भाजपा में उभरी बगावत कांग्रेस का हाथियार बनी
शिमला/शैल। कांग्रेस ने हमीरपुर से पूर्व मंत्री रणजीत सिंह वर्मा के बेटे डॉक्टर पुष्पेन्द्र वर्मा को उम्मीदवार बनाने का फैसला लेकर सभी 68 विधानसभा क्षेत्रों से अपने उम्मीदवारों की अंतिम सूची जारी कर दी है। कांग्रेस में भी टिकट आवंटन को लेकर कुछ स्थानों पर रोष और विद्रोह उभरा है इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन भाजपा के मुकाबले यह नगण्य है। कांग्रेस में टिकटों को लेकर सबसे ज्यादा सुखविंदर सिंह का मिजाज बहुत कड़ा रहा है। क्योंकि संयोगवश सुखविंदर सुक्खु ही इस समय कांग्रेस में ऐसे नेता हैं जो छः वर्ष तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं और इस नाते व्यवहारिक रूप से कार्यकर्ताओं और नेताओं को लेकर ज्यादा जानकारी रखते हैं। इसी कारण से उन्हें प्रचार कमेटी का अध्यक्ष भी बनाया गया है। कुछ लोग अभी से उन्हें मुख्यमंत्री के संभावित चेहरे के रूप में भी चर्चित करने लग पड़े हैं। जबकि मुख्यमंत्री का प्रश्न चुनाव परिणाम आने के बाद विधायकों की सर्व राय से हल होगा यह तय है। इस समय प्रतिभा वीरभद्र सिंह पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष हैं और पार्टी उम्मीदवार तय करने में उनकी सबसे बड़ी भूमिका रही है। स्व.वीरभद्र सिंह की राजनीतिक विरासत वह तभी संभाल रही हैं जब प्रदेश की राजनीति का सबसे अधिक व्यवहारिक ज्ञान उनके पास है। लेकिन बीते पांच वर्षों में पार्टी को सदन के भीतर जिस तरह से प्रभावी बनाये रखा है उसमें मुकेश अग्निहोत्री का योगदान सबसे अधिक रहा है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के साथ कितनी बार किस तरह के सीधे टकराव में आ चुके हैं यह पूरा प्रदेश जानता है। इस तरह कांग्रेस के मुख्यमंत्री बनने की क्षमता रखने वाले नेताओं की एक लंबी सूची है।
2014 से आज 2022 तक कांग्रेस जिस दौर से गुजरी है उसमें ईडी, आयकर और सीबीआई के डर से सैकड़ों नेता पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं। आज चुनाव घोषित होने के बाद भी दो विधायक पार्टी छोड़ भाजपा में चले गये। हर्ष महाजन और मनकोटिया जैसे लोग भाजपा में चले गये हैं। इन लोगों का कांग्रेस पर सबसे बड़ा आरोप परिवारवाद का होता था लेकिन अब जब हिमाचल में ही भाजपा ने परिवारवाद की नयी इबारत लिख दी है तो स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस छोड़ने के पीछे कोई वैचारिक कारण नहीं बल्कि कुछ व्यक्तिगत स्वार्थ और डर प्रभावी रहे हैं। मनकोटिया ने जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ बाकायदा पत्रकार वार्ता करके हमला बोला था भाजपा ने उसी को दोबारा उम्मीदवार बनाकर मनकोटिया को अपरोक्ष में जवाब दे दिया है। लेकिन इस पीढ़ी के नेता अपने वैचारिक धरातल शायद अब भी तर्क की कसौटी पर परखने का प्रयास तक करने के लिए तैयार नहीं हैं। जो छद्म ताना-बाना 2014 में गुंधा गया था अब 2022 तक उसको परोस्ते परोस्ते उबकाई जैसी हालत हो गयी है। लगातार कमजोर होती अर्थव्यवस्था ने महंगाई और बेरोजगारी के जो जख्म आम आदमी को दिये हैं उससे अब हर आदमी ड्रोन से आलू धोने का ज्ञान परोसा जाना अपने को मूर्ख बनाने का प्रयास मान चुका है। इस परिदृश्य में आज प्रदेश में जो भी कांग्रेस का नेतृत्व और कार्यकर्ता बचा हुआ है वह सराहना का पात्र बन जाता है। क्योंकि यह सबने देखा है कि मुख्यमंत्री ने किस तर्ज में यह कहा था कि कांग्रेस को चुनाव लड़ने लायक ही नहीं रहने दिया जायेगा। जब नेता प्रतिपक्ष के साथ मंच का हादसा हुआ तब मुख्यमंत्री ने फोन पर जो कुशल क्षेम पूछने का शिष्टाचार निभाया उसकी गंभीरता को उसी क्षण ट्वीट करके हल्का भी बना दिया।
आज प्रदेश की राजनीति व्यवहारिकता के इस स्टेज पर आकर खड़ी हो गयी है की सत्ता के जिस मद में कल तक कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था उसे आज अपनों की ही बगावत ने पूरी तरह काफुर कर दिया है। आज भाजपा की बगावत ही कांग्रेस का एक बड़ा हथियार बन गयी है। क्योंकि आने वाले दिनों में सवाल तो सत्ता पक्ष से ही पूछे जायेंगे विपक्षी से यह सवाल नहीं पूछा जाएगा कि उसने आज तक सरकार के खिलाफ कोई भी आरोपपत्र जारी क्यों नहीं किया। कांग्रेस ने टिकट आवंटन में जिस सूझबूझ का परिचय दिया है वहीं भाजपा की कमजोरी सिद्ध हो गयी है। क्योंकि यह माना जा रहा है कि शायद हर्ष महाजन कांग्रेस के हर उम्मीदवार के खिलाफ विद्रोही उम्मीदवार खड़ा करने के रणनीति पर काम कर रहे हैं। क्योंकि हर्ष महाजन लम्बे समय तक कांग्रेस में रहे हैं और स्व. वीरभद्र के विश्वासपात्र रहे हैं। जब वह पहली बार ही मंत्री बनकर विवादित हो गये थे और पोस्टर तक लगने की नौबत आ गयी थी उसके बाद उन्होंने चुनावी राजनीति से किनारा कर लिया था। आज भाजपा में शामिल होने के बाद भी हर्ष महाजन ने चुनाव नहीं लड़ा है। लेकिन राजनीति के माध्यम से व्यापारिक हितों की रक्षा कैसे की जाती है और हितों को कैसे बढ़ाया जाता है वह बहुत अच्छी तरह जानते हैं। वीरभद्र जब केंद्रीय मंत्री थे तब स्क्रैप के कारोबार में उन्होंने अपने इस अनुभव का सफल परिचय दिया। यदि आज भाजपा में आकर वह कांग्रेस को अन्दर से नुकसान पहुंचाने में सफल हो पाते हैं तभी उनकी वहां पर स्वीकार्यता बन पायेगी। कांग्रेस ने इस संभावित नुकसान की आशंका को टिकट आवंटन में ही समय लगाकर काफी कम कर लिया है।