Saturday, 20 December 2025
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राजेश धर्माणी और दीपक राठौर को जिम्मेदारीयां मिलना प्रदेश कांग्रेस में नये समीकरणों का संकेत

शिमला/शैल। राहूल गांधी के कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश कांग्रेस के दो नेताओं राजेश धर्माणी और दीपक राठौर को राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारीयां दिये जाने के बाद पार्टी के समीकरणों में बदलाव के संकेत उभरने लगे हैं। स्मरणीय है कि पूर्व विधायक एवम् सीपीएस राजेश धर्माणी वीरभद्र सरकार के पूरे पांच वर्ष के कार्यकाल में एक ऐसे नेता रहे हैं जो आखिर तक अपने स्टैण्ड पर कायम रहे। जब धर्माणी के वीरभद्र की कार्यशैली को लेकर उनसे मतभेद हो गये थे तब उन्होने सीपीएस के पद से यागपत्र दे दिया था। वीरभद्र ने यह त्यागपत्र स्वीकार नही किया था। लेकिन धर्माणी ने त्यागपत्रा के साथ ही सचिवालय में मिले अपने कार्यालय में आना छोड़ दिया था और कार्यकाल के अन्तिम दिन तक अपने इस फैसले पर कायम रहे। वीरभद्र विरोधियों की अग्रिम पंक्ति में उनका पहला नाम आता था और शायद इसी का नुकसान भी उन्हें विधानसभा चुनावों में उठाना पड़ा।
इसी तरह दीपक राठौर को ठियोग विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया गया था। राठौर को हटवाने के लिये वीरभद्र को किस हद तक उनका विरोध करना पड़ा है यह चुनावों के दौरान ही खुलकर सामने आ गया था। लेकिन इस विरोध के बावजूद राठौर अपने स्टैण्ड पर चलते रहे। दीपक राठौर को चुनाव टिकट राहूल गांधी का विश्वस्त होने के नाम पर मिला था और शायद यही वीरभद्र की नाराज़गी का कारण भी रहा है। अब जब राठौर को राहूल गांधी ने जिम्मेदारी सौंपी है उससे यह संदेश गया है कि वह अभी भी विश्वस्तों की सूची में बने हुए हैं।
इन दोनां युवा नेताओं के अतिरिक्त इस समय आनन्द शर्मा और आशा कुमारी कांग्रेस की राष्ट्रीय स्तर की सर्वोच्च कमेटी के सदस्य हैं। आनन्द शर्मा का कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर एक कारगर योगदान चला आ रहा है। जिस कारण उन्हें पार्टी की विदेश मामलों की कमेटी की अध्यक्षता सौपी गयी है। आशा कुमारी का योगदान पंजाब प्रभारी के नाते सबके सामने रहा है। आज आनन्द शर्मा और आशा कुमारी प्रदेश कांग्रेस में वीरभद्र और कौल सिंह के बाद अगली पंक्ति के नेता माने जाते हैं। वीरभद्र के बाद कांग्रेस का नेता कौन होगा इसका अभी कोई अन्तिम फैसला नही आ पाया है। क्योंकि वीरभद्र जिस तरह से प्रदेश अध्यक्ष सुक्खु का विरोध करते आ रहे हैं उससे उनका अपना ही कद हल्का पड़ा है। मुकेश अग्निहोत्री नेता प्रतिपक्ष हो गये हैं लेकिन यह सभी जानते हैं कि विधायकों का एक बड़ा वर्ग दबी जुबान से उनका विरोध भी कर रहा था। फिर वीरभद्र सिंह ने भी अभी तक सार्वजनिक रूप से यह नही कहा है कि मुकेश प्रदेश के अगले नेता होंगे। वीरभद्र का जयराम सरकार के प्रति नरम रूख आज सबसे बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है और यह माना जा रहा है कि इससे लोकसभा चुनावों में नुकसान हो सकता है।
ऐसे परिदृश्यों में राहूल गांधी द्वारा राजेश धर्माणी और दीपक राठौर को जिम्मेदारीयां दिया जाना इस बात का खुला संकेत है कि कांग्रेस हाईकमान अभी से प्रदेश में अगला नेतृत्व तैयार करने की दिशा में कदम उठा चुका है। क्योंकि यह दोनो युवा नेता वीरभद्र के प्रभावक्षेत्र से बाहर के माने जाते हैं।

बीपीएल प्रकरण पर जिम्मेदार नगर निगम सदन और जांच सचिव की

शिमला/शैल। नगर निगम शिमला में जब गरीब परिवारों के लिये बीपीएल योजना के तहत बनाये गये आवासों का आंवटन किया गया था तब निगम की बीपीएल सूची पर ही गंभीर आरोप लगे थे। इन आरोपों पर निगम के हाऊस में चर्चा आयी थी और सदन ने 25.4.2008 को हुई अपनी पहली ही बैठक में निगम की सचिव के खिलाफ जांच करवाये जाने के आदेश दिये थे क्योंकि बीपीएल कार्ड जारी करने की जिम्मेदारी सचिव के पास थी। निगम के सदन के आदेश पर संयुक्त आयुक्त को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया। संयुक्त आयुक्त ने 10.7.2018 को जांच शुरू की और 12.7.2018 को इस पर फैसला भी दे दिया।
संयुक्त आयुक्त विकास सूद की जांच रिपोर्ट मे कुछ महत्वपूर्ण खुलासे सामने आये हैं। सबसे पहले यह सामने आया है कि 2012 तक बीपीएल कार्ड जारी करने के लिये आयुक्त/संयुक्त आयुक्त ही अधिकृत थे। लेकिन 15.5.12 को यह जिम्मेदारी निगम की सचिव को दे दी गयी। दूसरा बिन्दु यह आया है कि निगम में बीपीएल परिवारों का सर्वे 2007 में एक एनजीओ समीक्षा द्वारा करवाया गया था। समीक्षा को यह कार्य 10.7.2008 को निगम के सदन की स्वीकृति से दिया गया था। समीक्षा ने 3050 परिवारों का सर्वे किया था। जिसे 13 जून 2008 को ए.सी.एस(यूडी) ने भी अनुमोदित किया था। जांच रिपोर्ट में यह भी समाने आया है कि निगम के सदन ने प्रस्ताव संख्या 3 ;3द्ध दिनांक 27.7.2011 को यह पारित किया था कि हिमाचली प्रमाणपत्र औरआय प्रमाण पत्र पर बीपीएल कार्ड जारी कर दिये जायें। लेकिन बीपीएल के लिये जो दिशा निर्देश जारी किये गये थे उनके मुताबिक वार्ड संभाएं गठित करके उनकी सिफारिश पर ही यह कार्ड जारी किये जाने थे। परन्तु नगर निगम में यह वार्ड सभायें एमसी एक्ट 1994 के मुताबिक आज तक भी गठित ही नही हुई है। फिर बीपीएल कार्डों की वैधता भी केवल एक वर्ष रखी गयी है यह भी जांच रिपोर्ट में सामने आया है।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब एमसी एक्ट के मुताबिक बीपीएल कार्ड वार्ड सभाआें की सिफारिश पर ही दिये जाने हैं और उनकी वैधता भी केवल एक वर्ष ही है तो फिर 2007 में एनजीओ समीक्षा से यह सर्वे क्यों करवाया गया। जबकि बीपीएल नीति के तहत इसकी आवश्यकता ही नही थी। यदि सर्वे की आवश्यकता थी तो फिर यह सर्वे 2007 के बाद क्यों नही करवाया गया। फिर बीपीएल कार्ड की वैधता केवल एक ही वर्ष क्यो रखी गयी। क्योंकि जब बीपीएल को आधार बनाकर ही शहरी गरीबों को आवास आदि की सुविधा दी जानी है तो क्या यह सुविधा और सूची हर वर्ष बदलती रहेगी। जब निगम के सदन में यह मुद्दा आया तब इस पर कोई ठोस और स्थायी नीति बनाने की बजाये सदन ने अपनी जिम्मेदारी सचिव पर क्यों डाल दी। जिस कार्य के लिये सदन को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिये था उसके लिये सचिव की जांच क्यों? आज तक वार्ड सभाएं गठित नही हो पायी हैं ऐसे में आज बीपीएल कार्ड क्या हिमाचली और आय के प्रमाण पत्रों पर ही जारी नही किया जायेगा।

क्या चिट्टों पर भर्ती का दौर शुरू हो रहा है महेन्द्र सिंह के पत्रों से उठा सवाल

शिमला/शैल। क्या प्रदेश में फिर से चिटों पर भर्ती का दौर शुरू हो रहा है? यह चर्चा बागवानी मन्त्री महेन्द्र सिंह के इस आशय से लिखे गये कुछ पत्रों के वायरल हो जाने से उठ निकली है। महेन्द्र सिंह ने यह पत्रा अपने चुनाव क्षेत्र धर्मपुर के तीन गांवो के चार लोगों को लिखे हैं। इन पत्रों में इन लोगों से कहा गया है कि वह संलग्न प्रपत्र को भरकर बागवानी विकास परियोजना निदेशक को 20 जून तक भेजें। इस प्रपत्र के मुताबिक आवेदन करने वाले को अपना अनुभव प्रमाण पत्र भी साथ लगाना होगा। मंत्री ने अपने पत्र में इन लोगों को केवल इतना ही आश्वस्त किया है कि यदि उन्हे यह अनुभव प्रमाण पत्र प्राप्त करने में कठिनाई हो तो वह मंत्रा को इससे अवगत करवायें। मंत्री यह अनुभव प्रमाण पत्र प्राप्त करवाने में उनकी सहायता करेंगे। 

मन्त्री ने अपने पत्र में यह नही कहा है कि यह अनुभव प्रमाण पत्र हालिस करने से निश्चित रूप से उन्हे नौकरी भी मिल ही जायेगी। अपने चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधि होने से विधायक के नाते यह उनका दायित्व बनता है कि वह अपने क्षेत्र के लोगों की सहायता करें और यह सहायता करने में कुछ भी अनुचित नही है। क्योंकि यह पत्र उन्होने अपने लोगों को लिखा है। यदि यही पत्र उन्होने परियोजना के निदेशक को निर्देश देते हुए लिखे होते तो स्थिति पूरी तरह बदल जाती। तब इन पत्रों को सीधे तौर पर सिफारिश और निदेशक पर दबाव करार दिया जा सकता था। लेकिन महेन्द्र सिंह इस समय केवल अपने क्षेत्र के विधायक ही नही वरन् पूरे प्रदेश के मंत्री है। इस नाते जितनी चिन्ता रोज़गार को लेकर उन्होने अपने क्षेत्र के लोगां के प्रति दिखायी है उनकी और वैसी ही चिन्ता उनसे पूरे प्रदेश को लेकर अपेक्षित है। यदि वह ऐसी चिन्ता प्रदेश के सभी बेरोज़गारों के प्रति नही दिखाते हैं तो उनके इन पत्रों को 1993 के दौर की तरह चिट्टों पर भर्ती का प्रयास ही करार दिया जोयगा।
महेन्द्र सिंह के यह पत्र परियोजना निदेशक को नही लिखे गये हैं जिससे यह कहा जाये कि उस कार्यालय के माध्यम से यह पत्र वायरल हुए हैं। यह पत्र उनके अपने कार्यालय या आवास से सीधे संबंधित लोगां को लिखे गये हैं और फिर भी वायरल हो गये हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उनके हर कदम पर बारिकी से नज़र रखी जा रही है। यह स्थिति अकेले महेन्द्र सिंह की ही नही है बल्कि अन्यों के साथ भी यह हो रहा है। बागवानी मन्त्री ने पिछले दिनों जिस तरह की चिन्ता बागवानी विकास परियोजना को लेकर व्यक्त की हैं और यह सवाल उठाया है कि जिस विभाग ने विकास को लेकर परामर्श पर ही सौ करोड़ रूपया खर्च कर दिया है उसके अनुरूप उन्हे प्रदेश में विकास दिखाई नही दिया है। विभाग की एक सोसायटी में रखे गये सेवानिवृत कर्मचारियों को दिये जा रहे 50,000 से 80,000 हजार तक के वेतन को लेकर भी सवाल उठाये गये हैं। बल्कि दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में इस सरकार द्वारा सत्ता संभालने के बाद जनवरी के पहले ही सप्ताह में विभाग में हुई कुछ नियुक्तियों की मन्त्री तक को जानकारी न होने पर भी सवाल उठे हैं और इन्ही सवालों के परिदृश्य में मंत्री ने विभाग के कई कार्यों की जांच करवाने तक का भी दावा किया है।
मंत्रा के यह दावे कितने पूरे होते हैं और उनमें क्या निकलता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इस समय मंत्री के जो पत्र वायरल हुए हैं। उनसे मंत्री के सारे दावों और प्रयासों की गंभीरता पर जहां प्रश्नचिन्ह लग रहा है वहीं पर यह भी आशंका बराबर बनी हुई है कि उनके प्रयासों को बीच में रोकने का भी पूरा प्रबन्ध किया रहा है।



























 



























 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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