Friday, 19 September 2025
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क्या बिना काम के बैठाना जिम्मेदारी में समकक्षता है

सरकार के आदेश से उभरी चर्चा

शिमला/शैल। जयराम सरकार ने अभी 14 तारीख को 1987 बैच के आईएएस अधिकारी राम सुभाग सिंह को मुख्य सचिव के पद से हटाकर उनके स्थान पर 1988 बैच के आर.डी. धीमान को इस पद पर तैनात किया है। वैसे राम सुभाग सिंह की सेवानिवृत्ति जुलाई 2023 में होगी। मुख्य सचिव किसको बनाना है यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। इसमें यही सुनिश्चित किया जाता है यदि किसी जूनियर को इस पद पर तैनाती दी जाती है तो ऐसे में नजरअन्दाज किये जाने वाले सीनियर को उसके जूनियर के तहत पोस्ट न किया जाये। जयराम सरकार ने भी आर.डी. धीमान को मुख्य सचिव नियुक्त करते हुये उनसे सीनियर राम सुभाग सिंह, निशा सिंह और संजय गुप्ता को नजरअंदाज करके इन लोगों को बतौर सलाहकार नियुक्तियां दी। यह नियुक्तियां व्यवहारिक रूप से बिना काम के बैठने वाली होती हैं। क्योंकि कोई भी विभागीय सचिव सलाहकार से सलाह लेने नहीं जाता है। सरकार के रूल्स ऑफ बिजनेस में भी सलाहकार का पद परिभाषित नहीं है। किस स्तर पर कौन सी फाइल सलाहकार को जायेगी ऐसा कुछ भी इन नियमों में प्रदत नहीं है और यह नियम बाकायदा विधानसभा से पारित हैं और गोपनीय माने जाते हैं। इस परिपेक्ष में जब यह सामने आया कि इन तीनों अधिकारियों को बिना काम के बैठा दिया गया है जबकि नियमों के मुताबिक इन्हें मुख्य सचिव के समकक्ष होना है। यह सामने आते ही एक और आदेश पारित करके इन लोगों को मुख्य सचिव के समकक्ष स्टेटस और जिम्मेदारियां दी गयी। इस आशय का आदेश अलग से जारी हुआ है। लेकिन व्यवहार में इन अधिकारियों के पास कोई फाइल आने का प्रावधान ही रूल्स ऑफ बिजनेस में नहीं है। ऐसे में कोई भी अधिकारी बिना काम के जिम्मेदारी में भी मुख्य सचिव के समकक्ष कैसे हो जायेगा? यह सवाल सचिवालय के गलियारों से लेकर सड़क तक बराबर चर्चा में चल रहा है। क्योंकि यह अधिकारी और इनके कार्यालयों में तैनात कर्मचारी कई लाखों में वेतन ले रहे हैं। लेकिन सभी बिना काम के बैठे हैं। मान सम्मान तो बिना काम के बैठ कर भी मिलना माना जा सकता है। लेकिन बिना काम के भी जिम्मेदारी में भी समकक्षता कैसे हो जायेगी यह रहस्य बना हुआ है।

यह माना जा रहा है कि इस स्तर के तीन-तीन अधिकारियों को चुनावों से 4 माह पहले बिना काम के बैठा कर प्रदेश की जनता और पूरे प्रशासन को जो संदेश अपरोक्ष में जा रहा है वह सरकार की चुनावी सेहत के लिये बहुत घातक सिद्ध होगा। क्योंकि नजरअन्दाज हुये अधिकारी स्वभाविक है कि वह सरकार के अब शुभचिंतक नहीं हो सकते। इस स्तर के अधिकारियों के पास सरकार को लेकर जो जानकारियां रही होंगी वह चुनावों के दौरान बाहर आकर सरकार के लिये कैसी कठिनाइयां पैदा करेंगे यह तो आने वाला समय ही बतायेगा जिन सलाहकारों ने चुनावों से चार माह पहले ऐसी सलाह दी है उन्होंने इससे पहले क्या-क्या किया होगा यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं होगा।

केजरीवाल पर प्रधानमंत्री के हमले से आप की प्रदेश इकाई की चुप्पी सवालों में

शिमला/शैल। क्या आम आदमी पार्टी हिमाचल में अपनी चुनावी उपस्थिति दर्ज करा पायेगी? यह सवाल पिछले कुछ समय से पूछा जाने लगा है। क्योंकि पंजाब में मिली सफलता के सहारे जिस आगाज से पार्टी ने प्रदेश में दस्तक दी थी और यह दावा किया गया था कि दो लाख लोगों ने इसकी सदस्यता ग्रहण कर ली है। मुख्यमंत्री के गृह जिले मण्डी में रैली करके पहला शक्ति प्रदर्शन किया था और मुख्यमंत्री को उन्हीं के चुनाव क्षेत्र में घेरने का दावा किया था। लेकिन पार्टी की दूसरी रैली कांगड़ा में होने से पहले ही इस के तत्कालीन संयोजक अनूप केसरी और दो अन्य नेताओं को अनुराग ठाकुर ने भाजपा का सदस्य बना कर सारी बाजी ही पलट दी। इसके बाद पार्टी को नई प्रदेश कार्यकारिणी बनाने में समय लगा और इसी दौरान हिमाचल के प्रभारी रहे सत्येंद्र जैन को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी के बाद प्रदेश ईकाई अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज नहीं करवा पायी है। मनीष सिसोदिया ने शिक्षा को मुद्दा बनाने का जो मंत्र प्रदेश इकाई को दिया था अब उसका जाप भी लगभग बंद हो गया है। अब प्रदेश ईकाई पंजाब का नाम लेना भी भूल रही है क्योंकि एक तो वहां पर उपचुनाव हार गयी और फिर जिस तरह से पंजाब में राघव चड्डा को सलाहकार कमेटी का मुखिया बनाया गया तथा उस पर पंजाब में ही सवाल उठ गये। उसका भी हिमाचल की इकाई पर असर पड़ा है क्योंकि प्रदेश के नेताओं को यह समझ ही नहीं आ पा रहा है कि वह इसका क्या जवाब दें। यही नहीं जिस दिल्ली मॉडल के सहारे हिमाचल में सत्ता के सपने लिये जाने लगे थे अब जब प्रधानमंत्री ने उस मॉडल पर हमला करते हुए मुफ्ती को भविष्य के लिए घातक करार देकर केजरीवाल को सिंगापुर जाने की अनुमति नहीं दी है। प्रधानमंत्री के इस हमले से निश्चित रूप से पार्टी की योजनाओं पर अंकुश और प्रश्न चिन्ह दोनों एक साथ लगने की स्थिति पैदा हो गयी है। पार्टी की बढ़त पर यह एक बड़ा हमला है और प्रदेश का कोई भी नेता इसके जवाब में मुंह नहीं खोल रहा है जबकि इसी मॉडल के पोस्टर हर प्रचार अभियान में बांटे जा रहे हैं। शायद इससे हटकर प्रदेश नेतृत्व के पास और कुछ भी नहीं है। यह लोग प्रदेश सरकार से कोई भी सवाल नहीं पूछ पा रहे हैं। इससे यह संदेश जा रहा है कि प्रदेश इकाई के नेतृत्व को प्रदेश की समस्याओं की कोई जानकारी ही नहीं है या फिर कुछ लोगों की निष्ठाएं अभी भी संघ भाजपा के साथ बनी हुई है। क्योंकि अब तक यह लोग कांग्रेस को ही निशाने पर लेकर चल रहे थे और भाजपा भी इन्हें खुला हाथ दिये हुए थी। परंतु अब जब प्रधानमंत्री ने सीधे केजरीवाल पर निशाना साध दिया है उससे आप एक बड़ा वर्ग हताशा में आ गया है जबकि इस समय बदले में प्रधानमंत्री पर बड़े सवाल दागना समय की मांग बन गया है।

खीमी राम की सुलगाई आग दूर तक विनाश करेगी

शिमला/शैल। हिमाचल भाजपा के पूर्व अध्यक्ष एवं मंत्री रह चुके पंडित खीमी राम ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। खीमीराम कांग्रेस में उस सुधीर शर्मा के माध्यम से शामिल हुए हैं जिनको लेकर यह फैलाया जा रहा था कि वह भाजपा में जाने की तैयारी में हैं। भाजपा की ओर से भी लगातार यह फैलाया जा रहा था कि बहुत से कांग्रेसी उनके संपर्क में हैं। लेकिन सुधीर-खीमी के मिलन ने दोनों दलों के समीकरणों को हिला कर रख दिया है। क्योंकि खीमीराम का असर कुल्लु और मण्डी दोनों जिलों में होगा यह तय है। बल्कि सिराज तो आधा मण्डी और आधा बंजार में है और खिमी राम एक तरफ से जयराम पर ही ग्रहण हो जायेगा। खीमीराम के बाद हिमाचल में भाजपा के पूर्व पार्षद मनोज कुठियाला भी कांग्रेस में शामिल हो गये हैं। उन्होंने प्रतिभा सिंह के आवास हॉलीलॉज में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की है। इसी के साथ आम आदमी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष निक्का सिंह पटियाल ने सुखविन्दर सुक्खु की उपस्थिति में कांग्रेस की सदस्यता ले ली है। इस तरह भाजपा कांग्रेस में सेंध लगाने के जो प्रयास कर रही थी उनके सफल होने से पहले ही भाजपा में टूटन शुरू हो जाना एक बड़े खतरे का संकेत माना जा रहा है।
भाजपा आज टूटन के मुकाम पर क्यों पहुंच रही है? खीमी राम के जाने की भाजपा के त्रिदेव और प्रदेश की गुप्तचर एजैन्सियों तक को भनक न लग सकी यह अपने में एक बड़ी बात है। माना जा रहा है कि भाजपा हाईकमान ने इसका कड़ा संज्ञान लिया है। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सौदान सिंह शिमला में इसी का जायजा लेने पहुंचे थे। इसके लिये संगठन सरकार और प्रभारियों तक की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। अब तक मुख्यमंत्री को नड्डा का जो संरक्षण प्राप्त था अब उस पर भी प्रश्न चिन्ह लगने की नौबत आ गयी है। क्योंकि जब दोनों निर्दलीय विधायकों को भाजपा में शामिल किया गया था तब पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को इसके बारे में पूछा तक नहीं गया। बल्कि इनके शामिल होने को धूमल समर्थकों को ही ठिकाने लगाने का प्रयास किया जाना माना गया। इसकी पुष्टि शिमला और धर्मशाला में प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान अनुराग ठाकुर को मिले व्यवहार से भी हो जाती है। बल्कि अनुराग ने केजरीवाल की कांगड़ा यात्रा से पहले आप के तत्कालीन संयोजक अनूप केसरी को तोड़कर जिस तरह से सक्रियता का परिचय दिया था वह बाद में अचानक लोप क्यों हो गयी।
यह एक सार्वजनिक सच है कि 2017 में धूमल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने से ही भाजपा की सरकार बन पायी है। लेकिन सरकार बनने के बाद धूमल और उनके समर्थकों को जिस तरह से लगातार नजर अन्दाज किया जाता रहा है वह भी सबके सामने है। इस आशय के समाचार लगातार छपते आये हैं कि कई पूर्व विधायकों के टिकट कटेंगे। यह इंगित सीधे धूमल समर्थकों की ओर रहा है। ऐसे में जिन भी लोगों ने अभी सक्रिय राजनीति से रिटायर होने का फैसला नहीं कर रखा है उन्हें अपने लिये नया आश्रय तलाश करना स्वभाविक है। फिर धूमल भी अपने समर्थकों को किस आधार पर नजर अन्दाजी के बाद भी संगठन में बैठे रहने को कह सकते हैं। इसलिये इन लोगों के लिये कांग्रेस ही एकमात्र मंच रह जाता है। फिर अभी प्रधानमंत्री ने जिस तरह से मुफ्ती योजनाओं को देश के लिये घातक करार दिया है उस परिदृश्य में आने वाले समय में जयराम को भी ऐसी घोषणाएं वापिस लेनी पड़ेगी अन्यथा यह माना जायेगा कि प्रधानमंत्री का यह उपदेश दूसरे दलों के लिये है भाजपा के लिये नही। उस स्थिति में राष्ट्रीय स्तर पर जो प्रतिक्रिया उठेगी वह पार्टी के लिये बहुत घातक होगी और प्रधानमंत्री ऐसा कभी नहीं चाहेंगे।

सीबीआई की धमकी के परिपेक्ष में कांग्रेस का आरोप पत्र कितना प्रभावी होगा इस पर लगी निगाहें

भ्रष्टाचार के हमाम में सब बराबर के नंगे है

शिमला/शैल। कांग्रेस ने जयराम सरकार के खिलाफ आरोप पत्र लाने की घोषणा की है। यह दावा किया है कि आरोप पत्र तैयार है और पूरे दस्तावेजी परमाणों से लैस है। कांग्रेस का यह दावा कितना सही निकलता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इस दावे पर मुख्यमंत्री की अपरोक्ष में यह प्रतिक्रिया आना कि वह पूर्व की कांग्रेस सरकार के खिलाफ आये भाजपा के आरोप पत्र की जांच सीबीआई को सौंपने से परहेज नहीं करेंगे। यह सही है कि अब तक न तो कोई आरोप पत्र कांग्रेस ने जयराम सरकार के खिलाफ सौंपा है और न ही इस सरकार ने अपनी ही पार्टी द्वारा रस्मी औपचारिकता निभाते हुए पूर्व कि कांग्रेस के खिलाफ सौंपे गये आरोप पत्रों पर कोई कारवाई की है। जबकि भाजपा ने तो चुनाव प्रचार की शुरुआत ही हिमाचल मांगे जवाब पोस्टर जारी करके की थी। अब इस संभावित आरोप को लेकर जो प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री की इस तरह से आयी है उससे स्पष्ट हो जाता है कि भ्रष्टाचार को लेकर यह सरकार कतई गंभीर नहीं है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि तुम मेरे बारे में चुप रहो मैं तुम्हारे बारे मुह बन्द रखूंगा। वरना कोई भी मुख्यमंत्री सार्वजनिक रूप से इस तरह का ब्यान देने की हिम्मत नहीं कर सकता। वैसे तो भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस और भाजपा सरकारों का चलन एक बराबर रहा है। किसी के भी खिलाफ व्यक्तिगत स्तर पर स्कोर सैटल करने के अतिरिक्त कोई भी सरकार आगे नहीं बढ़ी है। यह भी बराबर रहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों पर दोनों दलों की सरकारों ने एक बराबर कारवाई की है। भ्रष्टाचार के खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने की रस्म को जयराम सरकार ने भी पूरी तरह निभाया है। भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस के दावे केवल जनता को भ्रमित करने के लिये होते हैं। स्मरणीय है कि 31 अक्तूबर 1997 को तत्कालीन वीरभद्र सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जन सहयोग मांगते हुए एक इनाम योजना अधिसूचित की थी। इसमें वायदा किया गया था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आयी हर शिकायत पर एक माह के भीतर प्रारंभिक जांच की जायेगी। यदि इस जांच में शिकायत में लगाये गये आरोप संज्ञेय पाये जाते हैं तब इस पर नियमित जांच की जायेगी और प्रारंभिक जांच के बाद ही 25% इनाम राशि शिकायतकर्ता को दे दी जायेगी। लेकिन सरकारी रिकॉर्ड यह है कि इस योजना के तहत आयी एक भी शिकायत पर एक माह के भीतर प्रारंभिक जांच नहीं हो पायी है।

बल्कि इस अधिसूचित हुई योजना के तहत बनाये जाने वाले नियम आज 25 वर्षों में भी सरकार नहीं बना पायी है। न ही इस योजना को सरकार आज तक वापस ले पायी है। आज भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरैन्स के दावे/वायदे करना केवल जनता को गुमराह करने से अधिक कुछ नहीं रह गये हैं। गौरतलब है कि आज जयराम सरकार भी इस हमाम में बराबर कि नंगी हो गयी है। क्योंकि 31 अक्तूबर 1997 को अधिसूचित हुई इस योजना के तहत 21 नवंबर 1997 को ही कुछ शिकायतें सरकार के पास आ गई थी। पर इन पर किसी भी सरकार में योजना के अनुसार कारवाई न होने पर यह मामला 2000 में प्रदेश उच्च न्यायालय में भी पहुंच गया। उच्च न्यायालय ने भी तुरंत जांच पूरी करने के निर्देश दिये। जिन पर आश्वासनों से अधिक कुछ नहीं हुआ। संयोगवश उसके बाद इसी पर शिकायत का मसौदा एसजेवीएनएल के एक प्रकरण में सर्वाेच्च न्यायालय पहुंच गया। सर्वाेच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 18 सितम्बर 2018 को इस पर फैसला देते हुये दोषियों के कृत्य को फ्रॉड करार देते हुये इसमें दिये गये लाभों को 12% ब्याज सहित रिकवर करने के निर्देश दिये। जयराम सरकार ने तत्कालीन सचिव सतर्कता संजय कुंडू को फैसले की कॉपी लगाकर प्रतिवेदन सौंपा गया। जिस पर कारवाई होना तो दूर प्रतिवेदन का जवाब तक नहीं दिया गया है। यह प्रसंग पाठकों के सामने इसलिये रखा जा रहा है कि आज जो कांग्रेस को सीबीआई का डर दिखाकर चुप करवाने का प्रयास किया जा रहा है वह जनता को भ्रमित करने से अभी कुछ नहीं है। क्योंकि कांग्रेस और सरकार दोनों को पता है कि आज जो आरोप पत्र सौंपा जायेगा उसका मकसद चुनाव में राजनीतिक लाभ लेने से अधिक कुछ नहीं होगा। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन किसको कितना नंगा कर पाता है।

क्या राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रैजन्टेशन देने से ही जीत सुनिश्चित हो जायेगी

क्या शांता और धूमल मार्गदर्शक की भूमिका से बाहर आयेंगे
मुख्य सूचना आयुक्त फूड कमिश्नर और लोक सेवा आयोग में होने वाली नियुक्तियां भी महत्वपूर्ण संकेतक होगी

शिमला/शैल। पिछले दिनों भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की हैदराबाद में दो दिन बैठक हुई। इस बैठक के बाद यह वक्तव्य आया है कि आने वाले तीस-चालीस वर्ष भाजपा के ही होंगे। स्वभाविक है कि इस बैठक के बाद यह तो बयान आना नहीं था कि देश महंगाई और बेरोजगारी से बहुत ज्यादा परेशान है तथा पार्टी ने सरकार से इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने को कहा है। इसी वर्ष गुजरात और हिमाचल विधानसभा के चुनाव होने हैं। इन चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन भी कर चुकी है। लेकिन हिमाचल में ऐसा नहीं हुआ है। जबकि इस आश्य के समाचार लगातार छपते रहे हैं। हिमाचल में नेतृत्व परिवर्तन की दिशा में कोई भी कदम शायद इसीलिये नहीं उठाया जा सका है क्योंकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा इसी प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं। जेपी नड्डा का पूरा समर्थन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के साथ है। यह सब जानते हैं पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और शांता कुमार अब मार्गदर्शक की भूमिका तक ही रह गये हैं यह भी व्यवहारिक रूप से सभी जानते हैं। नड्डा-जयराम के धूमल के साथ कितने मधुर रिश्ते हैं यह भी जगजाहिर है। बल्कि जिस ढंग से निर्दलीय विधायकों होशियार सिंह, प्रकाश राणा को पार्टी में शामिल करवा कर धूमल के निकटस्थों रविन्द्र रवि तथा गुलाब सिंह ठाकुर को साइडलाइन किया गया उससे इन सियासी रिश्तों पर मोहर लग गई है। हिमाचल में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर उठती हुई अटकलों को नड्डा के कारण ही मन्त्रीमण्डल में फेर बदल यहां तक कि मन्त्रियों के विभागों में बदलाव तथा संगठन में भी चर्चाओं के बावजूद कोई बदलाव न हो पाना सब कुछ राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम ही लगता आया है। बल्कि अब तो सत्ता में पुनः वापसी हो पाने या न हो पाने की भी पहली जिम्मेदारी नड्डा के ही नाम लगने वाली है। क्योंकि जयराम सरकार के कामकाज से जनता कितना खुश है इसका फतवा तो चार नगर निगमों और फिर चार उप चुनावों के परिणामों से सामने आ ही चुका है। दीवार पर इस साफ लिखे को भी पढ़ कर नजरअन्दाज कर देने की ताकत नड्डा के अतिरिक्त और किसी में नहीं है। इस परिदृश्य में राज्य सरकार के कामकाज पर हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सामने दी गयी प्रैजैन्टेशन को प्रदेश के नेतृत्व और नड्डा के फैसले पर मोहर लगवाना माना जा रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इतने खुले समर्थन के बाद भी सरकार सत्ता में वापसी कर पाती है या नहीं। यह सवाल इस परिदृश्य में इसलिये महत्वपूर्ण हो जाता है कि अभी चुनाव के लिए तीन से चार माह का समय शेष है। फिर इसी दौरान सी आई सी, फूड कमिश्न और लोक सेवा आयोग में नियुक्तियां होनी है। यह नियुक्तियां पार्टी के नेताओं में से न होकर दूसरे वर्गों में से होनी है। इन नियुक्तियों में यह देखना काफी रोचक और संकेतक हो जाता है कि कौन लोग नियुक्त हो पाते हैं। कई अधिकारी तो केंद्र में जाने के जुगाड़ भिड़ाने में लग गये हैं। अभी सूचना आयोग में जिस तरह से अन्तिम क्षणों में मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति रुक गयी है उसको लेकर भी कई चर्चाओं का बाजार गर्म है। कुछ हलकों में तो मुख्य सचिव को हटाने की भी अटकलें चल पड़ी हैं। मुख्यमंत्री के प्रधान निजी सचिव द्वारा सूचना आयोग और फूड कमीशन के लिये आवेदक होने पर भी कई विश्लेषकों को हैरत है। क्योंकि प्रधान मुख्य सचिव से अधिक विश्वस्त मुख्यमंत्री का और कोई नहीं होता। फिर लोक सेवा आयोग के लिये भी एक दर्जन के करीब आवेदन आ चुके होने की चर्चा सचिवालय के गलियारों में कहीं भी सुनी जा सकती है। बल्कि प्रदेश के डीजीपी का नाम ही संभावितों में माना जा रहा है। चर्चा है कि यहां पर कई विश्वस्तों के हितों में आपसी टकराव होगा। यह नियुक्तियां भी सरकार के सत्ता में वापसी के कई संकेत सूत्र छोड़ जायेगी यह तय है। फिर आने वाले दिनों में जब मुख्यमंत्री से लेकर नीचे मंत्रियों तक के विभागों की कारगुजारीयां आम जनता के सामने आयेंगी तब पता चलेगा कि महंगाई और बेरोजगारी के दंश झेलती हुई जनता इसी सरकार की वापसी के लिये कितना तैयार हो पाती है।

 

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