Saturday, 20 December 2025
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क्या सरकार अदानी के 280 करोड़ लौटाने के लिये 700 करोड़ का कर्ज ले रही है

शिमला/शैल। जयराम सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिये वर्ष के पहले ही सप्ताह में 700 करोड़ का ऋण लेने जा रही है। सरकार को वर्ष के शुरू में ही कर्ज लेने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है यह सवाल राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का विषय बना हुआ है। क्योंकि इसी बीच में अदानी पावर लिमिटेड की एक याचिका प्रदेश उच्च न्यायालय ने के सामने आयी है। CWP No. 405 of 2019 पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने सरकार से यह पूछा है कि सरकार बताये की जंगी थोपन पवारी परियोजना को सरकार कैसे आवंटित कर रही है ताकि इस आवंटन के बाद अदानी का 280 करोड़ रूपया वापिस लौटाया जा सके जिसका पहले से ही वायदा कर रखा है। अदानी प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मादी का बहुत ही विश्वस्त उद्योग घराना है यह सब जानते हैं। इसलिये अदानी को 280 करोड़ वापिस न करने का स्टैण्ड जब वीरभद्र सरकार ही नही ले पायी थी तो जयराम सरकार ऐसा कैसे कर सकती है यह एक सामान्य समझ की बात है। बल्कि वीरभद्र शासन में ही इसके लिये पूरी ज़मीन तैयार कर दी गयी थी कि अदानी को यह पैसा उच्च न्यायालय के माध्मय से वापिस लेना आसान हो जाये। आज उसी पृष्ठभूमि का सहारा लेकर अदानी उच्च न्यायालय पहुंच गया है। माना जा रहा है कि यह पैसा वापिस करने के लिये ही कर्ज का जुगाड़ किया जा रहा है।
इस परिदृश्य में जंगी थोपन पवारी परियोजना के प्रकरण पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। स्मरणीय है कि हिमाचल सरकार ने वर्ष 2006 में छः हजार करोड़ के निवेश वाली जंगी-थोपन-पवारी हाईडल परियोजना के लिये निविदायें आमन्त्रित की थी। निविदायें आने के बाद यह परियोजना हालैण्ड की कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन को आंवटित कर दी गयी। आंवटन के बाद नियमों के अनुसार कंपनी को 280 करोड़ का अपफ्रन्ट प्रिमियम सरकार में जमा करवाना था। लेकिन यह कंपनी यह पैसा समय पर जमा नहीं करवा पायी और सरकार से किसी न किसी बहाने समय मांगती रही। जब ब्रेकल यह प्रिमियम अदा नहीं कर पायी तब इसी आंवटन की प्रक्रिया में दूसरे स्थान पर रही रिलांयस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने इस मामलें को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी। यह चुनौती दिये जाने के बाद सरकार में भी ब्रेकल के दस्तावेजों की जांच पड़ताल शुरू हो गयी और अपराधिक मामला दर्ज करने की नौबत आ गयी। ब्रेकल को सरकार ने यह आवंटन रद्द करने का नोटिस दे दिया। नोटिस मिलने के बाद ब्रेकल ने अदानी से 280 करोड़ लेकर सरकार में प्रिमियम जमा करवा दिया और सरकार ने इसे ले भी लिया। इससे रिलांयस की याचिका निरस्त हो गयी। सरकार ब्रेकल को नोटिस दे चुकी थी विजिलैन्स ने आपराधिक मामला दर्ज किये जाने की संस्तुती सरकार को भेज रखी थी। इस पर सरकार ने पूरा मामला सचिव कमेटी को फिर से जांच के लिये भेज दिया। सचिव कमेटी ने ब्रेकल को तलब किया और ब्रेकल के साथ ही अदानी के अधिकारी भी कमेटी में पेश हो गये जबकि उनके आने का कोई कानूनीे आधार नही था। लेकिन सचिव कमेटी ने उनकीे उपस्थिति पर कोई एतराज नही जताया और यह परियोजना फिर ब्रेकल को ही देने का फैसला कर दिया।
रिलांयस ने इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौतीे दे दी। रिलांयस के साथ ही ब्रेकल भी अपना पक्ष लेकर सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया। इन्ही के साथ ही अदानी ने भी सर्वोच्च न्यायालय में यह पक्ष रख दिया कि 280 करोड़ निवेश उसने किया है इस पर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी हो गया। इस नोटिस पर सरकार ने सर्वोच्च न्यायलय में अपना जवाब दायर करते हुए अदालत के सामने यह रखा कि इस परियोजना में हुई देरी से सरकार को 2775 करोड़ का नुकसान हुआ है। इसकेे लिये ब्रेकल को इस नुकसान की भरपायी करने तथा अपफ्रन्ट प्रिमियम के नाम पर आये उसके 280 करोड़ जब्त करने का नोटिस जारी कर दिया गया है। सरकार का यह स्टैण्ड अदालत में आने के बाद ब्रेकल ने अपनी याचिका वापिस ले ली। ब्रेकल के याचिका वापिस लेने के साथ ही अदानी की याचिका भी निरस्त हो गयी। लेकिन यह होने के बावजूद आज तक सरकार ने 2775 करोड़ वसूलने के लिये कोई कदम नही उठाये हैं यहां तक कि प्रिमियम के आये 280 करोड़ भी अब तक जब्त नही किये गये हंै।
बल्कि इसमें सबसे दिलचस्प तो यह घटा कि ब्रेकल और अदानी के सर्वोच्च न्यायालय से बाहर आते ही रिलांयस और सरकार में कुछ घटा तथा यह परियोजना फिर से रिलांयस को देने का फैसला कर दिया गया। रिलांयस को इस आश्य का पत्र भी चला गया। रिलांयस ने इस पत्र को स्वीकार करवाने में सहयोग करने का आग्रह कर दिया। रिलांयस को यह सब हासिल करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय से अपनी याचिका वापिस लेनी थी। इसका सरकार के साथ मिलकर सयंुक्त आग्रह अदालत में जाना था। इसके लिये सरकार पहले तैयार हो गयी लेकिन बाद में मुकर गयी। दूसरी ओर जब अदानी सर्वोच्च न्यायालय से बाहर आया तो उसने अपने 280 करोड़ वापिस किये जाने के लिये सरकार को पत्र लिखा। इस पत्र का असर यह हुआ कि जब रिलायंस को यह प्रौजेक्ट देने का फैसला लिया गया तब यह मान लिया गया कि रिलांयस से प्रिमियम आने के बाद अदानी के 280 करोड़ वापिस कर दिये जायेंगे। अब रिलांयस भी पीछे हटने के बाद अतिरिक्त मुख्य सचिव पावर ने निदेशक एनर्जी को पत्र लिखकर यह राय मांगी है कि क्या इस परियोजना को फिर से ब्रेकल को दिया जा सकता है या इसकी फिर से बोली लगायी जाये या राज्य सरकार/केन्द्र सरकार के किसी उपक्रम को दे दिया जाये। अब यह परियोजना एसजेवीएनएल को दे दी गयी है।
एसजेवीएनएल एक सरकारी उपक्रम है और उसमें अपफ्रंट प्रिमियम देने का कोई प्रावधान ही नहीं है। ऐसे में इस उपक्रम से अपफ्रन्ट प्रीमियम लेकर अदानी को यह पैसा वापिस करना संभव नही है लेकिन वीरभद्र सरकार में यह पैसा वापिस करने का फैसला मन्त्रीमण्डल ने 2015 में ही ले लिया था। इसी बैठक में यह परियोजना रिलाॅंयंस को देने का भी फैसला लिया गया था और यह कहा गया था कि रिलांयस से पैसा आने पर अदानी को वापिस दे दिया जायेगा। लेकिन रिलांयस ने 2016 में यह परियोजना लेने से ही इन्कार कर दिया। परन्तु इसके बावजूद वीरभद्र सरकार ने 26 अक्तूबर 2017 को अदानी पावर का पत्र लिखकर यह सूचित कर दिया कि 4 सितम्बर 2015 को अपफ्रन्ट प्रिमियम मनी लौटाने का जो फैसला लिया गया था उसे लागू करने का फैसला लिया गया है। सरकार की ओर से यह सूचना अदानी को तत्कालीन विशेष सचिव ऊर्जा अजय शर्मा की ओर से दी गयी थी। अदानी ने 27 अक्तूबर 2017 का सरकार का पत्र लिखकर इस फैसल के लिये आभार जताया था। इसमें अदानी ने यह भी कहा था कि इस वापसी को रिलांयस के साथ लिंक करने का कोई औचित्य नही बनता है। इस तरह सरकार ने जब यह मान लिया कि अदानी को यह पैसा वापिस दिया जाना बनता है तो उसी को आधार बनाकर अब अदानी ने उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है। इसमें 26 अप्रैल को अगली सुनवायी होनी है। माना जा रहा है कि सरकार अगली पेशी से पहले यह पैसा देने का प्रबन्ध कर रही है। जयराम इस विषय पर मूक दर्शक बने हुए हैं क्योंकि जिन अधिकारियों ने वीरभद्र सरकार में यह फैसला लेने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी वही लोग आज भी इसकी पेरवी कर रहे हैं। इन लोगों के लिये इससे कोई फर्क नही पड़ता है कि इस मामले में अब तक प्रदेश को करीब तीन हजार करोड़ का नुकसान पहुंच चुका है।

वीरभद्र-सुखराम के मिलन से बदले प्रदेश के सारे राजनीतिक समीकरण

प्रचार के दौरान एक मंच पर दिखेंगे दोनों नेता

पंडित सुखराम और उनके पौत्र आश्रय शर्मा कांग्रेस में शामिल हो गये हैं बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि उनकी कांग्रेस में घर वापसी हो गयी है क्योंकि एक लम्बे समय तक यह परिवार कांग्रेस का हिस्सा रहा है। पंडित सुखराम प्रदेश से लेकर केन्द्र तक कांग्रेस में मन्त्री रहे हैं। बतौर दूर संचार मन्त्री जो कुछ उन्होंने प्रदेश को दिया है वैसा योगदान प्रदेश के लिये बतौर केन्द्रिय मन्त्री विक्रम महाजन, शान्ता कुमार और वीरभद्र सिंह का नहीं रहा है। सुखराम के इसी योगदान का परिणाम है कि उनका बेटा अनिल शर्मा प्रदेश में कांग्रेस में भी मन्त्री रहा और आज भाजपा में भी मंत्री है। सुखराम के इसी योगदान के कारण आज कांग्रेस में उनकी घर वापसी भी हो गयी और उनके पौत्र को पार्टी ने मण्डी से लोस प्रत्याशी भी बना दिया है। अब इस वापसी के बाद यह आकलन शुरू हो गया है कि इन चुनावों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।
पंडित सुखराम की कांग्रेस में वापसी के प्रभाव का आकलन करने के लिये यह समझना आवश्यक होगा कि इस समय प्रदेश की राजनीतिक स्थिति क्या है और उसमें कांग्रेस और भाजपा कहां खड़े हैं। इस समय प्रदेश की सत्ता भाजपा के पास है और कांग्रेस विपक्ष में हैं कांग्रेस में सबसे बड़ा कद पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह का है क्योंकि वह छः बार प्रदेश के मुख्यमन्त्री रह चुके हैं। मुख्यमन्त्री होने के लिये कांग्रेस मे उनके सबसे बड़े प्रतिद्वन्दी पंड़ित सुखराम ही रहे हैं। सुखराम और वीरभद्र में यह टकराव किस हद तक पहुंच गया था इसका गवाह वह सब लोग रहे हैं जिन्होंने 1993 में वीरभद्र समर्थकों द्वारा किया गया विधानसभा भवन का घेराव देखा है। इसी घेराव का परिणाम था कि सुखराम अपने समर्थकों के साथ चण्डीगढ़ बैठे रहे और शिमला में अकेले वीरभद्र की बतौर मुख्यमन्त्री शपथ हो गयी थी। 1993 के इस टकराव का पूरा प्रतिफल सुखराम के खिलाफ खड़े हुए दूर संचार घोटाले और मण्डी में उनके आवास पर सीबीआई छापे में मिले चार करोड़ के रूप में सामने आया। क्योंकि सुखराम ने इस सबको वीरभद्र सिंह और स्व. राजेश पायलट तथा सीताराम केसरी का रचा षडयंत्र करार दिया था। इसी परिदृश्य में सुखराम कांग्रेस से 1997 में बाहर निकले और हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन करके 1998 में वीरभद्र सिंह और कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया। इसके बाद सुखराम फिर कांग्रेस में शामिल हुए और 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले फिर बाहर हुए और वीरभद्र की सत्ता में वापसी फिर रोक दी। भाजपा में शामिल हुए मण्डी की सभी दस सीटों पर कांग्रेस को हार मिली तथा भाजपा को मण्डी से जयराम के रूप में मुख्यमन्त्री मिला। पंड़ित सुखराम को दूर संचार घोटाले में सजा मिल चुकी है और इसी सज़ा के कारण वह चुनावी राजनीति से बाहर हो गये हैं। लेकिन इसी घोटाले के साये में होते हुए भाजपा दो बार 1998 और 2017 में उनके कारण सत्ता भोग चुकी है। इसलिये भ्रष्टाचार के नाम पर आज भाजपा के पास सुखराम परिवार को कोसने का कोई अधिकार नही बचता है।
इसी के साथ कांग्रेस में जो टकराव एक समय वीरभद्र और सुखराम में था वह आज भूतकाल की बात होने जा रहा है। क्योंकि जहां सुखराम अपने केस के कारण चुनाव राजनीति से बाहर हो गये हैं वही स्थिति कानून के जानकारों के मुताबिक निकट भविष्य में वीरभद्र की होने वाली है। सुखराम का बेटा अनिल आज तीसरी बार मन्त्री बना हुआ है। पौत्र आश्रय को कांग्रेस से लोस टिकट मिल चुका है। इस नाते सुखराम का परिवार प्रदेश की राजनीति में वीरभद्र परिवार के मुकाबले ज्यादा स्थापित है। फिर मण्डी की कांग्रेस की राजनीति में सुखराम परिवार को चुनौती देने वाला कोई बड़ा नाम शेष नही है। क्योंकि कौल सिंह अगला चुनाव न लड़ने की बात कह ही चुके हैं और उनकी बेटी भी हार गयी थी। इस तरह मण्डी मे पूरी फील्ड इस परिवार के लिये खाली है और इस भविष्य के लिये अनिल को मन्त्री पद दाव पर लगाना कोई बड़ी कीमत नही है। जबकि वीरभद्र का बेटा पहली बार विधायक बना है। उनकी पत्नी राजनीति में स्थापित नहीं हो पायी है। बेटा शिमला ग्रामीण से विधायक बना है क्योंकि रामपुर और रोहडू दोनों ही आरक्षित क्षेत्र हैं। ऐसे में विक्रमादित्य को राजनीति में स्थापित होने के लिये यहीं पर अपनी ज़मीन पुख्ता करनी होगी। इसके लिये आज वीरभद्र और विक्रमादित्य को सबको साथ लेकर चलना उनकी राजनीतिक अनिवार्यता हो जाती है। इस वस्तुस्थिति में आज वीरभद्र के लिये यह आवश्यक हो जाता है कि वह पूरी ईमानदारी से सुखराम और आश्रय का सहयोग करें। इस सहयोग के लिये उन्हे रामपुर और किन्नौर से ही इतनी बढ़त सुनिश्चित करनी पड़ेगी कि अकेले उसी के दम पर आश्रय की जीत का श्रेय उन्हें मिले। क्योंकि हर बार जब भी प्रदेश में कांग्रेस हारी है उसके लिये कांग्रेसी सबसे पहला आरोप वीरभद्र सिंह पर ही लगाते आये हैं। इस आरोप को खारिज करने और बेटे के लिये भविष्य में सहयोग सुनिश्चित करने के लिये आज वीरभद्र सिंह के पास कोई विकल्प शेष नहीं रह जाता है। क्योंकि यह आज हर आदमी मान रहा है कि यदि सुखराम और वीरभद्र सिंह इकट्ठे होकर एक साथ एक बार भी पूरे प्रदेश में घूम आये तो 2014 की हार का पूरा बदला ले सकते हैं।

क्या प्राईवेट स्कूलों की लूट को सरकार का समर्थन हासिल है

शिमला/शैल। प्रदेश के प्राईवेट स्कूल बच्चों और अभिभावकों के उत्पीड़न का केन्द्र बनते जा रहे हैं यह कड़वा सच इन स्कूलों द्वारा बढ़ाई जा रही फीसों से सामने आ चुका है। फीसों के साथ ही स्कूल की वर्दी, जूते और किताबें आदि भी इन स्कूलों द्वारा चिन्हित दुकानों से ही लेना अनिवार्य कर दिया गया है। स्कूलों की इस मनमानी के खिलाफ कई बार अभिभावक रोष प्रकट कर चुके हैं। इन दिनों छात्र- अभिभावक मंच इस मुद्दे पर आन्दोलन पर उत्तर आया है। शिक्षा निदेशालय पर धरना प्रदर्शन हो चुका है। यह आन्दोलन जारी है और इसी आन्दोलन के प्रभाव स्वरूप शिक्षा निदेशालय ने 19 मार्च को एक कार्यालय निर्देश जारी किया है। इस निर्देश में कहा गया है कि प्रदेश में निजि शिक्षण संस्थान (विनियम) अधिनियम 1997 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 लागू है। प्रत्येक स्कूल को इनकी अनुपालना सुनिश्चित करने के निर्देश दिये गये हैं। चार बिन्दुओं पर अनुपालना के निर्देश जारी हुए हैं।
यह निर्देश 18 मार्च को जारी किये गये हैं विनियमन अधिनियम 1997 में बन गया था लेकिन इस अधिनियम के तहत संचालन के नियम छः वर्ष बाद 2003 में बने। इन नियमों के तहत स्कूलों को निर्देश अब 2019 में जारी हो रहे हैं। इसी से सरकार की ईमानदारी और गंभीरता का पहला परिचय मिल जाता है। स्मरणीय है कि प्रदेश उच्च न्यायालय में 2014 में दो याचिकाएं दायर हुई थी इन पर 27 अप्रैल 2016 को फैसला आया है। इस फैसले में कहा गया है कि

a It is shocking that the private institutions have been raising their assets after illegally collecting funds like building fund, development fund, infrastructure fund etc. It is high time these practices are stopped forthwith and there is a crack down on all these institutions. Every education institution is accountable and no one, therefore, is above the law. It is not to suggest that the private education institutions are not entitled to their due share of autonomy as well as profit, but then it is out of this profit that the private education institutions, including schools are required to create their own assets and other infrastructure. They cannot under the garb of building fund etc. illegally generate funds for their “business expansion” and create “business empires”.
a That apart, it is the responsibility of the institution imparting education to set up proper infrastructure for the students and, therefore, the fee charged towards building fund is both unfair as well as unethical.
a In these given circumstances, the Chief Secretary to Government
of Himachal Pradesh is directed to constitute a committee which shall carry out inspection of all the private education institutions at all levels i.e. schools, colleges, coaching centres, extension centres, (called by whatever name), universities etc. throughout the State of Himachal Pradesh and submit report regarding compliance of the H.P. Private Educational Institutions (Regulation) Act, 1997 within three months. Special emphasis and care shall be taken to indicate in the report as to whether the private institutions have the requisite infrastructure, parents teacher associations, qualified staff, whether these institutions are maintaining the accounts in terms of Rule 6 and are regularly submitting all the information in the forms prescribed under the Rules and are further charging the ‘fee’ as approved by the Govt.
The Committee shall further report regarding violations being carried out by the educational institutions with respect to the guidelines issued by the UGC from time to time as have otherwise been taken note of in this judgment and shall be free to report violation of any Act, Rule, statutory provisions, guidelines etc., irrespective of the fact that the same have been issued by the Central or the State Governments.
a In the meanwhile, the respondent-State is directed to ensure that no private education institution is allowed to charge fee towards building fund, infrastructure fund, development fund etc.
a In addition to this, the Principal Secretary (Education) is directed to issue mandatory orders to all educational institutions, whether private or government owned, to display the following detailed information on the notice board which shall be placed at the entrance of the campus and on their websites:-
i) Faculty and staff alongwith their qualifications and job experience (profile).
ii) Details of Infrastructure.
iii) Affiliation alongwith certificate (s) of affiliation.
iv) Details of Internship andplacement.
v) Fees with complete breakup and details.
vi) Extra curricular activities with complete details.
vii) PTA-with address and telephone numbers of its members.
viii) Transport facilities with details.
ix) Age of the institute and its achievements (if any).
x) Availability of scholarships with complete details.
xi) List of alumni (s) alongwith complete addresses and telephone numbers.
The aforesaid information shall also be displayed on the website of all private educational institutions and in case any educational institution is currently not having its own website, the same shall be created within one month and immediately thereafter the aforesaid information would be displayed on the website.

इस फैसले के परिदृश्य में यह सवाल उठता है कि सरकार ने इस फैसले को गंभीरता से क्यों नहीं लिया? क्योंकि स्कूलों की यह लूट यथावत जारी है। प्राईमरी के बच्चों तक से छःछः हज़ार वसूले जा रहे हैं और इसमें सरकार के इन निर्देशों के बाद इन फीसों के जो हैड स्लिप में पहले दर्शाये जाते थे उन्हें हटा दिया गया है। सारा पैसा इकट्ठा बिना हैड दिखाये लिया जा रहा है। उच्च न्यायालय ने प्रदेश के मुख्यसचिव और शिक्षा सचिव को निर्देश दिये थे और रिपोर्ट मांगी थी जो आज तक नहीं बनी है। क्योंकि सरकार के अपने स्कूलों की स्थिति भी ठीक नहीं है। सरकार के दावे के मुताबिक प्रदेश 3391 स्कूलों में नर्सरी और केजी की कक्षायें शुरू कर दी गयी हैं और इनमें 23800 बच्चों ने दाखिला भी ले लिया है। विधानसभा में आये एक प्रश्न के उत्तर में सरकार ने माना है कि इन कक्षाओं के लिये अलग से अध्यापकों के कोई पद सृजित नहीं किये गये हैं। इस दौरान केवल 578 टीजीटी 123 भाषा अध्यापक, 79 कला अध्यापक, 234 शास्त्री नियुक्त किये गये हैं। इससे अन्दाजा लगाया जा सकता जा सकता है कि इन 3391 स्कूलों की स्थिति क्या होगी। इसी तरह योग शिक्षकों की स्थिति है। योग शिक्षा शुरू कर दी गयी है और अध्यापक हैं नही। जब सरकारी स्कूलों की स्थिति यह होगी तो विवश होकर लोगों को प्राईवेट स्कूलों का रूख करना पड़ेगा। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इन स्कूलों की लूट को अपरोक्ष में सरकार का समर्थन भी हासिल है।

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