शिमला/शैल। जयराम सरकार ने कर्फ्यू में दो घण्टे की और ढील देने के साथ ही एक और बड़ा फैसला लिया है। इस फैसले के अनुसार अब शिमला के आई जी एम सी अस्पताल की बजाये शहर के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल को कोविड-19 अस्पताल जामजद किया है। इसके लिये यह तर्क दिया गया है कि आई जी एम सी के कोविड अस्पताल होने से वहां पर अन्य मरीजों के ईलाज में कठिनाई आ रही थी। क्योंकि आई जी एम सी में प्रदेश भर से मरीज रैफर होकर आते हैं। ऐसे में यह आवश्यक हो गया था कि दूसरे मरीजों के ईलाज के लिये तुरन्त प्रभाव से प्रबन्ध किया जाता।
लेकिन सरकार के इस फैसले में व्यवहारिक समझदारी से काम नही लिया गया। क्योंकि रिपन शिमला का जिला अस्पताल होने के साथ ही शहर के केन्द्र में स्थित है। सबसे बड़ी आनाज़ मण्डी के साथ यह लगता है। इसके कोविड नामजद हो जाने से इसका असर शहर के पूरे बाजार पर पडेगा। इसके आसपास रिहाईशी आवास भी बहुत है। यहां कोविड केंद्र होने से पूरे क्षेत्र पर बहुत ज्यादा असर पडेगा। इससे कर्फ्यू में मिली ढील का भी कोई अर्थ नही रह जायेगा। इसको लेकर पूरे शहर में रोष व्यापत है और लोग यहां के स्थानीय विधायक शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज तक अपना रोष पहुंचा चुके हैं।
शिमला में कोविड के उपचार की व्यवस्था होना भी आवश्यक है। इसके लिये बेरियर स्थित अस्पताल भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इसी के साथ इन्डस अस्पताल दूसरा विकल्प है। यह प्राईवेट अस्पताल शहर के ऐसे स्थान पर स्थित है जहां पर स्थानीय आबादी नही के बराबर है। फिर महामारी अधिनियम 2005 में यह प्रावधान मौजूद है कि सरकार संकट के समय किसी भी प्राईवेट संसाधन को अपने अधीन ले सकती है। यदि इसके लिये इन्डस को मुआवजा भी देना पडे तो दिया जा सकता है क्योंकि भारत सरकार से प्रदेश को करीब 140 करोड़ रूपया कोविड के लिये ही मिला है।
शिमला/शैल। इस समय पूरा देश कोरोना से लड़ रहा है इस लड़ाई में डाक्टर और अन्य स्वास्थ्य कर्मी ही सबसे बड़ा हथियार हैं। डाक्टरों की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि देश ने इस तालाबन्दी के दौरान तीसरी बार डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मी के प्रति अपनी कृतज्ञत्ता थाली बजाकर, मोमबत्ती जलाकर और अब सेना द्वारा फूल बरसाकर प्रकट की है। आज जिस तरह की गंभरी परिस्थितियां हैं उनमें स्वभाविक रूप से हर आदमी का ध्यान उसके आस पास के स्वास्थ्य संस्थानों और सेवाओं पर जायेगा ही और सरकार के किसी भी विभाग या सेवा की सही स्थिति का आकलन कैग रिपोर्ट से अनयत्र कहीं नही मिल सकता। इस परिप्रेक्ष में प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं की सही स्थिति कैग रिपोर्ट से ही सामने आ सकती है क्योंकि यह रिपोर्ट वाकायदा विधानसभा के पटल पर रखी जाती है। यह अलग बात है कि हमारे माननीयों और मीडिया भी इनकों पढ़ने और समझने का प्रयास नही करते हैं। शीर्ष अफरसशाही इन्हें अच्छी तरह जानती और समझती है क्योंकि इन रिपोर्टों के माध्यम से उन्ही की कार्यप्रणाली का खुलासा सामने आता है। यह रिपोर्ट हर वर्ष तैयार की जाती है।
हिमाचल प्रदेश की वर्ष 2017-18 की 31 मार्च तक के कामकाज की रिपोर्ट विधानसभा में पेश हो चुकी है। 2019-20 की रिपोर्ट अभी तक सदन में नही आयी है। वर्ष 2017-18 की रिपोर्ट में जो कुछ अच्छा बुरा सरकार का इस दौरान रहा है उसका जिक्र इसमें दर्ज है। इस रिपोर्ट में हुए खुलासों पर गंभीर कारवाई हो जानी चाहिये थी। जो लोग इसके लिये जिम्मेदार रहे हैं उनकी जवाबदेही बनती है लेकिन अभी तक ऐसा कुछ सामने नही आया है। इससे सरकार की गैर जिम्मेदारी माना जाये या भ्रष्टाचार को संरक्षण देना माना जाये इसका फैसला पाठक स्वयं कर सकते हैं। स्वास्थ्य विभाग में डाक्टरों और दूसरे स्वास्थ्य कर्मीयों के बाद दवाईयां और उपकरणों का आता है। दवाईयों और उपकरणों की खरीद के लिये वाकायदा पाॅलिसी बनी हुई है। अब तो रोगी कल्याण समितियों के माध्यम से भी बहुत सारे काम लिये जा रहे है। स्वास्थ्य विभाग में दवाईयों और उपकरणों की खरीद मार्च 2017 तक प्रदेश सिविल स्पलाईज़ कारपोरेशन के माध्यम से की जाती रही है। इसमें कुछ चीजें इलैक्ट्रानिक कारपोरेशन के माध्यम से भी खरीदी जाती रही हैं।
लेकिन मार्च 2017 में नयी खरीद पाॅलिसी बनाई गयी। इसमें यह कहा गया कि नवम्बर 2016 में जो एसपीसी गठित की गयी थी वह अब खरीद आर्डर सरकार द्वारा स्वीकृत सप्लायरों ने जो रेट कान्ट्रैक्ट पर हैं को ही दें। क्योंकि एसपीसी कार्यशील हो ही नही पायी थी। फिर अक्तूबर 2017 में निर्देश जारी करते हुए सीएमओज़ को ही खरीद के लिये अधिकृत कर दिया गया और यह कहा गया कि वह सीधे केन्द्र के सरकारी उपक्रमों और जनऔषधी केन्द्रों से खरीद कर लें। यदि उनमें उपलब्धता न हो तो स्थानीय स्तर पर भी खरीद कर सकते हैं। सरकार की जनवरी 2016 की अधिसूचना के तहत 66 आवश्यक ड्रग्स की सूची भी तैयार की गयी जो सरकार के हर अस्पताल में लोगों को मुफ्रत दी जानी है। सितम्बर 2017 में इसमें संशोधन करके 43 से 330 ड्रग्स को मुफ्रत देने का प्रावधान कर दिया। वर्ष 2015-16 से 2017 -18 के बीच 146.75 करोड़ के ड्रग्स और 67.87 करोड़ की मशीनरी और उपकरण खरीद किये गये।
इस खरीद और फिर अस्पतालों तक सप्लाई का जो खुलासा रिपोर्ट में सामने आया है वह चैंकाने वाला है। बहुत सारे अस्पतालों में बिना मांग के कहीं मांग से अधिक तो कहीं कम सप्लाई करने का खुलासा है। बहुत सारी मशीनरी और उपकरण बिना उपयोग पड़े हैं। रोगी कल्याण सीमित को वर्ष में 50,000 रूपये तक की खरीद की ही अनुमति है लेकिन इस सीमा का उल्लघंन किया गया है। सीएमओ मण्डी पर कमीशन के लिये लोकल स्तर पर खरीद का आरोप है। बहुत सारी प्रयोगशालाएं तकनिश्यिनों के बिना बन्द पड़ी हुई हैं क्योंकि 884 तकनिश्यिनों के पदों में से केवल 263 ही पद भरे हुए हैं।
Irregular purchase without tenders/ quotations
State Government guidelines for procurement by Rogi Kalyan Samitis (RKS) stipulate that goods valuing above ` 2,000/- cannot be procured without inviting quotations, and such total purchases shall not exceed ` 50,000/- in a year. Scrutiny of records of RKSs of RH Chamba, RH Kullu, and ZH Dharamsala showed that these hospitals had purchased non-generic drugs & consumables worth ` 5.27 crore from local HPSCSC outlets during 2015-18 without inviting quotations or observing codal formalities. In this context, it was observed that the discount allowed by the HPSCSC outlets on the maximum retail price (MRP) was only up to 10 per cent, while discounts between 40 and 83 per cent on MRP had been obtained by CMO, Mandi after inviting quotations from local suppliers during the same period.







शिमला/शैल। प्रदेश में 24 मार्च से कर्फ्यू चल रहा है। इसके पहले चरण में आवश्यक सेवाओं के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार की आर्थिक गतिविधियां बन्द थी। इसका दूसरा चरण 15 अप्रैल से शुरू हुआ और इसमें भी यह गतिविधियां पहले की तरह बन्द रही। दोनों चरणों में यह लागू रहा कि ‘‘ जो जहां है वह वहीं रहेगा।’’ दूसरे चरण में 20 अप्रैल को पूरी स्थिति का नये सिरे से आकलन करके इसमें कुछ गतिविधियों को शुरू करने अनुमति का प्रावधान कर दिया गया। इसके लिये केन्द्र से लेकर राज्य सरकार तक ने दिशा निर्देश जारी किये हैं। भारत सरकार द्वारा जारी निर्देशों में यह साफ कहा गया है कि राज्य केन्द्र के निर्देशों में कोई बदलाव नही कर सकते। बल्कि इन निर्देशों को अपनी आवश्यकता के अनुसार और कड़ा अवश्य कर सकते हैं। केरल सरकार ने जब अपने स्तर पर कुछ और गतिविधियों को शुरू करने की अनुमति दे दी थी तब केन्द्र सरकार ने इसका कड़ा संज्ञान लिया था और इस पर आपति जताई थी।
केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के जो भी दिशा निर्देश इस बारे में अब तक जारी हुए हैं उनमें एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर प्रतिबन्ध जारी है। प्रदेश में तो एक ज़िले से दूसरे ज़िले में जाने पर भी प्रतिबन्ध जारी है। इन निर्देशों की अवहेलना को अपराध का दर्जा दिया गया है। इसको लेकर हज़ारों आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं। लेकिन इन निर्देशों की अवहेलना के ऐसे भी मामले सामने आये हैं जिन पर कोई सख्त कारवाई नही हुई है। प्रदेश में मण्डी और कांगड़ा के सांसद धर्मशाला और जोगिन्द्र नगर पहुंच गये। इस पर सवाल भी उठे। बल्कि शान्ता कुमार तक ने यह कहा कि नियम-कानून सबके लिये एक बराबर होता है। परन्तु भाजपा ने इन सांसदों का खुलकर बचाव किया। यह तर्क दिया गया कि इनके पास आने का अनुमति पास था। इसी तरह किन्नौर के पुलिस अधीक्षक के बच्चे दिल्ली से किन्नौर पहुंच गये। एस पी साहब के पास बच्चों को लाने की अनुमति थी। पंचकूला में जब्बुल के एक कुलदीप सूद फंस गये थे उन्हे मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने जुब्बल पहुंचाने का प्रबन्ध करवाया। हिमाचल के कुछ छात्र राजस्थान के कोटा में फंस गये थे। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने इस पर
सवाल उठाया था। सरकार ने बच्चों को वापिस लाने के लिये अपनी एचआरटीसी की बसें भेजकर प्रबन्ध किया है। शिमला की मस्जिद में कुछ कश्मीरी मजदूर फंसे हुए हैं वह वापिस जाना चाहते हैं। सीपीएम विधायक राकेश सिंघा ने इसके लिये डीसी आफिस के बाहर धरना दिया। इस धरने के बाद इन मजदूरों को भी कश्मीर भेजने का प्रबन्ध कर दिया गया है।
अब जब मजदूरों को प्रदेश के विभिन्न ज़िलों से कश्मीर भेजने का प्रबन्ध कर दिया गया है। तब प्रदेश से बाहर फंसे हुए हज़ारो लोगों ने भी घर वापसी के लिये ऐसे प्रबन्ध किये जाने की गुहार लगा दी है। ऊना के मैहतपुर में हज़ारों की संख्या में ऐसे लोग पहुंच गये हैं। प्रशासन के लिये इसका प्रबन्ध करना समस्या हो गयी है। इससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि अब जो बाहर फंसे हुए लोगों को घर वापिस लाने के प्रबन्ध किये जा रहे हैं तब यही प्रबन्ध उस समय क्यों नही किये जा सकते थे जब पूरे देश में लाकडाऊन लागू करने का फैसला लिया गया था। अब सभी राज्यों से यह मांग उठ गयी है कि बाहर फंसे हुए लोगों को अपने -अपने राज्यों में वापिस लाने के प्रबन्ध् किये जायें। कोई भी राज्य यह नही कह पा रहा है कि वह अपने लोगों को वापिस लाने के लिये तैयार नही है। सभी इसको प्राथमिकता देने लग पड़े हैं। रेलवे भी इसके लिये विशेष ट्रेने चलाने के प्रबन्ध कर रहा है। अब प्रधानमन्त्राी राज्यों के मुख्यमन्त्राीयों से इस बारे में वीडियो कान्फ्रैंस के माध्यम से सलाह कर रहे हैं लेकिन जब पहली बार लाकडाऊन किया गया था तब राज्यों से कोई बात नही की गयी थी। अब जो बाहर फंसे हुए लोगों को घर वापसी लाने का काम शुरू हो गया है उस पर केन्द्र सरकार की ओर से कोई एतराज भी नही उठाया गया है। जबकि दिशा-निर्देशों में ऐसा कोई प्रावधान अब भी नही किया गया है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि इन दिशा निर्देशों की अनुपालना राज्यों को अपने उसी विवके से करनी थी जिससे अब कर रहे हैं।
अभी प्रधानमन्त्री ने .‘‘मन की बात’’ के माध्यम से देश की जनता से बातचीत की है इसमें प्रधानमन्त्री ने ऐसा कोई संकेत नही दिया है कि लाकडाऊन को आगे बढ़ाया जायेगा या समाप्त कर दिया जायेगा। केवल इतना ही इंगित किया है कि ‘दूरी है जरूरी ’’ इसी के साथ यह भी कहा है कि ऐसा नही सोचना होगा कि अब यह वायरस उसके क्षेत्र में नही आ सकता। प्रधानमन्त्री के इन संकेतो से यह सामने आता है कि अभी लाकडाऊन को समाप्त करना आसान नही होगा। फिर कई विशेषज्ञों ने तो यहां तक कहा है कि यह वायरस मई, जून में और बढ़ सकता है। वैसे भी अभी कई राज्यों में इसके केसों में हर रोज़ बढ़ौत्तरी हो रही है भले ही इस बढ़ौत्तरी की गति पहले जितनी न रही हो। लेकिन यह तो केन्द्र सरकार का अपना आकलन रहा है कि एक संक्रमित व्यक्ति 406 लोगों को संक्रमित कर सकता है। इस आकलन से यही निकलता है कि जब तक एक पखवाड़े में कहीं से भी कोई नया केस नही आने की पुख्ता सूचना नही आ जाती है तब तक लाकडाऊन हटाने का फैसला लेना कठिन होगा।
लेकिन इसी सबके साथ ज्यादा महत्वपूर्ण यह हो जाता है कि आर्थिक गतिविधियों को कब तक बन्द रखा जाये और इसका असर आर्थिक सेहत पर क्या पड़ेगा। इस समय करीब 25% औद्यौगिक उत्पादन को अपना काम शुरू करने की अनुमति दी गयी है। खुदरा बाज़ार में भी आवश्यक वस्तुओं की दुकानों के साथ कुछ सेवाओं को भी बहाल करने का फैसला लिया गया है। लेकिन इस फैसले के साथ पब्लिक परिवहन की कोई सुविधा नही रखी गयी है। जिन सेवाओं को शुरू करवाया गया है उनमें भी यह ध्यान नही रखा गया है कि जब प्लंम्बर या कारपेन्टर को सामान की जरूरत पड़ेगी तो वह सामान कहां से लेगा। क्योंकि हार्डवेयर वाले को तो दुकान खोलने की अनुमति नही दी गयी है। सरकार के निर्माण को तो अनुमति है परन्तु निजि निर्माण को नही। जबकि शायद निजि क्षेत्र में निर्माण कार्य ज्यादा हो रहे हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह फैसले व्यवहारिक नही हैं। केवल फाईलों के आंकड़ो के आधार पर अफसरशाही द्वारा लिये गये फैसले हैं। इन फैसलों पर नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता है। इसमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जिस वस्तु या सेवा को लेकर फैसला लिया जाये उसमें उसके उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक पहुंचने की पूरी प्रक्रिया पर एक साथ फैसला लिया जाये। इसमें या तो पूरे बाज़ार को एक साथ खोलकर उसमें प्रशासन व्यवस्था बनाने तक ही अपने को सीमित रखे। क्योंकि ऐसा नही कहा जा सकता कि अमुक वस्तु या सेवा की आवश्यकता नही है। आवश्यकता का पक्ष उपभोक्ता पर छोड़ दिया जाना चाहिये। प्रशासन को इस महामारी की गंभीरता के प्रति आम आदमी को सजग रखने तक ही अपने को सीमित रखना होगा आज हर आदमी अपनी जान बचाने को प्राथमिकता देता है और जब उसे पता है कि यह बिमारी संक्रमण से फैलती है तब वह स्वयं ही इससे बचने का हर उपाय और परहेज करेगा।
इस समय सारा आर्थिक उत्पादन बन्द पड़ा है और यदि लम्बे समय तक यह कर्फ्यू जारी रहा है तो जो उद्योग इस समय प्रदेश में स्थापित है उनके भी पलायन करने की नौबत आ जायेगी। जिन नये उद्योगों की स्थापना के अनुबन्ध हुए पड़े हैं उन्हे अब व्यवहारिक शक्ल लेने में बहुत समय लगेगा। इस समय की आवश्यकता है कि जो पहले से ही स्थापित है उन्हें पलायन से रोका जाये। विपक्ष पूरी तरह सरकार के साथ सहयोग कर रहा है। प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष ने मुख्यमन्त्री को पत्र लिखकर इस बारे में आग्रह भी किया है। फिर अभी मुख्यमन्त्री ने वीडियो कान्फ्रैंस में प्रधानमन्त्री से कहा है कि प्रदेश में एक सप्ताह से कोरोना का कोई नया मामला नही आया है और छः जिले इससे मुक्त हैं। प्रदेश सरकार इस परिदृश्य में आर्थिक गतिविधियां शुरू करने के लिये पूरी तरह तैयार है। लेकिन इसी के साथ जब मुख्यमन्त्री ने पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा के मामले सामने रखते हुए प्रधानमन्त्री से यह आग्रह भी कर दिया कि अभी लाकडाऊन को समाप्त न किया जाये तो इससे स्थिति कमजोर हो जाती है। जबकि इस समय जब कोरोना पर नियन्त्रण बना हुआ है तब औद्यौगिक गतिविधियां शुरू करने में भी प्रदेश सरकार को पहल करने की आवश्यकता है।
मुकेश अग्निहोत्री का पत्र


शिमला/शैल। कोरोना के कारण पूरे प्रदेश में सरकार ने कर्फ्यू लगा रखा है जो तीन मई तक चलेगा। कर्फ्यू के कारण प्रदेशभर में सारी आर्थिक गतिविधियों पर विराम लग गया है। सारे छोटे-बड़े उद्योगों और अन्य दुकानदारी तक बन्द है। इन सारी गतिविधियों के बन्द होने से जो सरकार को करों और गैर करों के रूप में
राजस्व की प्राप्ति होती थी वह भी रूक गयी है। 24 मार्च से शुरू हुए इस कर्फ्यू के कारण सरकार को अब तक करीब चार सौ करोड़ का नुकसान हो चुका है। यह मुख्यमन्त्री ने कर्फ्यू लगने के बाद आयोजित हुए पत्रकार सम्मेलन में माना है। अभी कर्फ्यू को लगे लगभग एक माह ही हुआ है और इसी दौरान सरकार ने करीब पांच सौ करोड़ का ऋण भी ले लिया है। ऋण के अतिरिक्त भारत सरकार ने भी कोरोना के लिये सरकार को 223 करोड़ की सहायता उपलब्ध करवाई है। इसी सहायता के बाद सरकार ने विधायकों-मन्त्रीयों के वेत्तन भत्तों में कटौती तथा विधायकों को मिलने वाली क्षेत्र विकास निधि भी दो वर्ष के लिये बन्द कर दी है। प्रदेश के कर्मचारियों के वेत्तन में भी एक दिन की कटौती कर दी है।
कर्फ्यू के एक माह के भीतर ही सरकार को वित्तिय स्तर पर यह सारे कदम उठाने पड़ गये हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि यह कर्फ्यू की अवधि लम्बे समय तक चलानी पड़ी तो शायद सरकार का वित्तिय संकट और बढ़ सकता है। इससे यह भी अन्दाजा लगाया जा सकता है कि उन कामगारों और छोटे उद्योगपतियों तथा दुकानदारों की हालत क्या होगी जिनका कामकाज़ पूरी तरह बन्द पड़ा हुआ है। इस समय प्रदेश में कर्फ्यू के कारण लाखों मज़दूर और उनके परिवार प्रभावित हुए हैं। इन प्रभावितों को खाने तक का संकट खड़ा हो गया है। हालांकि सरकार यह प्रयास और दावा भी कर रही है कि हर आदमी को आवश्यक राशन उपलब्ध करवाया जा रहा है। राशन पहुंचाने के काम में एनजीओज से भी मद्द ली जा रही है। लेकिन राजधानी में ही ज़िलाधीश कार्यालय के बाहर धरने पर बैठे विधायक राकेश सिंघा ने सरकारी दावों पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है। सिंघा ने शिमला की जामा मस्जिद में रह रहे 129 मज़दूरों की स्थिति जब प्रशासन के सामने रखी तो प्रशासन ने यह जवाब दिया कि वह 1200 लोगों को एनजीओ के माध्यम से खाना उपलब्ध करवा रहे हैं। वैसे ज़िलाधीश ने गैर सरकारी संगठनों पर प्रशासन के आदमी के बिना यह राशन आदि बांटने को मना कर रखा है। क्योंकि बहुत सारी जगहों से यह शिकायतें आ रही थी कि दो किलो राशन चार-पांच आदमीयों को पकड़ा कर केवल फोटो खिंचवाने का ही सोशल वर्क हो रहा था। छोटा शिमला क्षेत्र से भी इस तरह की शिकायत रही है।
सिंघा ने प्रशासन को ऐसे मज़दूरों की सूचीयां उपलब्ध करवाई हैं जिनके पास राशन नही है। प्रशासन जब सिंघा के दावों को खारिज कर रहा था उसी समय मण्डी से 34 मज़दूरों का यह सन्देश आने से सरकार की और फजीहत हो गयी जब उन्होने यह शिकायत की न तो उनके पास खाने को है और न ही ठहरने की व्यवस्था। वह एक तंबू में समय काट रहे हैं जबकि उन्हे एक स्कूल में ठहराने का आश्वासन दिया गया था। कुल्लु में मज़दूरों को खाना न मिलने का तो एक लाईव विडियो तक जारी हो चुका है। हमीरपुर,पंडोह और बरोट में तो मज़दूरों से मार पीट तक हो चुकी है।
शिमला/शैल। कोविड-19 का प्रभाव हिमाचल प्रदेश में देश के अन्य राज्यों की तुलना में बहुत कम है। यह कमी सरकार के प्रयासों का परिणाम है क्योंकि सरकार ने लाकडाऊन के साथ ही कफर्यू भी पूरे प्रदेश में लगा दिया था। कफ्रर्यू की अनुपालना में पूरी सख्ती अपनाई गयी। प्रदेश में जहां अन्य राज्यों के लोगों के प्रवेश पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा दिया गया वहीं प्रदेश के भीतर भी एक जिले से दूसरे जिले में जाने के लिये भी रोक लगा दी गयी। इन प्रशासनिक प्रबन्धों के साथ ही इस महामारी से लड़ने के लिये आवश्यक सामान और सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये बहुत सारी औपचारिकताओं को भी हटा दिया गया है।
किसी भी तरह के सेवा या सामग्री की आपूर्ति के लिये वित्तिय नियमों-2009 में एक ठोस प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है। इन प्रावधानों की अवहेलना अपराध की श्रेणी मे आती है। इसमें किसी भी आपूर्ति के लिये टैण्डर प्रक्रिया अपनानी पड़ती है और कई बार इसमें आवश्यकता से अधिक समय लग जाता है। इस समय कोविड-19 का प्रकोप एक ऐसी शक्ल ले चुका है जिसमें इसके लिये वांच्छित सेवाओं और सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये वित्तिय नियमों में दी गयी औपचारिकताओं की अनुपालना करने में बहुत समय लगने की संभावना है। इन्हें पूरा करते हुए बहुत नुकसान हो सकता है। समस्या की इस गंभीरता को सामने रखते हुए वित्तिय नियमों में प्रक्रिया संबंधी जो औपचारिकताएं नियम 91-से 121 तक दी गयी हैं उनकी अनुपालना में 31 मई तक छूट प्रदान कर दी गयी है। माना जा रहा है के नियमों में विधिवत छूट का प्रावधान पिछले दिनों स्वास्थ्य विभाग द्वारा की गयी खरीद पर उठे सवालों के परिदृश्य में किया गया है।

