Saturday, 20 December 2025
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उच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद फ्राड के 3237 मामलों पर अभी तक कारवाई नहीं

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश में नौतोड़ भूमि आवंटन के नियमों को अंगूठा दिखाते हुए 5769 लोगों को नौतोड़ आंवटन कर दिया गया है। नौतोड़ का यह मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में CWP No.  9859 of 2013 में समाने आया है जिसमें दायर हुए मुख्य सचिव के शपथपत्र के माध्यम से अदालत में यह तथ्य आया है कि 5769 लोगों को यह आवंटन नियमों के विरूद्ध हुआ है। अदालत में नौतोड़ निमयों पर विस्तार से हुई चर्चा में यह स्पष्ट आया है कि ऐसे आवंटन के लिये वही व्यक्ति पात्र होगा जिसकी आय सारे साधनों से 2000 रूपये वार्षिक से अधिक नही होगी। लेकिन इस आवंटन के लाभार्थी 3237 सरकारी कर्मचारी भी पाये गये हैं। बिलासपुर -425,  लाहूल स्पिति-537, चम्बा-656, मण्डी-198, किन्नौर- 534, शिमला-848 और कुल्लु में 44 कर्मचारियों ने नौतोड़ नियमों के तहत यह आवंटन हासिल कर रखा है। स्वभाविक है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी की वार्षिक आय दो हजार से कम नही हो सकती है चाहे वह 400 रूपये ही प्रति माह क्यों न ले रहा हो। ऐसा लाभ तथ्यों की सही जानकारी न देने से ही लिया जा सकता और तथ्यों को छिपाना फ्राड की श्रेणी में आता है। ऐसे फ्राड का संज्ञान होने पर तीन वर्ष के भीतर उसके खिलाफ कारवाई की जानी आवश्यक है और यह कारवाई किसी की शिकायत आने के अतिरिक्त संवद्ध स्वतः संज्ञान लेकर भी कर सकता है। इस संद्धर्भ में अदालत ने स्पष्ट कहा है कि of this court in [ Mangheru Vs-State of Himachal Pradesh and others] ILR 1981 Vol-X 283 has held that Article 56 of the Limitation Act lays down a limitation of three years from the date of the knowledge of fraud and the court was of the opinion that it would be reasonable to lay down that ordinarily within a period of three years from the date of knowledge of fraud the suo motu powers can be exercised - Their Lordships have further  held that arbitration clause cannot take away the suo motu powers of review and revision granted to various authorities– Their Lordship have held as under: Now there is no disputed that the peculiar facts and  circumstances of each case should determine a reasonable time For example if a grantee has suppressed material its or has obtained the allotment by playing a fraud or a deception the reasonable time will have to be determined with reference to the time when the fraud or deception came to light –Various cases where a party had concealed material facts and succeeded in obtaining the allotment have come to our notice- We cannot all a party to reap the fruits of his deception or fraud simply on the ground that it had successfully kept them concealed over a sufficiently long period of time- However once the fraud is uncovered then action is required to be taken within a reasonable time thereafter–Article 56 of the Limitation Act. lays down a limitation of three years from the date of the knowledge of fraud and we are not the opinion that it will be reasonable to lay down that ordinarily within a period of three years from the date of knowledge of fraud the suo motu powers can be exercised.

तथ्यों को छुपाकर हासिल की गयी नौतोड़ भूमि को लेकर उच्च न्यायालय ने सरकार को यह निर्देश दिये थे कि वित्तायुक्त अपील 5769 मामलों का रिकार्ड तलब करके यह देखेंगे कि कितने सरकारी कर्मचारियों ने ऐसी ज़मीन हासिल की है जिनकी आय दो हजार रूपये वार्षिक से अधिक है। ऐसी ज़मीने बिना किसी मुआवज़े के सरकार को चली जायेंगी। यदि ऐसी कोई ज़मीन सरकार ने किसी उद्देश्य के लिये अधिग्रहण कर ली है और उसका मुआवज़ा संवद्ध व्यक्ति को दिया गया है तो ऐसा मुआवज़ा उस व्यक्ति से 9% ब्याज सहित वापिस लिया जायेगा। यह सारी कारवाई एक वर्ष के भीतर पूरी की जानी थी और इसके लिये दो  और वित्तायुक्त अपील नियुक्त किये जाने थे। Accordingly the writ petition is dismissed however in larger public interest the following mandatory directions are issued to the state Government:
1. The Financial Commissioner appeals is directed to call for the records of 5769 case in which the Government employees have been granted Nauator land under The Himachal Pradesh Nautor land rules 1968  whose income was more than 2000 /& per annum at the time of submission of application it is made clear by way of abundant precaution that the records of all the cases shall be called whether the land has been allotted under The Himachal Pradesh Nautor land Rules 1968 before or after 17-08-1990.
2. The Financial Commissioner ( Appeals ) shall decide all the revisions within a period of one year from today after hearing the parties and shall pass detailed /speaking orders in all the cases in which grant of Nautor land was found to be in violation of The Himachal Pradesh Nautor Land Rules       1968 thereafter. The possession shall be resumed within a period of eight weeks after resumption/cancellation of the grant of Nautor Land to allottees.
3. If the Financial Commissioner comes to the conclusion that the Nautor Land has been granted for horticulture, agriculture, construction of any building subservient to agriculture, thrashing floor, water mill, water channel, construction of a building for  residence, consolidation of holdings and for  public purposes like construction of   Dharamsala etc. in violation of the Himachal Pradesh Nautor Land Rules, 1968, the same shall vest in the stste of himachal Pradesh free from all encumbrances and these persons shall not be entiled to any compensation.
4. Since the Financial Commissioner (Appeals) has to deal with 5769 cases respondent & state is directed to appoint/post two more Financial Commissioner( Appeals) to hear the revisions within a period of six weeks from today.
5. It is made clear that in all the cases where the land has been allotted /granted to the Government employees in breach of the Himachal Pradesh Nautor Land Rules 1968 and the same has been acquired under the land Acquisition Act. in those cases also the amount received by the allottees/grantees shall be refunded to the state Government with interest @9% per annum.

उच्च न्यायालय में यह मामला 2013 में आया था और इस पर 25.6.2015 को फैसला सुना दिया गया था। लेकिन आज तक इस पर कोई कारवाई अमल में नही लायी गयी है। इसमें 3237 तो सरकारी कर्मचारी ही थे जो किसी भी गणना में इसके पात्र नही थे। उनके खिलाफ कारवाई की जानी थी। जब सरकार ने वनभूमि पर हुए अवैध कब्जों के 2530 मामलों में कारवाई करते हुए 10,203 बीघे भूमि ऐसे कब्जाधारकों से वापिस ले ली है तो इन 5769 में कारवाई क्यों नही की गयी है यह सवाल चर्चा में आ गया है। तथ्यों को छुपाकर लिया गया लाभ फ्राड की श्रेणी में आता है और फ्राड के खिलाफ संज्ञान से तीन वर्ष के भीतर कारवाई की जानी होती है। इस मामले में जब जून 2015 में फैसला आ गया तो उसी तारीख से संज्ञान होना शुरू हो जाता है। इस मामले में जून 2018 को तीन वर्ष हो जाते हैं। इसमें प्रतिवादी सीधे सरकार थी और मुख्य सचिव के शपथपत्र अदालत में दायर हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि यह मामला सरकार के संज्ञान में था। तथ्यों को छुपाकर लाभ हासिल करने का मामला राजकुमार राजिन्द्र सिंह बनाम एसजेवीएनएल में भी सामने आया है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला 2018 में आया है और फैसला फ्राड को केन्द्र में रखकर दिया गया है। इसमें दिये गये लाभ को 12% ब्याज सहित तीन माह में वापिस लेने के आदेश है। इसमें केवल एसजेवीएनएल के संद्धर्भ में ही कारवाई की जा रही है जबकि सरकार ने अन्य विभागों/कार्यों के लिये राजकुमार राजिन्द्र सिंह की ज़मीनों का अधिग्रहण किया है और मुआवजा़ दिया है।
अब इन दोनों मामलों को इक्ट्ठा रखकर देखते हुए यह उभरता है कि जयराम सरकार फ्राड के इन मामलों पर कारवाई नही करना चाहती है या अधिकारियों का एक बड़ा वर्ग सरकार को इन मामलों में गुमराह कर रहा है। क्योंकि इन मामलों  की कारवाई करने का दायित्व इसी सरकार पर आता है।

बड़े मीडिया संस्थान बिकने को तैयार दिखे-कोबरा पोस्ट के स्टिंग आप्रेशन में सनसनी खेज़ खुलासा

शिमला/शैल। देश के बड़े मीडिया संस्थानों की विश्वसनीयता पर लम्बे अरसे से सवाल उठने शुरू हो गये हैं। यह आरोप लग रहा है कि मीडिया संस्थानों में संपादकों का स्थान मालिकों ने ले लिया है और  मालिक ‘यथा राजा तथा प्रजा’ हो गये हैं। इसी के चलते बहुत सारे पत्रकार भी पत्रकारिता के सरोकारों को छोड़कर मालिकों और राजा की हां में हां मिलाने वाले हो गये हैं। पिछले दिनो इंडिगो की फ्लाईट में जिस तरह का संवाद पत्रकार अर्णव गोस्वामी और व्यंग्यकार कुणाल कामरा के बीच घटा है और उस पर केन्द्रिय मन्त्री हरदीप पुरी ने जो संज्ञान लेकर कामरा की फ्लाईटस पर छः माह का प्रतिबन्ध लगा दिया है तथा इस पर अर्णव गोस्वामी ने कोई प्रतिक्रिया नही दी है। इससे मीडिया की विश्वसनीयता के आरोपों को स्वतः ही बल मिल जाता है। आज देश जिस दौर से गुजर रहा है उसमें मीडिया की भूमिका पर फिर सवाल उठने लगे। इन सवालों से कोबरा पोस्ट के स्टिंग आप्रेशन को पाठकों के सामने रखने की आवश्यकता लग रही है। यह स्टिंग आप्रेशन लोकसभा चुनावों से पहले हुआ था लेकिन इस पर संबधित मीडिया ने कोई बड़ी प्रतिक्रिया/या कारवाई नही उठाई थी। आज 2019 के लोकसभा चुनाव परिणामों में 347 चुनाव क्षेत्रों में जिस तरह की विसंगतियां पायी गयी हैं उसको लेकर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर है जिस पर चुनाव आयोग को जवाब के लिये नोटिस जारी हो चुका है। इसी सबको ध्यान में रखते हुए कोबरा पोस्ट का यह स्टिंग वायर से साभार शैल के पाठकों के सामने रखा जा रहा है।                 -संपादक

मीडिया का सूरते हाल

अपनी खोजी पत्रकारिता के लिए पहचाने जाने वाले कोबरा पोस्ट ने देश के मीडिया जगत की पोल खोलने वाले खुलासे की दूसरी किश्त शुक्रवार को जारी की।
गौरतलब है कि 26 मार्च को जारी हुई कोबरापोस्ट के इस खुलासे, जिसे ‘आॅपरेशन 136’ नाम दिया गया है, की पहली किश्त में देश के कई नामचीन मीडिया संस्थान सत्ताधारी दल के लिए चुनावी हवा तैयार करने के लिए राजी होते नजर आए थे।
इनमें इंडिया टीवी, दैनिक जागरण, सब टीवी नेटवर्क, (श्री अधिकारी ब्रदर्स टेलीविजन नेटवर्क) , जी सिनर्जी एंड डीएनए, हिंदी खबर, 9 एक्सटशन, समाचार प्लस, एचएनएन लाइव, पंजाब केसरी, स्वतंत्र भारत, स्कूपव्हूप, रेडिफ डाॅट काॅम, आज (हिंदी डेली), साधना प्राइम न्यूज, अमर उजाला, यूएनआई जैसे मीडिया जगत के बड़े नाम शामिल थे।
जिन चार बिंदुओं पर पहली किश्त में खुफिया कैमरे की सहायता से कोबरापोस्ट ने मीडिया घरानों का काला सच उजागर किया था, उन्हीं बिंदुओं को आधार बनाकर इस दूसरी किश्त में टाइम्स आॅफ इंडिया, इंडिया टुडे, हिंदुस्तान टाइम्स, जी न्यूज, स्टार इंडिया, नेटवर्क 18, सुवर्णा, एबीपी न्यूज, दैनिक जागरण, रेडियो वन, रेड एफएम, लोकमत, एबीएन आंध्र ज्योति, टीवी-5, दिनामलार, बिग एफएम, के न्यूज, इंडिया वाॅयस, द न्यू इंडियन एक्सप्रेस, पेटीएम, भारत समाचार, स्वराज एक्सप्रेस, बर्तमान, दैनिक संवाद, एमवीटीवी और ओपन मैग्जीन से संपर्क साधा।
पहला बिंदु था, मीडिया संस्थान अभियान के शुरुआती और पहले चरण में हिंदुत्व का प्रचार करेगा, जिसके तहत धार्मिक कार्यक्रमों के माध्यम से हिंदुत्व को बढ़ावा दिया जाएगा।
दूसरा, इसके बाद विनय कटियार, उमा भारती, मोहन भागवत और दूसरे हिंदुवादी नेताओं के भाषणों को बढ़ावा देकर सांप्रदायिक तौर पर मतदाताओं को जुटाने के लिए अभियान खड़ा किया जाएगा।
तीसरा, जैसे ही चुनाव नजदीक आ जाएंगे, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को टारगेट किया जाएगा।
राहुल गांधी, मायावती और अखिलेश यादव जैसे विपक्षी दलों के बड़े नेताओं को पप्पू, बुआ और बबुआ कहकर जनता के सामने पेश किया जाएगा, ताकि चुनाव के दौरान जनता उन्हें गंभीरता से न ले और मतदाताओं का रुख अपने पक्ष में किया जा सके।
चैथा, मीडिया संस्थानों को यह अभियान उनके पास उपलब्ध सभी प्लेटफाॅर्म पर जैसे- प्रिंट, इलेक्ट्राॅनिक, रेडियो, डिजिटल, ई-न्यूज पोर्टल, वेबसाइट के साथ-साथ सोशल मीडिया जैसे-फेसबुक और ट्विटर पर भी चलाना होगा।
कोबरापोस्ट के लिए पूरी तहकीकात पत्रकार पुष्प शर्मा ने श्रीमद् भगवद गीता प्रचार समिति, उज्जैन का प्रचारक बनकर और खुद का नाम आचार्य छत्रपाल अटल बताकर की। उन्होंने पूरी पड़ताल के दौरान हर जगह अपनी एक ही पहचान बताई और एक अनुभवी गीता प्रचारक के वस्त्र पहने। उन्होंने दावा किया कि वे आईआईटी दिल्ली और आईआईएम बेंगलुरु के छात्र रहे हैं।
पुष्प ने मीडिया संस्थानों को झांसे में लेने के लिए स्वयं को राजस्थान के झुंझुनू का रहने वाला बताया और कहा कि वे अब आॅस्ट्रेलिया में बस गए हैं और स्काॅटलैंड में अपनी ई-गेमिंग कंपनी चलाते हैं।
कभी-कभी पुष्प ने अपनी सभी मान्य पहचानों का उपयोग किया, ताकि वे अपना एक अखिल भारतीय चरित्र दिखाकर मीडिया मालिकों को प्रभावित कर सकें। उन्होंने बताया कि वे अपने संगठन के आदेश पर आने वाले चुनावों में सत्ताधारी पार्टी की स्थिति को मजबूत करने के लिए एक गुप्त मिशन पर निकले हैं।
उन्होंने अपने अभियान को चलाने के एवज में मोटी रकम देने की बात कही। लालच में आकर सभी मीडिया घरानों ने एजेंडे को हाथों-हाथ लिया।
कोबरापोस्ट वेबसाइट का दावा है कि मौके को भुनाने के लिए लगभग सभी मीडिया संस्थानों ने अपने सिद्धातों से समझौता कर लिया। हालांकि, दो संस्थानों ने ऐसा न करके एक मिसाल भी पेश की। पश्चिम बंगाल की वर्तमान पत्रिका और दैनिक संवाद ने कोबरापोस्ट के पत्रकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
बाकी सभी संस्थान आध्यात्मिकता और धार्मिक प्रवचन के जरिए हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिए सहमत होते नजर आए। सांप्रदायिक उद्देश्य के साथ मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने संबंधित सामग्री प्रकाशित करने पर सहमत हुए।
सभी संस्थानों ने सत्ताधारी पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए उसके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ अपमानजनक सामग्री प्रकाशित करने पर भी सहमति जताई।
यहां तक कि इस सौदेबाजी का हिस्सा बनने के लिए मीडिया घरानों को काले धन के रूप में नकद भुगतान लेने के लिए भी राजी होते दिखे और तीसरे पक्ष या किसी एजेंसी के माध्यम से काले धन को सफेद करके उसे अन्य रास्तों से स्वीकार करने में भी उन्हें आपत्ति नहीं थी।
जो मीडिया लोकतंत्र का चैथा स्तंभ कहलाती है और जिससे निष्पक्षता के साथ सरकार की आलोचना और अवाम की व्यथा को आवाज देने की उम्मीद की जाती है, कोबरापोस्ट के ‘आॅपरेशन 136’ की दूसरी कड़ी में उसी मीडिया समूह के मालिक बातचीत में खुद को हिंदुत्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा से जुड़े होने की बात गर्व के साथ कहते नजर आ रहे थे।
साथ ही सांप्रदायिक राह के साथ मतदाताओं को ध्रुवीकृत करने की क्षमता के साथ सामग्री प्रकाशित करने पर सहमत हुए।
कोबरापोस्ट द्वारा जारी वीडियो क्लिपिंग में कई ऐसे भी हैं, जो सत्ताधारी पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ अपमानजनक कंटेंट पोस्ट और प्रकाशित करने के लिए तैयार हुए।
इनमें से कई इस सौदे को हर हाल में हासिल करने के लिए और अपने ग्राहक के काले धन को खपाने के लिए कैश पेमेंट के लिए भी तैयार दिखे।
इनमें से कई संस्थानों के अधिकारी थर्ड पार्टी या एजेंसी के माध्यम से काले धन को सफेद कर उसे दूसरे रास्ते से हासिल करने के लिए सहमत हुए। यहां तक कि कुछ ने तो आंगड़िया जैसे हवाला के रास्ते का भी सुझाव दिया।
जाहिर है कि इससे पत्राकारिता के मूल सिद्धांत, उसकी निष्पक्षता पर सवालिया निशान तो लगता ही है।
उक्त मीडिया घरानों ने केवल सत्ताधारी दल के पक्ष में स्टोरी चलाने पर ही सहमति नहीं जताई, बल्कि विरोधी दलों के खिलाफ बाकायदा एक जाल बुनकर अपनी टीम से उनकी तहकीकात कराने और उनके खिलाफ स्टोरी चलाने पर भी रजामंदी जाहिर की।
कई संस्थान इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए बाकायदा विज्ञापन बनाने पर भी सहमत हुए। वे अपनी क्रिएटिव टीम तक को इस अभियान के उद्देश्य को पूरा करने में झोंकने के लिए तैयार थे।
शर्त के अनुसार, सभी ने यह अभियान उनके पास उपलब्ध तमाम प्लेटफाॅर्म जैसे प्रिंट, इलेक्ट्राॅनिक, एफएम रेडियो, न्यूज पोर्टल, वेबसाइट और सोशल मीडिया पर चलाने की हामी भरी।
कोबरापोस्ट के मुताबिक कुछ ने तो केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली, मनोज सिन्हा, जयंत सिन्हा, मेनका गांधी और उनके पुत्र वरुण गांधी के खिलाफ खबरें चलाने पर भी सहमति दी।
यहां तक कि ये संस्थान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार में भाजपा के सहयोगी दलों के बड़े नेताओं जैसे अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश राजभर और उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ भी खबरें चलाने के लिए तैयार थे।
साथ ही, कुछ संस्थानों को आंदोलन करने वाले किसानों को माओवादियों के तौर पर प्रस्तुत करने से भी परहेज नहीं था। वे राहुल गांधी जैसे नेताओं की ‘चरित्र हत्या’ करने के लिए खास सामग्री तैयार करने और उसे बढ़ावा देने को भी राजी हो गए।
चलाई जाने वाली सामग्री को इस तरह पेश किया जाए कि वह पेड न्यूज न दिखे, इसकी भी रूपरेखा उनके पास थी।
लगभग सभी एफएम रेडियो स्टेशन अपने खाली एयर टाइम पर किसी खास ग्राहक को एकाधिकार देने के लिए भी तैयार हुए।
कोबरापोस्ट ने कहा है कि स्टिंग आॅपरेशन में उसके पत्रकार को उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर का भी सहयोग मिला। राजभर की सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी ने पुष्प शर्मा को स्टिंग के दौरान पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई का प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी के तौर पर पेश होने में मदद की।
वहीं, आॅपरेशन 136 की दूसरी कड़ी कोबरापोस्ट द्वारा जारी करने से पहले ही दैनिक भास्कर दिल्ली हाई कोर्ट पहुंच गया। इसलिए कोबरापोस्ट द्वारा खुलासे से अखबार का नाम दूर रखा गया है।
कोबरापोस्ट ने कहा है, ‘24 मई 2018 को मिले माननीय दिल्ली हाईकोर्ट के आदेशानुसार हम अपनी तहकीकात में दैनिक भास्कर समूह को फिलहाल शामिल नहीं कर रहे हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने हमारा पक्ष सुने बिना ही दैनिक भास्कर के पक्ष में आदेश पारित किया है और हम इस आदेश को चुनौती देंगे।’
आॅपरेशन 136 की दूसरी कड़ी में कोबरापोस्ट का दावा है कि तकनीक के इस दौर में किसी भी खास एजेंडे को मोबाइल ऐप के जरिए जनता तक पहुंचाने में एक प्रभावी माध्यम ढूंढा जा सकता है। जिसके संबंध में उन्होंने पेटीएम का उदाहरण पेश किया है और कहा है कि किसी खास एजेंडे को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पारंपरिक मीडिया जैसे टीवी चैनलों या अखबारों की जरूरत नहीं है। एक साधारण से मोबाइल ऐप के जरिए भी पलक झपकते ही वो कर सकते हैं जो पारंपरिक मीडिया की मदद से नहीं किया जा सकता है।
स्टिंग के अनुसार पेटीएम के बड़े अधिकारियों से हुई बातचीत में न केवल इनकी भाजपा विचारधारा का खुलासा हुआ बल्कि संघ के साथ कंपनी के संबंधों की भी बात सामने आई है और यह भी साबित हुआ है कि पेटीएम पर उपभोक्ताओं का डाटा सुरक्षित नहीं है, जैसा कि कंपनी का दावा है।
इस पूरी तहकीकात को ‘आॅपरेशन 136’ नाम इसलिए दिया गया क्योंकि वर्ष 2017 के प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत विश्व में 136वें पायदान पर है।
वहीं, खुलासे में यह भी सामने आया कि अधिकांश मीडिया घराने, खासकर क्षेत्रीय मीडिया घराने या तो राजनेताओं के स्वामित्व में हैं या राजनेताओं द्वारा संरक्षित हैं। जैसे कि ‘एबीएन आंध्र ज्योति’ एक तेलुगू टीवी समाचार चैनल है, जो तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू द्वारा संरक्षित है।
इसी चैनल के चीफ मार्केटिंग मैनेजर ईवी शशिधर कैमरे पर कहते सुने जा सकते हैं कि उनका चैनल उस बड़े पैमाने पर स्थापित है कि वह कर्नाटक के चुनावी नतीजों को भी प्रभावित कर सकता है।
तो, यह भी सामने आया है कि चेन्नई से प्रकाशित 70 साल पुराने ‘तमिल दैनिक’ के मालिक लक्ष्मीपति आदिमूलम और उनका परिवार भी संघ को लेकर गहरी निष्ठा रखता है।
साथ ही आॅपरेशन के दौरान सामने आया कि मोदी के प्रचार में मदद करने के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए साफ्टवेयर को भी आयात किया गया है।
इस तहकीकात के दौरान कुछ वरिष्ठ पत्रकारों की निष्ठा पर भी सवाल उठे जिनमें पुरुषोत्तम वैष्णव जो जी मीडिया के रीजनल न्यूज चैनलों में सीईओ हैं, अपनी खोजी टीम से राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ स्टोरी कराने और उनके जरिए उन्हें झुकाने पर हामी भरते नजर आए।
स्टिंग के दौरान पुरुषोत्तम ने कहा, ‘कंटेंट में जो आपकी तरफ से इनपुट आएगा वो शामिल हो जाएगा। हमारी तरफ से जो कंटेंट जनरेट होगा तो खोजी पत्रकारिता हम करते हैं, करवा देंगे, जितना हम लोगों ने की है उतना किसी ने नहीं की होगी। वो हम लोग करेंगे।’
कोबरापोस्ट का दावा है कि उनकी जांच यह स्थापित करती है कि आरएसएस न केवल न्यूजरूम में बल्कि भारतीय मीडिया घरों के बोर्ड रूम में भी गहराई से घुसपैठ कर चुका है। वे सत्तारूढ़ दल के प्रति अपनी निष्ठा को स्वीकार करते हैं।
इस संबंध में उदाहरण देते हुए कोबरापोस्ट की ओर से कहा गया है कि बिग एफएम के सीनियर बिजनेस पार्टनर अमित चैधरी अपनी कंपनी और सत्तारूढ़ दल के बीच रिश्ते को स्वीकार करते हैं और कहते हैं, ‘वैसे भी रिलांयस बीजेपी का सपोर्टर ही है।’
वहीं, ओपन मैग्जीन के जिन अधिकारियों से बात की गई, वे कहते देखे जा सकते हैं, ‘आचार्य जी शायद आप भी बिजी रहते हैं आप शायद ‘ओपन’ देखते नहीं हैं रेगुलर। मैं आपको एक बात बताता हूं ‘ओपन’ जितना सपोर्ट करते हैं संगठन का शायद ही कोई करता होगा।’
वहीं, टाइम्स ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर विनीत जैन और उनके सहयोगी कार्यकारी अध्यक्ष संजीव शाह के साथ भुगतान नकद में करने से संबंधित बातचीत का जिक्र है जहां दोनों अधिकारी नकद में भुगतान लेने से आनाकानी के बाद स्वयं ही नकद रकम को अलग-अलग तरीकों से रूट करने की सलाह देते है। विनीत जैन कहते नजर आते हैं, ‘और भी व्यापारी होंगे जो हमें चेक देंगे, आप उन्हें नकद दे दो।

बिन्दल की ताजपोशी के बाद बदलते भाजपा के समीकरण

शिमला/शैल। अन्ततः डा. राजीव बिन्दल प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बन ही गये हैं और उन्होंने इसके लिये प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। बिन्दल के बनने मे ‘अन्ततः, ही’ इसलिये लग रहा है क्योंकि तीन बार इस चुनाव की तारीखें आगे बढ़ाई गयीं। जो नाम अध्यक्ष पद की रेस में सामने आ रहे थे उनमें शुरू मे तो उनका नाम कहीं आ ही नही रहा था। बिलासपुर से तीन तीन नाम उछल रहे थे। अन्त में जब धूमल का नाम उछला तब इसके साथ बिन्दल और इन्दु गोस्वामी के नाम भी चर्चा में आ गये। जब बिन्दल बन गये तब उनके समारोह में धमूल और शान्ता शामिल नही हो पाये। दोनो के लिखित सन्देश ही कार्यकर्ताओं को पढ़कर सुनाये गये। लेकिन पोखरियाल के साथ ताजपोशी में शामिल हुए परन्तु इस अवसर में अनुराग का मुख्यमन्त्री से ‘‘हाथ मिलाना या ना मिलाना’’ जिस तरह विवादित समाचार बन गया और उस पर यह स्पष्टीकरण देना पड़ गया कि ‘‘वायरल हुआ फोटो एडिट किया गया है’’ इससे इन बदलते समीकरणों की आहट साफ सुनाई देती है। इस आहट को नव निर्वाचित अध्यक्ष बिन्दल की इस चेतावनी ने कि मामले पर एफआईआर दर्ज करवायी जा सकती है और मुखर कर दिया है।
अनुराग का ‘‘हाथ मिलाना या न मिलाना’’ भाजपा का अन्दरूनी मामला है और इसके एडिट होकर वायरल होने के स्पष्टीकरण से यह अपने में यहीं पर ही समाप्त भी हो जाता है। लेकिन इसको लेकर सोशल मीडिया के मंचो पर आयी प्रतिक्रियाओं में जिस तरह से इसे अनुराग की बद दिमागी कहा तथा उनको यह प्रोटोकाॅल समझाया गया कि केन्द्र के राज्य मन्त्री का पद मुख्यमन्त्री से छोटा होता है, से यह स्पष्ट हो जाता है कि बिन्दल का ताजपोशी से निश्चित रूप से भाजपा के भीतरी समीकरणों में एक बहुत बड़ी उथल पुथल शुरू हो गयी है। हाथ मिलाना अन्दररूनी मामला था और इस समारोह में पार्टी कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त दूसरे लोगों के नाम पर केवल मीडिया के ही लोग थे। फोटो एडिट होकर वायरल होना या तो पार्टी के ही लोगों का काम है या मीडिया के उन लोगों का जो सत्ता के नज़दीक हैं फिर अनुराग को अपरोक्ष में चेतावनी देने वाली पोस्टें भी उन्ही लोगों से आयी हैं जो अपने को मुख्यमन्त्री का नजदीकी और सलाहकार होने का दम भरते हैं। इसलिये यह विवाद जो पहले ही दिन खड़ा हो गया यह सुनियोजित था या अचानक घट गया यह खुलासा होने में अभी समय लगेगा। क्योंकि इसी के साथ पूर्व में घट चुके बहुत सारे प्रकरण फिर से चर्चा में आ गये हैं। धर्मशाला में आयोजित हुई इन्वैस्टर मीट के दौरान यहां के क्रिकेट स्टेडियम का जिक्र तक न होना और उसके बाद जब अनुराग मण्डी जाते हैं तो वहां के कार्यकर्ताओं को शिमला बुला लेना तथा शिमला आने पर मुख्यमन्त्री का मण्डी चले जाना एकदम फिर सामने आ गये हैं क्योंकि जंजैहली के एसडीएम आफिस प्रकरण में धूमल जयराम के रिश्तो में कड़वाहट तब जगजाहिर हो गयी थी जब धूमल को यह कहना पड़ गया था कि सरकार चाहे तो सीआईडी से जांच करवा सकती है।
अब बिन्दल के पार्टी अध्यक्ष बनने से नये विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव अनिवार्य हो जाता है और इसी के साथ मन्त्रीयों के खाली चले आ रहे दोनो पदों को भी आगे टालना संभव नहीं होगा। इन सारी नियुक्तियों में अब बिन्दल, जयराम, अनुराग और इन सबसे उपर नड्डा की राय की  भूमिका रहेगी। जब सरकार बनी थी तब जयराम और नड्डा बराबर की रेस में थे मुख्यमन्त्री बनने के लिये। लेकिन उसी रेस मे बिन्दल भी शामिल थे बल्कि उनका बाबा ‘‘राम रहिम’’ से आशीर्वाद लेना भी इसी कड़ी में जोड़ कर देखा गया था। यदि बिन्दल के खिलाफ सोलन वाला लंबित न होता तो उनको रोक पाना आसान नही होता। राजनीतिक विश्लेष्कों की नजर में सोफत का भाजपा में शामिल होना भी बिन्दल पर नजर रखने के रूप में देखा जा रहा है। सोफत और बिन्दल के रिश्ते अपरोक्ष में अदालत तक पहुंचे हुए हैं और अभी तब लंबित चल रहे है। इन्ही मामलों के चलते बिन्दल को एक समय मन्त्री पद छोड़ने की स्थिति पैदा हो गयी थी। तब धूमल पूरी तरह बिन्दल के साथ खड़े थे आज बदले परिवेश में बिन्दल को नड्डा का प्रतिनिधि माना जा रहा है। नड्डा इस समय पार्टी के शिखर पर हैं लेकिन कल को अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद नड्डा को अपना कद मोदी -शाह से भी ऊपर ले जाना होगा अन्यथा इस पारी के बाद या तो केन्द्र में दूसरे तीसरे स्थान या फिर प्रदेश के पहले स्थान में से किसी एक का विकल्प चुनना होगा। इस परिदृश्य में यह आवश्यक हो जाता है कि आज प्रदेश के संद्धर्भ में नड्डा, बिन्दल के माध्यम से आप्रेट करेंगे क्योंकि इन दोनों के पास अनुराग की अपेक्षा कम समय उपलब्ध रहेगा। इस समय देश में जो राजनीतिक वातावरण बनता जा रहा है उसमें राजनीतिक अस्थिरता लगातार बढ़ती जा रही है और दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद इसमें तेजी आयेगी जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव प्रदेश पर पड़ेगा। क्योंकि अभी से पार्टी के भीतर संघ और गैर संघ की लाईनो पर लाभबन्दी के संकेत उभरने शुरू हो गये हैं।

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  2. क्या लैण्ड सिलिंग के चलते 105 एकड़ जमीन खरीद की अनुमति दी जा सकती है इस प्रकरण में बाल्दी,सक्सेना,पालरासू की भूमिका पर उठे सवाल राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री और प्रधान न्यायाधीश तक पहुंची शिकायत राज्य सरकार की खामोशी सवालों में
  3. जयराम सरकार ने एक वर्ष में खरीदी 229 गाड़ियां ‘ऋणम कृत्वा घृतं पिवेत’ को किया चरितार्थ राज्यपाल के लिये आयी 70 लाख की गाड़ी
  4. दो वर्षों में अपराध के 30814 मामले आये सामने रेप, महिला अत्याचार, एनडीपीएस और एक्साईज मामलों मे वृद्धि चिन्ताजनक
  5. जब दो वर्षाें में केवल 5435.87 करोड़ का निवेश ही आ पाया तो 93000 करोेड़ का कितने समय में आ पायेगा
  6. एक आग अभी बुझी नही और दूसरी सुलग गयी
  7. भू अधिनियम की धारा 118 में कितनी बार ज़मीन खरीद की अनुमति ली जा सकती है?
  8. क्या टी सी पी की अधिसूचना से एन जी टी के आदेशों की अवहेलना संभव हो पायेगी
  9. इन्वैस्टर मीट में उभरी राजनीति के अंजाम पर लगी निगाहें
  10. घातक होगा प्रलोभन देकर निवेश आमन्त्रित करना
  11. घातक होगा प्रलोभन देकर निवेश आमन्त्रित करना
  12. भविष्य की आस में वर्तमान को गिरवी रखने का प्रयास
  13. क्या राठौर हार के कारणों की ईमानदारी सें समीक्षा कर पायेंगे
  14. सक्सेना प्रकरण में सरकार अपने ही निर्देशों की कर रही अनदेखी
  15. उपचुनावों के दौरान मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पास अन्य विभागों का भी दायित्व रहना सवालों में
  16. प्रबोध सक्सेना और कांगड़ा बैंक लोन प्रकरण बन सकते हैं चुनावी मुद्दे
  17. भ्रष्टाचार पर जीरो टालरैन्स के दावे हुए हवा-हवाई, 92 करोड़ की न्यूनतम दर को छोड़ 100 करोड़ में करवाया काम, दलालों के चलते लगा 8 करोड़ का चूना
  18. क्या घटिया राशन गरीबों के ही हिस्से में है
  19. उपचुनाव किसके काम की परीक्षा होंगे-मोदी या जयराम बढ़त का अनुपात बनाये रखना होगी कसौटी
  20. आऊटसोर्स बना कमीशन का सबसे बड़ा उद्योग बिना निवेश के 94 लोगों को मिला 23 करोड़

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