शिमला। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल दोनों अपने अपने खिलाफ चल रहे मामलों को लगातार राजनीतिक प्रतिशोध और ज्यादती करार देेते आ रहे हैं। वैसे जितने ऊंचे स्वर में यह शीर्ष नेता अपनी व्यथा कथा जनता के सामनेे रखते आ रहे हैं उससे जांच ऐजैन्सीयों से लेकर अदालत तक का मन इनके आंसूओ से पसीजता जा रहा है। दोनों के खिलाफ एक बराबर के मामले हैं और दोनों के खिलाफ ही जांच ऐजैन्सीयों को हिरासत जैसा कदम उठाने का साहस नही हो पाया है। धूमल के खिलाफ वीरभद्र ज्यादती कर रहे हैं तो वीरभद्र के खिलाफ भाजपा की मोदी सरकार। लेकिन अब तक किसी के भी खिलाफ कुछ निर्णायक हुआ नही है। जनता दोनों के ब्यानों का मजा ले रही है वह जानती है कि कैसे दोनों जनता को मूर्ख मानकर चल रहे हैं।
दोनों के ब्यानों पर स्कैण्डल प्वाईंट तक पहुंची चर्चा में लोग एस एम कटवाल, स्व. वी एस थिंड और सुभाष आहलूवालिया का जिक्र करने लग जाते हैं। एस एम टवाल को वीरभद्र सरकार ने कैसे परेशान किया यह सब जानते है। यह भी सब जानते है कि आज तक कटवाल पर रिश्वत लेने का कोई आरोप नहीं लग पाया है। कटवाल के बाद धूमल शासन में स्व. वी एस थिंड और सुभाष आहलूवालिया की बारी आयी। वी एस थिंड के मामले में तो सीबीआई की क्लीन चिट को भी उनकी मौत के 15 दिन बाद उजागर किया गया था। लोकायुक्त की रिपोर्ट भी उनकी मौत के बाद सामने आयी थी। सुभाष आहलूवालिया के मामलों में तो आयकर विभाग की रिपोर्ट को भी अधिमान नही दिया गया था। आज भी बहुत सारे ऐसे मामलें है जिनमें इन्साफ की इंतजार है लेकिन तन्त्रा इन्साफ देने का साहस नही जुटा पा रहा है।
आज सचिवालय के गलियारों से लेकर स्कैण्डल तक हर आदमी यह सवाल उठा रहा है कि क्या कटवाल, थिंड और सुभाष के खिलाफ ज्यादती नही थी? क्या इनके गुनाहोें से इन राजनेताओं के गुनाह छोटे हैं? जनता सबके गुनाहों को याद रखती है। इन नेताओं से यही जानना चहा रही जिस चक्की में यह लोग पीसे है उससे होकर इन नेताओे को नही गुजरना चाहिये। काश इन नेताओं को यह अहसास हो पाये की ज्यादती क्या होती है और उसकी पीड़ा कितनी होती है।
शिमला । प्रदेश मंत्रीमंडल में एक अरसे से फेरबदल की अटकलें खबरें बनती आ रही है। लेकिन कुछ देर तक अटकलों को चलने देने के बाद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह इन खबरों को खारिज करते रहे हैं। वैसे अब तक फेरबदल हुआ भी नहीं है । अब 2017 में प्रदेश विधानसभा के चुनाव होने ही हैं। वैसे तो नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल भी कई बार प्रदेश में समय से पहले ही चुनाव हो जाने, सरकार के गिर जाने का भविष्य कथन कर चुके हैं जो अब तक तो फलित नहीं हो पाये हैं। पर यह कोई नही कह सकता कि कब उनके मुख में देवी सरस्वती का वास हो जाये और उनका कथन सत्य सिद्ध हो जाये।
लेकिन अब मुख्यमंन्त्री के बेटे और प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह ने मन्त्रीमण्डल में फेरबदल करके उसमें युवा चेहरों को शामिल करने की बात करके पूरे राजनीतिक परिदृश्य को ही बदल कर रख दिया है। उन्होने साफ कहा है कि युवा कांग्रेस विधायकों का रिपोर्ट कार्ड तैयार करेगी। उनकी बात में दम नजर आ रहा है क्योंकि युवा कांग्रेस के अध्यक्ष होने के साथ-साथ मुख्यमन्त्री का सपुत्रा होने के नाते उनकी ताकत दोगुनी हो जाती है। फिर अगला समय तो वैसे ही युवाओं का है।
परन्तु कुछ हल्कों में यह चर्चा चल पड़ी है कि पिछले कुछ दिनों से जब से परिवार सी.बी.आई. और ई.डी.की जांच के घेरे में चल रहा है तब से वह स्वयं भी इस चक्की का एक हिस्सा बन गये हैं। फिर यह हर घर की स्वभाविक कहानी है कि अक्सर ही घर के बडोें के हर परेशानी वाले मामलों में आसानी से छोटों पर दोषारोपण शुरू कर दिया जाता है। भले ही किसी नुकसान में घर के बच्चों और औरतों की कोई भूमिका न रही हो परन्तु चर्चा उन तक पहुचां दी जाती है। यहां भी इस बड़े घर की खबर रखने वाले इसके बच्चों और औरतों को कोसने लग पडे़ है।
अब जब कोई अनचाहे ही ऐसी चर्चाओं का पात्रा बना दिया और उसके सिर पर ताज भी हो तो उसे ताज और चर्चाओं दोनो को संभालने के लिये कोई बड़ी ही लकीर खींचनी पडे़गी। कहते हैं कि विक्रमादित्य ने भी यह ब्यान देकर यही बड़ी लकीर खीचने का प्रयास किया है। क्योंकि विधायकों के रिपोर्ट कार्ड रखने का जो काम मुख्यमन्त्री या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को करना चाहिये था उस काम को जब युवा कांग्रेस का अध्यक्ष अंजाम देने की बात करेगा तो निश्चित तौर पर यही पूछा जायेगा कि अब किसकी चलेगी बाप की या बेटे की।
होटल मालिक कोछड़ के अरूण जेटली के करीबी होेेने की चर्चा
शिमला/शैल। क्या शिमला के मालरोड़ स्थित होटल विलो बैंक का केन्द्रिय वित्त मन्त्री अरूण जेटली के साथ वास्तव में हीे परोक्ष /अपरोक्ष में कोई संबंध है यह सवाल इन दिनो फिर चर्चा में है। स्मरणीय है कि हैरिटेज क्षेत्र में बना यह होटल अपने निर्माण के साथ भी चर्चा और विवाद में रहा है। इसको नियमित करने के लिये सरकार को निमार्ण के वाईलाज तक संशोधित करने पडे थे। तब यह चर्चा उठी थी कि इसके मालिक दिल्ली के सुन्दर नगर के निवासी एच एस कोछड़ के अरूण जेटली के साथ घनिष्ठ संबंध है और उन्होने कोछड़ की सहायता किये जाने की सिफारिश भी की है । सिफारिश का यह खुलासा उस वक्त चर्चा में आया था जब इसके निमार्ण के दौरान के दौरान आयी शिकायतों पर निगम ने मालिकों को काम रोकने के लिये 7-8-2000 , 25-01-2001 और फिर 24-03-2001 को नोटिस भेजे। जब इन नोटिसों पर काम नहीं रोका गया तब नगर निगम अधिनियम की धारा 294 के तहत इसके खिलाफ 07-04-2001 को कारवाई शुरू की गयी।07-04-2001से 05-10-2002 तक करीब 18 महीने चली कारवाई में 26 बार यह मामला सुनवाई में आया और इसी दौरान इसका निर्माण कार्य पूरा करके 28-08-2002 इसकी कम्पलिशन प्लान सौप दी गयी।
इस कंपलिशन पर चार गंभीर एतराज लगे। पहला एतराज था कि यह निमार्ण सरकार के आदेश TCF(6) 40193 दिनांक 01-06-99 और नगर निगम के आदेश 169/ AP दिनांक 08-06-99 की अवहेलना में किया गया है। दूसरा एतराज था कि माल रोड़ के साथ ओर ऊपर तीन मंजिलें बना ली गयी । तीसरा था कि कुल तीन मंजिलों की स्वीकृति थी जिसमें मालरोड़ से ऊपर केवल एक मंजिल बननी थी तबकि पार्किंग ब्लाक में ही पांच मंजिले बना ली गयी जिसमें तीन को बन्द करके दो को सीढियों से होटल के साथ जोड़ दिया गया । 09-10-2002 को निगमायुक्त द्वारा सरकार को भेजी रिपोर्ट में चैथा एतराज प्लान ओवर राईटिंग और टेंपरिंग का लगाकर संबंधित अधिकारियों /कर्मचारियों के खिलाफ कारवाई किये जाने की सिफारिश की गयी । लेकिन 04-02-2004 को निगम के संयुक्त आयुक्त ने पांचवी और छठी मंजिल की कंपाऊडिंग फीस तय कर दी तथा साथ ही यह भी लिख दिया कि इन्हे कंपाऊड नही किया जा सकता। इस पर कोछड ने CWP 625/ 2003 डालकर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा दिया । उच्च न्यायालय का फैसला 02-09-2003 को आया और उसमें स्पष्ट कहा गया कि दूसरी मंजिल तक हुई अनियमिताओं की फीस ले ली जाये लेकिन पांचवी और छठी मंजिल के किसी भी तरह के उपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती। 
इसके बाद सरकार ने 28-02-11 को संशोधित वाईलाज अधिसूचित कर दिये। इस पर कोछड़ ने फिर निगम को कंपालिशन प्लान सौंपा जिसे निगम की सिंगल अम्बरेला कमेटी ने 28-06-12 की बैठक में अस्वीकार कर दिया । इस पर कोछड फिर उच्च न्यायालय पहुंच गया उच्च न्यायालय ने 28-05-12 को विभाग के सचिव को मामले की सुनवाई के निर्देश दिये । इन निर्देशों पर अतिरिक्त मुख्य सचिव ने बतौर अपील अथारिटी कोछड की अपील को संशोधित वाईलाज के नियम 4.9 के तहत स्वीकार कर लिया। उच्च न्यायालय का पहला फैंसला 02-09-2003 को आया और संशोधित वाईलाज 28-02-11 को अधिसूचित हुए। इससे साफ हो जाता है कि नगर निगम को 02-09-2003 के बाद अवैध निर्माण को गिराने की कारवाई करनी जो कि नहीं हुई। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद करीब आठ वर्ष तक निगम ने कारवाई नहीं की। सरकार भी खामोश रही बल्कि वाईलाज बदले गये। स्वाभाविक है कि यह सब किसी बडे के ही दबाव में हुआ होगा।
अब नगर निगम ने 2003 से लेकर अब तक इस होटल का काम पानी के आठ घरेलू कनैक्शनों के सहारे चलते रहने का वाटर घोटाला पकडा है। जबकि पानी के कनैक्शन कमर्शियल होने चाहिये थे। इस वाटर घोटाले की जानकारी मिलने पर निगम की लाॅ ब्रांच से राय लेकर होटल के खिलाफ 2,63,76,202 रूपये की रिकवरी 31 मार्च 2015 तक की निकाली है। कानूनी शाखा से सितम्बर 2015 में राय आ गयी थी जिस पर इतने एरियर का नोटिस तैयार कर दिया गया है लेकिन यह नोटिस अभी तक भेजा नही गया है और ना ही पानी के कनैक्शन बदले गये है। स्मरणीय है कि सितम्बर 2003 में 25 कमरो से शुरू हुए इस होटल में 2007 और 2008 में दस दस कमरे और जुडे। जब यह कमरे जुडे तब इनमें भी पानी की सप्लाई दी गयी होगीं फिर इस होटल के निमार्ण को लेकर लगातार विवाद चलता रहा है । सरकार और नगर निगम का सारा शीर्ष प्रशासन विवाद से पूरी तरह जानकार रहा है । ऐसे में किसी भी स्तर पर कोई कारवाई ना किया जाना कई सवाल खड़े करता है। धूमल और वीरभद्र दोनो के शासन कालों में यह मामला बना रहा है। आज वीरभद्र और उनका बेटा उनके खिलाफ हो रही सी बी आई और ई डी की कारवाई के पीछे अरूण जेटली का प्रमुख हाथ होने का आरोप लगाते आ रहे हैं इस परिदृश्य में आज इस होटल से जुडे इस वाटर घोटाले के खुलासे को भी इसी आईने में देखा जा रहा है।
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