Friday, 19 September 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

पेड कार्यकर्ताओं के सहारे कब तक चल पायेगी हिमाचल की आप ईकाई

पार्टी के भीतर चर्चित होने लगा है यह मुद्दा

शिमला/शैल। आम आदमी पार्टी ने चार चुनाव क्षेत्रों फतेहपुर, नगरोटा श्री पांवटा साहिब और लाहौल स्पीति से उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। लेकिन जब पार्टी इन नामों को अन्तिम रूप दे रही थी उसी दौरान कुछ नेता आप छोड़कर कांग्रेस में जा रहे थे। पंजाब में जीत दर्ज करने के बाद आप ने हिमाचल में चुनाव लड़ने का ऐलान किया था और बहुत लोग आप में शामिल भी हुये थे। लेकिन जैसे ही भाजपा के अनुराग ठाकुर ने इसमें सेन्ध लगाकर प्रदेश संयोजक सहित तीन नेताओं को भाजपा में शामिल करवा दिया उसके बाद से पार्टी में कोई बड़े चेहरे शामिल नहीं हो पाये हैं। बल्कि उसके बाद जो नई कार्यकारिणी का गठन हुआ उसमें बहुत सारे पुराने महत्वपूर्ण लोगों को हाशिये पर धकेल दिया गया। पूर्व डी.जी.पी. भण्डारी एक बड़ा नाम था जो अब निष्क्रिय होकर बैठ गया है। अभी तक पार्टी प्रदेश भाजपा और जयराम सरकार के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा लेकर जनता में नहीं आ पायी है। हिमाचल में पार्टी आगे बढ़ने के लिये पंजाब में आप की सरकार होने को आधार बनाकर चल रही है। अब जब पंजाब सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठने शुरू हो गये हैं तब प्रदेश इकाई में ऐसा कोई चेहरा सामने नहीं है जो उन सवालों का जवाब देने के लिये सामने हो बल्कि अब जब राजन सुशान्त फिर से आप में आ गये हैं तब से फिर यह आशंका हो गयी है कि प्रदेश कार्यकारिणी के नेतृत्व में फिर से कोई बदलाव हो जाये। इस समय यदि किसी कारण से पंजाब की सरकार आने वाले दिनों में विवादित हो जाती हैं तो हिमाचल इकाई के पास अपना कुछ भी नहीं रह जायेगा। क्योंकि प्रदेश में जो भी नेतृत्व अब तक सक्रिय है वह व्यवहारिक रूप से दिल्ली सरकार के अच्छा शासन देने और भ्रष्टाचार पर नकेल डालने तथा भ्रष्टाचार के आरोपी अपने ही मंत्री को जेल भेजने के सूत्र वाक्यों से आगे नहीं बढ़ पाया है।
प्रदेश इकाई पर इस समय कौन निवेश कर रहा है? यह धन कहां से आ रहा है? इस समय प्रदेश में आप हाईकमान द्वारा भेजे करीब डेढ़ सौ लोगों की टीम सक्रिय है। यही टीम प्रदेश के नेताओं कार्यकर्ताओं को निर्देश जारी करती है। यह टीम की व्यवहारिक रूप से सर्वेसर्वा है। इसके सामने स्थानीय कार्यकर्ता और नेता केवल मोहरे हैं। यह टीम पार्टी के अपने पदाधिकारियों या कार्यकर्ताओं की नहीं है। बल्कि एक तरह व्यवसायिक लोग हैं जो मोटी पगार लेकर राजनीतिक काम कर रहे हैं। अब यह चर्चा पार्टी के भीतर बड़े पैमाने पर चल पड़ी है। यहां तक कहा जा रहा है कि नयी कार्यकारिणी के गठन में भी इन्हीं लोगों का हाथ है। पार्टी के भीतरी सूत्रों के मुताबिक इस समय तक करीब दो करोड़ प्रतिमाह का निवेश प्रदेश में हो रहा है। चुनावों के दौरान यह निवेश कई गुना बढ़ेगा यह तय है। स्वभाविक है कि राजनीतिक दल के लिये पैसा तो चाहिये ही। फिर आज के राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली एकदम कारपोरेट घरानों जैसी हो गयी है। इसके लिये निवेश तो चाहिये ही। यह निवेश उद्योगपतियों के अतिरिक्त और कहीं से मिल नहीं सकता। क्योंकि पार्टी के सदस्यों के शुल्क से तो कार्यालय का बिजली-पानी का बिल भी नहीं भरा जा सकता है।
आम आदमी पार्टी के संद्धर्भ में यह चर्चा इसलिये प्रसांगिक हो जाती है क्योंकि इसका नेतृत्व भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का दावा करता है। यह भी दावा करता है कि उसकी सरकार कर्ज के सारे नहीं चल रही है। जबकि केजरीवाल सरकार पर भी पचास हजार करोड़ का कर्ज होने का खुलासा आर.बी.आई. की उस रिपोर्ट के बाद सामने आ चुका है जिसमें तेरह राज्यों की सूची जारी की गयी थी। इस सूची में पंजाब भी शामिल है। आर.बी.आई. के मुताबिक यह कर्ज लेने की सारी सीमाएं लांघ चुके हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में पंजाब की वित्तीय स्थिति बिगड़ेगी। तब संसाधन बेचने और कर्ज लेने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं रह जायेगा। यही स्थिति हिमाचल की होने वाली है। अभी कर्ज लेने के लिये प्रतिभूतियों की नीलामी करनी पड़ी है। लेकिन इस स्थिति पर आज कोई भी विपक्षी दल सरकार से सवाल पूछने का साहस नहीं कर रहा है। आप का नेतृत्व दिल्ली और पंजाब की जो स्थिति हिमाचल में परोसकर एक राजनीतिक माहौल खड़ा करने का प्रयास कर रहा है उसके परिदृश्य में आप से यह सवाल उठाने आवश्यक हो जाते हैं। क्योंकि अब तक यही होता रहा है कि दिल्ली से आकर कोई भी नेता प्रदेश को गारंटी की घोषणा कर के चला जाता है और स्थानीय नेतृत्व उस की माला जपता रहता है। इससे यही संदेश जाता है कि हिमाचल का संचालन दिल्ली से ही होगा।

क्या हाटी मुद्दे पर सरकार अध्यादेश लायेगी

शिमला/शैल। केन्द्र सरकार ने सिरमौर के गिरी पार के हाटीयों को जनजातीय दर्जा दिया जाना स्वीकार कर लिया है। प्रदेश सरकार ने इसे अपनी एक बड़ी उपलब्धि करार देते हुए बड़े स्तर पर इसका प्रचार प्रसार किया है। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल के इस फैसले के बाद संसद में इस आश्य का संविधान संशोधन लाया जायेगा। संसद का सत्र अब वर्ष के अन्त में आयेगा जिसमें यह संशोधन पारित होगा। इस कारण अभी तुरन्त प्रभाव से इन लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पायेगा। अभी जो भर्तियां बगैरा सरकार करेगी उसमें इस लाभ से यह लोग वंचित रह जायेंगे। ऐसे में यह सवाल उठना शुरू हो गया है कि यदि प्रदेश सरकार सही में इस पर गंभीर है तो केन्द्र से इसमें अध्यादेश जारी कर इसे तुरन्त प्रभाव से लागू कर सकती है। अन्यथा यह आशंका बराबर बनी रहेगी कि यह मुद्दा भी अंत में कहीं एक जुमला बनकर ही न रह जाये। क्योंकि इस पर कुछ समुदायों में रोष भी फैल गया है। लोग विरोध में धरने प्रदर्शनों पर आ गये हैं। बल्कि यह मामला प्रदेश उच्च न्यायालय तक भी पहुंच गया है।
स्मरणीय है कि हाटी का मसला हर चुनाव से पहले मुखर होता रहा है। 1995 और 2006 में दो बार इस पर पूर्व में विचार हो चुका है। किसी समुदाय या क्षेत्र विशेष को जन जातिय दर्जा देने के कुछ मानक तय हैं। लेकिन यह समुदाय इन मानकों पर पूरा नहीं उतरता रहा है। इसलिये राज्य सरकार के इस आश्य के प्रस्ताव भारत के महा रजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त के कार्यालय द्वारा अधिकार होते रहे हैं। इसमें 14 फरवरी 2017 को आया पत्र महत्वपूर्ण है। इस परिदृश्य में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि यदि 2017 में यह समुदाय जनजातिय मानकों को पूरा नहीं कर रहा था तो आज 2022 में यह कैसे संभव हो सकता है। 2017 के पत्र के परिदृश्य में सरकार के लिये यह स्पष्ट करना आवश्यक हो जाता है कि वास्तविक स्थिति क्या है। क्योंकि अभी तक केन्द्र सरकार द्वारा पारित प्रस्ताव का प्रारूप सामने नहीं आ पाया है। इसलिये यह आवश्यक हो जाता है कि सरकार अपनी गंभीरता और ईमानदारी दिखाने के लिए केन्द्र से अध्यादेश जारी करने का आग्रह करे। भारत सरकार का फरवरी 2017 का पत्र पाठकों के सामने रखा जा रहा है ताकि इस पर अपनी राय बना सकें।

भारत सरकार का पत्र

कितना सफल रहेगा आप का सुशान्त प्रयोग

शिमला/शैल। आम आदमी पार्टी की हिमाचल इकाई में कांगड़ा के पूर्व सांसद और धूमल सरकार में राजस्व मन्त्री रहे डॉ. राजन सुशान्त फिर से शामिल हो गये हैं। स्मरणीय है डॉ. सुशान्त 2014 में भी आप में थे और इसके टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। लेकिन आगे चलकर स्थितियां बदली और सुशान्त ने आप से किनारा कर लिया। 2017 का विधानसभा चुनाव भी लड़ा बल्कि उसके बाद आया उप चुनाव भी लड़ा। इसी बीच अपना राजनीतिक दल भी पंजीकृत करवा लिया। ओ.पी.एस. को लेकर सरकार के खिलाफ संघर्ष भी छेड़ रखा है। ‘‘हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी’’ अपना राजनीतिक दल बनाकर प्रदेश को इस के बैनर तले चुनाव लड़ने का भरोसा भी दे चुके हैं। इस परिदृश्य में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि वह कारण सार्वजनिक हो जिनके चलते आप को छोड़ने की नौबत आयी थी और आज फिर से उसी में वापस जाने की बाध्यता खड़ी हुई। राजनीति करना और राजनीतिक दल बनाना या किसी में शामिल होना या उससे बाहर जाना सार्वजनिक जीवन का हिस्सा होते हैं। ऐसे में यह सब जानना आम आदमी का हक हो जाता है। फिर आम आदमी पार्टी बीते आठ वर्षों में हिमाचल में नेतृत्व को लेकर कई प्रयोग कर चुकी है। बल्कि इन्हीं कारणों से आप को भाजपा की बी टीम होने का तमगा भी मिल चुका है। क्योंकि जिस दिल्ली में विधानसभा पर तो उसका कब्जा लगातार पुख्ता होता गया परन्तु उसी दिल्ली में वह लोकसभा में दोनो बार शून्य रही। बल्कि नगर निगम भी उसके हाथ नहीं लग पाये। जिस दिल्ली मॉडल को देशभर में भुनाने के प्रयास हो रहे हैं आज उसी की व्यवहारिकता पर पंजाब में गंभीर सवाल उठने लग पड़े हैं और आप की ओर से उन पर कोई जवाब नहीं आ रहा है। यही नहीं आज मुफ्ती की जो गारंटीयां आप घोषित करती जा रही है कांग्रेस और भाजपा ने तो उनकी संख्या भी कहीं अधिक बढ़ा दी है। ऐसे में जो मतदाता इन गारंटीयों के लिए आप पर भरोसा जताएगा वह इन्ही के लिये कांग्रेस और भाजपा पर अविश्वास किस आधार पर कर पायेगा। इस समय आप के नेता दिल्ली से थोड़ी देर के लिये हिमाचल आकर गारंटीयां घोषित करके वापस चले जाते हैं। लेकिन प्रदेश का नेतृत्व बाद में उनकी आर्थिकी लोगों को समझा नहीं पाता है। बल्कि यही संदेश जाता रहा है कि हिमाचल को भी दिल्ली से ही संचालित करने की योजना चल रही है। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि इस स्टेज पर आप का सुशान्त प्रयोग किसके पक्ष में कितना सफल रहता है।

मुख्यमंत्री का चेहरा कौन इस सवाल से कांग्रेस की एकजुटता पर होगा प्रहार

शिमला/शैल। हिमाचल कांग्रेस ने वर्तमान विधायकों अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले पदाधिकारियों और पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष को टिकट देने की घोषणा करके भाजपा तथा आप पर जो पहल हासिल कर ली थी उससे जनता में यह सन्देश गया था कि पार्टी पूरी इमानदारी से एकजुट होकर वर्तमान सरकार से पीछा छुड़ाने के लिए कार्यरत है। लेकिन एकजुटता का यह सन्देश उस समय ध्वस्त हो गया था जब पार्टी की वरिष्ठ नेता पूर्व सांसद विपल्व ठाकुर का यह ब्यान आ गया कि अभी किसी का भी टिकट फाइनल नहीं हुआ है और इस ब्यान का कोई खण्डन भी नहीं आया। इससे पहले आनन्द शर्मा चुनाव संचालन कमेटी से त्यागपत्र देकर पार्टी की एकजुटता पर प्रश्नचिन्ह लगा चुके हैं। अब प्रदेश के कई चुनाव क्षेत्रों से एक दूसरे का विरोध होने के समाचार लगातार आने शुरू हो गये हैं। इसमें अब मण्डी से आश्रय शर्मा का भी नाम जुड़ने से स्थिति और जटिल हो गयी है। आश्रय ने भी प्रदेश नेतृत्व पर अनदेखी के आरोप लगाते हुए अपना त्यागपत्र दिल्ली भेज दिया है। यही नहीं शिमला तक में कई टिकटार्थीयों ने यह ऐलान कर दिया है कि यदि उन्हें टिकट न मिला तो वह निर्दलीय होकर चुनाव लड़ेंगे। कुछ ने तो चुनावी पोस्टर तक शहर में चिपका दिये हैं। लेकिन पार्टी नेतृत्व ऐसे लोगों के ऐसे कृत्यों के बारे में खामोश चला हुआ है और यही नेतृत्व की कमजोरी बनती जा रही है। इस समय कांग्रेस का मुकाबला सिर्फ जयराम की सरकार और सुरेश कश्यप के संगठन से ही नहीं बल्कि दिल्ली बैठे नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह की नीतियों और भाषण बाजी से भी होगा यह मानकर चलना होगा। इसके लिये अभी तक कांग्रेस की कोई बड़ी तैयारी सामने नहीं आ रही है। क्योंकि नरेन्द्र मोदी की जुमलेबाजी के प्रभाव से ही 2014 में स्व. वीरभद्र सिंह के मुख्यमंत्री होते हुये भाजपा प्रदेश की चारों लोकसभा सीटें जीत कर ले गयी थी तथा 2019 में इस जीत के अन्तर को और बढ़ा दिया था। वीरभद्र और सुखराम का सहयोग भी इसमें सेंध नहीं लगा पाया था। यह ठीक है कि उसके बाद इसी भाजपा और जयराम सरकार से कांग्रेस नेे चारों उपचुनाव छीन लिये थे। लेकिन उस जीत में प्रदेश से ज्यादा राष्ट्रीय स्थितियों का बड़ा योगदान था और आज की तरह अपने घर में ऐसे विरोध के स्वर नहीं के बराबर थे। आज बहुत सारा विरोध प्रायोजित भी होगा और इसको पहचानना पार्टी की प्राथमिकता होनी चाहिये। इस समय राष्ट्रीय परिदृश्य जिस तरह के दौर से गुजर रहा है उससे राजनीति के सारे मानक बदल गये हैं। संविधान को बदलने के अपरोक्ष में प्रयास शुरू हो गये हैं। आर्थिकी लगातार कमजोर होती जा रही है और इसके कारण महंगाई तथा बेरोजगारी नियन्त्रण से बाहर जा चुकी है। लेकिन इसे विभिन्न योजनाओं के लाभार्थीयों की हर जगह परेड करवाकर जन चर्चा से बाहर रखने का प्रयास किया जा रहा है। यह लाभार्थी खड़ा करने के लिये आम आदमी को किस तरह कर्ज के गर्त में धकेल दिया गया है इसे चर्चा में नहीं आने दिया जा रहा है। इस समय इन योजनाओं का असली चेहरा और कर्ज की वास्तविकता आम आदमी के सामने रखने की आवश्यकता है लेकिन इस दिशा में कांग्रेस के प्रयास नहीं के बराबर हैं। इसी कारण से आज भी कुछ लोग प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व को कोस कर कांग्रेस छोड़ने के बहाने तलाश रहे हैं। ऐसे लोगों को चिन्हित करके उनके प्रति कड़ा रुख अपनाने की आवश्यकता है। इस समय जो लोग टिकट न मिलने की सूरत में बगावती होकर चुनाव लड़ने की घोषणाएं कर रहे हैं उन्हें समय रहते बाहर का रास्ता दिखाने की आवश्यकता है। आज जो लोग मण्डी में वहां की सांसद के दखल का ही विरोध करने पर उतर आये उन्हें संगठन का शुभचिंतक किस गणित से माना जा सकता है। इस समय प्रदेश नेतृत्व को सरकार के प्रति जितना आक्रामक होना चाहिये उसमें अभी बहुत कमी है। संगठन के बड़े चेहरों को सामूहिक एकजुटता का सन्देश देना सबसे बड़ी आवश्यकता है। क्योंकि सता पक्ष इस एकजुटता को मुख्यमंत्री का चेहरा कौन के प्रश्न से उलझाने का प्रयास करेगी।

जैन की शिकायत पर ड्रग कन्ट्रोलर जनरल का प्रदेश के स्वस्थ सचिव को पत्र

शिमला/शैल। प्रदेश के दवा नियन्त्रक मरवाह के खिलाफ एक एम.सी. जैन लम्बे समय से राज्य सरकार से लेकर प्रधानमंत्री तक को गंभीर शिकायतें भेजते आ रहे हैं। प्रधानमन्त्री कार्यालय से यह शिकायतें मुख्यमंत्री कार्यालय तक आगामी कारवाई के निर्देशों सहित आ चुकी हैं। सूत्रों के मुताबिक मुख्य सचिव कार्यालय से भी यह शिकायतें आगामी कारवाई के लिये आगे भेजी जा चुकी हैं। लेकिन संयोगवश इन शिकायतों पर आज तक कोई कारवाई नहीं हो पायी है।
अब भारत सरकार के ड्रगा कन्ट्रोलर जनरल ने इसका संज्ञान लेते हुए प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य सचिव को कारवाई के लिए सीधे पत्र भेजा है। स्मरणीय है कि एम.सी. जैन ने छः फार्मा कंपनियों को सीधे नाम से इंगित करते हुए 12-08-2020 के अपने पत्र में बहुत ही गंभीर आरोप लगाये हैं। बल्कि एक उद्योग के यहां से वह सामान चोरी होने का आरोप है जिसे शायद एक्साईज विभाग एक छापे में जब्त कर चुका था। कुछ उद्योगों के खिलाफ दूसरे राज्यों में तो कड़ी कारवाई होने की सूचना भी जैन की शिकायत में रही है। लेकिन इस सबके बावजूद राज्य सरकार द्वारा अब तक कोई कारवाई न किया जाना कई सवाल खड़े करता है। इस परिदृश्य में ड्रग कन्ट्रोलर जनरल का यह पत्र महत्वपूर्ण हो जाता है



Facebook



  Search