Saturday, 20 December 2025
Blue Red Green
Home देश

ShareThis for Joomla!

क्या वीरभद्र की कांग्रेस 2014 में मिली हार को पलट पायेगी

शिमला/शैल। 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा प्रदेश की चारों लोकसभा सीटें वीरभद्र से छीन कर ले गयी थी बल्कि अपने संसदीय हल्के मण्डी से मुख्यमन्त्री होते हुए अपनी पत्नी की सीट तक वीरभद्र नही बचा पाये थे। 2014 की इस हार को मोदी लहर का परिणाम करार दिया गया था। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनावों में भी वीरभद्र कांग्रेस को पुनः सत्ता में नही ला पाये यह एक कड़वा राजनीतिक सच है। लेकिन आज राजनीतिक परिदृश्य फिर बदला हुआ है। 2014 की हार के बाद कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर गुजरात और कर्नाटक में अपना प्रदर्शन सुधारने के बाद मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकारें बना ली हैं। अब भाजपा मोदी के पक्ष में 2014 जैसा वातावरण नही है। इसलिये प्रदेश के संद्धर्भ में यह सवाल उठ रहा है कि क्या वीरभद्र की कांग्रेस प्रदेश में 2014 की हार का बदला ले पायेगी? आज प्रदेश की कांग्रेस को वीरभद्र की कांग्रेस कहा जा रहा है क्योंकि सुक्खु को हरवाना वीरभद्र के लिये एक मुद्दे की शक्ल ले चुका था। इसी परिदृश्य में जब वीरभद्र, आनन्द शर्मा, आशा कुमारी और मुकेश अग्निहोत्री ने हाथ मिलाया और राठौर के नाम पर लिखित में सहमति जताई तब यह बदलाव हुआ।
अब राठौर ने जिस तरह से प्रदेश कार्यकारिणी का गठन किया है उसमें भी इन्ही चारों नेताओं का पूरा-पूरा दखल माना जा रहा है। राठौर ने अब तक की सबसे बड़ी लम्बी कार्यकारिणी का गठन किया है। थोक में उपाध्यक्षों महासचिवों और सचिवों के पद बांटे गये हैं लेकिन इतनी बड़ी कार्यकारिणी पर इन बड़े नेताओं का कोई विरोध सामने नही आया है जबकि कुछ पुराने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने वाकायदा इतने ज्यादा पदाधिकारियों पर हैरत जताई है। यही नही प्रदेश कार्यकारिणी की तर्ज पर ही अब जिला और ब्लाॅक ईकाईयों के गठन में भी उसी तर्ज पर पद बांटे जा रहे हैं। जबकि एक समय ऐसे बनाये गये पदाधिकारियों की पात्रता पर वीरभद्र ने यहां तक कह दिया था कि जो लोग पंचायत स्तर पंच का चुनाव नही जीत सकते उन्हें प्रदेश की जिम्मेदारीयां दे दी गयी हैं। इसलिये आज जब वीरभद्र सहित सारे बड़े नेता इस सब पर चुप हैं तो स्वभाविक रूप से आज की प्रदेश कांग्रेस को राठौर की बजाये वीरभद्र की कांग्रेस कहना असंगत नही होगा। क्योंकि राठौर ने उस समय जिम्मेदारी संभाली है जब मार्च के प्रथम सप्ताह में तो लोस चुनावों के लिये आचार संहिता लग जायेगी। इतने समय में तो शायद पूरे प्रदेश में जिला और ब्लाॅक स्तर पर ईकाईयों का भी गठन न हो पाये। लोस चुनावों के लिये ईच्छुक उम्मीदवारों के आवदेन आने के बाद उनके नाम आगे भी प्रस्तावित कर दिये गये हैं। इनके बाद और नामों की भी सूची मांग ली गयी है और हाईकमान अपने ही सर्वे के आधार पर उम्मीदवारों का ऐलान करेगी यह माना जा रहा है। सूत्रों की माने तो हाईकमान की भेजी हुई दो टीमों ने प्रदेश का सर्वे किया है और इस सर्वे के आधार पर उम्मीदवारों का चयन होगा यह माना जा रहा है। सूत्रों की माने तो सुक्खु को भी इसी सर्वे के आधार पर हटाया गया था। क्योंकि सर्वे में यह कहा गया था कि सुक्खु की अध्यक्षता में वीरभद्र और उसका पूरा खेमा चुनावों में काम नही करेगा। वीरभद्र ने जिस तरह से हमीरपुर से राजेन्द्र राणा के बेटे और कांगड़ा से सुधीर शर्मा की उम्मीदवारी का ऐलान किया था। उस पर प्रदेश की प्रभारी रजनी पाटिल ने कड़ी प्रतिक्रिया जारी की थी। उसके बाद वीरभद्र ने मण्डी से अपनी उम्मीदवारी को लेकर यह ब्यान दिया था कि यदि हाईकमान आदेश करेगा तो वह चुनाव लड़ लेंगे। वीरभद्र के ब्यानों का हाईकमान द्वारा संज्ञान लेने के बाद सुक्खु को अभी बदलने का फैसला हुआ था। इस फैसले को अमली जामा पहनाने के लिये हाईकमान ने आनन्द शर्मा की जिम्मेदारी लगायी और फिर आनन्द शर्मा ने इन अन्य नेताओं को विश्वास में लेकर इस बदलाव को अजांम दिया।
इस बदलाव के बाद जब राठौर राहुल गांधी से मिलने गये थे तब उन्हें चुनावों के मद्देनजर संगठन में इन नेताओं के सारे विश्वस्तों को स्थान देते हुए पुराने लोगों को भी यथास्थिति बनाये रखने के निर्देश दिये थे। इन्ही निर्देशों के कारण सुक्खु काल के लोगों को हटाया नही गया है। इस वस्तु स्थिति में यह माना जा रहा है कि लोस चुनावों की पूरी जिम्मेदारी वीरभद्र और मुकेश अग्निहोत्री पर आने वाली है। क्योंकि हाईकमान इस बार एक-एक सीट को लेकर गंभीर है। सर्वे के आंकलन को माने तो उसमें यह सुझाया गया है कि यदि वीरभद्र जैसे बड़े नेताओं को चुनाव में उतारा जायेगा तो वह ईमानदारी से सरकार के प्रति आक्रमकता निभायेंगे और उसी के साथ सारी खेमे बाजी भी अपने आप खत्म हो जायेगी। क्योंकि जब बड़े नेताओं के सिर पर सीधे जिम्मेदारी आ जाती है तब वह अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिये अपना सब कुछ दाव पर लगा देते हैं।
सूत्रों की माने तो हाईकमान ने वीरभद्र के बेटे की शादी में व्यवस्तता के तर्क को सिरे से खारिज कर दिया है यह संकेत दे दिया गया है कि मण्डी से वीरभद्र परिवार के ही किसी सदस्य को चुनाव में उतरना होगा। हिमाचल का चुनाव मई के अन्तिम फेज में होगा और वीरभद्र शादी की व्यवस्तता से मार्च में ही फ्री हो जायेंगे। ऐसे में माना जा रहा है कि हमीरपुर से मुकेश अग्निहोत्री और सुखविन्दर सिंह सुक्खु में से कोई उम्मीदवार होगा। इसी तहर कांगड़ा से सुधीर, जी एस बाली, आशा कुमारी और विजय सिंह मनकोटिया में से कोई उम्मीदवार होगा। शिमला से धनी राम शांडिल, विनोद सुल्तान पुरी और सोहन लाल के नाम सर्वे में सुझाये गये हैं। माना जा रहा है कि इन बड़े नेताओं को भी इसके संकेत दे दिये गये हैं। इस परिदृश्य में राठौर के लिये एक बड़ा काम पूराने नेताओं की पार्टी में वापसी करवाना है और वह इस काम में लग भी गये हैं। माना जा रहा है कि लोस चुनावों की गभीरता को देखते हुए पार्टी से बाहर निकाले गये सारे नेताओं को देर सवेर वापिस लिया जा रहा है और लोस चुनावों के बाद संगठन के आकार-प्रकार पर नये सिरे से विचार विमर्श किया जायेगा। अभी लोस चुनावों से पूर्व पार्टी में प्रवक्ताओं की जिम्मेदारी किसे दी जाती है इस पर मन्थन चल रहा है क्योंकि इन चुनावों में प्रवक्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण होगी इसलिये अभी तक राठौर की कार्यकारिणी में प्रवक्ता का पद खाली रखा गया है।

हमीरपुर में फिर बदले भाजपा के समीकरण

शिमला/शैल। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के भाजपा के प्रवक्ता रहे दीपक शर्मा अब फिर से कांग्रेस में शामिल हो गये हैं। एक समय पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल के प्रभाव से ही भाजपा में शामिल हुए थे यह आम चर्चा है। उस समय विनोद ठाकुर भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में चले गये थे। अब विनोद ठाकुर फिर से भाजपा में शामिल हो गये हैं। इस बदलाव को आने वाले लोकसभा चुनावों के साथ जो जोड़कर देखा जा रहा है।
पूर्व सीएम धूमल व उनके बेटों की ओर हाशिए से खफा होकर मई 2017 में भाजपा छोड़ कांग्रेस का हाथ थामने वाले आरएसएस नेता विनोद ठाकुर फिर भाजपा में लौट आए हैं। उन्होंने शिमला में फिर से भाजपा ज्वाइन कर ली है। विनोद ठाकुर युवा मोर्चा के तीन बार प्रदेश महामंत्री, युवा मोर्चा राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, भाजपा के चार साल तक हमीरपुर जिला महामंत्री और दो बार राज्य सचिव के पद पर रहे हैं। माना जा रहा पूर्व सीएम धूमल की हार के बाद भाजपा में हुए धू्रवीकरण का लाभ विनोद ठाकुर को मिला है। विनोद ठाकुर से पहले धूमल के खास राजेंद्र राणा और उर्मिल ठाकुर भी भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं। खास बात यह है कि ये तीनों ही नेता धूमल के खासमखास रहे हैं।
विनोद ठाकुर मई, 2017 में अपने 33 समर्थकों सहित कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए थे। उस वक्त मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह गांधी चैक पर जनसभा कर रहे थे। विनोद ठाकुर ने कांग्रेस में शामिल होते हुए पूर्व सीएम धूमल पर सीधे हमला करते हुए कहा था कि धूमल परिवार ने हमीरपुर में किसी भी भाजपा नेता को आगे बढ़ने नहीं दिया। उन्होंने धूमल पर हमला करते हुए यहाँ तक कह दिया था कि 1995 में भाजपा से जब जिला परिषद का टिकट मांगा तो नहीं दिया गया। आजाद प्रत्याशी के तौर पर जिला परिषद का चुनाव जीता। भाजपा में 22 वर्ष संगठन का कार्य किया लेकिन जिस तरह से उनका उत्पीड़न धूमल व परिवार ने किया उससे तंग होकर कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए। विनोद ठाकुर ने आरोप लगाया था कि धूमल के हाथ में एक प्राइवेट लिमिटेड पार्टी बन गई है।
विनोद ठाकुर संघ से जुड़े एक कर्मठ भाजपाई रहे हैं । बडसर उपमंडल में संघ के कई बड़े कार्यक्रमों का संचालन वह अपने बलबूते करवाते रहे । भाजपा के कई बड़े कार्यक्रमों में वह बखूबी मंच संचालन करते रहे। विधानसभा चुनाव से पूर्व एक मास्टरस्ट्रोक खेलते हुए वर्तमान विधायक राजेंद्र राणा ने विनोद ठाकुर को वीरभद्र सिंह की मौजूदगी में कांग्रेस में शामिल करवा दिया था । इस बीच विनोद ठाकुर को हमीरपुर सदर से कांग्रेस टिकट देने के भी प्रयास हुए लेकिन बाद में कांग्रेस हाई कमान ने टिकट कुलदीप सिंह पठानिया को दे दिया। इसके बाद विनोद ठाकुर सुजानपुर विधानसभा क्षेत्र में सक्रीय हो गये जहाँ पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल व राजेंद्र राणा के बीच काँटे की टक्कर चली हुई थी। धूमल के सुजानपुर सीट 1919 वोटों से हारते ही भाजपा में नया ध्रुव तैयार हुआ। अब आगामी लोकसभा चुनाव से पहले पूर्व भाजपाइयों की घर वापसी सांसद अनुराग ठाकुर को कितनी मजबूती प्रदान करती है, इस पर सबकी नजर रहेगी।
धूमल पर जिस तरीके के हमले कर विनोद ठाकुर कांग्रेस में शामिल हुए थे, धूमल की हाँ के बिना उनकी घर वापसी मुश्किल लग रही थी। चर्चा है कि भाजपा में शामिल होने के लिए विनोद ठाकुर चार से अधिक बार प्रेम कुमार धूमल से अकेले में मिले और पिछले गिले शिकवे मिटाकर फिर से भाजपा में शामिल होने का रास्ता क्लीयर किया। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती की मौजूदगी में विनोद ठाकुर आखिर भाजपा में लौट आए ।

लोस चुनावों में आसान नही होगी राठौर की राह वीरभद्र के तेवरों से उभरे संकेत

शिमला/शैल। क्या कांग्रेस के नव नियुक्त अध्यक्ष कुलदीप राठौर पार्टी को लोकसभा चुनावों में पूरी एकजुटता के साथ उतार पायेंगे? क्या कांग्रेस इन चुनावों में 2014 के मुकाबले अपना प्रदर्शन सुधार पायेगी? यह सवाल कांग्रेस के भीतर एक बार फिर उभरते नजर आ रहे हैं क्योंकि वीरभद्र सिंह ने अब प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वीरभद्र सिंह ने मनजीत ठाकुर के अध्यक्ष होने पर यह कहकर सवाल उठाया है कि उसने विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम किया है जिसके कारण वहां हार मिली। युवा कांग्रेस के अध्यक्ष को पद संभाले काफी अरसा हो गया है और विधानसभा चुनाव भी 2017 में हुए थे। ऐसे में आज वीरभद्र सिंह द्वारा यह मुद्दा सार्वजनिक तौर पर उस समय उठाया जाना जब पार्टी के नये अध्यक्ष राठौर ने भी संगठन के भीतरी मामलों को ऐसे न उठाने के निर्देश जारी किये हुए हैं। इस परिपेक्ष में राजनीतिक विश्लेष्कों के लिये कांग्रेस के भीतर उभरती यह स्थिति एक रोचक विषय बन जाती है।
वीरभद्र का यह एतराज उस समय सामने आया है जब युवा कांग्रेस ने अभिषेक राणा के खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई करते हुए उनसे युवा कांग्रेस की जिम्मेदारीयां छीन ली हैं। अभिषेक राणा सुजानपुर के विधायक राजेन्द्र राणा के बेटे हैं और वीरभद्र सिंह अभिषेक राणा को हमीरपुर से लोकसभा के लिये भावी प्रत्याशी घोषित कर चुके हैं। जब अभिषेक ने लोस टिकट के लिये आवदेन किया था तब वह इसके लिये वीरभद्र सिंह का आर्शीवाद लेने विशेष रूप से गये थे। ऐसे में जिस व्यक्ति के खिलाफ उसका संगठन एक ओर अनुशासन की कारवाई कर रहा हो और दूसरी ओर पार्टी का वरिष्ठतम नेता छः बार मुख्यमन्त्री रह चुका व्यक्ति ऐसे व्यक्ति की उम्मीदवारी का सार्वजनिक ऐलान करे तो निश्चित रूप से यह सोचना ही पड़ेगा कि क्या यही पार्टी की एक जुटता और अनुशासन है। यहां यह उल्लेख करना भी संगत हो जाता है कि वीरभद्र सिंह के खिलाफ चण्डीगढ़ के ईडी कार्यालय मे मनीलाॅड्रिंग की शिकायत करने वाले भी राजेन्द्र राणा ही थे। बाद में राजेन्द्र राणा ने इस शिकायत को यह कहकर वापिस लिया था कि ‘‘किसी ने उनके नाम से यह शिकायत कर दी थी’’। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि राजेन्द्र राणा और वीरभद्र के सियासी रिश्तो की गहनता कुछ अलग ही है।
लेकिन इस समय पार्टी को लोकसभा चुनाव को सामना करना है। वीरभद्र एक लम्बे समय से सुक्खु को अध्यक्ष पद से हटाने की मांग कर रहे थे। इस मांग के समर्थन में जब आनन्द शर्मा ‘‘वीरभद्र सिंह, मुकेश अग्निहोत्री और आशा कुमारी जैसे सारे वरिष्ठ नेताओं ने इकट्ठे होकर प्रयास किया सुक्खु हट गये और राठौर को कमान संभाल दी गयी। राठौर के पदग्रहण करते समय जो कुछ घटा वह सबके सामने है। उस पर जांच बिठाई गयी थी जिसकी रिपोर्ट आ गयी है अब यह सामने आना है कि इस पर क्या कारवाई होती है। जबकि चर्चा यहां तक है कि जो लोग इस घटना की पृष्टभूमि मे थे उनमें से किसी को संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी तक भी मिल सकती है। राठौर ने यह तो कहा ही है कि जिन कार्यकर्ताओं के साथ पूर्व में न्याय नही हुआ है उनके साथ न्याय किया जायेगा और संगठन मे कुछ नये लोगों को जिम्मेदारीयां दी जायेंगी। तय है कि यह सबकुछ यदि लोस चुनावों से पहले होता है तो इसका संगठन पर प्रभाव बहुत ज्यादा सकारात्मक नही रहेगा।
इस समय लोकसभा चुनावों में संगठन की परीक्षा सीटें जीतने के रूप में होगी। यह सीटें जीतने के लिये पार्टीे को पूरी आक्रामकता के साथ चुनाव में आना होगा और आक्रमकता मुद्दों पर निर्भर करेगी। अबतक कांग्रेस की जो आक्रामकता उसके आरोप पत्र के माध्यम से सामने आ चुकी है उसके आधार पर चुनावी सफलता मिल पाना सम्भव नहीं होगा। फिर वीरभद्र तो जयराम सरकार को अभी और वक्त दिये जाने की बात कह चुके है। संभवतः वीरभद्र के इसी निर्देश के कारण कांग्रेस का आरोप पत्र बहुत कमजोर दस्तावेज के रूप में सामने आया है। ऐसे में क्या पार्टी हिमाचल में केवल राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर ही चुनाव में जायेगी? यदि ऐसा होता है तो अभी तक प्रदेश का कोई भी नेता ऐसा सामने नहीं आया है जिसने राष्ट्रीय मुद्दों पर पूरी गहनता और गम्भीरता से अध्ययन किया हो। इसी के साथ यह भी रहेगा कि अभी प्रदेश सरकार को चार साल सत्ता में रहना है और लोगों को इसी से अपने काम करवाने हैं। इस परिदृश्य में नये अध्यक्ष की चुनौतियां बहुत बढ़ जाती है क्योंकि इस समय वीरभद्र सिंह ने जिस तरह युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है उसका निश्चित रूप से युवा कार्यकर्ताओं पर असर पड़ेगा। इंटक में पहले से ही धढ़ेबन्दी खुलकर सामने आ चुकी है।
ऐसे में चुनावी सफलता के लिये उम्मीदवारों का चयन ही एक मात्र विकल्प रह जाता है। उसमें भी वीरभद्र हमीरपुर और कांगड़ा से अभिषेक राणा और सुधीर शर्मा की उम्मीदवारी का ऐलान कर चुके हैं। इनमें से सुधीर शर्मा ने तो टिकट के लिये आवेदन तक नही किया है। मण्डी से चुनाव लड़ने को लेकर वीरभद्र कई बार अपने ब्यान बदल चुके हैं। बल्कि सबसे पहले जब उन्होंने यह कहा था कि कोई भी मकरझण्डु चुनाव लड़ लेगा तो उसी से उनकी नीयत और नीति सामने आ गयी थी। इसी तरह जब हमीरपुर से सुक्खु की उम्मीदवारी को लेकर उनसे सवाल पूछा गया था तब उन्होने यहां तक कह दिया था कि वह नही समझते की हाईकमान में कोई इतना मूर्ख होगा। इस तरह यदि कांग्रेस के अन्दर अब तक जो कुछ घटा है और उसमें वीरभद्र सिंह की भूमिका किस तरह की रही है उसका निश्पक्ष आंकलन करने से यही सामने आता है कि यदि मण्डी से वीरभद्र स्वयं या उनके परिवार का कोई सदस्य चुनाव में आता है तभी पूरे चुनाव में कांग्रेस की गंभीरता और ईमानदारी झलकेगी अन्यथा नही। क्योंकि इस समय वीरभद्र परिवार राजनीति की जिस ऐज और स्टेज पर आ खड़ा है वहां से वह अब कोई चुनाव हारने के लिये नही लड़ेगा। यही स्थिति हमीरपुर मे मुकेश अग्निहोत्री की है। इस तरह यदि कांग्रेस इन दोनों को चुनाव लड़ने के लिये तैयार कर पाती है तोे प्रदेश का पूरा चुनावी परिदृश्य ही बदल जायेगा अन्यथा कांग्रेस को कोई सफलता मिलना आसान नही होगा। कुलदीप राठौर की राजनीतिक समझ की परीक्षा भी इसी से हो जायेगी अन्यथा बाद में सारा ठीकरा उनके सिर आसानी से फोड़ दिया जायेगा।

More Articles...

  1. पन्ना प्रमुखों के सम्मेलन में राहुल-प्रियंका पर अमित शाह की प्रतिक्रिया क्या सियासी घबराहट है
  2. अन्ततः कालरा काॅम्लैक्स का कटा बिजली,पानी और लगा 50 हजार का जुर्माना
  3. रचना गुप्ता के देवाशीष को नोटिस से उच्च न्यायालय में लंबित याचिका पर शीघ्र सुनवाई की संभावना बढ़ी
  4. भाजपा और सरकार के लिये घातक होगी राहूल-प्रियंका पर अभद्र टिप्पणी
  5. सर्वोच्च न्यायालय फैसले में आयी भाषा व्याकरण की गलती सुधारे-मोदी सरकार ने किया आग्रह
  6. आर एण्ड पी रूल्ज़ बदले बिना आऊटसोर्स पर नियुक्तियां कैसे
  7. गुजरात के बाद हिमाचल में सामने आया करोड़ों का जी एस टी घोटाला
  8. केन्द्र के आदेश के परिदृश्य में क्या चौधरी का चयन ट्रिब्यूनल के लिये हो पायेगा
  9. यदि एक को ज़मीन खरीद के बाद 118 की अनुमति मिल सकती है तो दूसरे को क्यों नहीं
  10. सर्वोच्च न्यायालय के 2011 के फैसले के परिदृश्य में रामदेव के योगपीठ को लीज देना सवालों में
  11. पत्र बमों के साये में जयराम सरकार- अब सीमेन्ट को लेकर वायरल हुआ पत्र
  12. क्या जयराम सरकार मीडिया पर नियन्त्रण का प्रयास कर रही है
  13. सर्वोच्च न्यायालय से मिली धूमल, अनुराग को बड़ी राहत
  14. SC में प्रशांत भूषण बोले- MAKE IN INDIA को ताक पर रख PM ने की राफेल डील
  15. सी बी आई के विशेष निदेशक अस्थाना के खिलाफ दर्ज हुई एफ आई आर
  16. डॉक्टरों की कॉलोनी पर लगा 3.2 करोड़ का जुर्माना प्रशासन की कार्यप्रणाली पर एक और सवाल
  17. सरकार की सेहत पर भारी पड़ेगा प्रस्तावित राष्ट्रीय राज मार्गो का विकास
  18. मोदी-शाह के खास अदानी प्रकरण की जांच छेड़कर जयराम की नीयत और नीति सवालों में
  19. एसजेवीएनएल बनाम राजेन्द्र सिंह मामले में आये फैसले की अनुपालना जय राम की होगी कड़ी परीक्षा
  20. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के परिदृश्य में बिन्दल मामले पर उभरे संदेह

Subcategories

  • लीगल
  • सोशल मूवमेंट
  • आपदा
  • पोलिटिकल

    The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.

  • शिक्षा

    We search the whole countryside for the best fruit growers.

    You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.  
    Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page.  That user will be able to edit his or her page.

    This illustrates the use of the Edit Own permission.

  • पर्यावरण

Facebook



  Search