Friday, 19 December 2025
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प्रदेश भाजपा में फिर शुरू हुआ अटकलों का दौर

शिमला/शैल। क्या हिमाचल भाजपा में सब कुछ अच्छा ही चल रहा है? यह सवाल उठा है पार्टी के प्रदेश महासचिव राम सिंह के उस ब्यान के बाद जो उन्होने शिमला में हुई उनकी पत्रकार वार्ता में दागा है। प्रदेश महासविच ने बड़े स्पष्ट शब्दों में यह कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को संगठन में काई बड़ी जिम्मेदारी दिये जाने की चर्चा केवल सोशल मीडिया में ही है और हकीकत में जमीनी स्तर पर कुछ नही है। महासचिव राम सिंह के इस ब्यान के बाद प्रदेश भाजपा के ही शीर्ष नेता पूर्व मुख्यमन्त्री शान्ता कुमार का ब्यान आ गया। उन्होने भी बडे़ स्पष्ट शब्दों में यह कहा कि अगले लोकसभा चुनावों में भाजपा की सरकार तो बन जायेगी लेकिन निश्चित रूप से पार्टी की सीटें कम हो जायेंगी। पार्टी की सीटें कम होने का आकलन और भी कई कोनो से आ रहा है। यह सीटें कितनी कम होती है? सीटें कम होने के बाद सरकार बन पायेगी या नही। यह सब भविष्य के गर्भ में छिपा है। लेकिन जब भाजपा की सीटें कम होगी तो निश्चित रूप से उसके सहयोगी दलों की भी कम हांगी। इसी आशंका के चलते एनडीए के कई सहयोगी अपनी नाराज़गी दिखाने के लिये बहाने तलाशने पर आ गये हैं। जैसा कि रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति ने एनजीटी के नये अध्यक्ष जस्टिस आर्दश गोयल की नियुक्ति को ही बहाना बना लिया। चन्द्र बाबू नायडू की पार्टी तो एनडीए को छोड़कर लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तक ला चुकी है। इस तरह जैसे-जैसे विपक्ष इक्ट्ठा होता जा रहा है और सरकार के खिलाफ उसकी आक्रामकता बढ़ती जा रही है उसी अनुपात में मोदी सरकार की परेशानीयां बढ़ती जा रही हैं।
इस परिदृश्य में यह स्वभाविक है कि हर प्रदेश को लेकर संघ/भाजपा के कई संगठन और सरकारी ऐजैन्सीयां तक लगातार सीटों के आकलन में लगी हुई है बल्कि इस बार के लोकसभा चुनावों में तो अमेरीका, रूस और चीन की ऐजैन्सीयां भी सक्रिय रहेंगी इसके संकेत राष्ट्रीय स्तर पर आ चुके हैं। इन बड़े मुल्कां की ऐजैन्सीयां प्रदेशों के चुनावों पर भी कई बार अपनी नज़रें रखती हैं। इसका अनुभव हिमाचल के 2012 के विधानसभा चुनावों में मिल चुका है। जब अमेरीकी दूतावास के कुछ अधिकारियों ने शिमला में कुछ हिलोपा नेताओं के यहां दस्तक दी थी। इसलिये प्रदेशां को लेकर संघ/ भाजपा की सक्रियता रहना स्वभाविक है क्योंकि सीटें तो प्रदेशों से होकर ही आनी है। इसलिये हर प्रदेश की एक-एक सीट पर नजर रखना स्वभाविक है। पिछली बार हिमाचल से भाजपा को चारों सीटें मिल गयी थी। लेकिन इस बार भी चारों सीटें मिल पायेंगी इसको लेकर पार्टी नेतृत्व भी पूरी तरह आश्वस्त नही हैं। यह ठीक है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार है लेकिन यह भी उतना ही सच्च है कि यदि विधानसभा चुनावों के दौरान धूमल को नेता घोषित नही किया जाता तो स्थिति कुछ और ही होती। क्योंकि लोकसभा चुनावों के दौरान वीरभद्र के जिस भ्रष्टाचार को भुनाया गया था उस दिशा में मोदी सरकार व्यवहारिक तौर पर कोई परिणाम नही दे पायी है। बल्कि आज तो वीरभद्र के भ्रष्टाचार का मुद्दा कांग्रेस की ताकत बन जाता है। आज वीरभद्र और कांग्रेस मोदी पर यह आरोप लगा सकते हैं कि उनके खिलाफ जबरदस्ती मामले बनाये गये हैं। वीरभद्र और आनन्द चौहान ने जब दिल्ली उच्च न्यायालय के एक जज के खिलाफ यह शिकायत की थी कि उन्हे इस अदालत से न्याय मिलने की उम्मीद नही है तभी उन्होने इस बारे में अपनी मंशा सार्वजनिक कर दी थी। इस शिकायत के बाद भी ईडी वीरभद्र की गिरफ्रतारी नही कर पाया था जबकि इस मामले में सहअभियुक्त बनाये गये आनन्द चाहौन और वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर की गिरफ्तारी हुई। आज मोदी सरकार और उसकी ऐजैन्सीयों के पास इसका कोई जवाब नही है। इसलिये आने वाले लोकसभा चुनावों में प्रदेश में जयराम सरकार वीरभद्र और उसकी सरकार के भ्रष्टाचार को कोई मुद्दा नही बना पायेंगे क्योंकि आठ माह के कार्याकाल में एक भी मुद्दे पर कोई मामला दर्ज नही हो पाया है।
हिमाचल में लोकसभा का यह चुनाव मोदी और जयराम सरकार की उपलब्धियों पर लड़ा जायेगा मोदी सरकार की उपलब्धियां का ताजा प्रमाण पत्र अभी दिल्ली में रॅफाल सौदे पर हुई यशवन्त सिन्हा, अरूण शौरी और प्रंशात भूषण की संयुक्त पत्रकारा वार्ता है। इस वार्ता के बाद आया शान्ता कुमार का ब्यान भी उपलब्धियों का प्रमाण पत्रा बन जाता है। मोदी सरकार से हटकर जब जयराम सरकार पर चर्चा आती है तो इस सरकार के नाम पर भी सबसे बड़ी उपलब्धि हजा़रो करोड़ के कर्जो का जुगाड़ है। लेकिन इन कर्जो से हटकर प्रदेश स्तर पर राजस्व के नये स्त्रोत पैदा करने और फिजूल खर्ची रोकने को लेकर कोई कदम नही उठाये गये हैं। बल्कि उल्टे सेवानिवृत से चार दिन पहले तक सारे नियमां/ कानूनो को अंगूठा दिखाकर एक बड़े बाबू को स्टडीलीव ग्रांट करना है। यही नही एक और बड़े बाबू के मकान की रिपेयर हो रहा आधे करोड़ से ज्यादा का खर्चा भी सचिवालय के गलियारों में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। क्योंकि दो मकानां का एक मकान बनाया जा रहा है। अदालतों में सरकार की साख कितनी बढ़ती जा रही है यह भी सबके सामने आ चुका है। इस वस्तुस्थिति में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि संघ/भाजपा प्रदेश की इस स्थिति का आकलन कैसे करती है। यह भी सबको पता है कि विधानसभा चुनावों से पूर्व नड्डा नेतृत्व की रेस में सबसे आगे थे। उनके समर्थकों ने तो जश्न तक मना लिये थे। लेकिन उस दौरान भी जब संघ के आंकलन में स्थिति संतोशजनक नही आयी तब धूमल को ही नेता घोषित करना पड़ा। जब धूमल हार गये तब भी विधायकों का एक बड़ा वर्ग उनको नेता बनाये जाने की मांग कर रहा था। लेकिन धूमल, नड्डा के स्थान पर जयराम को यह जिम्मेदारी मिल गयी। परन्तु इन आठ महीनों में ही चर्चा यहां तक पंहुच गयी है कि कुछ अधिकारी और अन्य लोग ही सरकार पर हावि हो गये हैं। आठ माह में पार्टी कार्यकर्ताओं कोजो ताजपोशीयां मिलनी थी वह संभावित सूचियों के वायरल करवाये जाने की रणनीति से टलती जा रही हैं। कार्यकर्ताओं में रोष की स्थिति आ गयी है। सत्रों की माने तो मोदी-अमितशाह ने इस वस्तुस्थिति का संज्ञान लेते हुए धूमल को दिल्ली बुलाया था। लेकिन जैसे ही धूमल का मोदी-शाह को मिलने बाहर आया तभी प्रदेश में महासचिव के माध्यम से यह चर्चा उठा दी गयी कि धूमल को कोई बड़ी जिम्मेदारी नही दी जा रही है। लेकिन धूमल की इस मुलाकात के बाद जयराम भी दिल्ली गये। वहीं पर हिमाचल सदन में शान्ता और जयराम में एक लम्बी मंत्रणा हुई। इस मंत्रणा से पहले शान्ता कुमार का ब्यान भी आ चुका था। ऐसे में यह माना जा रहा है कि यदि हिमाचल से सीटों को लेकर हाईकमान आश्वस्त नही हो पाता है तो प्रदेश में कुछ भी घट सकता है। क्योंकि यह भी चर्चा है कि इन दिनों केन्द्र की ऐजैन्सीयों ने धूमल- एचपीसीए के खिलाफ चल रहे मामलों के दस्तावेज जुटाने शुरू कर दिये हैं। वैसे इन मामलों को वापिस लेने के लिये राज्य सरकार की ओर से कोई ठोस कदम भी नही उठाये गये हैं और संभवमः हाईकमान ने इस स्थिति का भी संज्ञान लिया है। यही नही राजीव बिन्दल का मामला वापिस लेने में भी सरकार की नीयत और निति सपष्ट नही रही है। इसी 8 माह के अल्प कार्यकाल में ही कई आरोपी पत्र और एक मन्त्री के डीओ लेटर तक वायरल हो गये हैं। यह सारी स्थितियां किसी भी हाईकमान के लिये निश्चित रूप से ही चिन्ता का विषय रहेंगी। माना जा रहा है कि इन्ही कारणों से अमितशाह का दौरा एक बार फिर रद्द हो गया है।

आत्मघाती होंगे वीरभद्र के यह तल्ख तेवर

शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस के अन्दर चल रहा सुक्खु बनाम वीरभद्र वाक्युद्ध जिस मोड़ पर पंहुच चुका है तथा बन्द होने का नाम नही ले रहा है। इससे अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या कांग्रेस हाईकमान ने अब वीरभद्र को ज्यादा अहमियत देना छोड़ दिया है। क्योंकि वीरभद्र सिंह एक लम्बे अरसे से सुक्खु का खुला विरोध करते आ रहे हैं। लेकिन इस विरोध का कोई असर नही हो पाया है। जबकि एक समय था जब प्रदेश कांग्रेस में वही होता था जो वीरभद्र चाहते थे। वीरभद्र ने आनन्द शर्मा, कौल सिंह और सुखराम जैसे नेताओं को जिस तरह पूर्व में अपने रास्ते से हटाया है यह पूरा प्रदेश जानता है। जिस तरह का खेल खेलकर वीरभद्र ने 1983 में मुख्यमन्त्री का पद संभाला था क्या वह कार्यशैली अब उनकी नीयती बन गयी है। क्योंकि इसी कार्यशैली से 1993 में वीरभद्र ने सुखराम को रास्ते से हटाया था। आज सुक्खु को हटाने के लिये भी ठीक उसी कार्यशैली पर चल रहे हैं। उस समय इस कार्यशैली के लाभार्थी वह स्वयं होते थे। लेकिन आज परिस्थितियां एक दम बदली हुई हैं। प्रदेश में भाजपा की सरकार है। अगला विधानसभा चुनाव 2022 में होगा और तब वह 90 वर्ष के हो रहे होंगे। ईश्वर उन्हें लम्बी आयु दे। लेकिन क्या वह तब एक बार फिर मुख्यमन्त्री बनने की ईच्छा रखे हुए हैं। क्योंकि उनका बेटा तो 2022 में तभी नेतृत्व का दावेदार हो सकता है कि अभी से एक अलग संगठन खड़ा कर ले और उसे सत्ता तक ला पाये। वैसे प्रदेश में एक विकल्प की आवश्यकता और संभावना तो बराबर है। वीरभद्र यदि दिल से चाहें तो वह ऐसा सफलतापूर्वक कर भी सकते हैं। यदि उनकी मंशा ऐसा कुछ करने की नही है तो जो कुछ वह आज कर रहे हैं उससे कांग्रेस से ज्यादा अपने ही परिवार का राजनितिक अहित कर रहे हैं। क्योंकि कांग्रेस के अन्दर जो भूमिका वह निभा रहे हैं वही भूमिका संयोगवश भाजपा में शान्ता ने संभाल ली है।
वीरभद्र की भूमिका से जो लाभ भाजपा-जयराम को अपरोक्ष में मिलने की संभावना मानी जा रही है उससे कहीं अधिक नुकसान शान्ता के ब्यान से हो जायेगा। क्योंकि जो दावे आज भी मोदी रोज़गार के क्षेत्र में कर रहे हैं आने वाले दिनों में उन दावों की व्यवहारिकता पर हर प्रदेश में सीधे सवाल उठेंगे। मोदी ने आज भी यह दावा किया है कि उनकी सरकार ने प्रतिवर्ष एक करोड़ रोज़गार दिये हैं। एक करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष देने के हिसाब से पांच वर्षों में हिमाचल के हिस्से में पांच लाख तो आने ही चाहिये थे। इसका जवाब वीरभद्र और जयराम को देना होगा। क्योंकि पहले वीरभद्र की सरकार थी और अब जयराम की है। हिमाचल में वीरभद्र के शासन में कितनों को सरकारी और नीजि क्षेत्र में रोज़गार मिला है इसका खुलासा बजट सत्र में विधानसभा के पटल पर रखे गये सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ो से हो जाता है। इन आंकड़ो के मुताबिक लाखों तो दूर हज़ारों को भी रोज़गार नही मिला है। अभी मण्डी जिले की ही एक पीएचडी टॉपर का मुख्य न्यायधीश को लिखा पत्र रोज़गार के दावों की कलई खोल देता है। क्योंकि इस लड़की ने बेरोज़गारी से तंग आकर ईच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है। यह मण्डी जिले की हकीकत है। और आठ माह से प्रदेश में मण्डी के ही जयराम की सरकार है। ऐसी ही हकीकत अन्य क्षेत्रों में भी है। यही नही चुनावों तक आते-आते राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार के खिलाफ जितने मुद्दे उठने वाले हैं उनके मद्देनज़र आने वाले दिनों में वीरभद्र के ब्यानों और प्रयासों से भाजपा को कोई लाभ नही मिल पायेगा। क्योंकि यदि कांग्रेस प्रदेश में एक सीट भी जीतती है तो यह भाजपा की राष्ट्रीय स्तर पर एक चौथाई हार हो जायेगी और इससे शान्ता का कथन भी सही साबित हो जायेगा। इसलिये आज वीरभद्र के ब्यानों का यही अर्थ लगाया जायेगा कि वह शायद यह सब कुछ किसी बड़ी विवशता में कर रहे हैं।

न्यू शिमला में ग्रीन,पार्क और कामन एरिया का रकबा कितना है हिमुडा के पास नही है जानकारी

शिमला/शैल। न्यू शिमला आवासीय कालोनी को लेकर एक याचिका प्रदेश उच्च न्यायालय में चल रही है याचिकाकर्ता प्रो. अमर सिंह इसी कालोनी के रहने वाले हैं यह कालोनी पूरी तरह स्वतः वितपोषित आधार पर बनी है इसके रखरखाव और अन्य जन सुविधाओं के लिये इसके निवासियों से चार्ज किया जाता है। इस नाते इस कालोनी की एक ईंच जमीन यहां के रहने वालों का मालिकाना हक है। जब इस कालोनी का प्लान तैयार करके प्राचारित किया गया था तो उसमें यहां पर कहां-कहां ग्रीन एरिया,पार्क कमर्शियल एरिया एवम् अन्य आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध रहेगी यह पूरी तरह परिभाषित और चिन्हित था। यही सारा कुछ इसका मुख्य आकर्षण भी था और इसी के कारण लोग यहां पर निवेश के लिये आगे आये। लेकिन जैस-जैसे कालोनी का निर्माण आगे-आगे बढ़ता गया उसी के साथ ग्रीन एरिया और पार्क एरिया कम होने लग पड़ा। प्रदेश उच्च न्यायालय में जो याचिका लम्बित है उसमें यही सबसे बड़ा आरोप है कि यहां पर भू-उपयोग मन माने तरीके से बदला गया है जिसके कारण ग्रीन एरिया और पार्क एरिया कम होता चला गया है। यह मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में लंबित चल रहा है और सबकी निगाहें इसके फैसले पर लगी हैं। स्मरणीय है कि उच्च न्यायालय सरकार से इस कालोनी का विकास प्लान कई बार तलब कर चुका है जो अभी तक उच्च न्यायालय के सामने नही आ पाया है। इस वस्तुस्थिति में यह सवाल उठना बहुत स्वभाविक है कि जब कालोनी का विकास प्लान ही रिकार्ड पर उपलब्ध नही है तो फिर प्लान के बिना यह निर्माण कार्य हो कैसे गया?

इसी दौरान इस कालोनी के एक निवासी डा. पवन बंटा ने कालोनी के ग्रीन एरिया और पार्क एरिया को हिमुडा से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी। 28-7-2018 को यह जानकारी दी गयी है। इस जानकारी में ग्रीन एरिया कामन एरिया और पार्क एरिया की जानकारी दी गयी है। लेकिन इसमें स्थान तो दिखाया गया है परन्तु उसका रकबा कितना है इसको लेकर यह कहा गया है कि यह उपलब्ध नही है। इसी तरह एक जानकारी में यह बताया गया है कि फेज;तीनद्ध के सैक्टर पांच और छः के लिये कुल एरिया 76785.24 वर्ग मीटर अधिगृहित किया गया था। जिसमें से 25974.97 वर्ग मीटर पर हाऊसिंग प्लॉट हैं, सड़क और रास्तों के लिये 18723.55 वर्ग मीटर है, कमर्शियल एरिया 1433.37 वर्ग मीटर है औरओपन/वेस्ट लैण्ड 28841.08 वर्ग मीटर है। इस तरह विभिन्न कार्यों के लिये कुल चिन्हित ज़मीन 74972.97 वर्ग मीटर बनती है जबकि कुल अधिगृहित की गयी ज़मीन 76785.24 वर्ग मीटर है। इस तरह 1812.27 वर्ग मीटर जमीन ऐसी बच जाती है। जो किसी भी कार्य के लिये चिन्हित नही है। जबकि विभिन्न कार्यों के लिये चिन्हित और कुल अधिगृहित एक बराबर होनी चाहिये थी। यह अन्तर क्यों है और इसे किस उपयोग में लाया जायेगा इसको लेकर कुछ स्पष्ट नही किया गया है। लेकिन जब ग्रीन पार्क और कॉमन लैण्ड का रकबा ही हिमुडा के पास उपलब्ध नही है तो यह एक प्रकार से याचिका में लगाये गये आरोप की स्वीकारोक्ति ही हो जाती है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

हिमुडा और बिजली बोर्ड ने थमाये नगर निगम को नोटिस

शिमला/शैल। न्यू शिमला आवासीय कालोनी में स्थित प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड कार्यालय के सामने 23-7-2018 को भारी लैण्डस्लाईड हुआ है। इस लैण्डस्लाईड के कारण सीबरेज लाईन को भी खतरा हो गया है। हिमुडा ने इस लैण्डस्लाईड के लिये नगर निगम को दोषी ठहराया है और आरोप लगाया है कि यह गैंदामल हेमराज के वाणिज्यिक कम्पलैक्स को दिये सीबरेज कनैक्शन के कारण हुआ है। हिमुडा ने कहा है कि नगर निगम को 13-2-2013 को न्यू शिमला के सैक्टर पांच और छः के तीन कार्य पूरे करने के लिये कहा गया था लेकिन नगर निगम ने गैंदामल के प्राईवेट कम्पलैक्स की सीबरेज लाईन को हिमुडा की लाईन से जोड़ दिया। जबकि हिमुडा की लाईन यहां के रहने वालों के लिये ही उपयोग होनी है। निगम ने गैंदामल की लाईन जोड़ने के लिये हिमुडा से कोई अनुमति नही ली है। इस कारण जो नुकसान हुआ है उसकी तुरन्त भरपाई की जाये।
इसी तरह नगर निगम ने न्यू शिमला के डी.ए.वी. स्कूल के सामने 11 के.वी. लाईन के नाचे पार्किंग का निर्माण कर दिया है। यह निर्माण 2010 के सी.इ.र्ए. रैगुलेशन के नीयम 31 की सीधी अवहेलना है। इस निर्माण से कंरट के अवरूद्ध होने का खतरा हो गया है तथा कभी भी जानमाल का नुकसान हो सकता है। यह निर्माण नियमों के विरूद्ध है और इसकी कोई अनुमति नही ली गयी है। ऐसे में यदि कोई जानमाल का नुकसान हो जाता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी नगर निगम की होगी। इस निर्माण को तुरन्त प्रभाव से गिरा दिया जाये। इसी तरह फेज(दो)के सैक्टर चार स्थित ब्लाक 50A और 50B के साथ लगते पार्क की बाहरी दीवार गिरने से वहां खड़े पेड़ के गिरने का खतरा हो गया है। यह दीवार पार्क के रखरखाव कार्य करने के कारण गिरी है। इसी कारण से इस पेड़ की जड़े खोखली हो गयी जो अब गिरने के कगार पर पंहुच गया है। हिमुडा ने नगर निगम को नोटिस भेजकर इस पेड़ को भी तुरन्त प्रभाव से काटने का आग्रह किया है।
स्मरणीय है कि न्यू शिमला में नगर निगम अमृत योजना के तहत कार्य करवा रही है। लेकिन इन कार्यो की गुणवता पर लगातार सवाल उठने शुरू हो गये हैं। इन्ही सवालों के कारण बिजली बोर्ड और हिमुडा को निगम को नोटिस देने की नौबत आ खड़ी हुई है।




















































































 

क्या प्रदेश भाजपा में बिछने लगी है बड़े विस्फोट की विसात

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जय राम पिछले दिनां जब राष्ट्रीय अध्यक्ष अभितशाह का प्रदेश दौरा स्थगित होने के बाद दिल्ली जाकर उनसे मुलाकात करके वापिस लौटे तब से अटकलों का यह दौरा शुरू हुआ कि वह विभिन्न निगमां/ बोर्डां में होने वाली संभावित ताजपोशीयों को अन्तिम रूप दे आये हैं। बल्कि यह अटकलें यहां तक पंहुच गयी कि ऐसे सभावित सत्राह नेताआें की एक सूची सोशल मीडिया से बाहर भी आ गयी। इस सूची में वाकायदा यह जिक्र है कि किस नेता को कहां ताजपोशी मिल रही है। इस सूची में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सत्तपाल सत्ती को बीस सूत्रीय कार्यक्रम का अध्यक्ष दिखाया गया है। सत्ती का ऐसा जिक्र आने के बाद ऊना के ही एक नेता भनोट ने सोशल मीडिया में यह स्पष्टकीकरण जारी किया कि पार्टी के नियमों के अनुसार अध्यक्ष रहते हुए सरकार में कोई पद स्वीकार नही कर सकते। भनोट ने सोशल मीडिया में आयी इस सूची को एकदम अफवाह करार देते हुए इस पर विश्वास नही करने को कहा है। लेकिन पार्टी अध्यक्ष सत्ती या सरकार की ओर से कोई स्पष्टीकरण नही आया है। मुख्यमन्त्री ने अपनी ऊना यात्रा के दौरान बंगाणा में एक ब्यान में यह कहा था कि वह ऐसी ताजपोशीयों के हक में नही है। लेकिन जो सूची वायरल हुई है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सूची मीडिया की उपज नही है। बल्कि पार्टी के ही सूत्रों के माध्यम से बाहर आयी है इससे यह इंगित होता है कि इस सूची को एक विशेष मकसद से वायरल किया गया है।
इसी दौरान मुख्यमन्त्री की दिल्ली यात्रा से जोड़कर ही यह चर्चा भी बाहर आयी कि मन्त्रीयों के रिपोर्ट कार्ड के आधार पर मन्त्रीयों के विभागों में भी फेरबदल होने जा रहा है। लेकिन इसी फरेबदल की चर्चा के साथ ही मुख्यमन्त्री के दो विशेष कार्याधिकारियां शिशु धर्मा और मेहन्द्र धर्माणी को लेकर भी एक पत्र मीडिया तक पंहुच गया। यह पत्र किसी विनोद कुमार नाभा शिमला के नाम से लिखा गया है। पत्र में दोनों के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाये गये हैं। इस पत्र को लेकर जब शैल ने इनसे संपर्क करने का प्रयास किया तो इनके फोन पर घंटी तो जाती रही लेकिन किसी ने फोन उठाया नही। मन्त्रीमण्डल में फेरबदल की चर्चा के दौरान ही सोलन में महिला मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रश्मिधर सूद के यहां कुछ नेताओं की बैठक हुई। इस बैठक में मुख्यमन्त्री और सरकार की कार्यप्रणाली पर चर्चा हुई। इस चर्चा की जो तर्ज रही उसको लेकर बैठक में ही शामिल एक नेता ने एतराज उठाया और बैठक से बाहर आ गये। सूत्रों के मूताबिक इस बैठक की सूचना मुख्यमन्त्री को देने के लिये उनके कार्यालय में इन नेता ने फोन किया लेकिन मुख्यमन्त्री से इस नेता की बात नही हो पायी। फिर इसकी जानकारी ओएसडी शिशु धर्मा और मन्त्री महेन्द्र सिंह को भी दी गयी।
दूसरी ओर कुछ मन्त्रीयों के ओएसडी और अन्य स्टाफ में तालमेल के अभाव की शिकायतें चर्चा में आनी शुरू हो गयी हैं। वीरभद्र सरकार के दौरान सभी मन्त्रीयों को भी अपने विश्वास के ओएसडी अपने कार्यालयों में लगाने की सुविधा दे दी गयी थी। भाजपा सरकार के दौरान भी यह सुविधा यथावत जारी है। लेकिन भाजपा में यह ओएसडी नियुक्त करते हुए यह ध्यान रखा गया है कि व्यक्ति संघ की वैचारिक पृष्ठिभूमि का ही हो ताकि संघ के लोगों को मन्त्रीयों के यहां अपने काम करवाने में सुविधा रहे। लेकिन जहां ओएसडी तो संघ की पृष्ठिभूमि के लग गये वहीं पर स्टाफ में कुछ ऐसे लोग भी आ गये जो पूर्व में काग्रेस के आदमी माने जाते थे। प्रदेश में कर्मचारियां की संख्या के आधार सबसे बड़ा विभाग शिक्षा का है। यहां पर शिक्षा मन्त्री के ओएसडी डा. पुण्डीर है जो पूर्व में शिक्षा विभाग में ही कार्यरत थे। यहां शिक्षा मन्त्री के कार्यालय में शायद एक ऐसा कर्मचारी भी अपना स्थान पा गया है जो पूर्व में मुख्यमन्त्री के कार्यालय में रह चुका है और 2017 के एक विधानसभा उपचुनाव में टिकट की दावेदारी भी जता चुका है। इस तरह शिक्षा मन्त्री के कार्यालय में मन्त्री के ओएसडी और स्टाफ में बैठे ऐसे कर्मचारियों में तालमेल का ऐसा अभाव चल रहा है कि यदि कोई व्यक्ति शिक्षा मन्त्री के कार्यालय में आकर ओएसडी के बारे में पूछता है तो उसे यह जबाव मिलता है कि हम नही जानते। भुक्त भोगियों के अनुसार कई बार तो यह जवाब अभद्रता की सीमा तक पहुच जाते हैं। इस तरह वीरभद्र शासन में मन्त्रीयो के स्टाफ में या कुछ निकटस्थ अधिकारियों के स्टाफ में रह चुके कर्मचारी आज भी वनवास भोगने की बजाये फिर से सत्ता सुख भोग रहे हैं। ऐसे लोगों का संघ की पृष्ठिभूमि वाले ओएसडी से कतई तालमेल नही बैठ रहा है और इसका नुकसान आम आदमी को उठाना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति तीन चार मंत्रीयों के यहां चल रही है। अब यह स्थित बाहर सार्वजनिक चर्चा का विषय बनती जा रही है और सरकार पर यह आरोप लग रहा है कि उसे शासन की समझ ही नही आ रही है।
सरकार को बने हुए सात माह हो गये हैं इस अवधि में कर्मचारियों और अधिकारियों के तबादले बड़े पैमाने पर हो चुके हैं उसके बाद भी सरकार की प्रशासनिक समझ को लेकर अब तक अनुभवहीनता का आरोप लगना निश्चित रूप से सरकार की सियासी सेहत के लिये ठीक नही है जबकि अगले लोकसभा चुनावों की घोषणा कभी भी हो सकती है। ऐसे में सरकार की छवि को लेकर अब तक भी अनुभव हीनता का आरोप लगना चुनावी समझ पर एक सवालिया निशान खड़ा कर देता है। इस परिदृश्य में यदि सरकार की छवि का आकलन उसके अब तक के लिये गये फैसलों के आधार पर किया जाये तो कोई बहुत सन्तोशजनक स्थिति सामने नही आती है। क्योंकि बहुत सारे फैसले ऐसे हैं जो अन्त विरोधों से भरे हुए हैं उदाहरण के रूप में अभी जो विद्युत परियोजना एनएचपीसी को दी गयी हैं वह 70 वर्षों तक एनएचपीसी के पास रहेगी जबकि पहले ऐसी योजनाएं केवल चालीस वर्ष के लिये दी जाती थी। क्या इस फैसले से यह सन्देश नही जा रहा है कि अभी तक निजिक्षेत्र प्रदेश के विद्युत उत्पादन में निवेश के लिये आगे नही आ रहा है। इसी तरह ठेकेदारों को जहां निर्माण साम्रगी खुले बाज़ार से खरीदने का फैसला सुनाया गया है वहीं पर इन ठेकेदारों को अपने स्टोनक्रशर लगाने की सुविधा प्रदान कर दी गयी है। इस फैसले से खनन के क्षेत्र में जो आरोप अब तक लगते आये हैं क्या उन्हें अब एक बड़ा फलक नही मिल जायेगा।
इस सारी वस्तुस्थिति का यदि निष्पक्ष आकलन किया जाये तो पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि यदि मुख्यमन्त्री समय रहते न संभल पाये तो कोई बड़ा विस्फोट कभी भी घट सकता है। स्थिति बन चुकी है और इसका पूरा नियन्त्रण प्रदेश के तीनों बडे़ ध्रुवों के हाथों में केन्द्रित है। जो मुख्यमन्त्री की सियासी सेहत के लिये कभी भी नुकसानदेह साबित हो सकता है। क्योंकि निकट भविष्य में लोकसभा चुनावों का सामना करना है। इन चुनावों के लिये अभी प्रत्याशियों कि सूची को अन्तिम रूप दिया जाना शेष है। जबकि सरकार की स्थिति यह हो गयी है कि कामगार बोर्ड में जो ताजपोशी की गयी थी वह अभी तक अमली शक्ल नहीं ले पायी है। चर्चा है कि संघ का ही एक बड़ा नेता इसके खिलाफ है। ऐसे में ताजपोशीयों की जो सूची वायरल की गई है उसके पीछे भी मंशा इन्हे रोकने की ही मानी जा रही है। इस परिदृश्य में यह स्वभाविक सवाल उठता है कि जो लोग अभी से खुला पत्र दागने, सूचियां वायरल करने और बैठकें आयोजित करने की रणनीति पर आ गये हैं उनके ईरादे यहीं तक रूकने के नही हो सकते।


वायरल हुआ खुला पत्र

 

  

वायरल हुई ताजपोशियो की सूची

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