शिमला/शैल। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की वित्त मन्त्री सीतारमण ने वर्ष 2019-20 के अपने दो घन्टे के बजट भाषण में जहां सरकार की विभिन्न आर्थिक योजनाओं का जिक्र देश के सामने रखा वहीं पर उन्होने आंकड़ो का कोई खुलासा नही किया। ऐसा शायद पहली बार हुआ है अन्यथा बजट में सरकार की आय-व्यय की पूरी विस्तृत जानकारी भाषण में रहती है। जब भी सरकार को बजट सामने आता है उसका तत्काल प्रभाव शेयर बाज़ार पर पड़ता है। शेयर बाजा़र पर इस बार भी असर पड़ा और करीब 6 लाख करोड़ निवेशकों का डूब गया। यह एक ऐसी स्थिति थी जिससे बजट दस्तावेजों को देखने -समझने की जिज्ञासा होना स्वभाविक था।
इन दस्तावेजों के मुताबिक सरकार वर्ष 2019-20 में कुल 27,86,349 करोड खर्च करेगी। यह खर्च मोटे तौर पर कहां-कहां खर्च होगा उसका विवरण इस प्रकार है।

लेकिन इस खर्च के लिये जो आय के साधन रहेंगे उनमें सबसे बड़ा साधन है सरकार की राजस्व आय जिसमें कर राजस्व और गैर कर राजस्व दोनों शामिल रहते हैं। सरकार की यह राजस्व आय वर्ष 2019-20 के लिये 19,62,761 करोड़ रहेगी और 27,86,349 करोड़ का कुल खर्च पूरा करने के लिये विभिन्न ऋणों के माध्यम से इस बार 8,23,588 करोड़ की पूंजीगत प्राप्तियां जुटाई जायेंगी। इन पूंजीगत प्राप्तियांं के साथ इस वर्ष का खर्चा तो पूरा हो जाता है लेकिन अब तक जो राजकोषीय और राजस्व का घाटा खड़ा है वह चिन्ता और चिन्तन का विषय बन जाता है। बजट दस्तावेजों के मुताबिक यह घाटा और कर्जा मिलकर सरकार की राजस्व आय से करीब तीन लाख करोड़ से भी अधिक हो जाता है। राजस्व प्राप्तियांं, पूंजीगत प्राप्तियों और घाटे का विवरण इस प्रकार है।
कर्जे और घाटे की आर्थिक व्यवस्था उस समय चिन्ता का विषय बन जाती है जब सरकार को अपने विभिन्न अदारों में विनिवेश करके राजस्व जुटाने की स्थिति आ जाये। बजट से पहले यह चर्चा थी कि सरकार 90,000 करोड़ विनिवेश से जुटायेगी। लेकिन बजट दस्तावेजों के मुताबिक सरकार अब 1.5 लाख करोड़ विनिवेश से हासिल करेगी। इस विनिवेश से एक समय तो सरकार को आय हो जाती है लेकिन भविष्य के लिये वह संसाधन सरकार के हाथ से निकल जाता है। परन्तु इसी के साथ एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो जाता है कि क्या सारा घाटा विनिवेश और आम आदमी पर करों का बोझ लाद कर पूरा किया जा सकता है? फिर पूंजीगत प्राप्तियों की तो परिभाषा ही यह है कि इसका निवेश तो विकासात्मक कार्यों और राजस्व के नये साधन जुटाने के लिये हो। लेकिन बजट दस्तावेजों के अवलोकन से इस धारणा पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है।

शिमला/शैल। विभिन्न सरकारी विभागों और अन्य अदारों में छोटे-बड़े सामान की करोड़ों की खरीद होती है। बहुत सारे विभागों में तो एक ही तरह का सामान खरीदा जाता है लेकिन इस खरीद में प्राय रेटों की भिन्नता पायी जाती है और यही भिन्नता भ्रष्टाचार को जन्म देती है। इस भिन्नता और इसके परिणामस्वरूप होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिये टैण्डर और रेट कान्ट्रैक्ट की प्रणालीयां अपनाई गयी हैं लेकिन इन प्रणालीयों को नजरअन्दाज करके करोड़ों की खरीद हो रही है। अभी स्वास्थ्य विभाग में हुई बायोमिट्रिक मशीनों की खरीद में हुआ भ्रष्टाचार इसी का परिणाम है। इसमें दिलचस्प बात यह है कि इस तरह की खरीद कुछ निगमों बोर्ड़ों के माध्यम से हो रही है और इसके लिये तर्क यह दिया जा रहा है कि ऐसी खरीद करके यह सरकारी अदारे अपने कर्मचारियों का वेतन तो निकाल रहे हैं। इस समय अधिकांश निगम बोर्ड घाटे में चल रहे हैं क्योंकि जिन उद्देश्यों के लिये इनका गठन किया गया था उस दिशा में अब काम हो ही नहीं रहा है। कुछ अदारे तो बन्द कर दिये गये हैं और उनके कर्मचारियों का अन्यों में विलय कर दिया गया है। लेकिन अभी तक समग्र रूप से सारे अदारों का आकलन नही किया गया हैं बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि ऐसा करने ही नही दिया जा रहा है।
रेट कान्ट्रैक्ट की जिम्मेदारी सरकार ने कन्ट्रोल स्टोरेज़ को दे रखी है और यह उद्योग विभाग के अधीन काम करता है लेकिन उद्योग विभाग के तहत ही काम करने वाले खादी बोर्ड और हैण्डीक्राफ्ट एवम् हैण्डलूम कारपोरेशन घाटे में चल रहे हैं बल्कि बन्द होने के कगार पर पहुंचे हुए हैं क्योंकि यह दोनों अपना मूल तय काम कर ही नही रहे हैं और अपना वेतन निकालने के लिये कुछ विभागों के लिये खरीद ऐजैन्सी बन गये हैं। जबकि नियमों के अनुसार ऐसा नहीं किया जा सकता। जिन आईटमों का रेट कान्ट्रैक्ट नहीं होता है उनके लिये टैण्डर प्रणाली अपनाई जाती है। सरकारी विभाग इस तय प्रक्रिया की अनदेखी कर रहे हैं और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है यह सरकार के संज्ञान में भी है बल्कि इस पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 12.1.2017 को एक बैठक हुई थी। इस बैठक के बाद अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त की ओर से 16.1.2017 को सभी विभागाध्यक्षों को निर्देश भी जारी किये गये थे जिन पर आज तक अमल नही किया गया है। जबकि तत्कालीन वित्त सचिव आज मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव हैं।
प्रदेश सरकार के इन निर्देशों के बाद भारत सरकार ने उद्योग और वाणिज्य विभाग से एक GeM पोर्टल तैयार करवाया और राज्य सरकारों को भेजा। यह पोर्टल टैण्डर और रेट कान्ट्रैक्ट के साथ खरीद के लिये एक और प्रणाली उपलब्ध हो गयी है। हिमाचल सरकार ने ळमड के साथ 26-12-2017 को एक एमओयू साईन किया है। इस एमओयू के बाद सरकार के प्रधान सचिव उद्योग की ओर से 20-8-2018 को निर्देश जारी किये गये थे जिस पर कन्ट्रोलर स्टोरेज़ ने 4.9.2018 को सारे प्रशासनिक सचिवों और विभागाध्यक्षों को पत्र लिखकर यह कहा कि GeM पोर्टल के माध्यम से खरीद करना अनिवार्य है। इसके लिये सरकार ने अपने नियमों में संशोधन करके नियम 94 A जोड़ा और स्टेट पूल के नाम से बैंक में खाता तक खोला। सरकार की इस कारवाई से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस पोर्टल के माध्यम से ही खरीद करनी होगी।
लेकिन इस सबके बावजूद आज भी स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे बड़े विभाग राज्य सरकार के अपने और भारत सरकार के आदेशों /निर्देशों को अंगूठा दिखाते हुए हैण्डीक्राफ्ट -हैण्डलूम कारपोरेशन के माध्यम से ही खरीद कर रहे हैं। इसमें सबसे अधिक गौर तलब तो यह है कि डाक्टर बाल्दी ने जो निर्देश बतौर वित्त सचिव जारी किये थे उनकी अनुपालना बतौर प्रधान सचिव मुख्यमन्त्री सुनिश्चित नही कर पा रहे हैं।

शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने मुख्यमन्त्री जयराम की मौजूदगी में अपना सदस्यता अभियान शुरू करके पहले ही दिन नगर निगम शिमला की वरिष्ठ कांग्रेस पार्षद अर्चना धवन को पार्टी में शामिल करके कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। क्योंकि धवन उस वार्ड से कांग्रेस की पार्षद थी जिसमें पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह का अपना आवास है। इसमें और भी गंभीरता इस कारण है कि धवन के लिये वोट मांगने अपने वार्ड में वीरभद्र स्वयं गये थे। धवन आज भी वीरभद्र का आशीर्वाद प्राप्त होने का दावा करती है। धवन ने कांग्रेस छोड़ने का बड़ा कारण यह कहा है कि पार्टी में वरिष्ठता की कोई कद्र नही रही है। मजे की बात यह है कि धवन के पार्टी छोड़ने और अनदेखी का आरोप लगाने पर कांग्रेस की ओर से कोई प्रतिक्रिया तक नही आयी है। नगर निगम शिमला क्षेत्र को मिनी हिमाचल की संज्ञा दी जाती है और इसके चुनावों की विधानसभा का संकेतक माना जाता है। इस दृष्टि से यहां पर ऐसी राजनीतिक घटना का अपना ही एक अलग स्थान हो जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण वरिष्ठता की अनदेखी का आरोप हो जाता है। कांग्रेस इस समय न ही प्रदेश में सत्ता में है और न ही नगर निगम में। ऐसी अनदेखी का आरोप सीधे संगठन पर आता है।
प्रदेश कांग्रेस को लोकसभा की चारों सीटों पर शर्मनाक हार झेलनी पड़ी है। लेकिन इस हार के बाद अध्यक्ष समेत कांग्रेस के किसी भी पदाधिकारी ने अपने पदों से त्यागपत्र देने की बात नही कही है। बल्कि हार के कारण जानने के लिये बुलायी गयी बैठक में भी उम्मीदवारों और अन्य नेताओं से जो कुछ पूछा गया वह वीरभद्र और विद्या स्टोक्स की मौजूदगी में पूछा गया। जबकि पूरे चुनाव के दौरान वीरभद्र के ही ब्यान अपने उम्मीदवारों को लेकर सबसे विवादित रहे हैं। वीरभद्र ही अकेले ऐसे नेता थे जो समय-समय पर मुख्यमन्त्री जयराम को सफलता /श्रेष्ठता के प्रमाण पत्र बांटते रहे हैं और उनके ब्यानों पर अध्यक्ष समेत हर बड़ा नेता चुप्पी साधे बैठा रहा। चुनाव के बाद भी संगठन की ओर से इसको लेकर कोई सवाल नही उठाया गया है। आज प्रदेश कांग्रेस में चुनाव के दौरान और उससे पहले हुए खर्चो के आडिट करवाने की चर्चा शुरू हो गयी है। चुनाव प्रचार के लिये आये पैसे से पहली बार ऐसा सामने आया कि अखबारों को कोई विज्ञापन तक जारी नही हुए। इस समय पार्टी के अन्दर पैसे को लेकर एक बड़ा विवाद छिड़ा हुआ है। सोशल मीडिया में कुछ लोगों की विवादित भूमिका को लेकर उनके खिलाफ कारवाई की जा रही है। इस कारवाई से संगठन को आगे चलकर कितना लाभ/नुकसान होगा शायद यह इस समय का सवाल ही नही रह गया है।
इसी वर्ष विधानसभा के लिये दो उपचुनाव होने हैं। लेकिन इन चुनावों को लेकर अभी तक पार्टी की ओर से कोई गतिविधि सामने नही आयी है। प्रदेश सरकार के किसी भी फैसले पर कोई प्रतिक्रिया नही आ रही है। यहां तक कि केन्द्र सरकार के बजट पर प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व एकदम खामोश सा ही रहा है। प्रदेश अध्यक्ष राठौर की प्रतिक्रिया भी एक रस्म अदायगी से अधिक कुछ नही रही है। इससे लगता है कि या तो उन्हें बजट समझ ही नही आया है या फिर वह जानबूझ कर इस पर चुप्प हैं लेकिन यह दोनों ही स्थितियां संगठन के लिये घातक हैं।
ऐसे में वीरभद्र की करीबी पार्षद के भाजपा में शामिल होने से कुछ राजनीतिक हल्को में यहां तक चर्चा चल पड़ी है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के कई बड़े नेता पासा बदल ले तो इसमें कोई हैरानी नही होगी।
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