पितृ ऋण, देव ऋण और गुरु ऋण की धारणाएं भारतीय संस्कृति के वह मूल्य हैं जिन पर जितना मनन-चिन्तन किया जाये उनका अर्थ उतना ही गहराता चला जाता है। इन्हीं मूल्यों के आधार पर किसी संस्कृति का आकलन और उसकी उपादेयता स्थापित की जा सकती है। जो समाज अपने को इन मूल्यों से जितना जोड़े रखेगा वह उतना ही जीवन्त बन जायेगा। आज का समाज जिस बिखराव की ओर बढ़ता जा रहा है उससे आने वाले समय में इतनी समस्याएं खड़ी हो जायेगी जिनका समाधान किसी भी सरकार के लिये एक बड़ी समस्या बन जायेगा। क्योंकि अब व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की अवधारणा और अराजकता में कोई बड़ा अन्तर नहीं रह गया है। जन्म देने वाले माता-पिता जब बच्चों की जिम्मेदारी न रहकर समाज और सरकार की समस्या बन जाये तो अन्दाजा लगाया जा सकता है कि क्या होने वाला है। ऐसे समाज को किन्ही प्रवचनों से सुधारने की संभावना जब लगातार क्षीण होती जाये तब व्यक्तिगत आचरण ही एकमात्र उपाय और उम्मीद रह जाती है। ऐसे समय में कृष्ण कुमार जैसे लोग ही उम्मीद की अन्तिम किरण नजर आते हैं। मैसूर निवासी कृष्ण कुमार जिस तरह से अपनी माता श्री को स्कूटर पर भारत भ्रमण और देव दर्शन करवाने निकले हैं उन्हें देख कर स्वतः ही नमन करने का मन हो जाता है। अब तक 70555 किलोमीटर स्कूटर से यात्रा कर शिमला पहुंचे कृष्ण कुमार को मन की गहराइयों से साधुवाद कहते हुये शैल समाचार परिवार उनकी यात्रा की सफलता की कामना करता है।