इस समय देश में महंगाई और बेरोज़गारी दोनां अपने चरम पर रहे हैं। यह सब सरकार की नीतियों का परिणाम है। यदि सरकार की नीतियों पर सवाल न भी उठाया जाये तो क्या यह मंहगाई और बेरोज़बारी समाप्त हो जायेगी? क्या इससे सिर्फ सरकार से मत भिन्नता रखने वाले ही प्रभावित हैं और दूसरे नहीं? हर आदमी इससे प्रभावित है लेकिन सरकार से सहमति रखने वालों की प्राथमिकता हिन्दुत्व है। हिन्दुत्व के इस प्रभाव के कारण यह लोग यह नही देख पा रहे हैं कि इन नीतियों का परिणाम भविष्य में क्या होगा? मंहगाई और बेरोज़गारी का एक मात्र कारण बढ़ता निजिकरण है? 1990 के दशक में निजिक्षेत्र की वकालत में सरकारी कर्मचारी पर यह आरोप लगाया गया था कि वह भ्रष्ट और कामचोर है। तब कर्मचारी और दूसरे लोग इसे समझ नही पाये थे। इसी निजीकरण का परिणाम है कि एक-एक करके लाभ कमाने वाले सरकारी अदारों को बड़े उद्योगपतियों को कोड़ियो के भाव में बेचा जा रहा है। यही नहीं इन उद्योगपतियों को लाखों करोड़ का कर्ज देकर उन्हें दिवालिया घोषित होने का प्रावधान कर दिया गया है। इस दिवालिया और एनपीए के कारण लाखों करोड़ बैकों का पैसा डूब गया है बैंकों ने इसकी भरपायी करने के लिये आम आदमी के जमा पर ब्याज घटा दिया है। सरकार अपना काम चलाने के लिये मंहगाई बढा़ रही है क्योंकि उससे टैक्स मिल रहा है। इसी के लिये तो मंहगाई और जमाखोरी पर नियन्त्रण करने के कानून को ही खत्म कर दिया गया है।
आज जिस तरह के संकट से देश गुजर रहा है उस पर संसद में कितनी चिन्ता और चर्चा हो सकेगी इसको लेकर निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि आज की संसद तो अपराधियों और करोड़पतियों से भरी हुई है। इस समय लोकसभा में ही 83% सांसद करोड़पति है। 539 में से 430 करोड़पति है। इन्हीं 539 सांसदों में 233 के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। इनमें 159 के खिलाफ तो गंभीर अपराधों के मामले दर्ज हैं। 2014 में 542 में से 185 के खिलाफ मामले थे और 2009 में केवल 162 के खिलाफ मामले थे। जिस संसद में करोड़पतियों और अपराधियों का इतना बड़ा आंकड़ा हो वहां पर आम गरीब आदमी के हित में कैसे नीतियां बन पायेंगी यह अन्दाजा लगाया जा सकता है। मोदी ने कहा था कि वह संसद को अपराधियों से मुक्त करवायेंगे। परन्तु यह आंकड़े गवाह है कि उनके नेतृत्व में 2009 से 2014 में और फिर 2019 में यह आंकड़ा लगातार बढ़ता गया है। आज तो मन्त्रीमण्डल में गृह राज्य मन्त्री ग्यारह आपराधिक मामले झेलने वाला व्यक्ति बन गया है। इस परिदृश्य में अब यह आम आदमी पर निर्भर करता है कि वह इस पर क्या सोचता और करता है क्योंकि उसी के वोट से यह लोग यहां पहुंचे हैं।