एनजीटी के फैसले पर स्टे नहीं है
इस फैसले के बाद बने निर्माणों के लिये जिम्मेदार कौन?
शिमला प्लान अदालत रिजैक्ट कर चुकी है फिर एटिक के लिये नियमों में संशोधन कैसे संभव
स्मार्ट सिटी में शिमला को लोहे का जंगल बनाने का प्रयास क्यों?
क्या चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी इन सवालों पर अपना पक्ष स्पष्ट करेंगे?
शिमला/शैल। नगर निगम शिमला को हिमाचल माना जाता है क्योंकि राजधानी नगर होने के नाते प्रदेश के हर जिले के लोग यहां पर मिल जाते हैं। राज्य सरकार का सचिवालय और विभागों के निदेशालय तथा विश्वविद्यालय यहां होने के कारण इन अदारों में काम करने वाले कई अधिकारी और कर्मचारी सेवानिवृत्ति के बाद यहीं के स्थाई निवासी बन गये हैं। यह वह वर्ग होता है जो सरकार के फैसलों की गुण दोष के आधार पर सबसे पहले समीक्षा कर लेता है। शिमला नगर निगम क्षेत्र में इसी वर्ग का बहुमत है। इसलिये यहां की नगर निगम का चुनाव वार्ड की समस्याओं और उनके समाधानों के आश्वासनों पर ही आधारित नहीं रहता है। क्योंकि नगर निगम के अपने संसाधन बहुत अल्प रहते हैं और उसे हर चीज के लिये सरकार पर ही आश्रित रहना पड़ता है। इसलिये नगर निगम के चुनाव में सरकार की कारगुजारियों की एक बड़ी भूमिका रहती है। नगर निगम के चुनावों का कोई आकलन इस व्यवहारिक पक्ष को नजरअन्दाज करके नही किया जा सकता। शिमला को स्मार्ट बनाने के लिये स्मार्ट सिटी परियोजना का काम चल रहा है। स्मार्ट सिटी से पहले एशियन विकास बैंक से पोषित शिमला के सौन्दर्यकरण की परियोजना चल रही थी। अभी शिमला की जलापूर्ति के लिये एक विदेशी कंपनी से साइन किया गया है। यह सारी परियोजनाएं कर्ज पर आधारित हैं जिसकी भरपाई प्रदेश के हर आदमी को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष करनी है। क्योंकि नगर निगम के अपने पास इस सब के लिये पर्याप्त आर्थिक साधन नहीं है। शिमला एक पर्यटक स्थल भी है। यहां पर्यटकों को मैदानों जैसी सुविधाएं प्रदान करने के नाम पर पहाड़ को मैदान बनाने का प्रयास किया जा रहा है। पूरा हिमाचल गंभीर भूकम्प जोन में आता है और शिमला इसमें अति संवेदनशील क्षेत्र है। 1971 में जो लक्कड़ बाजार और रिज प्रभावित हुए थे वह आज तक नहीं संभल पाये हैं। भवन निर्माण सबसे बड़ी समस्या है। अभी तक शिमला के लिये सरकार स्थाई प्लानिंग नीति नहीं बना पायी है। पिछली सरकार ने एनजीटी के निर्देशों के बाद जो प्लानिंग नीति तैयार की थी उसे अदालत रिजैक्ट कर चुकी है क्योंकि उसमें एनजीटी के निर्देशों को भी नजरअन्दाज कर दिया गया था। वोट की राजनीति के चलते दोनों दलों की सरकारें शिमला में नौ बार रिटैन्शन पॉलिसियां लाकर यहां की समस्याओं को बढ़ाती रही है। आज जो चुनाव चल रहा है उसमें किसी भी दल ने अभी तक शिमला की इन समस्याओं पर अपना रुख साफ नहीं किया है। बल्कि राजधानी नगर और प्रदेश के सबसे बड़े नगर निगम का चुनाव वार्ड के मुद्दों के गिर्द घुमाकर मूल समस्याओं पर चुप रह कर काम निकालने का प्रयास किया जा रहा है। एनजीटी ने नये निर्माणों पर प्रतिबन्ध लगा रखा है। सरकार इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय गयी हुई है। लेकिन शीर्ष अदालत ने एनजीटी के फैसले को स्टे नहीं किया है। स्टे न होने से यह फैसला लागू है। इसके बावजूद फैसले के बाद नगर निगम क्षेत्र में सैकड़ों निर्माण एनजीटी के निर्देशों की अवहेलना करके खड़े हो गये हैं जिन पर सरकार को रुख स्पष्ट करना होगा। शिमला प्लान रिजैक्ट होने के बाद भी अब एटिक को रहने योग्य बनाने के लिये नियमों में संशोधन करने की घोषणा कर दी गयी है क्योंकि चुनाव चल रहा है। क्या सरकार एनजीटी की अनुमति के बिना ऐसी घोषणा कर सकती है शायद नहीं। इसलिये आज चुनाव लड़ रहे हर प्रत्याशी और राजनीतिक दल को शिमला के मूल मुद्दों पर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिये। क्योंकि एन जी टी का फैसला 2016 में आ गया था। उसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय जाकर स्थिति को अधर में लटका कर अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास शिमला के हित में नही होगा।
शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने गारंटियां पूरी करने की दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुये हिमाचल दिवस के अवसर पर काजा में राज्य स्तरीय समारोह में लाहौल स्पीति की नौ हजार पात्र महिलाओं को जून माह से पंद्रह सौ प्रतिमाह देने की घोषणा की है। इससे पहले कर्मचारियों को ओल्ड पैन्शन इसी माह से बहाल कर दी है। नई पैन्शन योजना के तहत कर्मचारियों का जो अंशदान काटा जा रहा था वह इसी के साथ बन्द हो जायेगा और यह हर कर्मचारी को तत्काल प्रभाव से एक सीधा लाभ मिलना शुरू हो जायेगा। अन्य गारंटीयां भी अपने इसी कार्यकाल में यह सरकार पूरी कर देगी यह भरोसा प्रदेश की जनता को होने लगा है। यह गारंटीयां और विकास के अन्य कार्य पूरे करने के लिये संसाधन कैसे बढ़ाये जायें इस दिशा में भी सकारात्मक व्यवहारिक कदम उठाने शुरू कर दिये गये हैं। इस कड़ी में काजा में ही केन्द्रीय ऊर्जा सचिव से भेंट करके प्रदेश में केंद्रीय एजैन्सियों द्वारा निष्पादित की जा रही जल विद्युत परियोजनाओं में प्रदेश की हिस्सेदारी बढ़ाकर 40% करने का विषय उठाया है। केंद्रीय स्वामित्व वाली जो परियोजनाएं अपनी लागत वसूल कर चुकी हैं उनमें यदि प्रदेश की हिस्सेदारी कुछ भी बढ़ पाती है तो वह राज्य को सीधा लाभ होगा। केन्द्रीय योजनाओं में हिस्सा बढ़ाने के साथ ही शानन जल विद्युत परियोजना की 100 वर्ष की लीज अवधि अगले वर्ष समाप्त होने पर उसका स्वामित्व भी प्रदेश को सौंपने का मुद्दा भी केन्द्रीय उर्जा सचिव से उठाया गया है। इस परिदृश्य में जिस तरह की वित्तीय स्थिति इस सरकार को विरासत में मिली है उसे सामने रखते हुए इस सरकार को जहां संसाधन बढ़ाने के लिये काम करना होगा वहीं पर कर्ज भार बढ़ाने से भी बचाना होगा। सुक्खू सरकार को 31 मार्च तक ही करीब 5000 करोड़ का कर्ज उठाना पड़ गया है। अब अगले वित्तीय वर्ष के लिये 12000 करोड़ का कर्ज उठाने का प्रयास किया जा रहा है। 12000 करोड़ के कर्ज का आंकड़ा केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री हमीरपुर के सांसद अनुराग ठाकुर ने एक पत्रकार वार्ता में सामने रखा है। इस प्रस्तावित कर्ज के आंकड़े पर सरकार या कांग्रेस के किसी बड़े पदाधिकारी की कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। प्रतिक्रिया न आना इस आंकड़े की पुष्टि करता है। यह आंकड़ा उस समय बहुत बड़ा हो जाता है जब जयराम सरकार द्वारा पांच वर्षों में 23800 करोड़ का कर्ज लेने का आंकड़ा बजट सत्र में सदन के पटल पर आ चुका है। सरकार बनने के बाद जिस तरह से कुछ चीजों के दाम/दरें बढ़ायी गयी उनको लेकर जनता में चर्चा चल पड़ी है। यदि यह सरकार कर्ज लेकर और वस्तुओं तथा सेवाओं के दाम बढ़ाकर ही गारंटिया पूरी करने की बात करती है तो यह सरकार और प्रदेश के व्यापक हित में नहीं होगा। क्योंकि इससे महंगाई और बेरोजगारी ही बढ़ेगी जिससे जनता पहले ही परेशान है। संसाधन बढ़ाने के उपाय करने के साथ ही सरकार को अवांछित खर्चों पर लगाम लगानी होगी। इसी के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यवहारिक स्तर पर कार्यवाही करनी होगी। जयराम सरकार के खिलाफ भी यह बड़ा आरोप रहा है कि उसने किसी भ्रष्टाचारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। अब यह सरकार भी अपने आरोप पत्र अब तक विजिलैन्स को नहीं भेज पायी है। जबकि इसे तो जारी भी चुनाव के दौरान किया गया था।
शिमला/शैल। नगर निगम शिमला प्रदेश का एकमात्र ऐसा स्थानीय निकाय है जो तीन विधानसभा क्षेत्रों शिमला ग्रामीण, कुसुम्पटी और शिमला शहरी में एक साथ फैला हुआ है। शिमला को नगर निगम बनाने और यहां कार्यरत कर्मचारियों को राजधानी भत्ते का पात्र बनाने के लिये इसकी सीमाओं का विस्तार किया गया था। नगर निगम में जो वार्ड शिमला ग्रामीण और कुसुम्पटी विधानसभा क्षेत्रों में शामिल किये गये हैं उनमें आज भी वह सभी सुविधाएं उसी स्तर और अनुपात में उपलब्ध नहीं है जो शिमला शहरी में उपलब्ध हैं। लेकिन भवन निर्माण आदि को लेकर जो नियम शिमला शहरी में लागू है वही इन क्षेत्रों में भी लागू है। कई बार इसको लेकर सवाल उठते रहे हैं। लेकिन निगम चुनावों में यह विसंगति कभी मुद्दा नहीं बन पायी है। क्योंकि इन वार्डों में से कभी कोई ऐसा नेतृत्व नहीं उभर पाया है जो स्थापित नेतृत्व के लिये चुनौती बन सके। क्योंकि यहां का नेतृत्व विधानसभा चुनाव के समय दो क्षेत्रों में एक साथ बंटकर रह जाता है और कहीं भी प्रभावी राजनीतिक गणना में नहीं आ पाता है। इस वस्तुस्थिति में यह सवाल अब उभरने लगा है कि जब शिमला ग्रामीण और कुसुम्पटी में पड़ने वाले नगर निगम के वार्ड सारी व्यवहारिकताओं के लिये नगर निगम शिमला का हिस्सा है तो फिर इन वार्डों को स्थाई रूप से शिमला शहरी विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा क्यों नहीं बना दिया जाता है। प्रशासनिक दृष्टि से यह सारे वार्ड एक ही प्रशासनिक इकाई का अंग बन जायेंगे। आज नगर निगम चुनाव में यह निगम का हिस्सा है और विधानसभा चुनाव में शिमला ग्रामीण और कुसुम्पटी का हिस्सा होते हैं। लेकिन विकासात्मक कार्यों के लिए दो जगह एक साथ बंटे होने से कहीं से भी कुछ भी पाने में पिछड़ जाते हैं। इसलिये यह प्रश्न उठ रहा है कि इन्हें शिमला शहरी विधानसभा का हिस्सा बना दिया जाये।
शिमला/शैल। नगर निगम शिमला में चुनाव प्रक्रिया चल रही है और इसके परिणाम स्वरूप निगम क्षेत्र में चुनाव आचार संहिता लागू है। इस संहिता के चलते नगर निगम प्रशासन और राज्य सरकार ऐसी कोई घोषणा नहीं कर सकते जिसका प्रभाव निगम क्षेत्र के निवासियों पर पड़ता हो। लेकिन सुक्खू सरकार ने 13 अप्रैल को हुई मंत्री परिषद की बैठक में यह फैसला ले कर सबको चौंका दिया कि सरकार एटिक फ्लोर को वाकायदा रहने लायक बनाने के लिये 2014 के टी.सी.पी. नियमों में संशोधन करने जा रही है। इसके लिए चार और 15A में संशोधन करके एटिक की ऊंचाई बढ़ाने का प्रावधान किया जायेगा। स्मरणीय है कि मकानों के नक्शे पास करवाने की आवश्यकता शहरी क्षेत्रों में ही आती है। जहां पर एन.ए.सी. नगरपालिका या नगर निगम है। इसमें भी सबसे ज्यादा समस्या नगर निगम शिमला क्षेत्र की है। जहां पर नौ बार कांग्रेस और भाजपा की सरकारें रिटैन्शन पॉलिसियां ला चुकी है। कई बार प्रदेश उच्च न्यायालय सरकारों के प्रयासों पर कड़ी टिप्पणियां करते हुये अंकुश लगा चुका है। क्योंकि शिमला भूकंप के मुहाने पर खड़ा है और राज्य सरकार अपनी ही रिपोर्टों में यह स्वीकार भी कर चुकी है।
1971 में किन्नौर में आये भूकंप के दौरान शिमला का लक्कड़ बाजार क्षेत्र और रिज जो प्रभावित हुआ था वह आज तक पूरी तरह संभल नहीं पाया है। शिमला की इस व्यवहारिक स्थिति और सरकार के अपने ही अध्ययनों का संज्ञान लेते हुये एन.जी.टी. ने 2016 में शिमला में अढ़ाई मंजिल से अधिक के निर्माणों पर रोक लगा दी थी और कोर क्षेत्र में तो नये निर्माणों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया था। शिमला से कार्यालयों को बाहर ले जाने की राय दी है। शिमला में अढाई मंजिल से अधिक के निर्माणों पर इसलिये प्रतिबन्ध लगाया गया है क्योंकि शिमला की और भार सहने की क्षमता नहीं रह गयी है। प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने पुराने भवन को गिराकर नया बनाने की अनुमति एन.जी.टी. से मांगी थी जो नहीं मिली और उच्च न्यायालय ने इस इन्कार को चुनौती नहीं दी है। सरकार ने एन.जी.टी. के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे रखी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के फैसले को स्टे नहीं किया है।
जयराम सरकार के समय में शिमला के लिये एन.जी.टी. के आदेशों के अनुसार एक स्थाई प्लान बनाने के निर्देश दिये थे। इन निर्देशों के तहत यह प्लान तैयार भी हुआ और इसमें भवन निर्माण के लिये कई राहतें दी गयी थी। जैसी अब एटिक फ्लोर के लिये दी गयी है। बड़ी धूमधाम से पत्रकार वार्ता में यह 250 पन्नों का प्लान जारी किया गया। लेकिन अन्त में अदालत ने इसे अपने निर्देशों की उल्लंघना करार देकर निरस्त कर दिया। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब एन.जी.टी. के निर्देशों की अवहेलना करके बनाये गये प्लान को रिजैक्ट कर दिया गया है तो अब एटिक की ऊंचाई 2.70 मीटर से 3.05 मीटर करके उसको नियमित करने के फैसले को कैसे अदालत अपनी स्वीकृति दे देगी फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और सरकार का फैसला वहां तक पहुंचेगा ही। ऐसे में यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि प्रशासन के सामने यह सारी स्थिति स्पष्ट थी तो क्या प्रशासन ने मंत्रिपरिषद को इससे अवगत नहीं कराया होगा? क्या प्रशासन की राय को नजरअंदाज करके राजनीतिक नेतृत्व ने वोट की राजनीति के लिये यह लुभावना फैसला ले लिया। कानून के जानकारों की राय में यह राहत एन.जी.टी. के फैसले की अवहेलना है और इसका लागू हो पाना संदिग्ध है। जबकि इसके बिना भी सरकार की स्थिति मजबूत थी।
शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने अध्यक्ष सुरेश कश्यप की अध्यक्षता में राज्य चुनाव आयुक्त को नगर निगम शिमला के लिये कांग्रेस द्वारा फर्जी वोट बनाये जाने का गंभीर आरोप लगाया है। कहा गया है कि एक घर में 18 से 20 वोट बनाने का प्रयास किया जा रहा है और ऐसा उप-मुख्यमंत्री और कुछ अन्य मंत्रीयों के घरां में हो रहा है। आरोय लगाया गया है कि वैनमोर में एक ही कमरे में 18 से 20 लोगों ने वोट बनाने के लिये आवेदन किया है और भी कई वार्डों से ऐसी शिकायतें आ रही हैं। निगम चंनावों के लिये जारी किये गये रोस्टर को तैयार करने में भी पक्षपात का आरोप लगाया गया है। भाजपा के यह आरोप गंभीर है और इन चुनावों में यह बड़ा मुद्दा बनेंगे यह तय है। राज्य निर्वाचन आयोग और संबद्ध प्रशासन कि इन आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। निवर्तमान निगम सदन में भाजपा का बहुमत था। सी.पी.एम. और कांग्रेस के कुछ पार्षद भी पासा बदलकर भाजपा में शामिल हो गये थे। इस समय निगम क्षेत्र में स्मार्ट सिटी और अन्य परियोजनाओं में जो कार्य चले हये हैं उनका केंद्रीय सहायता के बिना पूरा होना संभव नहीं होगा। यह तथ्य भी इन चुनावों को प्रभावित करेगा ऐसा माना जा रहा है। भाजपा प्रदेश विधानसभा का चुनाव एक प्रतिश्त से भी कम अन्तर से हारी है। सुक्खू सरकार के पहले बजट सत्र में भाजपा ने विपक्ष की भूमिका काफी प्रभावी निभाई है। नेता प्रतिपक्ष सदन में काफी आक्रामक रहे हैं। यह एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संयोग रहा है कि सुक्खू सरकार ने शपथ ग्रहण समारोह के दूसरे ही दिन पिछले छः माह के फैसले पलटकर ऐसा मुद्दा भाजपा को थमा दिया जिससे वह पहले ही मंत्रिमंडल विस्तार तक प्रदेश के हर कोने तक ले गयी। प्रदेश उच्च न्यायालय में इस संद्धर्भ में याचिका भी दायर कर दी गयी है। पूरे बजट सत्र में भाजपा ने इस मुद्दे को काफी भुनाया है। इन सारे मुद्दों के अतिरिक्त सरकार ने गारंटीयों को पांच वर्ष में पूरा करने की बात कहकर विपक्ष को और मुद्दा दे दिया है। तीन सौ यूनिट बिजली मुफ्त तब दी जायेगी जब 2000 मेगावाट सोलर ऊर्जा का उत्पादन हो जाएगा और तब तक बिजली की दरें बढ़ा दी गयी हैं। बिजली के अतिरिक्त निगम क्षेत्रों में पानी और गारवेज कलैक्शन की दरें भी 10% बढ़ाकर भाजपा को मुद्दा थमा दिया है। इस तरह मुद्दों के नाम पर निश्चित रूप से भाजपा का प्रक्ष कुछ मजबूत है। देखना है कि चुनाव में आक्रामकता रहती है या नहीं।