हरियाणा के सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा राम रहीम के प्रमुख बाबा गुरमीत राम रहीम को पंचकूला स्थित सीबीआई अदालत ने एक बलात्कार के मामले में दोषी करार देकर 10 वर्ष कैद की सजा सुनाई है। बाबा के खिलाफ अदालत का फैसला 25 तारीख को आयेगा इसकी जानकारी सबको थी। मीडिया में भी इस आश्य के समाचार प्रमुखता से आ रहे थे। बाबा के फैसले के समाचार को प्रमुखता इसलिये दी जा रही थी क्योंकि बाबा ने पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को खुलकर समर्थन दिया था।
इस परिदृश्य में जो कुछ घटा है जान -माल की जो हानि हुई है उसे रोका जा सकता था यदि सरकार चाहती तो। यह अदालत से लेकर आम आदमी तक को पूरी तहर साफ हो चुका है इसमें सरकार अपना राजधर्म निभाने में पूरी तरह असफल रही है। इसमें पूरी वस्तुस्थिति का आंकलन करने में सरकार और उसका तन्त्र असफल रहा है। या इसमें नीयतन राजनीतिक ईच्छा शक्ति का अभाव रहा है। इसका खुलासा उच्च न्यायालय का फैलसा आने के बाद हो जायेगा। लेकिन इस पूरे प्रकरण के बाद जो प्रश्न उभरते हैं वह बहुत गंभीर और संवदेनशील हैं। इसी प्रकरण पर पहला सवाल तो यही उठता है कि ऐसे अपराध का फैसला आने में पन्द्रह वर्ष का समय क्यों लग गया ? अब यह सामने आ चुका है कि इस मामले को दबा दिये जाने के लिये राजनेताओें से लेकर अधिकारियों तक के दबाव आये हैं। फिर जिस पत्रकार ने इस डेरे की गतिविधियों को लेकर पहली बार खबर छापी थी और उसकी हत्या करवा दी गयी थी। इस हत्या के मामलें में आजतक कोई पुख्ता कारवाई का सामने न आना व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है। क्या इस हत्या के गुनाहगारों को लेकर तन्त्र अब कोई परिणाम दे पायेगा अभी देखना बाकी है।
डेरा सच्चा सौदा का यह आश्रम करीब 68 वर्षो से चला आ रहा है। 100 एकड़ में फैले इस आश्रम की संपति हजारों करोड़ की कही जाती है। अमेरिका, कनाडा, इंग्लैण्ड से लेकर आस्ट्रेलिया और यूएई तक इसके आश्रम अनुयायी है। देश-विदेश में इसके पांच करोड़ अनुयायी कहे जाते हैं और अकेले हरियाणा में ही 25 लाख माने जाते हैं। संभवतः इतनी बड़ी संख्या में अनुयायीयों का होना और ऊपर से अपार धन का होना ही राजनेताओं के लिये आकर्षक का केन्द्र बन जाता है। स्वभाविक है कि जिस एक व्यक्ति के पास इतने बडे अनुयायीयो की फौज होगी जो उसके एक फरमान पर लोकतन्त्र के नाम पर किसी एक राजनीतिक दल और नेता को समर्थन देकर सत्ता की कुर्सी पर बैठा देने में सहायक बनगे बाद में उसके आगे नतमस्तक ही रहेंगें। यही कारण है कि आज हमारे राजनेता बाबा के इस पक्ष पर मौन साधे हुए हैं। यहां यह स्वभाविक सवाल उठता है कि एक बाबा के पास इतनी अपार संपत्ति और इतने अनुयायी एक दिन में तो इक्कठे नही हो जाते हैं। यह सब होने में समय लगता है। आज डेरा सच्चा सौदा के आश्रम के निमार्ण को लेकर जो खुलासे सामने आ रहे हैं उस पर सवाल उठता है कि जब यह सब हो रहा था तब हमारा प्रशासनिक तन्त्र क्या कर रहा था? देश की सारी गुप्तचर ऐजैन्सीयां क्या कर रही थी ? क्योंकि आज जो कुछ गुरमीत राम रहीम को लेकर सामने आया है। वैसा ही सब कुछ बापू आशा राम, रामपाल और कई अन्यों के मामलों में सामने आ चुका है। ऐसे सभी लोगों को राजनेताओं और प्रशासन का सहयोग हासिल रहता है और सभी की आपराधिक गतिविधियां सामने आती हैं। आज जितने बाबे जेल की सलाखों के पीछे पहुंच चुके है सभी पर यौन शोषण के आरोप रहे हैं। इस तरह के बाबाओं की संस्कृति फैलती जा रही है और यह राजतन्त्र के सहयोग के बिना संभव नही है और यह देश के लिये खतरे का एक नया क्षेत्र खुलने जा रहा है। आस्था के इस दुरूपयोग का अन्तिम परिणाम अपराध के रूप में सामने आ रहा है इसलिये क्या यह नही होना चाहिये कि जब इस तरह का कुछ सामने आये तो उसे समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों और नेताओं को भी उस अपराध में बराबर का जिम्मेदार बनाया जाये।