Thursday, 18 December 2025
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क्या कर्मचारियों की संख्या कम करके प्रदेश आत्मनिर्भर हो जायेगा ?

  •  क्या बिजली बोर्ड को प्राइवेट सैक्टर को देने पर विचार हो रहा है ?
  • क्या राजस्व आय और व्यय बराबर करने के लिये आम आदमी पर करों का बोझ डालना आवश्यक है?
शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने जब प्रदेश की बागडोर दिसम्बर 2022 में संभाली थी तब प्रदेश की जनता को यह चेतावनी दी थी कि प्रदेश के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं । इसी चेतावनी के साये में पिछली सरकार द्वारा अंतिम छः माह में लिये फैसले पलटते हुये सैकड़ो नए खोले संस्थान बंद कर दिये। पैट्रोल, डीजल पर वैट बढ़ाया । शहरी क्षेत्रों में पानी के रेट बढ़ाये जो अब गांव तक जा पहुचे हैं। जो 125 यूनिट बिजली मुफ्त दी जा रही थी वह सुविधा बंद कर दी गयी । कुल मिलाकर आम आदमी की जेब से जिस भी नाम से जो भी निकाला जा सकता था वह प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से निकाल दिया गया। यहां तक के टॉयलेट टैक्स और बसों में यात्रा करते समय साथ ले जा रहे सामान पर भी यदि वह 5 किलो से अधिक है तो उस पर भी किराया लगा दिया गया। जब इस पर शोर उठा तो इसमें संशोधन कर दिये गये। अब बिजली बोर्ड से 51 अभियंताओं के पद समाप्त करने के साथ ही 81 ड्राइवरो को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। बिजली बोर्ड को प्राइवेट सेक्टर के हवाले करके उसमें कर्मचारियों की संख्या आधी करने की चर्चा है। सुक्खू सरकार ने 2026 तक प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने का और 2030 तक देश का सबसे अमीर राज्य बनाने का लक्ष्य घोषित कर रखा है। कोई भी प्रदेश तब आत्मनिर्भर बनता है जब उसका राजस्व व्यय और राजस्व आय बराबर हो जाए। इस समय यदि राजस्व आय और व्यय के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2020-21 में आय व्यय में 1.19%, 2021-22 में 3.95%, 2022-23 में 4.98%, 2023-24 में 6.14% और 2024-25 में 7.44% घाटा रहने का अनुमान है। राजकोषीय घाटा इसी अवधि में 4.12%, 4.52%, 4.57%, 4.82% और 2024-25 में 4.98% रहने की संभावना है। घाटे के इन आंकड़ों को पार कर प्रदेश को बराबरी पर लाना एक बड़ी चुनौती है। राजस्व व्यय में सबसे ज्यादा खर्च वेतन पर 25.13 प्रतिशत और पैंशन पर 17.04 प्रतिशत होता है। इसके बाद ब्याज पर 10.70 प्रतिशत और ऋण अदायगी पर 9.42 प्रतिशत खर्च हो रहा है। इन खर्चों को कम करने के लिए सरकारी कर्मचारियों की संख्या कम करना सबसे पहले एजेंडा है। इसी एजेंडे के तहत बिजली बोर्ड अभियंताओं के पद समाप्त किए गए हैं। स्वभाविक है कि जब यह पद समाप्त हो जाएंगे तो इसका असर नीचे कर्मचारी तक पड़ेगा। इसी योजना के तहत बिजली बोर्ड और कुछ अन्य नियमों बोर्डों को प्राइवेट सैक्टर को देने की योजना है। सरकार में नियमित भर्ती बहुत अरसे से लगभग बंद है। अब अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड द्वारा ली गई परीक्षाओं के परिणाम घोषित करने के आदेश पारित किए गए हैं। जब दो वर्ष पहले इस बोर्ड को भ्रष्टाचार के आरोपों के तहत भंग किया गया था तब इसमें कई लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हुए थे। कई गिरफ्तारियां हुई थी। परंतु अभी तक अदालत से शायद एक भी मामले का फैसला नहीं आया है। किसी को भी सजा घोषित नहीं हुई है। ऐसे में क्या इन परीक्षाओं के परिणाम पहले नहीं घोषित किये जा सकते थे। क्या इन परिणामों में हुई देरी भी खर्च कम करने का ही एक प्रयोग था। आज केंद्र में कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष तक राहुल गांधी के पदयात्रा और सार्वजनिक उपक्रमों को प्राइवेट सैक्टर को देने के खिलाफ उभरे रोष के परिणाम स्वरुप पहुंची है। राहुल लगातार प्राइवेट सैक्टर की लूट के खिलाफ मुखर रहे हैं। प्रैस की स्वतंत्रता के पक्षधर है। लेकिन उनकी ही पार्टी की सरकार हिमाचल में बिजली बोर्ड जैसी उपक्रमों को प्राइवेट सैक्टर के हवाले करने की योजना पर काम कर रही है। बिजली की खरीद बेच का काम बोर्ड से ले लिया गया है। एक समय हिमाचल को इसी बोर्ड के सहारे प्रदेश को बिजली राज्य घोषित करके उद्योगों को आमंत्रित किया जाता था। आज इसी बिजली बोर्ड की बढ़ी हुई दरों के कारण उद्योग पलायन करने के कगार पर आ पहुंचे हैं। ऐसे में यह बड़ा सवाल बनता जा रहा है कि क्या कर्मचारीयों की संख्या कम करके और आम आदमी पर करों का बोझ लादकर 2026 में प्रदेश आत्मनिर्भर हो जायेगा ।

आईजीएमसी के नॉन फंक्शनल ट्रामा सेंटर से ढाई करोड़ की चपतःजयराम ठाकुर

शिमला/शैल। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार में एक और घोटाला सामने आया है। यह घोटाला ट्रामा सेंटर में मैन पॉवर उपलब्ध करवाने के नाम पर हुआ। डेढ़ साल से बंद पड़ा आईजीएमसी का नव निर्मित ट्रामा सेंटर सिर्फ कागजों में चल रहा था और वहां पर अलग-अलग समय में सपोर्टिव और पैरामेडिकल स्टाफ की नियुक्ति ठेकेदार के माध्यम से कर दी गई थी। अपने चहेतों को लाभ दिलवाने के लिए सभी कायदे कानून ताक पर रख दिये गये। एक बन्द पड़े ट्रामा सेंटर में सैकड़ों कर्मचारी की नियुक्ति की गई और बिना एक भी मरीज का इलाज किये ट्रामा सेंटर के मैन पॉवर के नाम पर दो करोड़ तीस लाख का बिल सरकार पर लाद दिया गया। गौरतलब है कि मैन पॉवर के लिए आने वाले खर्च को केन्द्र सरकार द्वारा उठाया जा रहा है। यह केन्द्र द्वारा जनहित के लिए भेजे गये पैसों की खुलेआम लूट है। फाइनेंस प्रूडेंश और फाइनेंस डिसिप्लिन के नाम पर कर्मचारियों का वेतन और पेंशनधारकों की पेंशन रोकने वाले मुख्यमंत्री की नाक के नीचे इस तरह से जनहित के काम में आने वाले पैसों को अपने चहेतों में बांटा जा रहा है।
जयराम ठाकुर ने कहा कि हर दिन सुक्खू सरकार के कारनामें बाहर आ रहे हैं। नया मामला लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ के साथ साथ केंद्र सरकार द्वारा भेजे गये पैसे की बंदरबांट का है। केंद्र सरकार के सहयोग से बने आईजीएमसी के ट्रामा सेंटर का उद्घाटन मुख्यमंत्री ने फीता काटने और पटिका लगवाने के शौक में मुख्यमंत्री ने पिछले साल 09 मार्च को कर दिया और उसी के साथ ही मैन पॉवर की भर्ती के लिये अपने चहेते ठेकेदारों को ऑर्डर भी दे दिया। अपेक्षित मैनपॉवर को ठेकेदारों ने ट्रामा सेंटर में नियुक्ति भी दे दी लेकिन सरकार ट्रामा सेंटर को फंक्शनल करना भूल गई। बिना इलाज किये हर महीनें ठेकेदार का बिल बनता रहा। धीरे-धीरे बढ़कर यह राशि 2 करोड़ 30 लाख हो गई। जिससे भुगतान के लिए अब ठेकेदारों ने जोर लगाना शुरू कर दिया। पिछले दिनों ट्रामा सेंटर को फंक्शनल करने आये मुख्यमंत्री से भी ट्रामा सेंटर में तैनात कर्मचारियों ने मुलाकात की और वेतन न मिलने की शिकायत की। इसको लेकर कई बार प्रदर्शन भी किया जा चुका है।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि अस्पताल प्रशासन ने विभिन्न समय पर ट्रामा सेंटर के लिए अलग-अलग पदों पर जिसमें सपोर्टिव स्टाफ और पैरामेडिकल स्टाफ शामिल है के लिए भर्तियां निकाली और आउट सोर्स के माध्यम से उन्हें भरा गया। सूचना के अधिकार के तहत हासिल किये गये डॉक्यूमेंट के आधार पर पता चलता है कि रेडियो ग्राफर, फार्मासिस्ट, वार्ड बॉय ट्रॉली मैन सफाई कर्मचारी के कुल 126 पदों पर अलग-अलग समय में नियुक्तियां हुई। हैरानी की बात है कि जो ट्रॉमा सेंटर अब फंक्शनल हुआ है उसके लिए कई महीनों या साल भर पहले से ही कर्मचारियों की नियुक्ति का क्या औचित्य है।
इसके साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि उन्होंने ट्रॉमा सेंटर को फंक्शनल करने में 19 महीने का वक्त क्यों लगाया? क्या बने बनाये प्रोजेक्ट का बार-बार फीता काटना ही व्यवस्था परिवर्तन है। जहां केन्द्र सरकार के कामों का फीता काटा जाये और केंद्र सरकार को कोसा जाये। क्योंकि जो पैसा घोटाले के माध्यम से उड़ाया जा रहा है वह भी केंद्र सरकार से आया है और जिस पैसे से ट्रामा सेंटर और कैंसर टर्शरी सेंटर बन रहा है वह भी केंद्र सरकार का है। सरकार बस फीता कटर बनकर फीता काटे जा रही है।

भाजपा की आक्रामकता के राजनीतिक मायने क्या है?

शिमला/शैल। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने प्रदेश के कर्मचारियों को 4 प्रतिशत डी.ए. जो जनवरी 2023 से देय था देने की घोषणा की है। इसी के साथ प्रदेश के सारे कर्मचारीयों को निगमों/बोर्डों सहित वेतन की अदायगी भी इसी माह की 28 तारीख को करने की घोषणा करके इस आश्य के आदेश भी जारी कर दिये हैं। पैन्शनरों को भी यह अदायगी 28 तारीख को ही हो जायेगी। मुख्यमंत्री का यह फैसला प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति पर उठते सवालों के बीच महत्वपूर्ण माना जा रहा है। लेकिन इसी फैसले के साथ यह सवाल भी उठाना शुरू हो गया है कि क्या भविष्य में भी यह भुगतान इसी तरह सुनिश्चित हो पायेंगे। इसी के साथ यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या अन्य लोगों के भुगतान भी इसी तरह समय पर हो जायेंगे जो कर्मचारी नहीं हैं। क्योंकि काफी अरसे से ठेकेदार और दूसरे सप्लायर भी यह शिकायत कर रहे हैं कि उनके भुगतान भी काफी अरसे से अटके पड़े हुये हैं। प्रदेश के कर्मचारियों के तो संगठन है और वह अपनी आवाज इनके माध्यम से सरकार तक पहुंचा सकते हैं। लेकिन जिन ठेकेदारों के माध्यम से विकास कार्यों को फील्ड में अंजाम दिया जा रहा है यदि उनके भुगतान समय पर न हुये तो उससे विकास कार्यों पर ब्रेक लग जायेगी और वह सरकार के लिये और भी नुकसान देह स्थिति होगी। इसलिये वित्तीय स्थिति और उसके प्रबंधन का टेस्ट आने वाले दिनों में होगा। लेकिन जैसे ही मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों और पैन्शनरों के यह भुगतान करने का ऐलान किया तो उस पर भी भाजपा ने तुरन्त यह कह दिया है कि यह सब कुछ केन्द्र द्वारा 1479 करोड़ की एडवांस अदायगी कर देने से संभव हुआ है। जबकि अब तक केन्द्र ने हिमाचल को उसके हिस्से से ज्यादा आदायगी नहीं की है। परन्तु भाजपा का सारा नेतृत्व राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर नीचे तक यह सन्देश देने में लगा हुआ है कि प्रदेश सरकार केन्द्र के सहयोग के बिना एक दिन भी नहीं चल सकती। बल्कि जेपी नड्डा जब पिछले दिनों बिलासपुर आये थे तब जो ब्यान उनका आया वह विश्लेषकों की नजर में एक तरह का चुनावी भाषण ही था। भाजपा का हर नेता जिस तरह से सरकार के खिलाफ आक्रामक हो उठा है और आपदा राहत में घपला होने का आरोप लगा रहा है उससे यह कुछ अलग ही तरह का संकेत और संदेश जा रहा है। भाजपा नेता सुक्खू सरकार को एकदम असफल और भ्रष्टाचार में लिफ्त होने का तमगा देते जा रहे हैं। भाजपा के इन आरोपों का सरकार और कांग्रेस पार्टी की ओर से कोई कारगर जवाब नहीं आ रहा है। भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है और सरकार कांग्रेस द्वारा ही विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व सरकार के खिलाफ सौंपी अपनी ही चार्जशीट पर कोई कारवाई नहीं कर पा रही है। इससे सरकार पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों को स्वतः ही बल मिल जाता है। इस समय केन्द्र सरकार के सहयोग पर जहां मुख्यमंत्री फूटी कौड़ी भी न मिलने की बात कह रहे हैं वहीं पर उनके ही कुछ मंत्री इस सहयोग को रिकॉर्ड पर लाकर मोदी सरकार का धन्यवाद कर रहे हैं। इस तरह सरकार में ही उठते इन अलग स्वरों का राजनीतिक अर्थ बदल जाता है। फिर राज्यसभा चुनाव के दौरान भाजपा पर धनबल के सहारे इस सरकार को गिराने का प्रयास करने का आरोप लग ही चुका है। इस आरोप को प्रमाणित करने के लिये एफ आई आर तक दर्ज है। एफ आई आर जांच में हरियाणा की पूर्व खट्टर सरकार के प्रचार सलाहकार पर भी आरोप आये हैं। अब हरियाणा में पुनः भाजपा की सरकार बन गयी है। हिमाचल में दल बदल का खेल नड्डा के अध्यक्ष काल में हुआ है। अब नड्डा केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हो गये हैं लेकिन उस समय दल बदल से सुक्खू सरकार गिराई नहीं जा सकी। यह असफलता एक तरह से नड्डा के नाम पर भी है। लेकिन राज्यसभा चुनाव और उसके बाद के घटनाक्रम ने सुक्खू सरकार को अब तक चैन से बैठने नहीं दिया है। वेतन भत्ते निलंबित करने का रिकॉर्ड सदन के पटल पर आ गया है। इस समय सरकार के चार-पांच मंत्री किसी न किसी मुद्दे पर मुख्यमंत्री के साथ तकरार में चल रहे हैं। कर्मचारी आन्दोलन की स्थिति पूरी तरह खत्म नही हुई है। मीडिया को पुलिस बल के माध्यम से डराने के प्रयास लगातार रिकॉर्ड पर आ रहे हैं। जनता इस सरकार को ‘‘टैक्स’’ की सरकार का तमगा दे रही है। इस तरह मित्रों के अलावा हर वर्ग सरकार से पीड़ित है। भाजपा इस स्थिति पर बराबर नजर बनाये हुये है और यह सन्देश सफलतापूर्वक दे रही है कि केन्द्र के सहयोग के बिना सरकार एक दिन नहीं चल सकती। आने वाले दिनों में जब कर्ज लेने की सीमा पार हो जायेगी तब प्रदेश का वित्तीय प्रबंधन कैसे आगे बढ़ेगा उस पर सबकी निगाहें लगी हैं। माना जा रहा है कि सरकार अपने ही बोझ से दम तोड़ने के कगार पर पहुंच रही है। भाजपा इसी स्थिति की प्रतीक्षा में है और तब सरकार तोड़ने के प्रयास एक दम गति पकड़ लेंगे। उस समय तक यदि नेतृत्व परिवर्तन की दिशा में कोई ठोस कदम न उठ सके तो सरकार और पार्टी में बगावत खुलकर सामने आ जाएगी। भाजपा अपने ब्यानों से इसी संभावित बगावत को हवा दे रही है। माना जा रहा है कि भाजपा की आक्रामकता प्रदेश को चुनावों की ओर ले जाने का एक सुनियोजित प्रयास है।

क्या नड्डा का ब्यान कंगना के आरोपों का प्रमाण है?

जब सरकार 2024-25 में प्रति व्यक्ति खर्च ही कम कर रही है तो फिर वित्तीय संकट क्यों?
क्या सरकार को बजट में दिखाया केन्द्रिय हिस्सा नहीं मिल रहा है 
शिमला/शैल। सुखविंदर सुक्खू के नेतृत्व में जब कांग्रेस ने प्रदेश की सत्ता संभाली थी तब प्रदेश की जनता को सरकार की वित्तीय स्थिति पर चेतावनी देते हुए यहां के हालात श्रीलंका जैसे होने की बात की थी। इस चेतावनी के बाद यह सरकार प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र लायी और उसमें पूर्व की जयराम सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप लगाया। श्रीलंका की स्थिति कर्ज लेकर घी पीने की नीति पर चलने से हुई यह एक सार्वजनिक सच है। आज हिमाचल भी प्रतिमाह कर्ज लेकर काम चला रहा है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ. बिन्दल के अनुसार सुक्खू सरकार अब तक 28000 करोड़ का कर्ज ले चुकी है। राज्य सरकार के मुताबिक उसको केंद्र से वांच्छित सहायता नहीं मिल रही है। लेकिन भाजपा नेता केन्द्र द्वारा दी गयी सहायता के आंकड़े सार्वजनिक रखते हुए राज्य सरकार के आरोपों को नकार चुकी है। मण्डी से भाजपा सांसद कंगना रनौत ने केन्द्र द्वारा प्रदेश को दी गयी आपदा राहत में राज्य सरकार द्वारा घपला करने का आरोप लगाने के बाद राज्य सरकार द्वारा लिये जा रहे कर्ज के निवेश पर सोनिया गांधी तक पर आरोप लगा दिये हैं। प्रदेश कांग्रेस और राज्य सरकार कंगना के आरोपों का जवाब नहीं दे पाये हैं। कंगना ने सोनिया गांधी पर दिये ब्यान को वापिस नहीं लिया है और प्रदेश कांग्रेस या सरकार कंगना के खिलाफ कोई कारवाई नहीं कर पायी है। अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने जिस तर्ज पर राज्य सरकार के खिलाफ आरोप लगाये हैं उससे एक तरह से कंगना के ही आरोपों की पुष्टि हो जाती है। नड्डा के ब्यान पर पूरी सरकार में प्रतिक्रिया हुई है लेकिन नड्डा द्वारा रखे गये सहायता आंकड़ों का कोई खण्डन सरकार के मंत्री नहीं कर पाये हैं। नड्डा का यह कहना कि केन्द्र के सहयोग के बिना राज्य सरकार एक दिन भी नहीं चल सकती अपने में बड़ा आक्षेप और संकेत है। बल्कि एक तरह से इसे चुनावी भाषण भी कहा जा सकता है।
राज्य सरकार प्रदेश के कर्मचारियों को पुरानी पैन्शन योजना बहाल करने को चुनावों में दी गारंटीयां पूरी करने की दिशा में एक बड़ा कदम करार दे रही है। लेकिन ओ.पी.एस का बोझ तो तब पड़ेगा जब 2005 में लगे कर्मचारी रिटायर होना शुरू होंगे। अभी तो इस सरकार पर ओ.पी.एस को बोझ पड़ा ही नहीं है। महिलाओं को 1500 प्रतिमाह देने में पात्रता पर जितने राईडर लगा दिये गये हैं उससे इसकी संख्या आधे से भी कम रह गयी है बल्कि कुछ से रिकवरी करने तक की बातें हो रही हैं। सरकार गारंटीयां पूरी करने को लेकर जितने दावे कर रही हैं उनकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है। लेकिन वित्तीय स्थिति सुधारने को लेकर जिस तरह से आम आदमी पर सामान्य सेवाओं और उपभोक्ता वस्तुओं पर टैक्स/शुल्क बढ़ाये जा रहे हैं उसका अब आम आदमी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना शुरू हो गया है। सरकार ने संसाधन बढ़ाने के उपाय सुझाने के लिये एक मंत्री स्तर की कमेटी भी बना रखी है। लेकिन इस कमेटी की बैठकंे कब हुई और उनमें क्या सुझाव आये यह सार्वजनिक नहीं हो पाया है। बल्कि यह आरोप लगना शुरू हो गया है कि इस सरकार को कुछ अधिकारी ही चला रहे हैं जिनकी निष्ठायें पूर्व सरकार के साथ रही हैं। यह आरोप टॉयलैट टैक्स की अधिसूचना जारी होने और उसके वापस लिये जाने से पुख्ता हो जाता है।
इस परिदृश्य में यह सवाल बड़ा अहम हो जाता है कि जब बजट पारित किया गया तो उसमें इस तरह का कोई संकेत नहीं मिलता कि आने वाले दिनों में जनता को यह सब कुछ झेलना पड़ेगा। बजट में पूरी स्पष्टता से बताया गया है कि कहां से कितना पैसा आयेगा और कहां पर कितना खर्च होगा। इसके लिये सरकार के कुछ दस्तावेज पाठकों के सामने रखे जा रहे हैं ताकि सही स्थिति का आम पाठक स्वयं आकलन कर पायें। क्योंकि हर खर्च का ब्योरा इसमें दर्ज रहता है। इसलिये जब बजट में इस तरह का संकेत न हो कि वेतन और पैन्शन का समय पर भुगतान नहीं हो पायेगा और आगे चलकर ऐसा हो जाये तो इससे बजट की विश्वसनीयता पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है। ऐसा भी सामने नहीं आया है कि बजट में केन्द्र से केन्द्रीय शुल्क और सहायता अनुदान के रूप में जो आना दिखाया गया है वह न आया हो। फिर सरकार ने 2023-24 में प्रति व्यक्ति 70229 रूपये खर्च किये हैं लेकिन 2024-25 में यह सिर्फ 70189 रुपये रह गया है। जबकि 2023-24 में प्रति व्यक्ति सरकार को 53892 रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ जो 2024-25 में बढ़कर 55891 पर होने का अनुमान है। 2024-25 में सरकार प्रति व्यक्ति कमा ज्यादा रही है और खर्च कम कर रही है। इन बजट दस्तावेजों को सामने रखकर यह सवाल बड़ा हो जाता है कि जब बजट के आकलनों में कहीं कोई वित्तीय संकट का संकेत नहीं है तो फिर वेतन भत्ते विलंबित करने की स्थिति क्यों आयी? क्या सरकार ऐसा कोई खर्च कर रही है जो राज्य की समेकित निधि का हिस्सा नहीं है?
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

सोलन नगर निगम उप-चुनाव में भाजपा की जीत सरकार के खिलाफ जनता का रोष

शिमला/शैल। सोलन नगर निगम के वार्ड संख्या 5 के उप-चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी अमरदीप पांजा ने शानदार जीत प्राप्त की है। अमरदीप पांजा ने कुल 524 वोट प्राप्त किए, जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी पुनीत नारंग को 240 वोट मिले। इस चुनाव में 2 वोट नोटा के लिए डाले गये। भाजपा की इस जीत को क्षेत्र में पार्टी के प्रति जनता के बढ़ते विश्वास का प्रतीक माना जा रहा है। सोलन नगर निगम के इस उप-चुनाव में जनता ने भाजपा की नीतियों और विकास कार्यों पर मुहर लगाई है।
भाजपा प्रत्याशी अमरदीप पांजा की इस जीत पर भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उन्हें बधाई दी और इसे पार्टी की बड़ी उपलब्धि बताया।
बिंदल ने कहा भाजपा की यह शानदार जीत वर्तमान सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार के खिलाफ बहुत बड़ा फतवा है, हिमाचल सरकार के स्वास्थ्य मंत्री लगातार इस वार्ड ने घर घर जा रहे थे उसके बावजूद भी सरकार को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को कांग्रेस से दो गुना से अधिक वोट प्राप्त हुए, यह सीधा सीधा जनता का वर्तमान सरकार के खिलाफ वोट है, सरकार की झूठी गारंटी, जनता पर बोझ के खिलाफ वोट है।
जयराम ठाकुर ने कहा की वर्तन सरकार लगातार जन विरोधी निर्णय ले रही है और उसके प्रति जनता का रोष इस मतदान में साफ दिखाई दे रहा है। सोलन में वार्ड नंबर 5 की जीत के लिए जनता का आभार एवं कार्यकर्ताओं को बधाई।

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