शिमला/शैल। पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया में भाजपा के वरिष्ठ नेता डा. मुरली मनोहर जोशी के नाम से लाल कृष्ण आडवाणी को लिखा एक पत्र चर्चा मे आया है। यह पत्र ए..एन.आई के माध्यम से वायरल हुआ कहा जा रहा है क्योंकि पत्र के ऊपर एएनआई लिखा गया है। पत्र पर 12 अप्रैल की तारीख दर्ज है। इस पत्र के वायरल होने के दो तीन दिन बाद सोशल मीडिया में ही एएनआई और डाॅ. जोशी के नाम से कहा गया है कि यह पत्र फेक है। लेकिन इस पत्र को लेकर सोशल मीडिया के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज करवाई गयी हो ऐसा अभी तक सामने नही आया है न ही इस संबंध में डाॅ. जोशी की ओर से प्रिन्ट मीडिया या न्यूज चैनलज़ पर कोई खण्डन आया है। जबकि यह पत्र यदि सच में ही सही है तो यह एक बहुत गंभीर मुद्दा है।
इस पत्र की गंभीरता आज के राजनीतिक वातावरण में और भी बढ़ जाती है। क्योंकि भाजपा के ही पूर्व मन्त्राी अरूण शोरी, यशवन्त सिन्हां एक अरसे से रफाल सौदे के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी रिव्यू याचिका स्वीकार कर ली है। भाजपा के ही पूर्व मन्त्री शत्रुघ्न सिन्हा एक अरसे से विपक्ष की सभाओं में शिरकत करते रहे हैं और अब कांग्रेस में शामिल हो गये हैं। लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और शान्ता कुमार जैसे वरिष्ठ नेताओं को आज भाजपा ने पुनः चुनाव में नही उतारा है। 2014 में जब भाजपा ने लोकसभा चुनावों के लिये घोषणा पत्र जारी किया था उसमें आडवाणी और जोशी की मुख्य भूमिका थी। इनके चित्र उस घोषणा पत्र पर दर्ज थे। लेकिन आज जब 2019 का घोषणापत्र जारी हुआ है उसमें आडवाणी और जोशी कहीं नही है। बल्कि घोषणा पत्र जारी करने के समारोह में शामिल नही थे। भाजपा की मुख्य धारा से जिस तरीके से इन लोगों को बाहर किया गया है उसका देश की जनता में कोई अच्छा संकेत और सन्देश नही गया है। आडवाणी ने इस सबको कैसे लिया है यह पार्टी के स्थापना दिवस पर आये उनके ब्लाॅग से देश के सामने आ गया है। आज पार्टी के अन्दर और बाहर चल रही मोदी शाह भक्ति पर अपरोक्ष में आडवाणी ने जो कुछ कहा है वह अपने मे सबके लिये आईना है।
हिमाचल के लोग जानते है कि शान्ता कुमार इस बार का लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। इसके लिये उन्होंने अपने तरीके से प्रचार अभियान भी छेड़ दिया था। लेकिन जब पार्टी ने उनको टिकट से बाहर कर दिया तब उनकी पीड़ा प्रदेश के सामने आ ही गयी। बल्कि अब तब सोनिया गांधी ने मोदी को वाजपेयी काल के 2004 के शाईनिंग इण्डिया की याद दिलाई तब शान्ता ने जिस ढंग से सोनिया की राय का समर्थन किया है उसके बाद शान्ता जैसे बड़े नेता को और कोई संकेत/संदेश देना शेष नही रह जाता है। क्योंकि राफेल सौदे के बाद फ्रांस सरकार ने जिस तरह से अंबानी को 1155 करोड़ की टैक्स राहत दी है उससे बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है। यही नही आज आरटीआई के तहत आरबीआई से मिली जानकारी में यह सामने आ गया है कि 2014 से 2018 तक मोदी सरकार के कार्यकाल मे 5,55,603 के ऋण राईट आफ कर दिये गये हैं। यह ऋण किन बड़े लोगों के रहे होंगे इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है।
ऐसे में जिस पार्टी और सरकार के सामने ऐसे गंभीर सवाल जवाब मांगते खड़े होंगे उसकी अन्दर की हालत का अनुमान लगाया जा सकता है फिर इस तरह के परिदृश्य में जब पार्टी के वरिष्ठ लोगों के साथ ऐसा व्यवहार होगा तो उनकी पीड़ा कहीं तो छलक कर बाहर आ ही जायेगी। फिर जब पार्टी का घोषणापत्र जारी करने के मौके पर यह वरिष्ठ नेता समारोह में शामिल नही थे तब इनको लेकर मीडिया में सवाल उठने स्वभाविक थे और यह उठे भी। संभवतः इन्ही सवालों के बाद अमितशाह, आडवाणी और जोशी से मिलने गये थे। इस पृष्ठभूमि में बहुत संभव है कि डाॅ. जोशी की पीड़ा भी इस पत्र के रूप में छलक गयी हो। आज सोशल मीडिया पार्टीयों का बहुत बड़ा साधन बना हुआ है। बल्कि प्रिन्ट मीडिया की बजाये राजनीतिक दल सोशल मीडिया का ज्यादा सहारा ले रहे हैं। हजारों की संख्या में कार्यकर्ताओं को सोशल मीडिया में काम दिया हुआ है। यह सोशल मीडिया के सक्रिय कार्यकर्ता किस तरह की सूचनाएं आम लोगों तक इस माध्यम से पहुंचा रहे हैं। क्या कोई नेता या कार्यकर्ता इन सूचनाओं की जिम्मेदारी ले रहा है शायद नही। फिर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी तो डिजिटल इण्डिया के बहुत बड़े पक्षधर हैं उन्होने तो इसे विशेष प्रोत्साहन दिया है। वह इसे अपनी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि करार देते हैं। लेकिन क्या इस डिजिटल इण्डिया और सोशल मीडिया की कोई विश्वसनीयता बन पायी है। आज इसमें किसी का भी अकाऊंट हैक किया जा सकता है। बहुत संभव है कि डाॅ. जोशी का यह पत्र उसी हैकिंग का परिणाम हो। लेकिन इसमें यह सवाल जो जवाब मांगेगा ही कि जो न्यूज चैनल भाजपा नेताओं से ज्यादा भाजपा का प्रचार-प्रसार कर रहे थे वहां पर इस पत्र के फेक होने के समाचार क्यों नही आये। डाॅ. जोशी ने किसी अखबार या न्यूज चैनल से बात करके इसका खण्डन क्यों नही किया? भाजपा/जोशी की ओर से इसमें अब तक एफआईआर क्यों दर्ज नही करवाई गयी है। इस परिदृश्य में यह आवश्यक हो जाता है कि पाठक इस पत्र को पढ़कर स्वयं अपनी राय बनायें। डाॅ.जोशी का कथित पत्र
शिमला/शैल। जयराम सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिये वर्ष के पहले ही सप्ताह में 700 करोड़ का ऋण लेने जा रही है। सरकार को वर्ष के शुरू में ही कर्ज लेने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है यह सवाल राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का विषय बना हुआ है। क्योंकि इसी बीच में अदानी पावर लिमिटेड की एक याचिका प्रदेश उच्च न्यायालय ने के सामने आयी है। CWP No. 405 of 2019 पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने सरकार से यह पूछा है कि सरकार बताये की जंगी थोपन पवारी परियोजना को सरकार कैसे आवंटित कर रही है ताकि इस आवंटन के बाद अदानी का 280 करोड़ रूपया वापिस लौटाया जा सके जिसका पहले से ही वायदा कर रखा है। अदानी प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मादी का बहुत ही विश्वस्त उद्योग घराना है यह सब जानते हैं। इसलिये अदानी को 280 करोड़ वापिस न करने का स्टैण्ड जब वीरभद्र सरकार ही नही ले पायी थी तो जयराम सरकार ऐसा कैसे कर सकती है यह एक सामान्य समझ की बात है। बल्कि वीरभद्र शासन में ही इसके लिये पूरी ज़मीन तैयार कर दी गयी थी कि अदानी को यह पैसा उच्च न्यायालय के माध्मय से वापिस लेना आसान हो जाये। आज उसी पृष्ठभूमि का सहारा लेकर अदानी उच्च न्यायालय पहुंच गया है। माना जा रहा है कि यह पैसा वापिस करने के लिये ही कर्ज का जुगाड़ किया जा रहा है।
इस परिदृश्य में जंगी थोपन पवारी परियोजना के प्रकरण पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। स्मरणीय है कि हिमाचल सरकार ने वर्ष 2006 में छः हजार करोड़ के निवेश वाली जंगी-थोपन-पवारी हाईडल परियोजना के लिये निविदायें आमन्त्रित की थी। निविदायें आने के बाद यह परियोजना हालैण्ड की कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन को आंवटित कर दी गयी। आंवटन के बाद नियमों के अनुसार कंपनी को 280 करोड़ का अपफ्रन्ट प्रिमियम सरकार में जमा करवाना था। लेकिन यह कंपनी यह पैसा समय पर जमा नहीं करवा पायी और सरकार से किसी न किसी बहाने समय मांगती रही। जब ब्रेकल यह प्रिमियम अदा नहीं कर पायी तब इसी आंवटन की प्रक्रिया में दूसरे स्थान पर रही रिलांयस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने इस मामलें को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी। यह चुनौती दिये जाने के बाद सरकार में भी ब्रेकल के दस्तावेजों की जांच पड़ताल शुरू हो गयी और अपराधिक मामला दर्ज करने की नौबत आ गयी। ब्रेकल को सरकार ने यह आवंटन रद्द करने का नोटिस दे दिया। नोटिस मिलने के बाद ब्रेकल ने अदानी से 280 करोड़ लेकर सरकार में प्रिमियम जमा करवा दिया और सरकार ने इसे ले भी लिया। इससे रिलांयस की याचिका निरस्त हो गयी। सरकार ब्रेकल को नोटिस दे चुकी थी विजिलैन्स ने आपराधिक मामला दर्ज किये जाने की संस्तुती सरकार को भेज रखी थी। इस पर सरकार ने पूरा मामला सचिव कमेटी को फिर से जांच के लिये भेज दिया। सचिव कमेटी ने ब्रेकल को तलब किया और ब्रेकल के साथ ही अदानी के अधिकारी भी कमेटी में पेश हो गये जबकि उनके आने का कोई कानूनीे आधार नही था। लेकिन सचिव कमेटी ने उनकीे उपस्थिति पर कोई एतराज नही जताया और यह परियोजना फिर ब्रेकल को ही देने का फैसला कर दिया।
रिलांयस ने इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौतीे दे दी। रिलांयस के साथ ही ब्रेकल भी अपना पक्ष लेकर सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया। इन्ही के साथ ही अदानी ने भी सर्वोच्च न्यायालय में यह पक्ष रख दिया कि 280 करोड़ निवेश उसने किया है इस पर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी हो गया। इस नोटिस पर सरकार ने सर्वोच्च न्यायलय में अपना जवाब दायर करते हुए अदालत के सामने यह रखा कि इस परियोजना में हुई देरी से सरकार को 2775 करोड़ का नुकसान हुआ है। इसकेे लिये ब्रेकल को इस नुकसान की भरपायी करने तथा अपफ्रन्ट प्रिमियम के नाम पर आये उसके 280 करोड़ जब्त करने का नोटिस जारी कर दिया गया है। सरकार का यह स्टैण्ड अदालत में आने के बाद ब्रेकल ने अपनी याचिका वापिस ले ली। ब्रेकल के याचिका वापिस लेने के साथ ही अदानी की याचिका भी निरस्त हो गयी। लेकिन यह होने के बावजूद आज तक सरकार ने 2775 करोड़ वसूलने के लिये कोई कदम नही उठाये हैं यहां तक कि प्रिमियम के आये 280 करोड़ भी अब तक जब्त नही किये गये हंै।
बल्कि इसमें सबसे दिलचस्प तो यह घटा कि ब्रेकल और अदानी के सर्वोच्च न्यायालय से बाहर आते ही रिलांयस और सरकार में कुछ घटा तथा यह परियोजना फिर से रिलांयस को देने का फैसला कर दिया गया। रिलांयस को इस आश्य का पत्र भी चला गया। रिलांयस ने इस पत्र को स्वीकार करवाने में सहयोग करने का आग्रह कर दिया। रिलांयस को यह सब हासिल करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय से अपनी याचिका वापिस लेनी थी। इसका सरकार के साथ मिलकर सयंुक्त आग्रह अदालत में जाना था। इसके लिये सरकार पहले तैयार हो गयी लेकिन बाद में मुकर गयी। दूसरी ओर जब अदानी सर्वोच्च न्यायालय से बाहर आया तो उसने अपने 280 करोड़ वापिस किये जाने के लिये सरकार को पत्र लिखा। इस पत्र का असर यह हुआ कि जब रिलायंस को यह प्रौजेक्ट देने का फैसला लिया गया तब यह मान लिया गया कि रिलांयस से प्रिमियम आने के बाद अदानी के 280 करोड़ वापिस कर दिये जायेंगे। अब रिलांयस भी पीछे हटने के बाद अतिरिक्त मुख्य सचिव पावर ने निदेशक एनर्जी को पत्र लिखकर यह राय मांगी है कि क्या इस परियोजना को फिर से ब्रेकल को दिया जा सकता है या इसकी फिर से बोली लगायी जाये या राज्य सरकार/केन्द्र सरकार के किसी उपक्रम को दे दिया जाये। अब यह परियोजना एसजेवीएनएल को दे दी गयी है।
एसजेवीएनएल एक सरकारी उपक्रम है और उसमें अपफ्रंट प्रिमियम देने का कोई प्रावधान ही नहीं है। ऐसे में इस उपक्रम से अपफ्रन्ट प्रीमियम लेकर अदानी को यह पैसा वापिस करना संभव नही है लेकिन वीरभद्र सरकार में यह पैसा वापिस करने का फैसला मन्त्रीमण्डल ने 2015 में ही ले लिया था। इसी बैठक में यह परियोजना रिलाॅंयंस को देने का भी फैसला लिया गया था और यह कहा गया था कि रिलांयस से पैसा आने पर अदानी को वापिस दे दिया जायेगा। लेकिन रिलांयस ने 2016 में यह परियोजना लेने से ही इन्कार कर दिया। परन्तु इसके बावजूद वीरभद्र सरकार ने 26 अक्तूबर 2017 को अदानी पावर का पत्र लिखकर यह सूचित कर दिया कि 4 सितम्बर 2015 को अपफ्रन्ट प्रिमियम मनी लौटाने का जो फैसला लिया गया था उसे लागू करने का फैसला लिया गया है। सरकार की ओर से यह सूचना अदानी को तत्कालीन विशेष सचिव ऊर्जा अजय शर्मा की ओर से दी गयी थी। अदानी ने 27 अक्तूबर 2017 का सरकार का पत्र लिखकर इस फैसल के लिये आभार जताया था। इसमें अदानी ने यह भी कहा था कि इस वापसी को रिलांयस के साथ लिंक करने का कोई औचित्य नही बनता है। इस तरह सरकार ने जब यह मान लिया कि अदानी को यह पैसा वापिस दिया जाना बनता है तो उसी को आधार बनाकर अब अदानी ने उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है। इसमें 26 अप्रैल को अगली सुनवायी होनी है। माना जा रहा है कि सरकार अगली पेशी से पहले यह पैसा देने का प्रबन्ध कर रही है। जयराम इस विषय पर मूक दर्शक बने हुए हैं क्योंकि जिन अधिकारियों ने वीरभद्र सरकार में यह फैसला लेने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी वही लोग आज भी इसकी पेरवी कर रहे हैं। इन लोगों के लिये इससे कोई फर्क नही पड़ता है कि इस मामले में अब तक प्रदेश को करीब तीन हजार करोड़ का नुकसान पहुंच चुका है।
प्रचार के दौरान एक मंच पर दिखेंगे दोनों नेता
पंडित सुखराम और उनके पौत्र आश्रय शर्मा कांग्रेस में शामिल हो गये हैं बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि उनकी कांग्रेस में घर वापसी हो गयी है क्योंकि एक लम्बे समय तक यह परिवार कांग्रेस का हिस्सा रहा है। पंडित सुखराम प्रदेश से लेकर केन्द्र तक कांग्रेस में मन्त्री रहे हैं। बतौर दूर संचार मन्त्री जो कुछ उन्होंने प्रदेश को दिया है वैसा योगदान प्रदेश के लिये बतौर केन्द्रिय मन्त्री विक्रम महाजन, शान्ता कुमार और वीरभद्र सिंह का नहीं रहा है। सुखराम के इसी योगदान का परिणाम है कि उनका बेटा अनिल शर्मा प्रदेश में कांग्रेस में भी मन्त्री रहा और आज भाजपा में भी मंत्री है। सुखराम के इसी योगदान के कारण आज कांग्रेस में उनकी घर वापसी भी हो गयी और उनके पौत्र को पार्टी ने मण्डी से लोस प्रत्याशी भी बना दिया है। अब इस वापसी के बाद यह आकलन शुरू हो गया है कि इन चुनावों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।
पंडित सुखराम की कांग्रेस में वापसी के प्रभाव का आकलन करने के लिये यह समझना आवश्यक होगा कि इस समय प्रदेश की राजनीतिक स्थिति क्या है और उसमें कांग्रेस और भाजपा कहां खड़े हैं। इस समय प्रदेश की सत्ता भाजपा के पास है और कांग्रेस विपक्ष में हैं कांग्रेस में सबसे बड़ा कद पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह का है क्योंकि वह छः बार प्रदेश के मुख्यमन्त्री रह चुके हैं। मुख्यमन्त्री होने के लिये कांग्रेस मे उनके सबसे बड़े प्रतिद्वन्दी पंड़ित सुखराम ही रहे हैं। सुखराम और वीरभद्र में यह टकराव किस हद तक पहुंच गया था इसका गवाह वह सब लोग रहे हैं जिन्होंने 1993 में वीरभद्र समर्थकों द्वारा किया गया विधानसभा भवन का घेराव देखा है। इसी घेराव का परिणाम था कि सुखराम अपने समर्थकों के साथ चण्डीगढ़ बैठे रहे और शिमला में अकेले वीरभद्र की बतौर मुख्यमन्त्री शपथ हो गयी थी। 1993 के इस टकराव का पूरा प्रतिफल सुखराम के खिलाफ खड़े हुए दूर संचार घोटाले और मण्डी में उनके आवास पर सीबीआई छापे में मिले चार करोड़ के रूप में सामने आया। क्योंकि सुखराम ने इस सबको वीरभद्र सिंह और स्व. राजेश पायलट तथा सीताराम केसरी का रचा षडयंत्र करार दिया था। इसी परिदृश्य में सुखराम कांग्रेस से 1997 में बाहर निकले और हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन करके 1998 में वीरभद्र सिंह और कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया। इसके बाद सुखराम फिर कांग्रेस में शामिल हुए और 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले फिर बाहर हुए और वीरभद्र की सत्ता में वापसी फिर रोक दी। भाजपा में शामिल हुए मण्डी की सभी दस सीटों पर कांग्रेस को हार मिली तथा भाजपा को मण्डी से जयराम के रूप में मुख्यमन्त्री मिला। पंड़ित सुखराम को दूर संचार घोटाले में सजा मिल चुकी है और इसी सज़ा के कारण वह चुनावी राजनीति से बाहर हो गये हैं। लेकिन इसी घोटाले के साये में होते हुए भाजपा दो बार 1998 और 2017 में उनके कारण सत्ता भोग चुकी है। इसलिये भ्रष्टाचार के नाम पर आज भाजपा के पास सुखराम परिवार को कोसने का कोई अधिकार नही बचता है।
इसी के साथ कांग्रेस में जो टकराव एक समय वीरभद्र और सुखराम में था वह आज भूतकाल की बात होने जा रहा है। क्योंकि जहां सुखराम अपने केस के कारण चुनाव राजनीति से बाहर हो गये हैं वही स्थिति कानून के जानकारों के मुताबिक निकट भविष्य में वीरभद्र की होने वाली है। सुखराम का बेटा अनिल आज तीसरी बार मन्त्री बना हुआ है। पौत्र आश्रय को कांग्रेस से लोस टिकट मिल चुका है। इस नाते सुखराम का परिवार प्रदेश की राजनीति में वीरभद्र परिवार के मुकाबले ज्यादा स्थापित है। फिर मण्डी की कांग्रेस की राजनीति में सुखराम परिवार को चुनौती देने वाला कोई बड़ा नाम शेष नही है। क्योंकि कौल सिंह अगला चुनाव न लड़ने की बात कह ही चुके हैं और उनकी बेटी भी हार गयी थी। इस तरह मण्डी मे पूरी फील्ड इस परिवार के लिये खाली है और इस भविष्य के लिये अनिल को मन्त्री पद दाव पर लगाना कोई बड़ी कीमत नही है। जबकि वीरभद्र का बेटा पहली बार विधायक बना है। उनकी पत्नी राजनीति में स्थापित नहीं हो पायी है। बेटा शिमला ग्रामीण से विधायक बना है क्योंकि रामपुर और रोहडू दोनों ही आरक्षित क्षेत्र हैं। ऐसे में विक्रमादित्य को राजनीति में स्थापित होने के लिये यहीं पर अपनी ज़मीन पुख्ता करनी होगी। इसके लिये आज वीरभद्र और विक्रमादित्य को सबको साथ लेकर चलना उनकी राजनीतिक अनिवार्यता हो जाती है। इस वस्तुस्थिति में आज वीरभद्र के लिये यह आवश्यक हो जाता है कि वह पूरी ईमानदारी से सुखराम और आश्रय का सहयोग करें। इस सहयोग के लिये उन्हे रामपुर और किन्नौर से ही इतनी बढ़त सुनिश्चित करनी पड़ेगी कि अकेले उसी के दम पर आश्रय की जीत का श्रेय उन्हें मिले। क्योंकि हर बार जब भी प्रदेश में कांग्रेस हारी है उसके लिये कांग्रेसी सबसे पहला आरोप वीरभद्र सिंह पर ही लगाते आये हैं। इस आरोप को खारिज करने और बेटे के लिये भविष्य में सहयोग सुनिश्चित करने के लिये आज वीरभद्र सिंह के पास कोई विकल्प शेष नहीं रह जाता है। क्योंकि यह आज हर आदमी मान रहा है कि यदि सुखराम और वीरभद्र सिंह इकट्ठे होकर एक साथ एक बार भी पूरे प्रदेश में घूम आये तो 2014 की हार का पूरा बदला ले सकते हैं।
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