फोड़ा था। उपचुनाव की हार के बाद यह लगातार प्रचारित किया गया कि सरकार और संगठन में बड़े स्तर पर बदलाव हो रहा है। चार-पांच मंत्रियों को बदले जाने की चर्चाएं चली। लेकिन आज तक यह चर्चाएं अमली शक्ल नहीं ले पायी। इसी बीच स्वास्थ्य मंत्री ने एक पत्रकार वार्ता बुलाई। हॉलीडे होम में रखी यह वार्ता सफल नहीं हो पायी। क्योंकि पहले पत्रकार नहीं पहुंचे और जब कुछ पत्रकार पहुंचे तब आयोजकों में से कोई नहीं था। इसके बाद शहरी विकास मंत्री ने वार्ता आयोजित कि उन्होंने अपने संबोधन में यह कहा कि 2017 में जो सरकार जयराम ठाकुर के नेतृत्व में बनी थी वह पुराने नेतृत्व नीयत और नेता सभी को खत्म करके बनी थी।
सुरेश भारद्वाज के इस ब्यान को राजनितिक हलकों में इस तरह देखा जा रहा है कि क्या उस समय घूमल की हार प्रायोजित थी। भारद्वाज के इस ब्यान से पूरी पार्टी शिमला से लेकर दिल्ली तक हिल गयी है। स्मरणीय है कि 2017 में भाजपा ने प्रेम कुमार धूमल को नेता घोषित करके प्रदेश का चुनाव लड़ा था और सत्ता में पहुंची थी। यह सही है कि उस समय धूमल अपना चुनाव हार गये थे। उनके विश्वस्त माने जाने वाले कुछ अन्य भी चुनाव हार गये। लेकिन यह भी सच है कि यदि उस समय धूमल को नेता न घोषित किया जाता तो भाजपा सत्ता में ना आती। उस समय धूमल के हारने के बाद भी विधायकों का बहुमत उनको मुख्यमंत्री बनाना चाहता था और दो तीन लोगों ने उनके लिये सीट खाली करने की पेशकश भी कर दी थी। लेकिन धूमल ने जनता के निर्णय को स्वीकार करते हुये अपने को नेता की दौड़ से किनारे कर लिया। लेकिन उसके बाद जंजैहली प्रकरण को लेकर जो कुछ घटा वह भी सबके सामने है। लेकिन इस बीच एक बार भी यह सामने नहीं आया कि धूमल की ओर से सरकार को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष में असहज करने के लिए कुछ किया गया। जयराम ठाकुर के नेतृत्व को कहीं से कोई चुनौती वाली स्थिति नहीं आयी। लेकिन मुख्यमंत्री के अपने ही गिर्द कुछ ऐसे लोगों का जमावड़ा हो गया जो शायद सत्ता के बहुत ज्यादा पात्र नहीं थे। यह लोग सत्ता से जुड़े लाभों को ऐसे बटोरने लगे कि आपस में ही इनके हितों में टकराव आना शुरू हो गया। यही टकराव पत्र बम्बों के रूप में उठना शुरू हुआ। इसका नजला हर किसी पर गिराना शुरू हो कर दिया। इन पत्र बम्बों को लेकर पुलिस तक मामले बनाये गये। कुछ लोगों पर निशाना साधना जारी रहा। लेकिन यह लोग इतने मदान्ध हो गये कि यह भी भूल गये कि वह अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। कुछ मामले तो ऐसे खड़े कर लिये गये जिनकी जांच से शायद मुख्यमंत्री भी नहीं बच पायेंगे।
इस तरह इन लोगों ने एक ऐसा वातावरण खड़ा कर दिया कि यह लोग निरंकुश हो गये। यह इसी निरंकुशता का परिणाम है कि उपचुनावों में चारों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। अब जिस तर्ज में शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज ने 2017 में पुराने नेतृत्व नेता और नीयत को हटाकर नया नेता लाने की बात की है उससे पार्टी के एक वर्ग में फिर से रोष पनपने की संभावनायें उभरने लग पड़ी हैं। इस परिदृश्य में यह माना जा रहा है कि पार्टी हाईकमान इन ब्यानों और इन से उपजी स्थितियों का संज्ञान लेकर नेतृत्व के प्रश्न पर नये सिरे से विचार करने के लिये बाध्य हो जायेगा। पांच राज्यों के चुनाव के बाद नेतृत्व के सवाल के उभरने की पूरी संभावनायें बन रही हैं। क्योंकि जयराम ठाकुर को इन चुनावों के लिए हाईकमान ने उत्तराखंड भेजा था लेकिन वहां पर उनकी जनसभा में लोगों का होना जब नहीं के बराबर होकर रह गया तो उसे हाईकमान पुनःविचार के लिए बाध्य हो रहा है। अन्यथा यह माना जा रहा है कि जिस तरह से 2017 के नेतृत्व और उसकी नियत पर निशाना साधा गया है उससे पार्टी में धरूवीकरण बढ़ने की संभावना फिर बनना शुरू हो गयी है।
धर्मशाला पर्यटन निगम में वेतन देने का संकट हुआ खड़ा
शिमला/शैल। जयराम सरकार के कार्यकाल का अंतिम वर्ष चल रहा है। इसलिए यह वर्ष चुनावी वर्ष भी है। इस नाते सरकार की सारी घोषणाओं जो चुनाव घोषणा पत्र में की गयी थी और उसके बाद हर वर्ष पेश किये गये बजट प्रपत्रों में हुई उन सबका आकलन इस वर्ष में होना स्वभाविक है। इन सारी घोषणाओं को यदि एक साथ जोड़ा जाये तो इनकी संख्या कई दर्जन हो जाती है। इस चुनावी वर्ष में यह देखा जायेगा कि इन घोषणाओं की जमीनी हकीकत क्या है। सरकार के सभी विभागों के बड़े कार्यों का निष्पादन ठेकेदारों के माध्यम से करवाया जाता है। इसके लिये ठेकेदारों को ठेके दिये जाते हैं। ठेकेदारों द्वारा किये जा रहे कार्यों की जानकारी रखने के लिए सरकार ने 2018-19 के बजट भाषण में ही लोक निर्माण विभाग एवं सिंचाई तथा जन स्वास्थ्य विभागों में ूवतो डंदंहमउदमज प्दवितउंजपवद ैलेजमउ लागू करने की घोषणा की थी। इस योजना का अर्थ है कि ठेकेदारों और उसके द्वारा किये जा रहे काम के हर पक्ष की सूचना सरकार के पास उपलब्ध रहेगी।
अब जब शिमला और अन्य क्षेत्रों में भारी बर्फबारी के चलते सारे रास्ते रुक गये तो बर्फ हटाने रास्ते खोलने आदि के कार्यों के लिये इन ठेकेदारों की सेवाएं सरकार और नगर निगम को लेने की आवश्यकता पड़ी। तब यह सामने आया कि ठेकेदार तो हड़ताल पर हैं। और जब तक उनकी समस्याएं हल नहीं होंगी वह काम नहीं करेंगे। ठेकेदारों की समस्याओं में सबसे पहले यही आया कि उनकी 300 करोड़ से अधिक की पेमेंट का वर्षों से भुगतान नहीं हो रहा है। इसलिए वह काम नहीं करेंगे। ठेकेदारों की कुछ पेमेंट रूके होने का मुद्दा विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी एक प्रश्न के माध्यम से उठा था। इससे यह सवाल उठता है कि जब सरकार ने ठेकेदार और उनके कार्यों को लेकर एक सूचना तंत्र खड़ा करने की बात पहले ही बजट में कर दी थी तो फिर उसे ठेकेदारों की समस्याओं की जानकारी क्यों नहीं मिल पायी। लोक निर्माण विभाग का प्रभार स्वयं मुख्यमंत्री और सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग का प्रभार मुख्यमंत्री के बाद दूसरे सबसे ताकतवर मंत्री ठाकुर महेंद्र सिंह के पास है। सरकार कर्ज लेने के मामले में यह आरोप सह रही है कि प्रदेश को कर्ज के चक्रव्यू में फंसा दिया गया है। दूसरी ओर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के समय-समय पर आये ब्यानों को सही माना जाये तो केंद्र सरकार प्रदेश को 2 लाख करोड से अधिक सहायता दे चुकी है। यह होने के बावजूद भी यदि सरकार ठेकेदारों का भुगतान न कर पाये और उन्हें हड़ताल करने की नौबत आ जाये तो सरकार के वित्तीय प्रबंधन और उसकी प्राथमिकताओं का अंदाजा लगाया जा सकता है। स्मरणीय है कि एक समय सबसे प्रभावशाली माने जाने वाले मंत्री ठाकुर महेंद्र सिंह की बेटी भी उसके पति का यही भुगतान न होने के लिए मण्डी में धरना दे चुकी हैं। इस धरने पर मुख्यमंत्री ने यह कहा था कि वह विभाग से यह पता करेंगे कि भुगतान क्यों रुका है।
यही नहीं धर्मशाला में पर्यटन निगम के करीब सौ कर्मचारियों को पिछले दो-तीन माह से वेतन नहीं मिल पाने की चर्चा है। निगम के पास पैसा न होने के कारण वेतन नहीं दिया जा सका है। पर्यटन निगम को सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 66.07 लाख का भुगतान नहीं किया गया है। धर्मशाला में शीत सत्र के दौरान माननीयों और अधिकारियों के आवभगत की जिम्मेदारी पर्यटन निगम को दी गयी थी। उसके एवज में यह भुगतान नहीं हो पाया है। यहां तक कि विधानसभा सचिवालय भी 3.80 लाख नहीं दे पाया है। स्मार्ट सिटी और केंद्रीय विश्वविद्यालय भी 5 लाख का भुगतान नहीं कर पाये हैं। पर्यटन निगम का अपना प्रशासन नियमों कानूनों का इतना जानकार है कि 40 करोड़ के टेंडरे की अरनैस्ट मनी बीस हजार ले रहा है। जो कि सरकार के वित्तीय नियमों का सीधा उल्लंघन है। 16 हाटेलों को लीज पर देने के मामले की सूचना पहले ही कैसे लीक हो गयी थी यह आज तक रहस्य बना हुआ है। संयोगवश पर्यटन का प्रभार भी मुख्यमंत्री के पास है। गृह विभाग में पुलिसकर्मियों के परिजनों को आंदोलन पर आना पड़ा है। एनएचएम और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी सड़कों पर आने के लिये विवश हो रहे हैं। ऐसे में चुनावी वर्ष में इन सारे मुद्दों का एक साथ उठ खड़े होना सरकार के लिए घातक माना जा रहा है। राजनीतिक दृष्टि से जहां कांगड़ा के विभाजन और वहां से कार्यालयों को मण्डी ले जाने का सिलसिला शुरू कर दिया गया है। उसे भी राजनीतिक हलकों में गंभीरता से ले लिया जा रहा है।
जयराम भी लगे मुफ्त बिजली देने
कृषि मंत्री ने शुरू की पदयात्रा लेकिन किसानों की आय कैसे होगी दोगुनी इस पर रहे खामोश
शिमला/शैल। जयराम मंत्रिमंडल में फेरबदल होगा और चार-पांच चेहरे इसकी चपेट में आयेंगे। यह चर्चा मीडिया के एक हिस्से में पूरी प्रमुखता से चल रही है। कहा जा रहा है कि यह सब पांच राज्यों के चुनाव के बाद होगा। यह चुनाव परिणाम दस मार्च को आयेंगे और विधानसभा का बजट सत्र इसी माह के अंतिम सप्ताह में शुरू हो जायेगा। इसका अर्थ होगा कि बजट सत्रा के दौरान कोई फेरबदल होना संभव नहीं होगा। इसी दौरान कांगड़ा जिला को तोड़कर यहां दो नये जिले बनाने की चर्चा भी चली । जिले तो अभी तक नहीं बने लेकिन कांगड़ा से कुछ विभागों के कार्यालयों को यहां से मंडी ले जाने का क्रम शुरू हो गया है। इसमें क्या-क्या घटता है यह देखना दिलचस्प होगा। हमीरपुर के कुछ चुनाव क्षेत्रों में भाजपा बनाम भाजपा शुरू हो गया है। कांगड़ा के नूरपुर से निक्का राम ने तो स्पष्ट कर दिया है कि वह टिकट न मिलने पर आजाद होकर चुनाव लड़ेंगे। कुछ लोग जिस तर्ज पर चेतन बरागटा का टिकट परिवारवाद के नाम पर कटा उसी तर्ज पर और टिकट काटे जाने की भूमिका तैयार करने लग गये हैं। इनके निशाने पर महेंद्र सिंह ठाकुर चल रहे हैं। वैसे सारे क्षेत्रों में विधायकों के अतिरिक्त दूसरे समांतर सत्ता केंद्र प्रभावी रूप से टिकट की दावेदारी के लिए तैयार हो गये हैं। पिछली बार उम्मीदवार रहे बहुत सारे लोगों के टिकट इस बार काटे जायेंगे। यह संकेत धर्मशाला में कार्यकारिणी की हुई विस्तारित बैठक के बाद से आने शुरू हो गये थे। इस तरह अगर प्रदेश भाजपा सरकार में अब तक घटे सब कुछ को इकटठे रख कर आंकलित किया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि एक बड़ा वर्ग मुख्यमंत्री को पार्टी का एकछत्र नेता स्थापित करने के प्रयासों में लगातार लगा हुआ है। इसी वर्ग ने उपचुनाव में चार शुन्य होने को धूमल खेेमें के सिर लगाने का प्रयास किया था जिस पर किसी ने कोई प्रतिक्रिया तक नहीं दी है।
मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चाओं के साथ ही जयराम के कुछ मंत्रियों ने अपने चुनाव क्षेत्रों में जनसंपर्क अभियान भी शुरू कर दिया है। संपर्क से समर्थन की कड़ी में कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर ने कई पंचायतों में पदयात्रा कर ली है और इस यात्रा के दौरान अपनी उपलब्धियों का ब्योरा लिखित में लोगों के बीच रखा है। यह दूसरी बात है कि प्रदेश का कृषि मंत्री होने के नाते अपने लोगों को यह जानकारी नहीं दे पाये हैं कि उनकी सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने के लिए व्यवहारिक रूप से क्या कदम उठाये हैं।
शायद वह कुछ किसानों को सम्मान निधि दिये जाने को ही आय दोगुनी होना मान रहे हैं। वैसे तो मुख्यमंत्री ने भी विद्युत उपभोक्ताओं को बिजली बिलों में बड़ी राहत देने की घोषणा की है। उपभोक्ताओं को दी जाने वाली राहतओं की भरपाई 92 करोड़ बिजली बोर्ड को देकर करेगी। लेकिन यह ऐलान करते हुए यह स्पष्ट नहीं किया गया कि कर्ज के चक्रव्यू में उलझी सरकार बिजली बोर्ड को यह 92 करोड कहां से देगी। क्या इसके लिए कर्ज लिया जायेगा या दूसरे उपभोक्ताओं की जेब पर डाका डालकर यह खैरात बांटी जायेगी।
इस परिदृश्य में यहां बड़ा स्वाल होगा जब पार्टी में अधिकांश स्थानों पर भाजपा बनाम भाजपा का वातावरण तैयार किया जा रहा है और सबसे बड़े जिले कांगड़ा के विभाजन और वहां से कार्यालयों को बदलकर मंडी लाने की नीति पर काम हो रहा है तो क्या इसे मंडी बनाम शेष हिमाचल करने की कवायद की जा रही है। या एक ऐसा वातावरण खड़ा किया जा रहा है जिसमें ‘‘मैं हूं और रहूंगा’’ को प्रैक्टिकल शक्ल देने की योजना बनाई जा रही है। क्या कांगड़ा से कार्यालयों को मंडी ले जाने पर वहां का नेतृत्व और जनता इसे खामोश रहकर स्वीकार कर लेगी। यदि कांगड़ा में इसका खुला विरोध होना शुरू हो जाता है तो क्या वहां से भाजपा कुछ भी हासिल करने में सफल हो पायेगी। फिर अभी तक केंद्रीय विश्वविद्यालय के मुद्दे पर भी व्यवहारिक रूप से कुछ नहीं हो पाया है। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के साथ ही हिमाचल के नेतृत्व का प्रश्न एक बार फिर चर्चा का विषय बनेगा। शायद इसीलिए मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल की अटकलों को अब तक अमली शक्ल नहीं दे पाये हैं। उपचुनाव में चार शुन्य होने के बाद विधानसभा परिणामों को लेकर कोई भी आश्वस्त नहीं है। विधानसभा परिणामों का असर लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा यह तय है। इसलिए यह माना जा रहा है कि इन व्यवहारिक स्थितियों का संज्ञान लेकर प्रदेश नेतृत्व पर कोई फैसला लिया जायेगा। क्योंकि उपचुनाव की हार के लिए धूमल ग्रुप को जिम्मेदार ठहराने से प्रदेश भाजपा के अंदर उठा हुआ तूफान बहुत गंभीर हो चुका है।