नई दिल्ली।। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा है कि अगर हर्षवर्धन को थोड़ा पहले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाता तो पार्टी को दिल्ली विधानसभा में बहुमत मिल जाता।
बीजेपी की विदेश शाखा द्वारा आयोजित एक 'वैश्विक सम्मेलन' के समापन समारोह में सोमवार को आडवाणी ने कहा कि अगर हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित किए जाने में देरी की गई होती तो आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव जीत गई होती।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी 32 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी रही, लेकिन 28 सीटें जीतने वाली 'आप' कांग्रेस के आठ विधायकों के सहयोग से सरकार बनाने में सफल रही।
आडवाणी ने कहा कि अगर हर्षवर्धन को और पहले पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जाता तो आज वह मुख्यमंत्री होते।
उन्होंने कहा कि बीजेपी आगामी लोकसभा चुनाव में देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी और देश में पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को लेकर काफी उत्साह का माहौल है।
नई दिल्ली, 1 जनवरी : आज से दिल्ली विधानसभा का सत्र शुरु हो गया है और इसके साथ ही मुख्यमंत्री केजरीवाल की राजनीतिक परीक्षा भी शुरु हो गई है. कांग्रेस के समर्थन पर बनी यह सरकार कितने दिन चलेगी इसका अंदाजा स्वयं केजरीवाल को भी नहीं है. इसलिए उन्होंने अपने को चुनावी वादे आनन-फानन में पूरे कर दिए.
विधानसभा का यह सत्र सात दिनों तक चलेगा. आज पहले दिन कार्यवाहक सभापति को शपथ दिलाने के बाद सत्र शुरु होगा. कांग्रेस के मतीन अहमद कार्यवाहक सभापति मनोनीत किए गए हैं. उनके मनोनयन के बाद आज 70 नए विधायकों को शपथ दिलाई जाएगी और कल अरविंद केजरीवाल विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध करेंगे. 70 दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी के 28, भाजपा के 31, कांग्रेस के 8, अकालीदल के 1, जनता दल के एक और एक निर्दलीय विधायक हैं. फिलहाल आम आदमी पार्टी को विधानसभा में 38 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है. इसलिए मोटे तौर पर उनकी स्थिति मजबूत नजर आ रही हैं. लेकिन विधनासभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव के लिए जों पेंच खड़ा होगा वहां अरविंद केजरीवाल की मजबूती का पता चलेगा.
वैसे विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव परसों होगा लेकिन बहुमत के लिए क़ल केजरीवाल को रणनीति बनानी होगी. उधर `आप' ने अध्यक्ष पद के लिए एम एस धीर को उम्मीदवार बनाया है. सरकार टिकाए
रखने के लिए केजरीवाल को अपना चुनावी एजेंडा रोकना पड़ सकता है क्योंकि इसके कारण कांग्रेस अरविंद केजरीवाल का खेल बिगाड़ सकती है.
उधर कांग्रेसी खेमें में `आप' को समर्थन देने को लेकर भारी असंतोष है. इस सरकार को समर्थन देकर कांग्रेस हाराकिरी की राह पर बढ़ रही है. जिस तरह से छोटे-छोटे राज्य कांग्रेस की हाथ से निकल गए हैं. उसी तरह वर्तमान नीति पर चलते हुए कांग्रेस की जड़े दिल्ली में खुद सकती है और राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ सकता है. भारतीय जनता पार्टी दिल्ली चुनाव के बाद अछूत बनी हुई है. दिल्ली में अरविंद के चमकने से नरेंद्र मोदी की धमक कम होने की आशंका है. चूंकि कांग्रेस बुरी तरह हारकर खलनायक बन चुकी है इसलिए वह आम आदमी पार्टी को अपनी राजनीतिक सुविधा के अनुरूप समर्थन देती रहेगी. केजरीवाल को कांग्रेस कब तक सहन करेगी यह दिलचस्प होगा.
पथिक संवाददाता
मुंबई, 1 जनवरी : दिल्ली सरकार की तर्ज पर मुंबईवासियों को भी मुफ्त पानी और सस्ती बिजली दिए जाने की चर्चा गरमाने लगी है. कुछ सामाजिक संगठनों ने यह मांग उठानी शुरु कर दी है कि जब दिल्ली की सरकार मुफ्त में जल और सस्ती बिजली दे सकती है तो यह सेवा मुंबईवासियों को क्यों नहीं मिल सकती. दिल्ली में जलकी आपूर्ति हरयाणा और उत्तर प्रदेश से होता है. वह जल के लिए दूसरे राज्यों पर आश्रित है. जब वहा ंपर मुफ्त पानी दिया जा सकता है तो मुंबई में यह सेवा आसानी से मुंबई महानगरपालिका दे सकती है. तर्क यह दिया जा रहा है कि मुंबई देश का सबसे ज्यादा राजस्व देनेवाला क्षेत्र हैं. देश की आर्थिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण केंद्र है. इसे दूसरे राज्य से जल नहीं लेना पड़ता फिर भी यहां जल आपूर्ति सेवा महंगी है. इस पर विचार करने की जरुरत है कि मुंबई महानगरपालिका या राज्य सरकार मुंबईकरों को पीने का पानी मुफ्त क्यों नहीं दे सकती. उसी तरह बिजली की आपूर्ति की सस्ती किए जाने की सिफारिश कुछ गणमान्य नागरिक करने लगे हैं.
मॉर्निंग वॉक के दौरान या रेलवे या बसों में यात्रा के दौरान नागरिकों में इस बात की चर्चा है कि मुंबईकरों को पीने का पानी मुफ्त और बिजली सस्ती मिलनी चाहिए. मुंबई को दिल्ली का अनुकरण कर राज्य के नागरिकों को सुविधाएं दी जानी चाहिए. संभवत: कुछ नागरिक संगठन महानगर पालिका और राज्य सरकार से इस बात पर गौर करने के लिए निवेदन कर सकते हैं.
खबर है कि आम आदमी पार्टी भी इस दिशा में प्रशासन का ध्यान खींचने की तैयारी कर रही है. अगर यह मु ा मुंबई महानगर में गरमाया तो अगला लोकसभा चुनाव का परिणाम राजनीतकि दलों की नींद हराम कर सकता है.
नई दिल्ली।। दिल्ली के भावी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि बिजली दरों को 50 प्रतिशत तक घटाना, प्रत्येक परिवार को 700 लिटर मुफ्त पेयजल देना, जनलोकपाल विधेयक लागू करना एवं VIP संस्कृति को खत्म करना उनके एजेंडे में शीर्ष पर हैं।
वहीं, आम आदमी पार्टी के नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार कांग्रेस के खिलाफ आरोपों की जांच जरूर करेगी।
लीड इंडिया के संवाददाता से खास बातचीत में योगेंद्र यादव ने कहा कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस को अपना सहयोगी नहीं मानती है। उन्होंने कहा कि हमने कांग्रेस के सहारे नहीं, जनता के सहारे सरकार बनाई है, भले ही हमारी सरकार पहले दिन गिर जाए, लेकिन हम अपने वादों और सिद्धांतों से समझौता नहीं करेंगे। उनका कहना है कि बीजेपी और मीडिया उन पर लगातार निगाह रख सकती है।
उधर, केजरीवाल का कहना है कि उन्होंने चुनाव अपने लिए, नहीं बल्कि आम आदमी के लिए लड़ा था, जो भ्रष्टाचार के बोझ से दबा हुआ है। केजरीवाल ने कहा कि वह इस बात को लेकर चिंतित नहीं हैं कि विश्वास मत के दौरान उनकी सरकार बचेगी या गिर जाएगी।
केजरीवाल ने कहा, हमने किसी भी दल से समर्थन नहीं लिया है, लेकिन वे कह रहे हैं कि उन्होंने हमें समर्थन दिया है। हम 18 महत्वपूर्ण मुद्दों और अपने घोषणापत्र में उल्लेख किए गए अन्य वादों के आधार पर अपना विश्वास मत लाएंगे।
केजरीवाल ने कहा, जिन विधायकों को हमारा समर्थन करना है, वे हमें सहयोग देंगे। लेकिन यदि वे सरकार गिराते हैं, तो दुबारा चुनाव होंगे और हम उसके लिए तैयार हैं।
नई दिल्ली।। भारतीय जनता पार्टी के पांच सांसदों ने राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से कहा है कि सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की कंपनियों से जुड़े भूमि सौदों में राज्य की पूर्व कांग्रेस सरकार द्वारा की की गई कथित अनियमितताओं की जांच के लिए एक आयोग गठित किया जाए।
BJP के सांसद रविशंकर प्रसाद, जेपी नड्डा, भूपिंदर यादव, अर्जुन मेघवाल और राजेंद्र अग्रवाल ने वसुंधरा को इस संदर्भ में पत्र लिखकर आग्रह किया है। जांच की मांग बीकानेर में वाड्रा की कंपनियों के भूमि सौदों को लेकर की गई है।
भाजपा ने अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए भी इस मामले को उठाया था। इस पत्र में कहा गया है, 'राजस्थान में भूमि चकबंदी अधिनियम है और जब कोई आम व्यक्ति इसका उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ प्रशासन की तरफ से कार्रवाई होती है।
वाड्रा और उनकी कपंनियों ने इस अधिनियम का खुलकर उल्लंघन किया है और बार-बार शिकायत करने के बावजूद कांग्रेस सरकार ने इसको नजरअंदाज किया। इस मामले में पारदर्शी जांच की जरूरत है।'
सांसदों ने कहा, 'अधिकारियों ने तत्कालीन राजस्थान सरकार के कहने पर अपने पद का दुरुपयोग किया ताकि वाड्रा और उनकी कंपनियां भूमि खरीद सकें। जिस तरह से भूमि खरीदी गई और उसका बैनामा हुआ, उसकी जांच की जरूरत है।'
पार्टी सूत्रों का कहना है कि भाजपा इसी तरह से हरियाणा में वाड्रा के भूमि सौदे के मुद्दे को उठा सकती है।