Sunday, 21 December 2025
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आय माननीयों की और आयकर जनता भरे को मिली उच्च न्यायालय में चुनौती

विधायक महेंद्र सिंह, मुकेश अग्निहोत्री, राकेश सिंह और होशियार सिंह भी बनाये गये प्रतिवादी
आने वाले दिनों में ‘एक विधायक एक पैंशन’ के भी मुद्दा बनने की संभावना बढ़ी

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश सरकार अपने विधायकों और मंत्रियों को मिलने वाले वेतन भत्तों के माध्यम से उनको हो रही आय पर दिये जाने वाले आयकर की अदायगी सरकारी कोष से करती है। आमदनी माननीयों की होती है और उस पर आयकर सरकार अदा करती है। जबकि आयकर अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार आयकर उसी व्यक्ति द्वारा अदा किया जाता है जो उसके दायरे में आता है। फिर आयकर को लेकर कोई नियम कानून बनाना भी संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है राज्यों की विधानसभाओं के दायरे में नही आता है। संविधान में पूरी तरह परिभाषित है और बाकायदा इसकी अलग-अलग सूचियां बनी हुयी हैं कि केंद्र के दायरे में कौन से विषय आते हैं और राज्य कौन से विषय पर कानून बनाने का अधिकार रखता है। बल्कि कई ऐसे विषय भी हैं जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। ऐसे विषय सांझी सूची में रखे जाते हैं और इनमें यदि कभी केंद्र और राज्य में विरोधाभास की स्थिति आ जाये तो उसमें राज्य की बजाये केंद्र के प्रावधान को अधिमान दिया जाता है। इस व्यवस्था में भी आयकर किसी भी गणित से राज्य के पाले में नहीं आता है। इसी वैधानिक स्थिति के कारण प्रदेश उच्च न्यायालय के कुछ अधिवक्ताओं ने प्रदेश सरकार के इस आचरण को अदालत में चुनौती दी है। जिस पर उच्च न्यायालय ने जवाब तलब कर लिया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता रजनीश मनिकटाला और उनकी टीम के सदस्य यशपाल राणा, सुरेश कुमार, कपिल भारद्वाज तथा राकेश कुमार ने संविधान की धारा 226 के तहत याचिका दायर करके भाजपा विधायक महेंद्र सिंह कांग्रेस विधायक मुकेश अग्निहोत्री सीपीएम विधायक राकेश सिंह निर्दलीय विधायक होशियार सिंह तथा विधानसभा को भी इसमें प्रतिवादी बनाया गया है। स्मरणीय है कि वर्ष 2017-18 से लेकर 19-20 तक सरकार ने माननीयांे का 4 6931407 रुपए का आयकर अदा किया है। यह प्रावधान वर्ष 2000 में माननीयों के वेतन भत्तों और पेंशन से जुड़े अधिनियम 1971 में संशोधन करके किया गया तथा इस आशय की धारा 12 जोड़ी गयी। याचिकाकर्ताओं ने इसे राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर बताते हुये असंवैधानिक करार देकर निरस्त करने की मांग की है। यह याचिका उस समय आयी है जब प्रदेश के कर्मचारी पुरानी पैंशन योजना की बहाली की मांग कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने उन्हें चुनाव लड़ने की चुनौती दी है। राष्ट्रीय स्तर पर माननीयों की पैंशन मिलने के विरोध की याचिका सर्वाेच्च न्यायालय तक पहुंची हुई है।
उधर माननीयों ने हर टर्म में जीतने पर अतिरिक्त पैंशन मिलने तक का प्रावधान कर रखा है। आम आदमी पार्टी ने ‘एक विधायक एक पैंशन’ के सिद्धांत की वकालत करते हुये पंजाब में इसे लागू करने की घोषणा भी कर दी है। ऐसे में यह तय है कि आने वाले दिनों में यह एक बड़ा और राष्ट्रीय मुद्दा बन जायेगा। इस परिपेक्ष में यह देखना रोचक होगा की आयकर वाले मामले में सरकार और प्रतिवादी बनाये गये विधायक क्या जवाब देते हैं। क्योंकि पार्टी बनाये गये सभी विधायकों को अपना-अपना जवाब दायर करना होगा। राष्ट्रीय स्तर पर भी इसका एक प्रभाव पड़ना तय है। क्योंकि बहुत संभव है कि हिमाचल की तरह अन्य भी कई राज्यों ने ऐसा प्रावधान कर रखा हो। यह भी तय है कि इसके बाद प्रदेश में ‘एक विधायक एक पैंशन’ पर भी आवाजें उठना शुरू हो जायेंगी जो चुनाव आते-आते एक बड़ा मुद्दा बन जायेगा।


क्यों नहीं आ पाया कांग्रेस का आरोप पत्र उठने लगा है सवाल

शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस में चार उपचुनाव जीतकर जो जोश का माहौल खड़ा हुआ था उसकी हवा पांच राज्यों में मिली हार से पूरी तरह निकल गयी है यहां एक कड़वा सच है। इसमें पंजाब में आप की जीत ने प्रदेश कांग्रेस के सारे पुराने समीकरण बिगाड़ कर रख दिये हैं। क्योंकि अभी कांग्रेस से ही ज्यादा लोग निकलकर आप में जा रहे हैं। जो कांग्रेस चारों उपचुनाव जीतकर अति उत्साहित होकर चुनाव से पहले ही मुख्यमंत्री कौन होगा की अंदरूनी लड़ाई में व्यस्त हो गयी थी आज उसमें अपने ही कुनवेे को संभाल कर रखने वाला कोई बड़ा चेहरा सामने नहीं है। आज कांग्रेस में स्व. वीरभद्र की कमी को पूरा करने वाला कोई नहीं दिख रहा है। आज कांग्रेस में इस सवाल का जवाब देने वाला कोई नहीं है कि उसने जयराम सरकार के खिलाफ इन चार वर्षों में कौन सा बड़ा मुद्दा खड़ा किया है। यहां तक कि इस वर्ष ही पार्टी ने सरकार के खिलाफ एक आरोप पत्र लाने की घोषणा की थी। इसके लिये एक कमेटी का गठन भी कर दिया गया था। माना जा रहा था कि यह आरोप पत्र इस बजट सत्र से पहले जारी हो जायेगा और सत्र में चर्चा में ला दिया जायेगा। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया है। जयराम सरकार के कार्यकाल में आयी दो कैग रिपोर्टों में ही सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर गंभीर सवाल उठे हैं। लेकिन कांग्रेस इन रिपोर्टों पर भी कुछ नहीं कर पायी है। 2014 में कांग्रेस को भ्रष्टाचार का पर्याय बताकर उससे सत्ता छीनी गयी थी। हिमाचल के हर चुनाव में भाजपा के सभी छोटे-बड़े नेताओं ने स्व. वीरभद्र के खिलाफ बने मामलों को खूब भुनाया था। लेकिन यह प्रदेश कांग्रेस भाजपा के ही वरिष्ठ नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार उन्ही की आत्मकथा में केंद्र की भाजपा सरकारों के खिलाफ लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोपों पर जुबान नहीं खोल पाये हैं। जबकि इन आरोपों के माध्यम से भाजपा को शिमला से लेकर दिल्ली तक घेरा जा सकता था। इससे यह सवाल उठने लग पडा है कि प्रदेश का कांग्रेस नेतृत्व भाजपा से डरकर चल रहा है या इसका कोई और बड़ा कारण है। आज प्रदेश की राजनीति जिस मोड़ पर आकर खड़ी हो गयी है वहां यदि कांग्रेस इस स्थिति से बाहर नहीं निकलती है तो उसका भविष्य प्रश्नित ही रहेगा। इस समय कांग्रेस को प्रदेश हित में इस दुविधा की स्थिति से बाहर निकलने के लिये नया नेतृत्व तलाशना आवश्यक हो जायेगा।

क्या सरकार कर्ज लेकर घी पीने पर अमल कर रही है?

45 लाख की कैमरी खरीद से उठी चर्चा
भ्रष्टाचार दबाने के लिए उसे उजागर करने वालों को ही डराने धमकाने पर आयी सरकार
चार मंजिला मकान की खरीद चर्चा में

शिमला/शैल। प्रदेश के मुख्य सचिव के लिये 45 लाख की कैमरी गाड़ी खरीदे जाने को लेकर चर्चाओं का दौर चल निकला है। यह चर्चा इसलिए उठनी शुरू हुई है कि जिस वक्त इस गाड़ी की जानकारी सार्वजनिक हुई उसी वक्त जनता को रसोई गैस, पेट्रोल, डीजल और दवाइयां महंगी होने का तोहफा मिला। इससे पहले प्रदेश पर बढ़ते कर्ज तथा सरकार की फिजूल खर्ची की जानकारी कैग की रिपोर्टों के माध्यम से मिल चुकी है। कैग रिपोर्ट से यह खुलासा भी सामने आ चुका है कि 96 योजना पर इस सरकार ने एक पैसा भी खर्च नहीं किया है और न ही इसका कोई कारण बताया है। यही नहीं राजधानी शिमला में ही लक्कड़ बाजार बस स्टैंण्ड के पास कुछ दिन पहले कुछ दुकानें बनायी और अब उनको तोड़ दिया गया हैं। संजौली में महापौर के अपने वार्ड में कुछ दिन पहले एक रेन सैल्टर बनाया गया अब उसे वहां पर सीढ़ियां बनाने के लिये तोड़ दिया गया। सचिवालय में एनजीटी के आदेशों को नजरअंदाज करके निर्माण किया जा रहा था। एन जी टी के आदेश के खिलाफ सरकार प्रदेश उच्च न्यायालय में गयी थी लेकिन उच्च न्यायालय ने सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है। अब या तो सरकार इस निर्माण को अदालती आदेशों की अवहेलना करके जारी रखें या उन अधिकारियों के खिलाफ कारवाई करें जिनके कारण यह स्थिति खड़ी हुई है। शिमला का टाउन हॉल पिछले चार वर्षों से उचित उपयोग में लाये जाने के लिये तरस रहा है जबकि कर्ज के पैसे से इसकी रिपेयर हुई है। ऐसे कई मामले हैं जिनके सामने यह तस्वीर उभरती है कि सरकार सिर्फ कर्ज लेकर घी पीने के सिद्धांत पर चल रही है। अभी गाड़ी की खरीद की चर्चा शांत नहीं हो पायी है कि मुख्यमंत्री के आवास पर इको पार्क आदि बनाये जाने की खबरें बाहर आने लग गयी है।
सरकारी कर्मचारियों का हर वर्ग मांगे लेकर खड़ा हो चुका है। आउट सोर्स के माध्यम से रखे गये कर्मचारियों को बार-बार यह भरोसा दिया जा रहा है कि सरकार उनके लिए स्थाई नीति बनाने जा रही है। यह व्यवहारिक सच्चाई कोई नहीं बता रहा है कि इन कर्मचारियों को लेकर सरकार कोई नीति बना ही नहीं सकती। क्योंकि यह लोग प्राइवेट कंपनियों/ठेकेदारों के नौकर हैं। सरकारी कर्मचारी बनने के लिये इन्हें पूरी सरकारी प्रक्रिया से गुजरना होगा। जिसमें आरक्षण, रोस्टर आदि सबकी अनुपालन सुनिश्चित करनी पड़ेगी। कुल मिलाकर कर्मचारियों के फ्रंट पर सरकार सुखद स्थिति में नहीं है। ऊपर से इस सबकी जिम्मेदारी पार्टी और सरकार का ही एक वर्ग पार्टी के ही दूसरे नेताओं पर डालने लग गया है। इससे पार्टी के अन्दर भी गुटबाजी को अनचाहे ही उभार मिल गया हैं। कर्मचारियों की पैंशन की मांग पर जब सदन में मुख्यमंत्री ने यह कह दिया कि इसके लिए चुनाव लड़ना पड़ता है। मुख्यमंत्री के इस बयान ने आग में घी का काम किया है। अब यह चर्चा चल पड़ी है कि क्या कोई मुख्यमंत्री चुनावी वर्ष में अपने कर्मचारियों के प्रति इस तरह का स्टैंड ले सकता है। जब उपचुनाव में हार मिली थी तब उस हार के लिए महंगाई को जिम्मेदार ठहरा दिया गया था। महंगाई तो अब फिर पहले से भी ज्यादा बढ़ गयी है और निकट भविष्य में इसके कम होने के आसार नहीं हैं।
पार्टी के अंदर और बाहर इस वस्तुस्थिति पर नजर रखने वालों के सामने यह सवाल बड़ा होता जा रहा है कि क्या इस परिदृश्य में पार्टी पुनः सत्ता में वापसी कर पायेगी? क्या मुख्यमंत्री का राजनीतिक आकलन गड़बड़ा रहा है? क्या मुख्यमंत्री को उसके सलाहकारों और विश्वस्त अधिकारियों से सही राय नहीं मिल रही है? क्योंकि जब प्रशासन अपने भ्रष्टाचार और नालायकी को ढकने के लिये उसे उजागर करने वालों को ही डराने धमकाने का प्रयास करने लग जाये तब यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सलाहकार अब नेतृत्व को डूबो कर ही दम लेंगे। क्योंकि ऐसे सलाहकार ऐसे हालात में अपने भ्रष्टाचार की कमाई को निवेश करने में लगा देते हैं। एक सलाहकार का ऐसा ही एक निवेश चार मंजिला मकान की खरीद के रूप में विशेष चर्चा में चल रहा है। चर्चा है कि दो करोड के इस निवेश की रजिस्ट्री केवल पच्चास लाख में करवायी गयी है। कहते हैं कि जिस परिजन के नाम पर यह खरीद दिखाई गयी है उसकी आयकर रिटर्न से यह निवेश मेल नहीं खाता है। चर्चा है कि यह सब कुछ दिल्ली दरबार तक भी पहुंच चुका है।

आप के चुनावी ऐलान ने बदले प्रदेश के राजनीतिक समीकरण कांग्रेस को बड़े नुकसान की संभावना बनी

शिमला/शैल। पांच राज्यों में कांग्रेस को मिली हार और उसके बाद पार्टी के अन्दर ही बने ग्रुप 28 के नेताओं द्वारा गांधी परिवार के नेतृत्व पर सवाल उठाये जाने से हिमाचल में भी पार्टी के चुनावी भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है। क्योंकि ग्रुप 28 का एक बड़ा चेहरा आनन्द शर्मा हिमाचल से ताल्लुक रखता है। इस ग्रुप में शुरू में कॉल सिंह ठाकुर के शामिल होने की भी बात सामने आयी थी। लेकिन उन्होंने उसी समय इससे किनारा कर लिया था। आज जो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर हैं उन्हें भी आनन्द शर्मा का ही प्रतिनिधि माना जाता है। क्योंकि स्व.वीरभद्र सिंह सुक्खू को हटाना चाहते थे इसलिए उन्होंने कुलदीप राठौर के नाम पर सहमति जता दी थी और मुकेश अग्निहोत्री तथा आशा कुमारी को भी राजी कर लिया था। इस पृष्ठभूमि में यह स्वभाविक है कि दिल्ली के घटनाक्रमों का प्रदेश पर असर पड़ेगा ही। वैसे भी यदि पार्टी की वर्किंग का आकलन किया जाये तो जो प्रभावी भूमिका पार्टी विधानसभा के अन्दर निभाती रही है विधानसभा के बाहर उससे आधा काम भी संगठन नहीं कर पाया है। आज पार्टी के अन्दर पदाधिकारियों की जितनी लंबी सूची है उससे यही समझ आता है कि पदों के माध्यम से ही नेताओं को इक्कठा रखा जा रहा है। कई बार यह चर्चायें सामने आती रही है कि कई नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में जाने के लिये तैयार बैठे हैं।
यह सही है कि पार्टी ने पिछले दिनों दो नगर निगमों और फिर विधानसभा तथा लोकसभा के उपचुनाव में जीत हासिल की है। लेकिन यह जीत कांग्रेस की वर्किंग के बजाय भाजपा के केंद्र से लेकर प्रदेश तक लिए गये गलत फैसलों से उपजे जन रोष का परिणाम ज्यादा था। परंतु कांग्रेस में इस जीत के बाद मुख्यमंत्री कौन होगा इसकी अघोषित लड़ाई शुरू हो गयी। इसके लिए वर्तमान अध्यक्ष को हटाकर स्वयं अध्यक्ष बनने को मुख्यमंत्री पद की पहली सीढ़ी मानकर गुट बंदी शुरू हो गयी। इसके लिये नेताओं ने दिल्ली आकर हाईकमान से मिलने के अपने अपने रास्ते तलाशने शुरू कर दिये। इस दिल्ली दौड़ का परिणाम यह हुआ कि पार्टी जयराम सरकार के खिलाफ अपना घोषित आरोप पत्र तक नहीं ला पायी। जयराम सरकार के पूरे कार्यकाल में कांग्रेस का इस संदर्भ में कोई भी बड़ा गंभीर प्रयास सामने नहीं आया है। बल्कि प्रदेश के स्वर्ण समाज ने क्षत्रिय देवभूमि संगठन के माध्यम से जो आंदोलन शुरू किया था उसे कांग्रेस के कुछ विधायकों ने विधानसभा के पटल से अपना समर्थन घोषित कर दिया था। यह समर्थन घोषणा से यह चर्चाएं भी चल पड़ी कि आंदोलन के नेता कांग्रेस के ही कुछ नेताओं के इशारे पर काम कर रहे हैं। लेकिन अब जब यह आंदोलनकारी सचिवालय का घेराव करने आ रहे थे और पुलिस प्रशासन ने इन्हें रोकने का प्रयास किया तो आंदोलन के नेतृत्व में अलग राजनीतिक दल बनाकर विधानसभा का चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी और इसी पर आंदोलनकारी दो फाड़ हो गये। आंदोलन वहीं समाप्त हो गया। बाद में कुछ नेताओं को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया। ऐसा क्यों हुआ कैसे हुआ इस पर वह नेता कुछ नहीं कह पा रहे हैं जिन्होंने इनकी मांगों का समर्थन किया था। इससे इन नेताओं की राजनीतिक समझ का खुलासा हो जाता है।
अब आम आदमी पार्टी के प्रदेश का चुनाव लड़ने के ऐलान से पहला नुकसान कांग्रेस को ही होना शुरू हो गया है। इसके कई लोग आप में चले गये हैं। चर्चा है कि केजरीवाल के मंडी में प्रस्तावित रोड शो के मौके पर अनिल शर्मा और उनके पिता पंडित सुखराम केजरीवाल के साथ मंच साझा करेंगे। सुखराम के पोते आश्रय शर्मा कांग्रेस में हैं। मंडी में इस परिवार का अपना प्रभाव रहा है। लेकिन इस तरह से स्वतः विरोधी फैसलों से अपने साथ-साथ पार्टी का भी नुकसान कर रहे हैं। लोकसभा उपचुनाव के बाद प्रतिभा सिंह के बयान से दोनों परिवारों के रिश्ते पहले ही उलझे हुये हैं। ऐसे में अनिल शर्मा और सुखराम का केजरीवाल के साथ आना कांग्रेस पर क्या असर डालेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इस तरह से पनपते राजनीतिक परिदृश्य में स्वभाविक है कि आम आदमी पार्टी के कारण कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा नुकसान होगा। यह एक खुला सच है कि कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग भाजपा सरकार के खिलाफ ठोस आक्रमकता नहीं अपना पाया है। शायद इसी धारणा पर चलता रहा है कि इस बार कांग्रेस की ही बारी है। परंतु पांच राज्यों की हार और आप के ऐलान ने प्रदेश में दोनों स्थापित दलों के समीकरणों को बिगाड़ दिया है यह तय है।

जयराम या अनुराग कोई भी जीत नही दिलवा पायेगा भाजपा को सर्वे का खुलासा

पैन्शन चाहिये तो चुनाव लड़ो
आन्दोलनों के लिए बुजुर्ग ठाकुर को ठहराया जिम्मेदार
कैग रिपोर्टें और उच्च न्यायालय के फैसले सरकार के कामकाज पर बड़ा खुलासा

शिमला/शैल। क्या हिमाचल भाजपा में सब अच्छा चल रहा है? क्या भाजपा सत्ता में वापसी कर पायेगी? क्या प्रदेश में मुख्यमंत्री बदला जा सकता है? यह सवाल इन दिनों चर्चा में है। क्योंकि पिछले दिनों हुये चारों उपचुनाव भाजपा नहीं वरन जयराम सरकार हार गयी है उपचुनाव पार्टी की नीतियों का प्रतिफल नहीं होते बल्कि सरकार की कारगुजारियों का परिणाम होते हैं। उपचुनाव हारने के बाद जयराम की सरकार ने नगर निगम शिमला के चुनाव पार्टी के चिन्ह पर नहीं करवाने का फैसला लिया है इससे पार्टी की स्थिति का पता चल जाता है। सरकार वित्तीय मोर्चे पर कितनी सफल रही है इसका खुलासा दोनों कैग रिपोर्टों में विस्तार से सामने आ चुका है। कैग ने सरकार पर फिजूल खर्च का आरोप लगाया है। इस आरोप सेे यह प्रमाणित हो जाता है कि सरकार कितने गैर जिम्मेदाराना तरीके से आचरण करती रही है। इसी गैर जिम्मेदारी का दूसरा बड़ा प्रमाण प्रदेश उच्च न्यायालय का फैसला है। इस फैसले में उच्च न्यायालय ने एनजीटी के फैसले के विरुद्ध सरकार द्वारा दायर की गई याचिकाओं को खारिज कर दिया है। यदि इस विषय का गंभीरता से संज्ञान लिया जाये तो प्रशासन में कई बड़े अधिकारियों के लिए संकट खड़ा हो जायेगा। ऐसे दर्जनों मामले हैं जो सरकार की समझ और अफसरशाही पर उसकी पकड़ का खुलासा करते हैं। आने वाले दिनों में जब यह मामले दस्तावेजी प्रमाण के साथ जनता के सामने आयेंगे तो उसका चुनावी परिणामों पर क्या असर पड़ेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। स्वभाविक है कि कैग और अदालती फैसलों के आईने में जब सरकार वोट मांगने जायेगी तो जनता का समर्थन कितना और कैसा मिलेगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या पार्टी हाईकमान को प्रदेश की इस हकीकत की जानकारी है या नहीं। जबकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हिमाचल से ही ताल्लुक रखते हैं। इस समय दिल्ली के बाद पंजाब भाजपा के हाथ से निकल गया है। हरियाणा और हिमाचल पर आप ने पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया है। आप ने हिमाचल में सारी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। इस ऐलान के बाद प्रदेश को लेकर चुनावी सर्वे आने शुरू हो गये हैं और उनमें भाजपा की सरकार बनना नहीं दिखाया जा रहा है। दूसरी ओर इस समय पूरा प्रदेश कर्मचारियों और स्वर्ण मोर्चों के आन्दोलनों से दहला हुआ है। कर्मचारियों का हर वर्ग कोई न कोई मांग लेकर खड़ा है। ओ पी एस की मांग सबसे बड़ी मांग बन चुकी है। मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों को विधानसभा पटल से यह कह दिया है की पेंशन चाहिए तो चुनाव लड़ो। मुख्यमंत्री ने यह आंखें दिखा कर शांता कुमार बनने का साहस तो दिखाया है। लेकिन यह भूल गये कि शांता उसके बाद विधानसभा नहीं पहुंच पाये हैं। बल्कि सी पी एम ने तो यहां तक कह दिया है कि जिन अधिकारियों के कारण शांता का केंद्र में मंत्री पद गया था वहीं आज जयराम की लुटिया डुबोने में लगे हैं। सरकार दोनों आन्दोलनों से निपटने में पूरी तरह फेल हो गयी है। अब इन आंदोलनों के लिए अपनी ही पार्टी के लोगों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। जयराम के एक मंत्री के ओ एस डी ने बाकायदा सोशल मीडिया मंच पर पोस्ट डालकर बुजुर्ग ठाकुर पर इन आंदोलनों की जिम्मेदारी डाल दी है। आज प्रदेश की राजनीति में बुजुर्ग ठाकुरों के नाम पर धूमल, महेंद्र सिंह, गुलाब सिंह और महेश्वर सिंह के बाद कोई नाम आता ही नहीं है। धूमल-जयराम के रिश्ते सरकार बनतेे ही सामने आये जंजैहली कांड से शुरू होकर अब मानव भारती विश्वविद्यालय के डिग्री कांड को लेकर आये राजेंद्र राणा के पत्र और उस पर शांता कुमार के ब्यान जिसमें वह इस संबंध में राज्यपाल तथा डीजीपी कुंडू से भी बात कर लेने का दावा कर रहे हैं-से पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है प्रदेश की जनता के सामने यह सब कुछ आ चुका है। जनता सही समय पर इसका जवाब देगी। इसी वस्तुस्थिति में प्रदेश को लेकर चुनावी सर्वे सामने आया है। इस सर्वे में यह कहा गया है कि यदि जयराम के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाता है तो भाजपा को 13-18 सीटें और यदि अनुराग के नेतृत्व में लड़ते हैं तो 27-32 सीटें आ सकती हैं। आप के कारण त्रिशंकु विधानसभा के आसार बनते जा रहे हैं। ऐसे में हाईकमान के लिये यह बड़ा सवाल होगा की वह क्या फैसला लेती है।

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