वैसे तो जब से ईवीएम मशीन के माध्यम से 1998 से वोट डाले जाने लगे हैं तभी से इन मशीनों की विश्वसनीयता पर सवाल उठते आये हैं। 2009-10 में जब लाल कृष्ण आडवाणी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तब इन मशीनों की व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठे थे। भाजपा नेता जी वी एल नरसिम्हा राव ने तब इन आरोपों पर एक पुस्तक तक लिखी थी। आज यह आरोप इन ईवीएम मशीनों से चलकर चुनाव आयोग का संचालन कर रहे तंत्र तक पहुंच गये हैं। भाजपा नीत एनडीए 2014 से केन्द्र की सत्ता पर आसीन है और हर चुनाव में चुनावों की विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं। लेकिन पहली बार चुनावों में हुई धांधली पर तथ्य परक अध्ययन करके राहुल गांधी सामने आये हैं। स्मरणीय है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने ‘‘अबकी बार चार सौ पार’’ का नारा लगाया था लेकिन यह आंकड़ा दो सौ चालीस पर आकर रुक गया और सरकार बनाने के लिये नीतीश और नायडू का सहारा लेना पड़ा। लोकसभा चुनावों के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभाओं के चुनाव हुए। इन चुनावों में जिस पैमाने की धांधलियां हुई उसकी पराकाष्ठा तब सामने आयी जब हरियाणा में एक विधानसभा चुनाव का डिजिटल रिकॉर्ड लेने के लिये सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद भी यह रिकॉर्ड नहीं मिला और मामला पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय पहुंचा तथा अदालत ने यह रिकॉर्ड देने के आदेश कर दिये। लेकिन उच्च न्यायालय के आदेश के बाद रात को नियम में संशोधन करके रिकॉर्ड देने से इन्कार कर दिया गया। इससे यह आशंका और बलवती हो गई कि चुनाव आयोग में ऐसा कुछ अवश्य हुआ है जिसे सार्वजनिक होने से रोकने के लिये नियम में ही संशोधन कर दिया गया।
यह स्थितियां बनी जिनसे पूरे अनुसंधान के साथ कर्नाटक की महादेवपुरा सीट का अध्ययन किया गया। इस अनुसंधान के बाद वोट चोरी के पांच रास्ते सामने आये। यह पांच चोर रास्ते इस प्रकार सामने आये (1) डुप्लीकेट वोट (2) फर्जी और अप्रमाणित पते (3) एक छोटे से घर में 80 से अधिक वोट (4) फर्जी फोटो (5) फॉर्म छः का दुरुपयोग । इनके विश्लेषण से सामने आया कि 11965 वोट डुप्लीकेट (2) 10452 वोट एक ही पते पर दर्ज (3) 4509 वोट फर्जी और अप्रमाणित पर दर्ज (4) 4132 वोट अमान्य फोटो के साथ दर्ज (5) 33692 मामले ऐसे हैं जहां व्यक्ति चार-चार अलग पोलिंग पर दर्ज। आदित्य श्री वास्तव कर्नाटक में दो, उत्तर प्रदेश में एक और महाराष्ट्र में एक पोलिंग बूथ पर दर्ज है और सभी जगह वोट डाले हैं। इण्डिया टुडे की टीम ने अपनी जांच में एक ही पते पर 80 वोट दर्ज होने के आरोप को सही पाया है। इस तरह के आरोप कई लोकसभा क्षेत्रों में सामने आये हैं। इन आरोपों पर चुनाव आयोग का जवाब हास्यस्पद रूप से सामने आया है क्योंकि चुनाव आयोग अपना डाटा सार्वजनिक नहीं कर रहा है। जबकि यह आरोप सीधे अपराध की श्रेणी में आता है और इसके लिये कर्नाटक में मामला दर्ज किया जा सकता है। बिहार में चुनाव आयोग ने जिस तरह से 65 लाख मतदाताओं को सूची से निकला था उस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सारी स्थिति को बदल दिया। इन वोट चोरी के आरोपों के साथ जिस तरह के सवाल पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और स्व.राज्यपाल सत्यपाल मलिक के प्रति भारत सरकार के आचरण से उभरें हैं उससे यह स्पष्ट हो गया है की चुनाव आयोग की विश्वसनीयता के साथ केन्द्र सरकार की नीयत और नीति पर भी गंभीर सवाल खड़े होते जा रहे हैं। यदि प्रधानमंत्री इन उठते सवालों पर स्वयं जवाब नहीं देते हैं तो परिस्थितियों बहुत जटिल हो जायेंगी।