Saturday, 20 December 2025
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क्या ऐसे लडे़गे कोरोना से नाहन मैडिकल कालिज में ही 3.75 करोड़ खर्च करने के बावजूद नही है आक्सिजन पाईपलाईन स्पलाई

25 मार्च के पुनर्नियुक्ति आदेशों पर अभी तक नही आया कोई भी
विभाग में डाक्टरों और पैरामैडिकल के पद अभी भी खाली

शिमला/शैल। प्रधानमंत्री द्वारा 24 मार्च को देश भर में तालाबन्दी लागू कर दी गई थी जो तीन सप्ताह तक चलेगी। इसके बाद क्या होगा इसका पता 14 अप्रैल को लगेगा। तालाबन्दी के आदेशों के चलते पुरे देश में आर्थिक उत्पादन से जुडी हर गतिविधि बन्द हो गई है। इससे लाखों कामगार और उनके परिवार प्रभावित हुये हैं। हिमाचल भी इस प्रभाव से अच्छूता नही रहा है। यहां के औद्योगिक  क्षेत्रों में काम कर रहे मजदूर और उनके परिवारों के करीब पांच लाख लोग प्रभावित हुये हैं। तालाबन्दी से यह लोग इस कदर प्रभावित हूये है कि अपने अपने घरों को वापिस जाने के अतिरिक्त इनके पास और कोई विकल्प शेष नही रह गया है। दूसरी ओर तालाबन्दी में यह आदेश कि जो जहां है वह वहीं रहे। इस आदेश की अनुपालना के लिये राज्य की सारी सीमाएं सील कर दी गई है। देश भर में यही स्थिति है। ऐसे लोगों के खाने ठहरने की व्यवस्था करने और सरकार के आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी जिले के जिलाधीशों और पुलिस उपायुक्तों को दी गई है। प्रदेश में तालाबन्दी ही नही बल्कि कर्फ्यू लागू है तथा प्रदेश के भीतर भी एक जिले से दूसरे जिलो में जाने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। यह सब कोरोना के फैलाव को रोकने के लिये किया गया है क्योंकि सरकार को हर आदमी के जान माल की चिन्ता है। मुख्यमंत्री व्यक्तिगत रूप से स्थिति पर नजर रख रहे हैं और इस पर हर रोज प्रशासन से बातचीत करके प्रदेश को संबाधित भी कर रहे है।

इस परिदृश्य मे यह स्वभाविक है कि आम आदमी सरकार के प्रबन्धों उसकी नितियों और उसके आदेशों पर ही बात करेगा। कोरोना महामारी से बचाव के लिये अभी तक कोई दवाई उपलब्ध नही है यह एक कड़वा सच है। ऐसे में जब दवाई नही है तो ‘‘ईलाज से प्रहेज ही बेहतर है’’ की व्यवहारिता लागू होती है। परहेज के नाम पर सैनेटाईजर और मास्क का प्रयोग पहला कदम है इसके बाद जो भी सन्दिगध कहीं पर भी चिन्हित होता है उसे तुरन्त प्रभाव से अस्पताल पहुचाना है। अस्पताल के नाम पर पहला स्थान मेडिकल कालेज का आता है क्योंकि वहां पर मरीजों के ईलाज के साथ डाक्टर भी तैयार किये जाते हैं। जहां पर डाक्टर तैयार किये जाते हैं वहां पर सारी व्यवस्थायें एक दम चाक-चैबन्द होगी यह एक सामान्य सी अपेक्षा रहती है। इसलिये जब एक सरकार के ही मेडिकल कालेज में व्यवस्था के नाम पर गंभीर कमियां मिलेगी तो अन्य अस्पतालों का अन्दाजा लगाना कोई कठिन नही होगा। कोरोना के मरीज के लिये जांच के बाद सबसे पहले आक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है क्योंकि मरीज को सांस लेने मे तकलीफ होती है। यह सुविधा उपलब्ध कराकर उसे आसोलेस्न वार्ड में ले जाया जाता है। लेकिन प्रदेश के स्वास्थ्य संसथानों की हालत इस दिशा में क्या है इसका अनुमान डा यश्वन्त सिंह परमार कालेज नाहन से लगाया जा सकता है। यह कालेज 2016 में स्थापित हो गया था। लेकिन आज 5 वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां मरीजों को आईसीयू वार्ड में आक्सीनज की पाईपलाईन स्पलाई उपलब्ध नही हैं। 3.75 करोड़ खर्च करके पाईप लाईन व्यवस्था नही बन पाई है जबकि यह पैसा इसी व्यवस्था के लिये खर्च किया गया है। यहां तक की गैस के बड़े सिलैन्डर तक उपलब्ध नही हैै। स्टाफ की भारी कमी है। डाक्टरों के डयूटी रूम तक चालू हालत में नही है। अभी कोरोना की दस्तक के बाद मेडिकल कालेज में आसोलेस्न वार्ड तैयार किया गया है। लेकिन आसोलेस्न वार्ड कालेज के साथ लगते आयुर्वेद अस्पताल के भवन में बनाया गया है। यहां पर आक्सीजन पाईपलाईन स्पलाई व्यवस्था ही नही है। क्योंकि यह भवन ही मेडिकल कालेज ने अब लिया है। 3.75 करोड़ खर्च कर दिये गये हैं और गैस की पाईप लाईन सपलाई बल्कि बड़े सिलैण्डर तक नही है। क्या यह अपने में एक बड़ा घपला नही है। मजे की बात यह है की प्रशासन से लेकर सचिवालय तक सबको इसकी जानकारी है लेकिन फिर भी कोई कावाई आज तक नही हो पाई है।
नाहन भाजपा अध्यक्ष डा राजीव बिन्दल का चुनाव क्षेत्र है। बिन्दल धूमल सरकार में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री रहे हैं। इसलिये यह अन्दाजा लगाया जा सकता है कि जब डा बिन्दल के चुनाव क्षेत्र में स्थित एक सरकारी मेडिकल कालेज में इस तरह का हाल है तो प्रदेश के अन्य स्वास्थ्य संस्थानों का हाल क्या होगा।
यही नही अब कोरोना के चलते सरकार ने 25 मार्च को एक आदेश जारी करके 31.12.2017 से लेकर 29.2.2020 तक प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत  हुये सभी स्वास्थ्य अधिकारियों और पैरामेडिकल कर्मियों को 30 जुन तक पुनः सेवा में बुला लिया है। यह आदेश 25 मार्च को हुये हैं और 24 मार्च से प्रदेश में कर्फ्यू और देश भर में लाकडाउन लागू है। इन आदेशों के चलते सचिवालय तक सारे कार्यालय बन्द है। सरकार के आदेशों के बावजूद निदेशालय से यह पुनर्नियुक्ति पत्र जारी नही हो सके हैं क्योंकि निदेशालय में भी कोई काम करने वाला नही था। जब इन सेवानिवृत लोंगो को नियुक्ति पत्र ही नही गये हैं तो फिर इन की सहमति/असहमति कब आयेगी और कब ये लोग सेवायें दे पायेंगे। फिर इनकी सेवायें 30 जुन तक ही ली जायेंगी। क्योंकि उससे आगे के बारे में इस आदेश में कोई जिक्र ही नही किया गया है ऐसे में यह भी स्वाल उठता है कि जो लोग दो साल, एक साल पहले सेवानिवृत होकर अपना आवास आदि छोडकर चले गये हैं वह अब इस जोखिम के समय तीन माह के लिये सेवा देने क्यों आयेंगे। यदि उन्हे कम से कम एक वर्ष की भी पुनर्नियुक्ति दी जाती है तो वह शायद आने का सोच लेते। ऐसे में सरकार ने यह आदेश जारी करके जनता में अपनी पीठथपथपाने से ज्यादा कोई प्रयास नही किया है। क्योंकि आजकल स्वास्थ्य मंत्री के आभाव में इस विभाग की जिम्मेदारी भी मुख्यमंत्री के ही पास है। ऐसे में यदि सरकार सही मायनों में स्थिति के प्रति गंभीर होती तो नये लोंगो को भर्ती करती और वह लोग नौकरी के लिये ततकाल प्रभाव से ज्वाईन भी कर लेते। लेकिन सरकार ने ऐसा नही किया है और इससे सारी गंभीरता का खुलासा हो जाता है।

यह है सरकार के आदेश



















































 

सरकार के दावों के बावजूद कामगारों में विश्वास बहाली क्यों नही

शिमला/शैल। तालाबन्दी के कारण सारी कारोबारी गतिविधियां एकदम ठप हो गयी है। परिवहन के सारे साधन बन्द है। तालाबन्दी मे जो जहां है वह वहीं रहेगा यह आदेश है। इन आदेशों के चलते कामगार और उनके परिवार सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। बहुत सारे कामगार अपने अपने स्थानों से पलायन करने की बाध्यता पर आ गये हैं। लेकिन ऐसा कर नही पा रहे हैं। ऐसे लोगों की सहायता के लिये केन्द्र सरकार ने आपदा प्रबन्धन अधिनियम के प्रावधानों के तहत यह निर्देश जारी किये हैं कि तालाबन्दी की अवधि के लिये उनका वेतन न काटा जाये। किराये के आवासों में रह रहे ऐसे लोगों के लिये मकान मालिकों को भी यह कहा गया है कि यह इन लोगों से एक माह का किराया न ले। सर्वोच्च न्यायालय में भी  इस आश्य की कुछ याचिकाएं दायर हो गई है। जिनमें इस दिशा में उचित दिशा निर्देश जारी करने के आग्रह किये गये हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार से इस पर जबाव भी तलब किया है।

यह तालाबन्दी 21 दिनों की है और इसका कड़ाई से अनुपालन करने के आदेश है। अनुपालना की जिम्मेदारी पुलिस को दी गई है। कामगारों की यह समस्या हर प्रदेश में है। हिमाचल में भी करीब पांच लाख लोग प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों में प्रभावित है। स्वभाविक है कि यदि यह कामगार एक बार अपने अपने औद्योगिक क्षेत्रों को छोड़कर चले जाते है तो इससे उद्योग भी प्रभावित होंगे। क्योंकि इन लोगों को वापिस काम पर आने में समय लगेगा। तय है कि इससे दोनों पक्ष प्रभावित होंगे।
इससे यह सवाल उठता है कि जब यह तालाबन्दी केवल 21 दिनों के लिये ही है और सरकार ने इनकी सहायता के लिये आदेश तक जारी कर दिये हैं। फिर उद्योगपति, कामगार और मकान मालिक सभी एक दूसरे पर विश्वास क्यों नही कर पा रहे हैं। क्या यह विश्वास नही हो पा रहा है कि यह कारोबारी गतिविधियां 22वें दिन पूर्ववत बहाल हो जायेंगे? क्या सरकार इस आश्य का कोई आदेश जारी नही कर सकती है कि यह कामगार 22वें दिन अपने अपने काम पर पहले की तरह लौट आयेंगे। क्या उद्योगों को सरकार पर विश्वास नही हो पा रहा है कि वह 22वें दिन अपने उद्योग को पूर्ववत चला पायेंगे। हिमाचल सरकार ने 2019 के पुरे वर्ष में निवेशक मीट आयोजित करके 93 हजार करोड़ के निवेश के एम ओ यू विभिन्न उद्योगपतियों से हस्ताक्षरित किये हंै। क्या ऐसे में राज्य सरकार को इस समय ऐसा आदेश नही जारी करना चाहिये कि हिमाचल मे स्थित उद्योग इन कामगारों को पहले की तरह 22वें दिन पूर्ववत काम पर रख लेंगे। यदि सरकार उद्योगपति, कामगार और मकान मालिक में विश्वास बहाल नही कर सकती है तो आम आदमी कैसे सरकार के प्रयासों पर विश्वास बना पायेगा। 

टाण्डा में उपचाराधीन कोविड-19 के दो में से एक व्यक्ति की रिपोर्ट हो चुकी है नेगेटिव

शिमला/शैल।अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) ने प्रदेश में कोविड-19 की स्थिति के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि अब तक प्रदेश में कुल 2409 लोग दूसरे देशों से आए हैं और जिनमें से 688 लोगों ने 28 दिन की जरूरी निगरानी अवधि को पूरा कर लिया है एवं 1476 लोग अभी भी निगरानी में हैं। इसमें 179 लोग प्रदेश छोड़कर भी जा चुके हैं। आज प्रदेश में 17 लोगों के कोविड-19 के प्रति जांच के नमूने लिए गए थें तथा सभी की जांच रिपोर्ट नेगेटिव पाई गई है। अब तक कुल 150 लोगों के जांच की जा चुकी है। उन्होंने यह भी बताया कि जो पूर्व में दो व्यक्ति कोविड-19 के प्रति पोजिटिव पाए जाने के उपरान्त Dr. RPGMC टाण्डा में उपचाराधीन हैं उनमें से एक की रिपोर्ट कोविड-19 के प्रति नेगेटिव हो चुकी है। उन्होंने आगे जानकारी देते हुए बताया कि IT विभाग हि0प्र0, स्वास्थ्य विभाग के लिए एक नई वेब एप्लीकेशन बना रहा है जिसमें सभी गृह निगरानी में रखे गए लोगों की जानकारी उपलब्ध होगी।
अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) ने बताया कि प्रदेश स्वास्थ्य विभाग इस वायरस के संक्रमण की रोकथाम के लिए वृह्द सूचना, शिक्षा एवं सम्प्रेषण गतिविधियाँ संचालित कर रहा है, जिसके माध्यम से जनसाधारण को विभाग द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों के अनुपालन के लिए प्रेरित किया जा रहा है, ताकि कोविड-19 के संक्रमण को रोका जा सके।
अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) ने जनसाधारण से आह्वान किया कि वे व्यर्थ में मास्क और हैण्ड सैनिटाईजर खरीद कर अपनी आर्थिकी पर बोझ ना डालें बल्कि अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता पर ध्यान दें, साबुन से समय-समय पर हाथ धोतें रहें, छींकनें और खाँसनें के दौरान शिष्टाचार का पालन करें। यह आवश्यक नहीं कि आपको हैण्ड सैनिटाईजर लेना आवश्यक है, यदि यह उपलब्ध ना भी हों तो भी हम साबुन से सही तरह अपने हाथ धोने की आदत अपना कर इस रोग के संक्रमण से बच सकते हैं। यदि आपको खाँसी या बुखार है तो किसी के सम्पर्क में ना आएं, सार्वजनिक स्थानों पर ना थूँके, अगर आप अस्वस्थ महसूस करते हैं तो अपने नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र या चिकित्सक से सम्पर्क करें। यह जरूरी नहीं कि खाँसी या बुखार केवल कोराना वायरस के ही लक्षण हों, ये किसी अन्य बिमारी के भी लक्षण हो सकतें है, इसलिए कोरोना वायरस की सही जानकारी एवं सुरक्षा के दिशानिर्देशांे का सजगता से पालन कर आप स्वयं व दूसरों को इसके संक्रमण के प्रभाव से सुरक्षित रख सकते है। इसलिए यह भी पुनः अनुरोध किया की क्फर्यू की ढ़ील के दौरान भी अनावश्यक रूप से घरों से बाहर न निकलें एवं कोविड-19 के संक्रमण के रोकथाम के लिए प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों में सहयोग दें। यदि किसी कारणवश घर से बाहर जाना भी पडता है तो अपने बचाव के लिए सजग एवं सतर्क रहें।

क्या लाक डाउन और कर्फ्यू लगाकर ही सरकार की जिम्मेदारी पूरी हो जाती है

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार ने पूरे प्रदेश में 23 मार्च से लाक डाउन लागू कर दिया है। लाक डाउन के दौरान कौन सी सेवाएं उपलब्ध रहेगी और सामान्य नागरिकों से क्या अपेक्षाएं रहेंगी इसका पूरा जिक्र मुख्य सचिव के आदेश में दर्ज है। कोरोना की प्रदेश में वास्तविक स्थिति क्या है इसका खुलासा अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य आर डी धीमान ने एक पत्रकार वार्ता में सामने रखा है। उनके मुताबिक अब तक 1030 मामले निगरानी में रखे गये थे। जिनमें से 387 व्यक्ति निगरानी के 28 दिन पूरे कर चुके हैं और अब उनमें इस रोग के कोई लक्षण नही हैं तथा पूरी तरह स्वस्थ हैं। अब केवल 515 लोग निगरानी में चल रहे हैं। प्रदेश में आई.जी.एम.सी. शिमला, राजेन्द्र प्रसाद मैडिकल कालिज टाण्डा और राजकीय मैडिकल कालिज नेरचैक मण्डी में आईसोलेशन वार्ड बना दिये गये हैं। प्रदेश में मुख्यमन्त्री के मुताबिक कोरोना के केवल दो मामले पाजिटिव पाये गये हैं। मुख्यमन्त्री और अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य के ब्यानों के मुताबिक कोरोना से भयभीत होने की आवश्यकता नही है।
कोरोना विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा महामारी घोषित की गयी है। दुनिया के अधिकांश देशों में फैल चुकी और अभी तक इसका कोई अधिकारिक ईलाज भी सामने नही आया हैं। केवल इसके लक्षणों की जानकारी उपलब्ध है और यह बताया गया है कि यह संक्रमण से फैलती है और संक्रमण एक दूसरे के संपर्क में आने से होता है। इसलिये अभी तक केवल संक्रमण से ही बचने के उपाय किये जा सकते हैं और इसके हर उस आयोजन को बंद कर दिया गया है जहां भी दूसरे के संपर्क में आने की संभावनाएं रहती हैं। सरकार ऐसे आयोजनों पर जनता कर्फ्यू और लाक डाउन के आदेश जारी होने से पहले ही प्रतिबन्ध लगा चुकी है। अब जब लाक डाउन के आदेश आ गये हैं तो इसमें सबसे ज्यादा प्राईवेट सैक्टर के कारोबार पर असर पडे़गा। दिहाड़ीदार मज़दूर सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। इसलिये यह सवाल उठना स्वभाविक है कि सरकार इस वर्ग के लिये क्या सहायता उपलब्ध करवायेगी इस बारे में अभी तक सरकार की ओर से कोई घोषणा सामने नही आयी है। सरकार आवश्यक सामान की आपूर्ति तो सुनिश्चित करने के प्रयास तो कर रही है लेकिन यह कैसे सुनिश्चित होगा कि दिहाड़ीदार मज़दूर यह आवश्यक सामान खरीद सकने की क्षमता में भी है या नही।
इसी के साथ एक बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या लाक डाउन और कर्फ्यू ही सरकार के स्तर पर आवश्यक कदम हैं। जब कोई दवाई तक सामने नही आयी है और हर व्यक्ति को सैनेटाईज़र प्रयोग करने की सलाह दी  जा रही है तो क्या सार्वजनिक स्थालों पर इसका छिकड़काव किया जाना आवश्यक नही होना चाहिये। क्योंकि इस समय दवाई के अभाव में सैनेटाईज़र और अन्य कीटनाश्कों का छिड़काव ही एक मात्र विकल्प रह जाता है। लेकिन सरकार की ओर से इस दिशा में अभी तक कोई कदम नही उठाये जा रहे हैं। इस रोग के परीक्षण की सुविधा और आईसोलेशन वार्डों की उपलब्धता ही ज़िला मुख्यालय पर उपलब्ध नही है। प्रदेश के सारे मैडिकल कालिजों तक में यह सुविधा उपलब्ध नही है। क्या सरकार की प्रशासनिक स्तर पर सारे सामूहिक आयोजनों पर प्रतिबन्ध लगाकर ही जिम्मेदारी पूरी हो जाती है इसको लेकर अब सवाल उठने शूरू हो गये है। व्यापारिक संगठनों ने व्यापार प्रभावित होने के कारण आर्थिक सहायता की मांग तक कर दी है। लेकिन सरकार अभी तक प्रदेश की जनता को यह नही बता पायी है कि उसने इस बीमारी से निपटने के लिये कितना आर्थिक प्रावधान कर रखा है।
यह माहमारी एक प्राकृतिक आपदा के रूप में सामने आयी है और प्राकृतिक आपदायें पूर्व निश्चित होती है। यह आकस्मिक होती है और इसलिये संविधान की धारा 267 के तहत बजट में आकस्मिक निधि का प्रावधान रखा गया है ताकि आवश्यकता पड़ने पर उस निधि से पैसा निकाला जा सकें। लेकिन प्रदेश में कुछ अरसे से आकस्मिक निधि के तहत कोई धन का प्रावधान ही किया जा रहा है और कभी कोई माननीय इस ओर ध्यान ही नही दे रहा है। कैग रिपोर्ट में इसको लेकर सरकार के खिलाफ सख्त टिप्पणी की गयी है। बल्कि कैग ने तो इसी के साथ रिस्क फण्ड रखने की भी बात की है। लेकिन कैग की टिप्पणी के वाबजूद सरकार की ओर से कोई कदम न उठाया जान कई सवाल खड़े करता है।

क्या राठौर की कार्यकारिणी भाजपा को चुनौती दे पायेगी या अपने ही भार में दब जायेगी

 

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की 197 सदस्यों की कार्यकारिणी अन्ततः घोषित हो गयी है। यह कार्यकारिणी घोषित करने में जितना लम्बा समय लिया गया और फिर जिस बड़े आकार में यह सामने आयी है उससे पार्टी के भीतर चल रही खींचतान का आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। क्योंकि इसमें जहां सभी विधायकों को स्थान देने का प्रयास किया गया है वहीं पर सभी बड़े नेताओं के परिजनों को भी पद दिये गये हैं। 197 सदस्यों की कार्यकारिणी में 153 पदाधिकारी हैं। स्मरणीय है कि 2019 के शुरू में ही सुखविन्दर सुक्खु को हटाकर कुलदीप राठौर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन इस बदलाव के बाद  भी पार्टी लोकसभा की चारों सीटें हार गयी। इस हार के कारणों पर हुए मंथन का निष्कर्ष क्या रहा इस पर कोई खुली बहस करने की बजाये थोड़े समय बाद कार्यकारिणी को ही भंगकर दिया गया। कार्यकारिणी भंग होने के बाद हुए दोनों विधानसभा उपचुनावों मंे फिर पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा क्योंकि धर्मशाला में पार्टी जमानत तक नही बचा पायी। इसी सबके कारण यहां तक अटकलें चल निकली थी कि अध्यक्ष को भी बदला जा रहा है। अब राठौर तो अपना पद बचाने में सफल हो गये हैं लेकिन यह सवाल उठ गया है कि क्या इतनी बड़ी कार्यकारिणी के साथ अगले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस आसानी से भाजपा से सत्ता छीन पायेगी।
अभी जयराम सरकार का तीसरा बजट आया है और इस कार्यकाल के दो और बजट आने शेष हैं। कार्यकाल का अन्तिमवर्ष तो चुनाव का वर्ष होता है। इस परिप्रेक्ष में अभी जो एक डेढ़ वर्ष का कार्यकाल होगा उसी में विपक्ष सरकार को घेरने और सरकार विपक्ष को कमजोर करने का प्रयास करेगा। सरकार को घेरने के लिये उसकी नीतियों और उनके सहारे किये जाने वाले उपलब्धियों के दावों की सत्यता जनता के सामने लानी होती है। इसी के साथ दूसरा बड़ा हथियार भ्रष्टाचार होता है। सरकार में कहां-कहां भष्टाचार हुआ है विपक्ष उसको हथियार बनाता है इसके लिये सरकार के खिलाफ आरोप पत्र लाये जाते हैं। लेकिन अभी तक के कार्याकाल में कांग्रेस ऐसा कोई प्रयास नही कर पायी है। आने वाले दिनों में इस दिशा में क्या होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन पूर्व में दोनांे पार्टीयां बतौर विपक्ष एक दूसरे के खिलाफ कई आरोप पत्र लायी हुई हैं जिन पर आज तक कोई जांच नही हो पायी है। ऐसे में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि कांग्रेस जयराम सरकार के खिलाफ ठोस आरोप लेकर आती है या जयराम सरकार वीरभद्र शासन के खिलाफ लाये अपने ही आरोप पत्रांे पर जांच और कारवाई का साहस जुटा पाती है। क्योंकि इस समय जिस तरह से नेता प्रतिपक्ष मुकेश अन्गिहोत्री , पूर्व अध्यक्ष सुक्खु, जगत सिंह नेगी , हर्षवर्धन चैहान और रामलाल सदन में सरकार पर आक्रमकता बनाये हुए हैं क्या उसको सदन के बाहर पार्टी और प्रभावी ढंग से बढ़ा पाती है या नही। यह राठौर के लिये भी परीक्षा का समय होगा।
इस समय कार्यकारिणी में बारह प्रवक्ता और 69 सचिव हैं। यदि यह लोग ईमानदारी से पूरे अध्ययन के साथ प्रदेश और राष्ट्रीय मुद्दों को जनता तक ले जाते हैं तो निश्चित रूप से एक बदलाव का वातावरण तैयार करना कठिन नही होगा। लेकिन इतने बडे़ आकार की कार्यकारिणी में जिस तरह से परिवारवाद भारी रहा है उससे यह आशंका अभी से खड़ी हो गयी है कि क्या पार्टी बड़े नेताओं के साये से बाहर आ पायेगी। क्योंकि 2014 से लगातार हर चुनाव हारती आ रही है। संगठन और सरकार में लगातार अन्ततः विरोध रहे हैं। एक व्यक्ति एक पद के सिन्द्धात को सीधे-सीधे अंगूठा दिखाया गया। पार्टी के समानान्तर एनजीओ के नाम से संगठन खड़ा करने के प्रयास किये गये। एनजीओ के अध्यक्ष ने पार्टी अध्यक्ष के खिलाफ अदालत का दरवाजा तक खटखटाया। आज उस एनजीओ के लगभग सारे पदाधिकारी राठौर की कार्यकारिणी में शामिल हैैं। लेकिन इस कार्यकारिणी में धर्मशाला उपचुनाव के पार्टी उम्मीदवार या उसके समर्थकों को जगह नही मिल पायी है। दूसरी ओर धर्मशाला में सुधीर शर्मा के अन्तिम क्षणों में उपचुनाव से किनारा करने के कारणों को लेकर कुछ भी सामने नही आया है। पार्टी में नये लोगों को जोड़ने के कोई प्रयास नही किये गये हंै। बल्कि भाजपा से कांग्रेस में सुरेश चन्देल भी लगभग हाशिये पर ही चल रहे हैं।
इस परिदृश्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि राठौर की यह कार्यकारिणी सही अर्थों में कांग्रेस के लिये चुनौती पेश कर पायेगी या फिर अपने ही भार तले दम तोड़ देगी। क्योंकि जिस तरह से कर्नाटक, गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में भाजपा कांग्रेस के अन्दर तोड़फोड के प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष प्रयास करने में लगी है उसका असर सभी प्रदेशों पर होगा यह तय है।

 

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