क्या आउटसोर्स कंपनिया कमीशन का माध्यम बन कर रह गयी है
एन एच एम में 23 वर्षों से हो रहा कर्मचारियों का उत्पीड़न
आर के एस, एस एम सी कर्मियों का भविष्य भी सवालों में
आउटसोर्स में 94 लोगों को मिला 23 करोड़ का कमीशन
पिछली सरकार में तय हुआ था कि वित्त
विभाग की पूर्व अनुमति के बिना नहीं होंगी यह भर्तिया
क्या जयराम सरकार में इस आदेश का पालन हुआ है?
शिमला/शैल। हिमाचल में रोजगार देने का सबसे बड़ा अदारा सरकार है। इस समय प्रदेश के रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत बेरोजगारों का आंकड़ा दस लाख से पार हो चुका है। इसमें प्रतिवर्ष करीब सात हजार करोड़ की बढ़ौतरी होती है। ऐसे में यह सवाल अहम होता जा रहा है कि इन लोगों को रोजगार कब और कैसे मिलेगा? इसके लिये सरकार और उसकी नीतियों पर चर्चा करना बाध्यता हो जाती है क्योंकि एक समय हिमाचल सरकारी नौकरी देने वाले राज्यों में सिक्किम के बाद दूसरा बड़ा राज्य बन गया था। इसका अनुपात बढ़ गया था। इस पर फेयर लॉज में अधिकारियों की एक बड़ी बैठक हुई थी। जिसमें दीपक सानंन कमेटी ने कुछ सुझाव दिये थे। जिसके आधार पर योजना आयोग के साथ एक एमओयू साइन किया गया था। इसके बाद कई पदों की कटौती की गई थी। लेकिन आज प्रदेश त्रिपुरा और हरियाणा के बाद तीसरा राज्य हो गया है जहां बेरोजगारी 20ः से अधिक हो गयी है। यही नहीं हिमाचल में 1996 से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत ऑपरेट हो रही आधा दर्जन से अधिक स्वास्थ्य सेवाओं में नियुक्त हुये हजारों कर्मचारी आज तक 23 वर्षों से नियमित कर्मचारी नहीं है। कई तो सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं। ऐसा इसलिये हुआ की एन एच एम कोई सरकारी विभाग न होकर एक सोसाइटी मात्र है। यही स्थिति रोगी कल्याण समितियों के तहत नियुक्त हुये कर्मचारियों की है।
शिक्षा विभाग में भी एसएमसी के माध्यम से नियुक्त किये गये अध्यापकों की है। स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षण आज तक प्राइवेट हाथों में है। इसके लिये अब तक कोई नीति नहीं बन पायी है। अब इसके साथ आउट सोर्स के माध्यम से सरकार के विभिन्न विभागों में लगे हजारों कर्मचारियों की समस्या जुड़ गयी है। क्योंकि यह सारे कर्मचारी तो किसी सरकारी सोसाइटी के भी नहीं है। इन्हें तो प्राइवेट कंपनियों के माध्यम से रखा गया है। इन कंपनियों का तो पंजीकरण भी भारत सरकार के संस्थान नाईलेट के माध्यम से है। आउटसोर्स की अवधारणा के मुताबिक केवल प्रौद्योगिकी के प्रयोग से जुड़ी सेवाएं ही थोड़े समय के लिए आउटसोर्स की जा सकती हैं ताकि इसमें कितने समय में नियमित लोग ट्रेण्ड हो सके। लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं हो रहा है। कंपनी सरकार के कर्मचारियों को ट्रेनिंग देगी और उसके लिए ही कमीशन लेगी। नाईलेट में इसी आधार पर इनका पंजीकरण होता है। इस आधार पर ही आउटसोर्स की व्याख्या बदलकर इसे लागू करना बुनियाद बुनियाद से ही गलत है।
इससे हटकर इस समय जिस तरीके से इसके माध्यम से भर्तियां की जा रही हैं उसमें मैरिट और आरक्षण के लिए कोई स्थान नहीं है क्योंकि वह तब संभव है जब कंपनी कुछ किसी तरह की नौकरियां विज्ञापित करें। कंपनी ऐसा तब कर पायेगी जब उसके पास सरकार या किसी अन्य की कोई एडवांस में निश्चित डिमाण्ड होगी। सरकार को भी ऐसा करने के लिये विज्ञप्ति जारी करके कंपनियों से आफर आमंत्रित करने होंगे। नाईलेट के भीतर की प्रक्रिया की जानकारी रखने वालों को इसकी जानकारी है। लेकिन इस समय नाईलेट से लेकर सरकार तक सब नियमों की अनदेखी कर रहे हैं।
इसीलिये सरकार आज तक आउटसोर्स के कर्मचारियों के लिए कोई पॉलिसी नहीं बना पायी है। जब पिछली सरकार के दौरान इन कर्मचारियों ने नीति बनाने की मांग रखी थी तब यह सामने आया था कि करीब 35000 कर्मचारी आउट सोर्स के माध्यम से लगे हुये हैं। तब इनके लिए भी छुट्टी आदि की व्यवस्था की गयी थी। विभागों को यह निर्देश दिए गए थे कि भविष्य में वित्त विभाग की पूर्व अनुमति के बिना आउटसोर्स से कोई भर्ती नहीं होगी। लेकिन जब जयराम सरकार में पहली बार 2020 में यह मुद्दा उठा तब सदन को बताया गया कि 31-7- 2019 तक आउट सोर्स के माध्यम से 12165 कर्मचारी भर्ती किये गये हैं। यह भी जानकारी दी गयी कि इसके लिये 94 कंपनियों को 23.09 करोड़ का कमीशन दिया गया है। लेकिन यह नहीं बताया कि इसके लिए वित्त विभाग की पूर्व अनुमति ली गयी है या नहीं। इसके बाद 2021 में भी यह मुद्दा उठा। कांग्रेस के इंद्रदत लखन पाल और मुकेश अग्निहोत्री ने आरोप लगाया कि सरकार ने आठ हजार भर्तियां कर ली हैं आउटसोर्स से और इनमें अकेले दो विधानसभा क्षेत्रों धर्मपुर और सिराज से ही पांच हजार भर्ती कर लिये हैं। बेरोजगारी का आलम यह है कि इस सरकार ने 1195 पटवारी भर्ती करने के लिये आवेदन आमंत्रित किये थे जिसमें तीन लाख आवेदन आये। लेकिन इनका परिणाम क्या हुआ सब जानते हैं। सरकार अब तक 4 वर्षों में केवल 23,000 लोगों को ही रोजगार दे पायी है। जबकि 2021-22 के बजट में ही वर्ष में 30,000 भर्तियां करने का वादा किया गया था जो पूरा नहीं हुआ है। इस समय एनएचएम, आर के एस, एस एम सी और आउटसोर्स के माध्यम से करीब एक लाख कर्मी सेवाएं दे रहे हैं। जिनका कोई भविष्य नहीं है। नियमित के बराबर वेतन तक नहीं मिल रहा है। आउटसोर्स कंपनियां केवल कमीशन खाने का साधन बनकर रह गयी हैं। चर्चा है कि महेंद्र सिंह कमेटी ने 142 कंपनियों को पत्र लिखा था जिसमें से शायद बाईस का ही जवाब आया है। इससे यह अटकलें लगनी शुरू हो गई हैं कि एक ही व्यक्ति कई कई कंपनियां चला रहा है।