Sunday, 21 December 2025
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यदि डबल इंजन सरकार लाभदायक है तो इन सवालों के जवाब क्या हैं?

2018 में सौ योजनाओं पर सरकार एक पैसा भी खर्च क्यों नहीं कर पायी

2019 में स्कूलों में वर्दियां क्यों नहीं मिल पायी
तीन वर्ष कुछ योजनाओं में केन्द्र से कोई भी सहायता अनुदान क्यों नहीं मिल पाया?
जीएसटी में 544.82 करोड़ की क्षतिपूर्ति क्यों नहीं मिल पायी?
तीन वर्षों में बजट अनुमानों से वास्तविक खर्च 72826 करोड़ कैसे बढ़ गया?
क्या बढे़ हुये खर्च के लिये धन कर्ज लेकर जुटाया गया

शिमला/शैल। प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा, कांग्रेस और आप तथा निर्दलीयों तक के घोषणा पत्र आ चुके हैं। सभी ने मतदाताओं से लम्बे चौड़े वादे कर रखे हैं। लेकिन किसी ने भी प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर कुछ नहीं कहा है। वादे पूरे करने के लिये धन कहां से आयेगा उस पर सब खमोश हैं। 2014 में जब केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी तब से लेकर आज तक यह स्पष्ट हो चुका है कि यह सरकार सरकारी क्षेत्र की जगह प्राइवेट क्षेत्र को ज्यादा अधिमान दे रही है। इसी के चलते सारे सार्वजनिक उपक्रम योजनाबद्ध तरीके से प्राइवेट सैक्टर के हवाले किये जा रहे हैं। यहां तक कि इन्हें कारोबार के लिये पूंजी भी सरकारी क्षेत्र से ही उपलब्ध करवाई जा रही है। प्राइवेट क्षेत्र को इस तरह से अधिमान दिये जाने का अर्थ है कि सरकारी क्षेत्र को योजनाबद्ध तरीके से कमजोर करना। इस कमजोर करने के प्रयास का परिणाम होता है महंगाई और बेरोजगारी। लेकिन इस तथ्य से लोग सीधे अवगत ही नहीं हो पाये हैं। इसलिए उनका ध्यान बांटने के लिये सभी भावनात्मक मुद्दे उनके सामने परोसे जाते हैं। आज हिमाचल के चुनाव में भी डबल इंजन की सरकार का तर्क दिया जा रहा है। केन्द्र में 2014 से प्रदेश में 2017 से भाजपा की सरकारें हैं। केन्द्र और राज्य दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकारें होना प्रदेश के विकास के लिये अच्छा होता है। लेकिन क्या हिमाचल के संद्धर्भ में ऐसा हो पाया है? क्या हिमाचल को कोई अतिरिक्त सहायता मिल पायी है? या हिमाचल को उसका अपना जायज हिस्सा भी नहीं मिल पाया है और प्रदेश का नेतृत्व डबल इंजन के कारण आवाज भी नहीं उठा पाया है? इन सवालों की पड़ताल करने के लिये सीएजी रिपोर्ट से ज्यादा प्रमाणिक दस्तावेज और कोई नहीं हो सकता। जयराम सरकार ने दिसम्बर 2017 को पदभार संभाला था। इस सरकार के आने के बाद 31 मार्च 2019 को कैग की पहली रिपोर्ट आयी और इसके मुताबिक यह सरकार 100 योजनाओं पर एक नया पैसा भी खर्च नहीं कर पायी है। रिपोर्ट आने पर यह प्रमुखता से छपा था लेकिन इसका जवाब आज तक नहीं आ पाया है। इस रिपोर्ट में जीएसटी को लेकर यह दर्ज है कि प्रदेश को जो क्षतिपूर्ति केन्द्र द्वारा की जानी थी उसमें 544.82 करोड रुपए केन्द्र से नहीं मिल पाया है। जुलाई 2017 में प्रदेश में जीएसटी लागू हो गया था और एक्ट के मुताबिक राज्य को होने वाले घाटे की भरपाई केन्द्र को करनी थी जो नहीं हो पायी। इसके बाद 31 मार्च 2020 को अगली के रिपोर्ट आयी है। 2019 में सरकार स्कूलों में बच्चों को वर्दियां नहीं दे पायी है। ऐसा क्यों हुआ है इसके कारणों का खुलासा आज तक नहीं हो पाया है। 31 मार्च 2020 को आयी इस रिपोर्ट के दूसरे पन्ने पर भारत सरकार से प्राप्त सहायता अनुदान की तालिका छपी है। इसके मुताबिक 2017-18 और 19-20 के 3 वर्षों में कुछ योजनाओं में केन्द्र कोई अनुदान नहीं मिला है। इसी रिपोर्ट के पहले पन्ने पर सरकार के बजट और व्यय के आंकड़े छपे हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक इन्हीं तीन वर्षों में सरकार के बजट अनुमानों से उसका खर्च 72,826 करोड बढ़ गया है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक हो जाता है कि इस बढ़े हुये खर्च के लिये धन का प्रावधान कैसे किया गया क्या सरकार के पास कर्ज लेने के अतिरिक्त और कोई विकल्प उपलब्ध था इन सवालों का जवाब सत्ता पक्ष की ओर से आज तक नहीं आया है। इसलिए यह दस्तावेजी साक्ष्य पाठकों के सामने रखे जा रहे हैं। इन साक्ष्यों से यह आशंका बनी हुई है कि प्रदेश का कर्ज भार कहीं एक लाख करोड से तो नहीं बढ़ गया है। फिर अब तो प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना भी बन्द हो चुकी है और इसमें भी 203 सड़कें अधूरी हैं। क्या यही डबल इंजन सरकार के लाभ हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

‘‘पन्द्रह साल नड्डा ने जलील किया है’’ कृपाल परमार का आरोप

शर्मनाक हार की ओर बढ़ रही है स्थितियां
सभी मंत्री संकट में
मुख्यमंत्री को कांग्रेसियों से मांगना पड़ रहा है सहयोग

शिमला/शैल। भाजपा के बागियों को मनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को उन्हें फोन करने पड़े हैं। यह प्रधानमंत्री की पूर्व राज्यसभा सांसद कृपाल परमार से हुये संवाद के वायरल होने से बाहर आ गयी हैं। मोदी कृपाल परमार को फोन पर चुनाव से हट जाने का अनुरोध करते हैं और परमार ने उन्हें दो दिन लेट हो गये कि बात करके यह भी साफ सुना दिया की नड्डा ने उन्हें पन्द्रह साल जलील किया है। नड्डा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। हिमाचल के बिलासपुर से आते हैं और बिलासपुर में ही कुछ बगियों ने उन्हें मिलने तक से इन्कार कर दिया यह भी सामने आ गया है। हिमाचल को छोड़कर उन सभी भाजपा शासित राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन हुआ या होने के प्रयास हुये जहां चुनाव होने थे। लेकिन हिमाचल में ऐसा नहीं हो पाया। कुछ मंत्रियों की छुट्टी करने कुछ के विभाग बदले जाने का प्रचार गोदी मीडिया के माध्यम से लगातार करवाया जाता रहा। लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं हो पाया। इसलिए आज भाजपा के करीब दो दर्जन बागी चुनाव लड़ रहे हैं। आज धूमल को जिस तरह हाशिये पर धकेल दिया गया उसकी पीड़ा अनुराग ठाकुर के आंसुओं से सार्वजनिक हो चुकी है। महेश्वर सिंह के बेटे ने महेश्वर को टिकट दिये जाने से पहले निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। नड्डा को यह जानकारी होने के बाद भी महेश्वर सिंह को दिल्ली बुलाया गया और टिकट दिया गया। इस टिकट को अन्तिम दिन बेटे के चुनाव से न हटने के दण्ड के रूप में बदल दिया गया। महेश्वर का दर्द उनके आंसूओं में सार्वजनिक हो गया। क्या महेश्वर को टिकट देने से पहले बेटे को चुनाव से हटाने की शर्त रखी गयी थी यह अभी तक रहस्य बना हुआ है। जब निर्दलीय विधायक होशियार सिंह और प्रकाश राणा को पार्टी में शामिल किया गया था तब यह आरोप लगा कि इन्हें लाने से पहले धूमल जैसे वरिष्ठ नेताओं से राय नहीं ली गयी है। बल्कि संबंधित मण्डल तक को विश्वास में नहीं लिया गया। इस पर उभरी नाराजगी लखविंदर राणा और पवन काजल के शामिल होने तक जारी रही। फिर हर्ष महाजन और विजय सिंह मनकोटिया को शामिल करने में क्या शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल से राय ली गयी थी। शायद नहीं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस समय पार्टी में जो कुछ भी हो रहा है उसके लिए केवल नड्डा और जयराम ही जिम्मेदार हैं।
हिमाचल में यह स्थिति लगभग पहले दिन से ही बन गयी थी। इसी का परिणाम है कि 2019 के लोकसभा चुनाव इतने प्रचण्ड मार्जन से जीतने के बाद भाजपा ने दो नगर निगम के चुनाव हारे फिर तीन विधानसभा और एक लोकसभा उपचुनाव हारा। बीस विधानसभा चुनाव क्षेत्र इससे प्रभावित हुये। जुब्बल-कोटखाई जो 2017 में भाजपा के पास थी वहां भाजपा जमानत नहीं बचा पायी। जबकि कांग्रेस ने अर्की और फतेहपुर पर अपना कब्जा बरकरार रखा। यहां पर 2017 के चुनाव के इस तथ्य पर भी नजर डालना आवश्यक हो जाता है कि इस चुनाव के समय भाजपा में नेतृत्व को लेकर कोई प्रश्न नहीं थे। बागियों की कोई समस्या नहीं थी। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ कोई प्रश्न मुखर नहीं थे। तब भी उस समय भाजपा की पन्द्रह सीटों पर जीत दो हजार से कम के अन्तर से हुई है। दस सीटों पर निर्दलीयों ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ा था। आज यह पच्चीस सीटें सीधे भाजपा के हाथ से निकलती नजर आ रही है। क्योंकि जब प्रधानमन्त्री को बागियों को फोन करने की नौबत आ जाये और उसका कोई असर तक न हो तो संगठन के भीतर की स्थिति सार्वजनिक चर्चा का विषय बन जाती है। आज भाजपा इन सारी स्थितियों से बुरी तरह घिरी हुई है। 2017 के चुनाव के दौरान मण्डी की एक जनसभा में हिमाचली कर्मचारियों को नामतः यह आश्वासन दिया था कि जो काला धन वापस आने वाला है उसमें से कुछ हिस्सा हिमाचली कर्मचारियों को भी मिलेगा। प्रधानमंत्री के ब्यान का यह वीडियो चुनावों में वायरल हो चुका है। बिलासपुर में डाªेन ज्ञान और चम्बा में रेल पहुंचने की उपलब्धियां गिनाता केंद्रीय नेतृत्व भी आज प्रदेश में प्रसांगिक हो गया है। क्योंकि उसके दिये हुये 69 राष्ट्रीय उच्च मार्ग आज सैद्धांतिक स्वीकृति से आगे नहीं बढ़े हैं।
आज महंगाई और बेरोजगारी के आगे धारा 370 और तीन तलाक बहुत छोटे हो गये हैं। 2014 से आज तक लगातार आम आदमी के जमा पर कम होता गया ब्याज और कर्ज के महंगा होने तथा डॉलर के मुकाबले रुपए के लगातार कमजोर होते जाने के सच के सामने राम मंदिर का निर्माण भी इससे राहत नहीं दिलवा पाता है। आज सरकार की वित्तीय स्थिति उस मोड़ पर आकर खड़ी हो गयी है कि वह दिसम्बर के बाद गरीबों को सस्ता राशन देने की योजना को आगे बढ़ाने की स्थिति में नहीं रह गयी है। क्योंकि बैंकों से जो लाखों करोड़ कर्ज दिलवाया गया था वह आज तक वापस नहीं आ पाया है। ऊपर से आरबीआई द्वारा जारी नौ लाख करोड़ के नोट कहीं गायब हो गये हैं जिनकी विधिवत जांच तक नहीं हो पायी है। यह सारे घाटे आम आदमी की जेब से पूरे करने के लिये हर सेवा को लगातार महंगा किया जा रहा है। यह सारे सच अब आम आदमी को समझ आ चुके हैं। इसी का प्रमाण है कि प्रधानमंत्री को ही करीब एक दर्जन चुनाव सभाएं करने के साथ ही बागियों को मनाने के लिये स्वयं फोन करने पड़ रहे हैं। इस स्थिति से स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा को इन चुनाव में शर्मनाक हार का सामना करने की आशंका डराने लग गयी है। क्योंकि संघ पार्टी आईबी और सीआईडी किसी के भी सर्वेक्षण में 15 से 20 सीटों से ज्यादा आंकड़ा नहीं बढ़ा है।
भाजपा की यह स्थिति इसलिये हुई है क्योंकि जो कुछ विज्ञापनों में विज्ञापित किया जा रहा है वह जमीन पर देखने में मिल नहीं रहा है। स्कूलों में बच्चों को वर्दियां नहीं दी जा सकी हैं। मिड डे मील के पैसे अध्यापकों को अपनी जेब से देने पड़े हैं। घटिया वर्दी सप्लाई करने के लिये जिन फर्मों पर कांग्रेस सरकार ने करोड़ों का जुर्माना लगाया था इस सरकार ने उसे माफ करके फर्मों को अभयदान दे दिया। इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय से अपील दायर करने की अनुशंसा स्वयं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने फाइल पर कर रखी है। जिस पर पांच वर्षों में अमल नहीं हो पाया। क्योंकि प्रशासन ने विकास की सीमा ओक ओवर के दो मंजिला मकान में लिफ्ट लगने से आगे बढ़ने ही नहीं दी। इससे मुख्यमंत्री की प्रशासन पर पकड़ इतनी कमजोर पड़ गयी कि सवैधानिक पदों पर बैठे लोग उद्योगपतियों के लिये आयोजित इन्वैस्टर मीट में शिरकत रहे और सरकार में किसी का भी इसका संज्ञान लेने का साहस तक नहीं हुआ। ऐसी स्थितियों से जो सन्देश आम आदमी तक पहुंचा वह आज गले पड़ गया है। यह माना गया है कि इस प्रशासन में सब को लूट की बराबर छूट है। शर्त यह थी कि लूट की जिम्मेदारी किसी बड़े पर नहीं आनी चाहिये। इसी का परिणाम है कि चुनाव में मुख्यमंत्री को कांग्रेसियों से सहयोग की अपील करनी पड़ रही है। नड्डा के सहयोग से प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तक यह अन्दर की कहानी नहीं पहुंचने दी गयी। आम आदमी और पार्टी के जिम्मेदार लोगों तथा सरकार के बीच संवाद का ऐसा संकट खड़ा हुआ जिसने आज प्रधानमंत्री तक की बात न सुनने के सार्वजनिक हालात पैदा कर दिये। क्या इस परिदृश्य में हो रहे चुनाव में उम्मीद की जा सकती है कि सरकार किसी भी गणित से पुनः सत्ता में वापसी की सोच सकती है।

जयराम ने बेची नौकरियां-कांग्रेस का संगीन आरोप

शिमला/शैल। अन्ंततः कांग्रेस ने जयराम सरकार के खिलाफ आरोप पत्र जारी कर दिया। बड़े लम्बे अरसे से इस आरोपपत्र की मीडिया और जनता में इंतजार की जा रही थी। जयराम ने कांग्रेस के आरोप पत्र को रोकने के लिए यहां तक कह दिया था कि यदि कांग्रेस ऐसा कुछ करती है तो भाजपा द्वारा कांग्रेस के खिलाफ सौंपे गये आरोप पत्र को सीबीआई को भेज देगी। इस परिदृश्य में अब चुनाव प्रचार के दौरान सीधे जनता की अदालत में रखे गये आरोप पत्र से भाजपा की चुनावी कठिनाईयां बढ़ना स्वाभाविक है। क्योंकि सीधे मुख्यमंत्री पर नौकरियां बेचने का आरोप लगाया गया है। हिमाचल में युवाओं के लिये रोजगार का सबसे बड़ा क्षेत्र सरकार ही है। और जब सरकार में ही नौकरियां बेचने का सच सामने आ जाये तो चुनावों के साथ इससे बड़ा मजाक और कोई हो नहीं सकता। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि पुलिस भर्ती में 6 से आठ लाख में पेपर बेच गये। 2020 में भी 2022 की ही तरह पेपर लीक हुए थे। पंप ऑपरेटरों के पेपर चार-चार लाख में बिके। स्टाफ सर्विस कमीशन में अपनों को अलग कमरों में बैठाकर पास करवाया गया। आउटसोर्स में 94 कंपनियों को 230958224 का कमीशन दिया गया। अधिकांश कंपनियां परोक्ष/अपरोक्ष में राजनेताओं से जुड़ी हुई हैं। विश्वविद्यालय में हुई भर्तियों का कच्चा चिट्ठा आरटीआई के माध्यम से सामने आ चुका है।
पुलिस भर्ती पेपर लीक मामले में जुलाई में स्वयं हर्ष महाजन रिकॉर्ड पर यह कह चुके हैं कि जल्द ही इस मामले में एक ऑडियो जारी किया जायेगा। पुलिस जब इस मामले की जांच कर रही थी तब पुलिस को हर्ष से यह ऑडियो हासिल करनी चाहिये थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं और आज हर्ष महाजन भाजपा के स्टार प्रचारक हैं। इस मामले में जब गुड़िया मामले की तर्ज पर यह सवाल उठा था कि पुलिस के खिलाफ पुलिस की ही जांच विश्वसनीय नहीं होगी और यह जांच सीबीआई को सौंपने के आग्रह की याचिका प्रदेश उच्च न्यायालय में आयी थी। तब अदालत का फैसला आने से पहले ही सरकार ने घोषित कर दिया कि यह जांच सीबीआई को सौंप गयी है। जबकि वास्तव में सरकार ने सीबीआई को ऐसा कोई पत्र भेजा ही नहीं है। यह आरटीआई में मिली जानकारी से स्पष्ट हो जाता है। इस मामले में पुलिस ने करीब सवा सौ लोगों से पूछताछ करने के बाद पेपर खरीदने के आरोप में गिरफ्तार किया है। जिनमें से कुछ जमानत पर हैं तो कुछ हिरासत में हैं। इन लोगों ने पेपर खरीदे हैं लेकिन खरीद का यह पैसा किन बड़े लोगों तक पहुंचा है इस पर अभी तक पर्दा पड़ा हुआ है। इसी से यह आरोप गंभीर हो जाता है कि बड़ों को बचाने का प्रयास किया गया है क्योंकि यह विभाग स्वयं मुख्यमंत्री के पास है। जल शक्ति विभाग में 2200 करोड़ का घपला होने का आरोप है। प्रधानमंत्री की रैलियों पर ही पांच सौ करोड़ का खर्च होने का आरोप है जिसे सरकार बनने के बाद भाजपा से वसूला जायेगा।
कांग्रेस ने जो आरोप लगाये हैं वह जनता में काफी अरसे से चर्चा में हैं। आज इन आरोपों को इस तरह जनता के बीच रखने से इनकी याद दोहरा दी गयी है। कांग्रेस ने दावा किया है कि वह आते ही एक जांच आयोग का गठन करेगी और जयराम सरकार द्वारा अन्तिम छः माह में लिये गये फैसलों की समीक्षा की जायेगी। कांग्रेस ने यह आरोप पत्र राज्यपाल को न सौंपकर सीधे जनता में रखा है ताकि सरकार बनते ही जांच एजैन्सीयां स्वतः ही इस पर काम शुरू कर दें। उन्हें सरकार के औपचारिक आदेशों की प्रतीक्षा न करनी पड़े और यही इस आरोपपत्र का सबसे गंभीर पक्ष है।

क्या हर्ष महाजन बैंक भर्ती घोटाले की जांच से बचने के लिए भाजपा में आये

शिमला/शैल। कांग्रेस नेता रहे पूर्व मंत्री हर्ष महाजन अब भाजपा ने आकर स्टार प्रचारकों की सूची में भी शामिल हो गये हैं। हर्ष महाजन लम्बे समय से चुनावी राजनीति को अलविदा कह चुके हैं और भाजपा में आकर भी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या हर्ष महाजन को संघ भाजपा की विचारधारा की अब समझ आ गयी है और कांग्रेस भाजपा में आकलन करते हुये उन्हें भाजपा बेहतर लगी है। लेकिन भाजपा में शामिल होने पर उन्होंने वैचारिकता को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है। केवल कांग्रेस के प्रदेश और केन्द्रिय नेतृत्व पर किसी दूसरे की बात न सुनने का आरोप लगाया है। लेकिन यह आरोप लगाते हुये उनका ध्यान इस तथ्य की ओर नहीं गया है की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो पिछले आठ वर्ष से देश को केवल अपने ही मन की बात सुनाते आये हैं। आठ वर्षों में कोई पत्रकार वार्ता तक संबोधित नहीं की है इसलिये भाजपा-कांग्रेस दोनों के शीर्ष नेतृत्व की तुलना करते हुये हर्ष महाजन का आरोप जमीन पर नहीं ठहर पाता है और इसलिये गले नहीं उतरता है।
क्योंकि कांग्रेस में आज हर्ष महाजन कार्यकारी अध्यक्ष थे और पूर्व में राज्य सहकारी बैंक के चेयरमैन रह चुके हैं। स्मरणीय है कि जब वह बैंक के अध्यक्ष थे तब बैंक में कर्मचारियों की भर्ती को लेकर एक बड़ा विवाद उठा था। भाजपा ने इसको अपने आरोपपत्र में प्रमुखता से उठाया था। जयराम की सरकार बनने के बाद विभागीय स्तर पर इसकी प्रारंभिक जांच करने के बाद इसमें बाकायदा एफ आई आर दर्ज करके मामले की जांच करने के आदेश जुलाई 2018 को विजिलैन्स को दिये गये थे। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की संस्तुति के बाद यह मामला विजिलैन्स को भेजा गया था। लेकिन आज तक इस पर कोई कारवाई नहीं हो पायी है। चर्चा है कि जब मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से यह कहा था कि कांग्रेस चुनाव लड़ने लायक ही नहीं रहेगी तो उस दौरान यह पड़ताल की जा रही थी कि कांग्रेस के किस-किस नेता को विजिलैन्स के माध्यम से साधा जा सकता है। उस पड़ताल में हर्ष महाजन का नाम सामने आने के बाद हर्ष भाजपा के हो गये यह सामने है।

यही नहीं हर्ष महाजन ने नवंबर 2016 में नोट बन्दी लागू होने के बाद 16 मई 2017 को एक गाड़ी खरीदी थी। लेकिन मई 2017 में खरीदी गई इस गाड़ी का पंजीकरण 16 मार्च को गाड़ी खरीदने से पहले ही हो गया। यूनाइटेड इन्श्योरेंस कंपनी से इसका इन्श्योरस 2 मार्च को ही हो गया। अभी मार्च 2023 तक इसका इन्श्योरेंस है यह दस्तावेज भाजपा के कई हलकों में इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। स्वभाविक है कि नोटबंदी के बाद बड़ी गाड़ी खरीदना और खरीद से पहले ही उसका पंजीकरण और इन्श्योरेंस करवा लेना हर किसी के बस की बात नहीं है। भाजपा ने शायद इन्हीं अनुभवों का लाभ लेने के लिये उन्हें अपने यहां सम्मानित किया है और वह भी साम दाम की नीति अपनाकर कांग्रेसियों को भाजपा में लाने का प्रयास कर रहे हैं।

जब बागीयों ने ही नही सुनी नेतृत्व की बात तो जनता क्यों सुनेगी

क्या यह हार का पहला संकेत है

शिमला/शैल। नामांकन वापसी के बाद भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के बागी चुनाव मैदान में हैं और दोनों के लिये परेशानी का कारण बनेगे यह तय है। भाजपा प्रदेश में सत्ता में है और केन्द्र में भी उसी की सरकार है तथा प्रदेश में सत्ता में वापसी करके रिवाज बदलने का दावा कर रही है। इसलिये भाजपा की स्थिति का आकलन करना महत्वपूर्ण हो जाता है। भाजपा त्रिदेवों और पन्ना प्रमुखों की नीव पर आधारित विश्व की सबसे बड़ी और अनुशासित पार्टी होने का दम भरती हैं। इसलिये आज इसके बागियों की संख्या कांग्रेस से तीन गुना फील्ड में होना उसके अनुशासन के दावों पर पहला गंभीर सवाल है। बागियों को मनाने के लिये राष्ट्रीय ंअध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर स्वयं फील्ड में उतरे थे लेकिन नड्डा बिलासपुर तथा जयराम मण्डी में ही बुरी तरह असफल रहे हैं। इस असफलता को चुनावी हार का पहला संकेत माना जा रहा है। इसलिये भाजपा का केन्द्रिय नेतृत्व पार्टी की स्थिति से बुरी तरह विचलित हो रहा है। शायद इसी कारण से नड्डा और जयराम को दिल्ली तलब किया गया था। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी बड़े साफ शब्दों में कहा है कि मुख्यमंत्री कौन होगा इसका फैसला चुनाव परिणामों के बाद होगा। मुख्यमंत्री ने भी अपने कुछ विश्वसतों के साथ इस आशंका को साझा किया है। मुख्यमंत्री के अपने ही चुनाव क्षेत्र में जब कॉलेज और सड़क जनता के मुद्दे बन जाये तो तान्दी ने बनाया गया होटल सिराज क्षेत्र के विकास का प्रतीक नहीं बन पाता है। क्योंकि सरकार के इस निवेश का लाभ जनता को न मिलकर केवल क्लब महिन्द्रा को मिल रहा है।
पार्टी की यह स्थिति क्यों हो गयी इसको लेकर संघ में भी अब चिन्ता और चिन्तन चल रहा है। क्योंकि संघ के अपने चुनावी सर्वेक्षणों में भी भाजपा सरकार बनाने से बहुत दूर रह रही है। शायद इसीलिये सुरेश भारद्वाज और वीरेन्द्र कंवर जैसे मंत्रियों को चुनाव प्रचार में जाने के लिये अपने को अगला मुख्यमंत्री प्रचारित करना पड़ रहा है और विक्रम ठाकुर को बाबा राम रहीम के आशीर्वाद लेना पड़ रहा है। आज पार्टी जिस मुकाम पर आ पहुंची है वहां यह सवाल गंभीरता से उठ गया है कि नेतृत्व और कार्यकर्ता में संवाद की कमी क्यों रह गयी। इसी संवाद हीनता के कारण तो जयराम को उड़ने वाले मुख्यमंत्री की संज्ञा मिली है। अब यह खुलकर कहा जा रहा है की मुख्यमंत्री गोदी मीडिया की गोद से एक क्षण भी बाहर नहीं निकल पाये। सूचना और जनसंपर्क विभाग ने भी गोदी मीडिया के घेरे से मुख्यमंत्री को बाहर नहीं निकलने दिया। इसी का प्रमाण है कि चार वर्षों में विज्ञापनों पर आये सवालों का जवाब तक नहीं दिया गया। केवल कड़वा सच लिखने वालों को ही दण्डित करने की योजनाएं बनती रही। सरकार धूमल को राजनीति से बाहर करने के एजैण्डे पर ही चलती रही। जिस मुख्यमंत्री के फैसलों की पटकथा गोदी मीडिया पहले ही लिख देगा उसे न तो सरकार की पारदर्शिता माना जाता और न ही मीडिया की दूदर्शिता। जो मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के अन्तिम दिनों लोकसेवा आयोग पर लिये गये फैसले को अमलीजामा न पहना सके ? जिस लोकसेवा आयोग का सदस्य अपने को चुनावी उम्मीदवार प्रचारित करवाने से परहेज न करवाये और सरकार भी इस पर चुप्पी साधे रखे तो उस सरकार को लेकर आम आदमी में क्या संदेश जा रहा होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। शायद सरकार का सारा ध्यान धनबल के सहारे कांग्रेस को दो फाड़ करने में लगा रहा। जब कांग्रेस नहीं टूटी तो अपने ही घर में बगावत का यह रूप देखने को मिल गया।

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