शिमला/शैल। पिछले दिनो राजधानी शिमला के उपनगर टूटी कंडी के एक सरकार के सस्ते राशन की दुकान से एक उपभोक्ता को ऐसे गलेसड़े चावल दे दिये गये जिन्हें आदमी तो क्या पशु भी न खाते। उपभोक्ता ने जब चावल देखे तो इसकी शिकायत खाद्य एवम् आपूर्ति मन्त्री किशन कपूर तक कर दी। मन्त्री के पास जब यह शिकायत आयी तो उन्होंने तुरन्त अपने विभाग को खींचा और कारवाई करने के आदेश दिये। मन्त्री के आदेशों के बाद विभाग हरकत में आया और रात को ही डिपो मालिक के खिलाफ कारवाई अमल में लायी गयी। इस कारवाई पर डिपो मालिक ने अपनी गलती मानते हुए सुबह दस बजे ही उस उपभोक्ता को संपर्क किया और उससे यह चावल वापिस ले लिये। विभाग के अधिकारियों ने भी उपभोक्ता के साथ संपर्क किया और उसे इस कारवाई से अवगत करवाया। मन्त्री के के संज्ञान लेने पर विभाग भी हरकत में आया और डिपो मालिक ने भी उपभोक्ता के घर से चावल वापिस ले लिये लेकिन इसके बाद आगे और क्या कारवाई हुई इसके बारे मे अभी तक कुछ भी सामने नही आया।
विभाग सस्ता राशन खाद्य एवम् आपूर्ति निगम के माध्यम से खरीदता है और इस खरीद के लिये एक प्रक्रिया तय है। सरकार विभाग के माध्यम से निगम को सस्ते राशन के तहत दी जाने वाली चीजों पर प्रतिवर्ष करीब छः हजार करोड़ का उपदान देता हैं। स्पष्ट है कि बड़ी मात्रा में यह सामान खरीदा जाता है। इस सामान की गुणवता और उसकी मात्रा सुनिश्चित करना उन अधिकारियों की जिम्मेदारी होती है जो इस खरीद की प्रक्रिया से जुड़े रहते हैं। यह जिम्मेदारी सरकार के खाद्य एवम् नागरिक आपूर्ति सचिव से शुरू होकर निगम के एमडी और विभाग के निदेशक तक सबकी एक बराबर रहती है। ऐसे में जब एक जगह से ऐसे घटिया चावल सप्लाई होने का मामला सामने आ गया तब इसकी शिकायत आने के बाद पूरे प्रदेश में हर जगह इसकी जांच हो जानी चाहिये थी। इस तरह के गले सड़े चावल डिपो तक कैसे पंहुच गये? कहां से यह सप्लाई ली गयी थी और कैसे ऐसे चावल उपभोक्ता तक पहुंच गये? इसको लेकर किसी की जिम्मेदारी तय होकर उसके खिलाफ एक प्रभावी कारवाई हो जानी चाहिये थी जिससे की जनता में एक कड़ा संदेश जाता। लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ है केवल उपभोक्ता से यह चावल वापिस लिये गये।
ऐसे में जो कारवाई की गयी है उससे यही झलकता है कि पूरे मामले को दबा दिया गया है। सस्ते राशन की दुकानों पर मिलने वाले राशन की गुणवत्ता पर अक्सर सवाल उठते हैं लेकिन इस पर कोई कारवाई नही हो पाती है। अब जब एक ठोस शिकायत मन्त्री तक भी पहुंच गयी तब भी आधी ही कारवाई होने से यह सवाल स्वतः ही उठ जाता है कि शायद जहां हजारों करोड़ो की सब्सिडी का मामला है तो वहां खेल भी कोई बड़े स्तर का ही हो रहा होगा? क्योंकि यह नही माना जा सकता कि केवल डिपो मालिक की गलती से ही गले सड़े चावल सप्लाई हो गये। क्योंकि यदि ऐसा होता तो डिपो मालिक के खिलाफ कड़ी कारवाई करके विभाग अपनी पीठ थपथपा रहा होता लेकिन ऐसा नही हुआ है और इसी से यह मामला और सन्देह के घेरे में आ जाता है।