शिमला/शैल। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने जनता से वायदा किया था कि यदि वह सत्ता में आये तो जयराम सरकार द्वारा पिछले छःमाह में लिये गये फैसलों के समीक्षा की जायेगी। यह वायदा इसलिये किया गया था कि एक ओर तो सरकार करीब हर माह भारी कर्ज लेकर अपना काम चला रही थी तो दूसरी ओर हर विधानसभा क्षेत्र में लोगों को लुभाने के लिये सैंकड़ों करोड़ों की नई घोषणाएं कर रही थी। पिछले छः माह में की गयी हर तरह की घोषणा को पूरा करने पर होने वाले कुल खर्च का यदि जोड किया जाये तो यह विधानसभा द्वारा पारित वार्षिक बजट के आंकड़े से भी ज्यादा बढ़ जायेगा। शैल ने उस दौरान भी इस पर विस्तार से चर्चा की हुई है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक था कि या तो सरकार सत्ता में वापसी के लिये जनता को जुमलों का झुनझुना थमा रही है या बिना सोचे समझे प्रदेश को कर्ज के दलदल में धकेल रही है। अब सरकार में आने पर कांग्रेस की यह आवश्यकता हो जाती है कि वह वायदे के अनुसार इन फैसलों की पड़ताल करती। इस पड़ताल के लिये मुख्यमंत्री सुक्खू ने विधायकांे की एक टीम बनाकर इन फैसलों की समीक्षा की। सबंधित विभागों और वित्त विभाग से जानकारी ली गई और यह सामने आया कि घोषणाएं बिना बजट प्रावधानों के की गयी हैं। वित्त विभाग ने स्पष्ट किया है कि इन घोषणाओं को पूरा करने के लिये कोई बजट उपलब्ध नहीं है। वित्त विभाग की इस स्वीकारोक्ति से यह और सवाल खड़ा हो गया है कि जब वित्त विभाग के पास पैसा ही नहीं है तो फिर इन घोषणाओं के उद्घाटनों आयोजनों के लिए धन का प्रावधान कैसे और कहां से किया गया?

शिमला/शैल। चुनावों प्रचार के दौरान कांग्रेस ने जनता से वायदा किया था कि यदि वह सत्ता में आये तो जयराम सरकार द्वारा पिछले छःमाह में लिये गये फैसलों के समीक्षा की जायेगी। यह वायदा इसलिये किया गया था कि एक ओर तो सरकार करीब हर माह भारी कर्ज लेकर अपना काम चला रही थी तो दूसरी ओर हर विधानसभा क्षेत्र में लोगों को लुभाने के लिये सैंकड़ों करोड़ों की नई घोषणाएं कर रही थी। पिछले छः माह में की गयी हर तरह की घोषणा को पूरा करने पर होने वाले कुल खर्च का यदि जोड किया जाये तो यह विधानसभा द्वारा पारित वार्षिक बजट के आंकड़े से भी ज्यादा बढ़ जायेगा। शैल ने उस दौरान भी इस पर विस्तार से चर्चा की हुई है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक था कि या तो सरकार सत्ता में वापसी के लिये जनता को जुमलों का झुनझुना थमा रही है या बिना सोचे समझे प्रदेश को कर्ज के दलदल में धकेल रही है। अब सरकार में आने पर कांग्रेस की यह आवश्यकता हो जाती है कि वह वायदे के अनुसार इन फैसलों की पड़ताल करती। इस पड़ताल के लिये मुख्यमंत्री सुक्खू ने विधायकांे की एक टीम बनाकर इन फैसलों की समीक्षा की। सबंधित विभागों और वित्त विभाग से जानकारी ली गई और यह सामने आया कि घोषणाएं बिना बजट प्रावधानों के की गयी हैं। वित्त विभाग ने स्पष्ट किया है कि इन घोषणाओं को पूरा करने के लिये कोई बजट उपलब्ध नहीं है। वित्त विभाग की इस स्वीकारोक्ति से यह और सवाल खड़ा हो गया है कि जब वित्त विभाग के पास पैसा ही नहीं है तो फिर इन घोषणाओं के उद्घाटनों आयोजनों के लिए धन का प्रावधान कैसे और कहां से किया गया?



मंत्रीमण्डल विस्तार में लग सकता है समय
पार्टी में गुटबाजी का सन्देश जाना हो सकता है नुकसानदेह
शैल का चुनावी आकलन हुआ सही साबित




शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी सेवाएं महासंघ ने प्रदेश के मुख्य सचिव को एक ज्ञापन देकर आरोप लगाया है कि प्रदेश के विभिन्न जिलों में बने एनजीओ भवनों का दुरुपयोग हो रहा है। मांग की गई है कि सामान्य प्रशासन इन भवनों को शीघ्र अपने नियंत्रण में ले। स्मरणीय है कि कर्मचारी संगठनों को अपना दायित्व ठीक से निभाने के लिये कर्मचारी महासंघ के नाम पर जमीनों का आवंटन करके इन भवनों का निर्माण करवाया था। सरकारी धन से बने इन भवनों का उद्देश्य कर्मचारी नेतृत्व को सुविधा प्रदान करना था। ताकि वह कर्मचारियों के कल्याण से जुड़े मुद्दों को सुचारू ढंग से उठा सके। कर्मचारी संगठनों के लिए प्रक्रिया और नियमावलि तय है। इसी के अनुसार चयनित संगठन को सरकार मान्यता प्रदान करती है। जयराम सरकार पर यह आरोप लगाया गया है कि वह प्रक्रिया और नियमों की अनदेखी करके बने संगठन को ही मान्यता देकर कर्मचारी मुद्दों पर वार्ता के लिए आमंत्रित करती है। सरकार के इस पक्षपातपूर्ण व्यवहार से वर्तमान महासंघ एक प्रायोजित संगठन बनकर रह गया है। यह आरोप उस समय लगाये जा रहे हैं जब चुनाव के बाद नई सरकार का गठन होना है। यह स्वभाविक है कि इन आरोपों और मांगों के परिदृश्य में प्रदेश के कर्मचारी राजनीति में नये समीकरण बनेंगे और इससे संगठनों में आगे चलकर एक टकराव की स्थिति भी पैदा हो सकती है। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि बनने वाली सरकार इस मांग पर किस तरह का रुख अपनाती है।
यह है सौंपा गया ज्ञापन



शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी सेवाएं महासंघ ने प्रदेश के मुख्य सचिव को एक ज्ञापन देकर आरोप लगाया है कि प्रदेश के विभिन्न जिलों में बने एनजीओ भवनों का दुरुपयोग हो रहा है। मांग की गई है कि सामान्य प्रशासन इन भवनों को शीघ्र अपने नियंत्रण में ले। स्मरणीय है कि कर्मचारी संगठनों को अपना दायित्व ठीक से निभाने के लिये कर्मचारी महासंघ के नाम पर जमीनों का आवंटन करके इन भवनों का निर्माण करवाया था। सरकारी धन से बने इन भवनों का उद्देश्य कर्मचारी नेतृत्व को सुविधा प्रदान करना था। ताकि वह कर्मचारियों के कल्याण से जुड़े मुद्दों को सुचारू ढंग से उठा सके। कर्मचारी संगठनों के लिए प्रक्रिया और नियमावलि तय है। इसी के अनुसार चयनित संगठन को सरकार मान्यता प्रदान करती है। जयराम सरकार पर यह आरोप लगाया गया है कि वह प्रक्रिया और नियमों की अनदेखी करके बने संगठन को ही मान्यता देकर कर्मचारी मुद्दों पर वार्ता के लिए आमंत्रित करती है। सरकार के इस पक्षपातपूर्ण व्यवहार से वर्तमान महासंघ एक प्रायोजित संगठन बनकर रह गया है। यह आरोप उस समय लगाये जा रहे हैं जब चुनाव के बाद नई सरकार का गठन होना है। यह स्वभाविक है कि इन आरोपों और मांगों के परिदृश्य में प्रदेश के कर्मचारी राजनीति में नये समीकरण बनेंगे और इससे संगठनों में आगे चलकर एक टकराव की स्थिति भी पैदा हो सकती है। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि बनने वाली सरकार इस मांग पर किस तरह का रुख अपनाती है।
यह है सौंपा गया ज्ञापन


