Friday, 19 September 2025
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क्या आप इस चुनाव में अपने को प्रमाणित कर पायेगी

शिमला/शैल। देश के दो राज्यों दिल्ली और पंजाब में आप की सरकारें हैं। इन्हीं सरकारों के दम पर आप नेे हिमाचल में भी चुनाव लड़ने का दम भरा और 67 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। पंजाब में सरकार बनने के बाद जिस जोश और उम्मीद के साथ आप ने प्रदेश में कदम रखा था वह चुनाव के अन्त तक बना नहीं रह सका है। बल्कि अन्त तक आते-आते यह सवाल अहम हो गया कि आप प्रदेश में इतना वोट शेयर ले पायेगी जिसके सहारे वह राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्तकर पाये। आप को लेकर यह चर्चा उठाना इसलिये आवश्यक हो जाता है क्योंकि आप भी अन्ना आन्दोलन की कोख से निकली है। आप के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली एक जैसी ही है। दोनों नेता मीडिया के सहारे ज्यादा प्रचारित हैं जबकि जमीनी हकीकत वास्तविकता से बहुत दूर है। आज पंजाब में आम आदमी पार्टी को बिजली की दरों में बढ़ौतरी करनी पड़ी है और इस बढ़ौतरी पर हिमाचल तक में तीव्र प्रतिक्रिया हुई है। आम आदमी में आप की मुफ्ती योजनाओं को लेकर एक समय जो सवाल उठे थे उनका सच इस बढ़ौतरी से सामने आ गया है। इन्ही चुनावों में कजरीवाल ने करंसी नोटों पर लक्ष्मी और गणेश के चित्र छापने का हिन्दु कार्ड प्ले करने का प्रयास किया और उस पर सवाल उठे। इसी हिन्दु कार्ड के नाम पर आप विलकिस बानो प्रकरण पर मौन रही। इन्हीं कारणों से आप पर संघ प्रायोजित भाजपा की बी टीम होने के आरोप लगते आ रहे हैं।
हिमाचल में आप की परफॉरमैन्स नहीं के बराबर मानी जा रही है। लेकिन आप को पंजाब और दिल्ली में इसकी सरकारें होने से आसानी से राइट ऑफ भी नहीं किया जा सकता है। यह माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी आप अपरोक्ष में भाजपा की सहायक सिद्ध होगी जैसा कि इस चुनाव में हुआ है। भाजपा की अपरोक्ष सहायक होने के कारण ही आप अभी तक विपक्षी एकता का हिस्सा नहीं बन पा रही है। आप के इस राजनीतिक चरित्र के परिदृश्य में यह सवाल उठाये जाने आवश्यक हो जाते हैं कि हिमाचल में जिन तेवरों के साथ आप ने प्रदेश में कदम रखा था उसको अन्त तक निभाया क्यों नहीं गया? क्या आम आदमी का दम भरने वाली आप भी भाजपा या कांग्रेस में सेन्धमारी करके वहां से कोई बड़े नाम इम्पोर्ट करके आगे बढ़ना चाहती है। आज हिमाचल के संद्धर्भ में आप से जुड़े कार्यकर्ताओं को अपने नेतृत्व से यह सवाल पूछना आवश्यक हो जाता है कि प्रदेश को लेकर उनकी नीयत क्या है क्योंकि 2024 के चुनावों के परिदृश्य में यह महत्वपूर्ण हो जाता है।

10 अप्रैल 1999 को पुरानी पैन्शन के स्थान पर नई पैन्शन योजना लागू करने का एम ओयू साईन हुआ था

शिमला/शैल। आज हिमाचल ही नहीं वरन देश के उन 21 राज्यों के कर्मचारी पुरानी पैन्शन योजना पुनः बहाल करने की मांग कर रहे हैं। कुछ गैर भाजपा शासित राज्यों ने इसे बहाल भी कर दिया है। छत्तीसगढ़ की तर्ज पर अब पंजाब में इसे बहाल करने का फैसला कर लिया है। हिमाचल के चुनावों में कांग्रेस ने दस गारंटियों में इसे पहला स्थान दिया है और सरकार बनने पर मंत्रिमण्डल की पहली ही बैठक में इसे लागू करने का वायदा भी कर दिया है। लेकिन भाजपा इस मुद्दे पर अभी भी असमंजस में चल रही है। बल्कि कुछ कर्मचारी नेता पुरानी पैन्शन योजना खत्म करने का आरोप कांग्रेस पर लगा रहे हैं। इस समय यह मुद्दा केन्द्रिय मुद्दा बन चुका है। इसलिये पूरे दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ इसे जनता के बीच रखा जाना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि इसके प्रभाव दुरगामी होंगे। स्मरणीय है कि 1999 में प्रदेश में भी और केन्द्र में भी भाजपा की सरकारें थी। बल्कि केन्द्र में तेरह दिन तेरह महीनों के बाद मार्च 1999 में स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी थी और इस सरकार में अरुण शोरी के अधीन पहली बार देश को विनिवेश मंत्रालय देखने को मिला था। यह विनिवेश मंत्रालय भाजपा का एक नीतिगत फैसला था। स्वभाविक था कि जब भी इस फैसले के तहत सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी निवेश को घटाया जाता तो इसका सीधा प्रभाव कर्मचारियों पर पड़ता। इसलिये केन्द्र ने सभी विशेष श्रेणी राज्यों सहित 21 राज्यों के साथ एमओयू साइन किया जिसकी हर शर्त कर्मचारियों को प्रभावित करती थी। उस समय कुछ गैर भाजपा शासित राज्यों ने इसे साइन करने से मना भी कर दिया था। लेकिन हिमाचल की भाजपा सरकार ऐसा नहीं कर पायी।

2003 में जब प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बन गयी तब यह मुद्दा फिर उठा क्योंकि 1999 में हुये एमओयू को ज्यादा प्रचारित नहीं किया गया था। तब वीरभद्र सरकार ने मई 2004 में बड़े प्रयत्नों से केंद्र के साथ एक नया एमओयू साइन करके पुराने में कुछ संशोधन करवाये। इन संशोधनों के बाद भाजपा ने अपने ऊपर लग रहे कर्मचारियों की पैन्शन खत्म करने के आरोप को कांग्रेस के नाम लगाना शुरू कर दिया। विधानसभा के अन्दर इस पर भारी हंगामा हुआ था। तब सरकार ने इन समझौता ज्ञापनों का सच जनता के सामने रखा। इसके लिए सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ने दिसम्बर 2004 में ‘‘समझौता ज्ञापन तथ्य क्या है ?’’ नाम से एक लघु पुस्तिका प्रकाशित की थी। इस पुस्तिका में सारे तथ्य दर्ज हैं। अप्रैल 1999 में क्या साईन हुआ था मार्च 2004 में क्या साईन हुआ था दोनों ज्ञापन इसमें दर्ज हैं। इनको पढ़े बिना यह आरोप लगाना सही नहीं होगा की कौन सी सरकार कर्मचारियों की हितैशी रही है। आज शायद राजनेता और कर्मचारी नेता दोनों को ही इस समझौता ज्ञापन की जानकारी नहीं है। इसलिये इस समझौता ज्ञापन का दस्तावेज पाठकों के सामने रखा जा रहा है ताकि इतने संवेदनशील मुद्दे पर आप अपनी राय बना सकें।






























 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

क्या भाजपा का मनकोटिया प्रयोग सफल हो पायेगा?

मनकोटिया के पुराने सवालों से उठी चर्चा

शिमला/शैल। पूर्व मंत्री विजय सिंह मनकोटिया अब भाजपा में शामिल हो गये हैं। विजय सिंह मनकोटिया ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस ने कांगड़ा के साथ भेदभाव किया है। कांगड़ा में कोई बड़े कद का नेता ही नहीं छोड़ा है। इससे पहले मनकोटिया कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाते हुये पूरे कांगड़ा में किस विधानसभा में किस राजनेता का परिवार ही आगे राजनीति में आया है इस पर एक लंबी प्रेस वार्ता कर चुके हैं। शाहपुर से ही भाजपा मंत्री सरवीण चौधरी के खिलाफ करोड़ों की संपत्ति बनाने के आरोप लगाते हुये सीबीआई जांच की मांग कर चुके हैं। जब पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस से बाहर निकले थे और अपनी पार्टी बनाने की बात की थी तब भी मनकोटिया ने एक पत्रकार वार्ता में दावा किया था कि अमरेन्द्र की पार्टी की हिमाचल की जिम्मेदारी वह संभालेंगे। अब अमरेन्द्र ही भाजपा के हो गये हैं तो मनकोटिया भी भाजपा के हो गये हैं। लेकिन दोनों की टाइमिंग अलग-अलग होने से नहीं लगता कि इस पर किसी ने किसी से कोई सलाह ली हो। यह सवाल इसलिये प्रसांगिक हो गये हैं क्योंकि परिवारवाद के सिद्धांत को आज भाजपा ने हिमाचल के चुनाव में ही किनारे कर दिया। ऐसे में कांग्रेस पर यह आरोप लगाना बेमानी हो जाता है। भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा कितनी ईमानदार और गंभीर रही है यह सरवीण चौधरी को प्रत्याशी बनाये जाने से स्पष्ट हो जाता है। मनकोटिया को सरवीण चौधरी के लिये वोट मांगने पड़ रहे हैं। यही नहीं कांगड़ा के ही मंत्री विक्रम ठाकुर चुनावी जीत के लिये बलात्कार के दोषी पाये गये और जेल की सजा काट रहे बाबा राम रहीम की चौखट पर आशीर्वाद मांगने पहुंच गये पूरी भाजपा इस मुद्दे पर खामोश रही है। यह भाजपा के अपराध के प्रति चरित्र का एक प्रमाण है।
मनकोटिया एक समय तक राजनीति में जिन सिद्धांतों के लिये आवाज उठाते रहे आज भाजपा में जाकर उनका कोई जवाब दे पायेंगे? क्या भाजपा में जाकर मनकोटिया के लिये यह मुद्दे नहीं रहेंगे? मनकोटिया पांच बार विधायक रह चुके हैं। कांग्रेस, जनता दल और बसपा में रह चुके हैं। स्व.वीरभद्र सिंह के साथ टकराव में रहे हैं और इसी टकराव के कारण कांग्रेस के अन्दर बाहर होते रहे। लेकिन आज उम्र के जिस पढ़ाव पर भाजपा में शामिल हुये हैं वहां उनका स्थान केवल मार्गदर्शक मण्डल तक ही रहेगा। क्योंकि भाजपा का उम्र का सिद्धांत उनको चुनावी राजनीति से बाहर कर देता है। वैसे तो जब नरेन्द्र मोदी कांगड़ा आये थे तब मनकोटिया ने कुछ दैनिक समाचार पत्रों को एक विज्ञापन जारी करके मोदी की बहुत प्रशंसा की थी। तब यह क्यास लगे थे कि शायद मोदी की उपस्थिति में मनकोटिया भाजपा के हो जायेंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं सका क्योंकि मोदी की कांगड़ा यात्रा की पूर्व संध्या पर केन्द्र की अग्निवीर योजना आ गयी और इसका पहला विरोध कांगड़ा एयरपोर्ट से ही शुरू हो गया। पुलिस और युवाओं में मुठभेड़ तक हो गयी। मनकोटिया ने इस अग्निवीर योजना का विरोध किया है। कांगड़ा के साथ कांग्रेस के भेदभाव बरतने के आरोप में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि भाजपा ने कांगड़ा को क्या दिया। बल्कि आरोप लगा है कि कांगड़ा के कई कार्यालय तो मण्डी पहुंचा दिये गये हैं। कांगड़ा का राजनीतिक कद कम करने के लिये कांगड़ा को तीन भागों में बांटने का प्रयास किया जा रहा है।
इस परिदृश्य में राजनीतिक हलकों में यह सवाल उछल रहा है कि मनकोटिया क्यों भाजपा में गये? मनकोटिया के आने से भाजपा को क्या लाभ हुआ है। माना जा रहा है कि जब संघ भाजपा और गुप्तचर एजैन्सियों के किसी भी चुनावी सर्वेक्षण में भाजपा की सरकार नहीं बनी तब कांग्रेस को कमजोर करने के लिए साम दाम और दण्ड की नीति अपनाई गयी। क्योंकि भाजपा अपने काम पर नहीं बल्कि अपने पैसे और संसाधनों के दम पर ही चुनाव जीतने की योजना बना रही थी। इस योजना के तहत ही सबसे पहले मीडिया को अपने साथ किया। मीडिया के बाद कांग्रेस के विधायक और दूसरे नेताओं को धनबल के माध्यम से भाजपा में लाने के प्रयास किये गये। कांग्रेस विधायक अनिरुद्ध के बयान से इस योजना का सच सामने आ गया। जिसका भाजपा आज तक खण्डन नहीं कर पायी। मनकोटिया और हर्ष महाजन शायद इसी योजना के तहत भाजपा में लाये गये हैं। अब यह देखना रोचक होगा कि कब तक है भाजपा में बने रहते हैं।

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