Saturday, 20 December 2025
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मनाली के होटल Citrus पर लगाया NGT ने 20 लाख का जुर्माना

जिम्मेदार तन्त्र के खिलाफ मुख्यसचिव को हुये कारवाई के निर्देश
मंत्री महेन्द सिंह भी पाये गये अवैध निमार्ण के दोषी

शिमला/शैल। एन जी टी ने 18-12-17 को पारित एक आदेश में प्रदेश के मुख्य सचिव को पर्यटन, टी सी पी और प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के कुछ अधिकारियों/कर्मचारियों के खिलाफ कारवाई करने के निर्देश दिये हैं। लेकिन अदालत के इन आदेशों की अनुपालना अब तक नहीं हो पायी है। एन जी टी के आदेश में कहा गया है किWe direct the Chief Secretary of State of Himachal Pradesh to take appropriate disciplinary action in regard to dereliction of duty and for not maintaining the records and taking action in accordance with law against all the employees, officers and officials who have dealt with this file whether they are in service or have retired and providing undue advantage to Noticees. In the case of retired officers/officials, the action would be taken for reduction in pension as per rules. The employees may be of the Department of Town and Country Planning, the Government of Himachal Pradesh, Department of Tourism, State Pollution Control Board or any other agency of the Government as may be deemed proper by the department.
ऐसे ही आदेश इससे पहले कसौली के मामले में हो रखें हैं और उन पर भी आज तक कोई कारवाई नही हुई है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि आखिर मुख्य सचिव अदालत के आदेशों को किसी के दबाव में या स्वंय अपने ही स्तर पर किसी को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। वैसे आम आदमी में तो यही धारणा है कि यह संभवतः राजनीतिक दबाव के चलते हो रहा है। क्योंकि ऐसा संभव नही हो सकता कि अदालत के आदेशों की जानकारी प्रदेश के मुख्य मंत्रा को न हो।
एन जी टी के 18-12-17 को आदेश उस याचिका पर आये हैं जो मण्डी की सरकाघाट तहसील के गांव पारछू के निवासी रमेश चन्द ने दायर की है। इस याचिका में प्रदेश सरकार, पर्यटन, टी सी पी, पी डब्लयू डी, प्रदूषण नियन्त्राण बोर्ड, वन विभाग प्रोमिला देवी पत्नी महेन्द्र सिंह ठाकुर और रजत ठाकुर पुत्रा महेन्द्र सिंह ठाकुर को प्रतिवादी बनाया गया है। महेन्द्र सिंह ठाकुर इस समय प्रदेश के वरिष्ठ मंत्रा हैं। इनका मनाली में मनाली वैली के नाम से एक होटल है। इस होटल में भी याचिकाकर्ता ने अवैध निर्माण होने का आरोप लगाया है। इन आरोपों पर जब एन जी टी में पेशी लगी तब महेन्द्र सिंह इसमें व्यक्तिगत रूप से पेश हुए। उनके पेश होने पर अदालत ने यह कहा है कि Initially the case related to the hotel constructed by Shri Mahinder Singh Thakur, owner of the Hotel Manali Valley. However, on a subsequent date Mr. Thakur appeared and made a statement that he would demolish the unauthorized construction as well as restore the Government land occupied and take all anti-pollution measures to the satisfaction of the concerned authority. The team headed by S.D.M. ensure compliance and in view of the statement made by Mr. Thakur which was given effect to no further orders were called for and not passed.

महेन्द्र सिह द्वारा अदालत को दिये गये इस आश्वासन के बाद इस होटल में हुआ कुछ अवै़ध निर्माण गिराया गया है। लेकिन जितना अवैध निर्माण चिन्हित हुआ था वह सारा ही गिरा दिया गया है या नहीं इसको लेकर जिला पर्यटन अधिकारी कुल्लु को कोई पूरी जानकारी नही है।
रमेश चन्द ने जो याचिका दायर की थी उसकी सुनवाई के दौरान एन जी टी ने 27-10-2017 को इस याचिका के मुद्दों के अतिरिक्त अन्य बिन्दुओं पर भी प्रदेश सरकार, टी सी पी और प्रदूषण नियन्त्राण बोर्ड से जवाब मांगा था। यह बिन्दु थे

1. How many hotels are operating in the city of Kullu, Planning Area, particularly in and around the Manali.
2. Out of them how many hotels have their own STP and other anti-pollution devices installed and how many are operating without obtaining consent of the Himachal Pradesh Pollution Control Board.
3. How many hotels out of them are located or constructed on the forest land.
4. How many cases of unauthorized construction which includes the construction which has been raised without obtaining sanction of the plan, NOC ordeviation or variations by addition of floors by construction of additional rooms beyond the sanction plan.
5. What action the State Government and the Pollution Control Board has taken in that behalf.
6. We direct Town and Country Planning Department and the State of Himachal Pradesh to submit whether any study or data have ever been prepared for the Kullu Planning Area with particularly Manali and its surrounding areas as to its carrying capacity, kind of development that should be permitted and keeping in view the fact that this area falls under Seismic Zone 4 and 5.

होटल मनाली वैली के साथ ही एक होटल सीट्रस का मुद्दा भी एन जी टी के सामने आया है। इस होटल में प्रारम्भ में 37 कमरों के लिये अनुमति ली गयी थी। लेकिन यहां पर 37 से 112 कमरे बन गये। इस बढ़े हुए निर्माण की कब किसने स्वीकृति दी इसको लेकर मालिक और टी सी पी तथा प्रदुषण नियन्त्रण बोर्ड का स्टैण्ड इस तरह से अलग-अलग सामने आया है जिससे स्पष्ट हो जाता है कि संबधित विभागों के अधिकारियों के बीच निश्चित रूप से सांठगांठ रही है। इसी सांठ गांठ को इंगित करके इस होटल को 20 लाख का जुर्माना लगाया। यह जुर्माना दो सप्ताह के भीतरे अदा किया जाना था जिसका 75% प्रदेश के पर्यावरण विभाग और 25% प्रदूषण नियन्त्राण बोर्ड में जमा होना है। लेकिन क्या यह पैसा अभी तक जमा हो पाया है या नही इसके बारे में जब संबंधित विभागों से बात की गयी तो उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी ही नही थी।

एनजीटी के निर्देशों के बाद तहसीलदार कुल्लु और फॉरेस्ट रेंज ऑफिसर मनाली ने उप-मण्डल के होटलों का संयुक्त निरीक्षण 28.4.2018, 4.5.2018 और 18.5.2018 को किया। इस निरीक्षण में 92 होटलों की सूची तैयार की गयी है। इसमें 30 होटलों के खिलाफ वनभूमि के अतिक्रमण का आरोप है इस आरोप पर कारवाई के नाम पर कहा गया है कि Notice will be issued To the encroacher aaccording to the encroachment case which are being prepared by the revenue field agency. इस निरीक्षण को हुए भी पांच माह का समय बीत गया है लेकिन इन पांच महीनों में कितने होटलों को यह नोटिस जा चुके हैं इसके बारे में संबंधित अधिकारी बहुत स्पष्ट नही थे। लेकिन जो 92 होटलों की सूची बनाई गयी है उसमें याचिका में आये दोनां होटलों का नाम नही है। इसी तरह जो 73 होटलों की सूची प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने तैयार की थी उसमें उन होटलों के नाम शामिल थे जिनके पास Consent to operate नही थी। लेकिन होटल सीट्रस का नाम बोर्ड की इस सूची में भी शामिल नही है।
कुल्लु मनाली क्षेत्र में बने 547 होटलों में से 216 के पास आप्रेट करने की अनुमति नही है। परवाणु में अवैधता के आरोपों पर 44 होटलों का बिजली, पानी काटा गया। धर्मशाला में 144 होटलों के खिलाफ कारवाई की गयी है। कसौली में 44 होटलों की बिजली, पानी काटा गया। यह प्रदेश उच्च न्यायालय की सख्ती के बाद हुआ है। इस समय सर्वोच्च न्यायालय से लेकर एनजीटी और प्रदेश उच्च न्यायालय सभी अवैध होटलों के खिलाफ कड़ा रूख अपनाये हुए है और मुख्य सचिव को संबंधित कर्मचारियों/अधिकारियों के खिलाफ कारवाई के निर्देश दे चुके हैं लेकिन अभी तक कोई कारवाई सामने नही आयी है।


क्या फैसले के कगार पर पंहुचा बिन्दल मामला वापिस हो पायेगा

शिमला/शैल। राजीव बिन्दल के खिलाफ पिछले 15 वर्षों से चले आ रहे मामले में जयराम सरकार ने फिर अपना स्टैण्ड बदलते हुए इस मामले को वापिस लेने के लिये अदालत से गुहार लगायी है। इससे पहले भी जयराम सरकार आने पर इस मामले की पैरवी कर रहे सरकारी वकील ने यह मामला वापिस लेने के लिये सरकार को एक नोट भेजा था। तब विजिलैन्स ने इस नोट के अनुसार कारवाई करने की बजाये नोट भेजने वाले वकील को ही बदल दिया था। उसके बाद जो वकील लगाया गया था उसने फिर नोट भेजा और कहा कि मामले को वापिस लेना ठीक नही होगा। इस मामले में सरकार की ओर से अभियोजन पक्ष की गवाहीयां पूर्ण हो चुकी हैं और केवल सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अभियुक्त बिन्दल की अपनी ही गवाही होना शेष है। इसके बाद मामले में बहस और फिर फैसला आ जायेगा। अभियोजन पक्ष की गवाहीयां हो जाना मामले की अन्तिम स्टेज होती है अभियुक्त बरी भी हो सकता है और मामले में सज़ा भी हो सकती है। दोनां की संभावनाएं बराबर बनी रहती है।
सरकार मामला वापिस ले सकती है यह सरकार का अधिकार क्षेत्र है लेकिन इस अधिकार का प्रयोग कब तक किया जा सका है यह एक महत्वपूर्णे सवाल है। ऐसे मामलों में नामज़द अभियुक्त मामले में दर्ज हुई एफआईआर वापिस लेने की गुहार पुलिस से कर सकता है। पुलिस के मना करने पर अदालत से उसे रद्द करने का आग्रह कर सकता है। इस मामले में ऐसा कुछ नही हुआ है। धूमल शासन में विधानसभा अध्यक्ष ने इसमें अभियोजन की अनुमति देने से इन्कार कर दिया था लेकिन यह अदालत के सामने आयी ही नही थी। अब जयराम सरकार को भी सत्ता में आठ माह हो गये हैं लेकिन सरकार इस मामले में अन्तिम फैसला नही ले पायी। जबकि अदालत में कारवाई चलती रही और अभियोजन पक्ष की सारी गवहीयां भी हो चुकी हैं। सरकारी वकील जब इसमें मामला वापिस लेने का आग्रह अदालत के समाने रखता है जो उसे यह कहना होता है कि वह मामलें में उपलब्ध सारे रिकार्ड को देखने के बाद इस नतीजे पर पंहुचा है कि इसमें अभियुक्त को दोषी सिद्ध कर पाना संभव नही होगा। ऐस में मामले को आगे बढ़ाना अदालत का समय ही बर्बाद करना होगा लेकिन यह आवश्यक नही है कि अदालत वकील की राय से सहमत हो ही जाये और मामला वापिस लेने के आग्रह को मान ही ले। फिर यह मामला तो फैसले के कगार पर पंहुचा हुआ है। अदालत में वकील को अपनी राय रखनी है और उसमें यह नही झलकना चाहिये कि मामला वापिस लेने के लिये सरकार का दबाव है।
अभी सर्वोच्च न्यायालय ने विधायकों/सांसदो के लंबित मामलों को निपटाने के लिये विशेष अदालतें गठित करने के निर्देश दिये हुए हैं। इन विशेष अदालतों पर रिपोर्ट तलब की है। इस पर हिमाचल में कोई विशेष अदालत गठित नही हुई है। जबकि ऐसे 84 मामले लंबित चले आ रहे हैं इसी के साथ अभी सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि "Every Acquittal has to viewed seriously" इसमें जिम्मेदारी तय करने के लिये कहा गया है। इस परिदृश्य में बिन्दल मामले को इस स्टेज पर वापिस लेने के आग्रह पर यदि अदालत सहमत हो जाती है तो यह सहमति सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के एकदम प्रतिकूल होगी। दूसरी ओर जयराम सरकार पर यह सवाल उठेगा कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ कितनी गंभीर है। जहां सरकार लगातार यह दावा कर रही है कि भ्रष्टाचार कई बर्दाशत नही होगा वहीं इसका यह अर्थ लगाया जायेगा कि भ्रष्टाचार के प्रति यह स्टैण्ड केवल विरोधियों पर ही लागू होगा अपनो पर नहीं। क्योंकि यह मामला फैसले के कगार पर पंहुचा हुआ है और अब इस स्टेज पर इसे वापिस लेने के आग्रह का जनता में यही संदेश जायेगा कि शायद इसें सरकार को विश्वास हो गया था कि दोषियों को सज़ा हो जायेगी। इस सज़ा से बचने के लिये ही मामला वापिस लिया जा रहा है। यदि यही फैसला सरकार पहले ही एक महीने में ले लेती तो सरकार की नीयत पर कोई सवाल नही उठते। अब यदि इस स्टेज पर अदालत भी सरकार के आग्रह को मान लेती है तो इसका संदेश अदालत की निष्क्षता पर भी अनचाहे ही प्रश्नचिन्ह लगा देगा।

कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक की कार्यप्रणाली 174 करोड़ के ऋण में 64 करोड़ हुआ एनपीए

शिमला/शैल। कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक ने पिछले तीन वर्षो में 547 ईकाईयों को 174,06,28,742.68 का ऋण दिया है जिसमें से 64,30,47,236.02 रूपये एनपीए हो चुका है। यह ऋण 1-4-2015 से 31-3-2018 के बीच दिया गया यह जानकारी विधानसभा के इस मानसून सत्र में हमीरपुर के विधायक नरेन्द्र ठाकुर के प्रश्न के उत्तर में दी गयी है। इस प्रश्न पर सदन में आयी चर्चा के दौरान मन्त्री विक्रम ठाकुर ने यह आश्वासन दिया है कि इस ऋण को दिये जाने की पूरी जांच करवाई जायेगी। मन्त्री ने सदन को यह भी बताया कि उनकी जानकारी के मुताबिक बहुत सारे साधन संपन्न लोग भी बैंक का ऋण वापिस नही कर रहे हैं। प्रदेश के सहकारी बैंको को लेकर बजट सत्र में भी एक सवाल आया था। उसमें पूछा गया था कि इन बैंकों का एनपीए कितना हो चुका है। इस प्रश्न के उत्तर में आयी जानकारी के अनुसार प्रदेश के दस सहकारी क्षेत्र के बैंकां का एनपीए 938.27 करोड़ था। जिसमें कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक का एनपीए 560.60 करोड़ था। अन्य सहकारी बैंकों की स्थिति यह थी-राज्य सहकारी बैंक 250.48 करोड़ ,जोगिन्द्रा सहकारी बैंक 52.66 करोड़, हि.प्र्र. राज्य सहकारी सहकारी विकास बैंक 29.50 करोड़, शिमला अर्बन सहकारी बैंक 2.04 करोड़, परवाणु अर्बन सहकारी बैंक 6.06 करोड़, मण्डी अर्बन सहकारी बैंक 1.32 करोड़, बघाट अर्बन सहकारी बैंक 20.99 करोड़ और चम्बा अर्बन सहकारी बैंक 023 करोड़।
प्रदेश के सहकारी बैंकों की इस स्थिति से प्रदेश के सहकारिता आन्दोलन पर ही गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं क्योंकि हर छोटा बड़ा बैंक एनपीए का शिकार है। कांगड़ा बैंक ने 547 उद्योग ईकाईयों को 174 करोड़ ऋण 1-4-2015 से 31-3-2018 के बीच दिया है। जिसमें आज 64 करोड़ से अधिक का एनपीए हो चुका है। स्मरणीय है कि जब कोई ऋण तय समय सीमा के भीतर अदा नही हो पाता है तब वह एनपीए की श्रेणी में आ जाता है। इसलिये इसमें यह देखना आवश्यक हो जाता है कि ऋण की वापसी करने की नीयत ही नही हैं या फिर बाजिव कारणों से ऋणधारक ऋण को चुका नही पा रहे हैं। यह जांच से ही सामने आयेगा क्योंकि मन्त्री जब यह कहे कि साधन संपन्न लोग भी अदायगी नही कर रहे हैं तो स्थिति एकदम बदल जाती है।
कांगड़ा बैंक के सूत्रों के मतुबिक बजट सत्र से लेकर अब तक इसमें से केवल 28 करोड़ की ही रिकवरी बढ़ी है। बैंक ने जिन उद्योग ईकाईयों को ऋण दिया है उस सूची पर नज़र डालने से यह सामने आता है कि दर्जनों इकाईयां एसी हैं जिन्हें एक ही दिन में दो-दो बार ऋण दिया गया है ऐसा क्यों किया गया एक ही बार क्यों प्रोपोजल क्यों नही बनाए गये यह जांच का विषय बनता है।
अब जब मन्त्री ने सदन में जांच का आश्वासन दे दिया है उसके बाद अब इस पर निगाहें लगी हुई है कि वास्तव में इस जांच के आदेश कब होते हैं और विजिलैन्स इस जांच में कितनी गंभीरता दिखाती है। क्योंकि इससे पहले भी मुख्यमन्त्री और मुख्य सचिव विजिलैन्स को सहकारी बैंक में हुई भर्तीयों के मामले की जांच करने के आदेश कर चुके हैं लेकिन इस पर अभी तक कोई कारवाई शुरू नही हुई है। ऐसे में यह आशंका बराबर बनी हुई है कि इस मामले का अंजाम भी कहीं इसी तरह का न हो।


























 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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