पिछले कुछ ही दिनों में जो यह सब कुछ घटा है यदि उस सबको एक साथ मिलाकर देखा और समझा जाये तो एक बड़ी तस्वीर ऊभर कर सामने आती है। इण्डिया बनाम भारत के मुद्दे पर संघ की टिप्पणी से स्पष्ट हो जाता है कि इस विशेष सत्र में इण्डिया का नाम बदलकर भारत करने का प्रयास अवश्य किया जायेगा। इस नाम बदलने के साथ ही कुछ और भी बदलने का प्रयास किया जा सकता है। यह और क्या होगा इसका अनुमान लगाना आसान नहीं होगा। इस बदलाव पर जो प्रतिक्रियाएं उभरेगी उन्हें सनातन धर्म का विरोध करार देकर विपक्षी गठबंधन में शामिल हर दल को अपना अपना स्टैण्ड लेने के लिये बाध्य किया जायेगा। इस तरह एक ऐसी बहस का वातावरण खड़ा करने का प्रयास किया जायेगा जिसमें अन्य मुद्दे गौण होकर रह जायेंगे। विपक्षी एकता राज्यों और लोकसभा के चुनावों के मुद्दे पर ही अपनी अपनी हिस्सेदारी के नाम पर बांटने के कगार पर आ जायेगी। क्योंकि कुछ दलों की महत्वाकांक्षा अपने-अपने विस्तार के लिये कांग्रेस को अपने राह की सबसे बड़ी रुकावट मानेंगे। क्योंकि सतारूढ़ भाजपा दलों के इस द्वन्द्व को अवश्य उभारेगी ताकि विपक्षी एकता की गंभीरता को लेकर जनता में सवाल खड़े किये जा सके। सनातन पर आयी कुछ नेताओं की टिप्पणियां इसी परिप्रेक्ष में देखी जा रही है।
दूसरी और आज मोदी सरकार के खिलाफ देश की आर्थिकी को लेकर जितने सवाल हैं यदि वह सारे सवाल पूरी गंभीरता और तथ्यों के साथ देश की जनता के सामने एक साथ लाकर खड़े कर दिये जायें तो इस सरकार के पास कोई आधार ही नहीं बचता है। परन्तु इस समय ऐसे कोई सवाल योजनाबद्ध तरीके से उठाये नहीं जा रहे हैं। इण्डिया गठबन्धन में कांग्रेस सबसे बड़ा दल है। गठबन्धन के प्रति अपनी गंभीरता और प्रतिबद्धता दिखाते हुए राहुल गांधी ने अपने को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार होने से लेकर इण्डिया की हर कमेटी से अपने को बाहर रखा है ताकि गठबन्धन की किसी भी असफलता का कारण उन्हें न बना दिया जाये। राहुल का यह फैसला एक बहुत ही सुलझे हुये नेता का फैसला है। लेकिन इसी के साथ कांग्रेस को अपनी राज्य सरकारों पर नजर रखनी होगी। क्योंकि यदि कांग्रेस को अपने ही राज्यों से लोकसभा में सारी सीटें न मिली तो इसका सीधा असर भी राहुल और प्रियंका के नेतृत्व पर ही पड़ेगा। क्योंकि इस समय हाईकमान इन्हें ही माना जा रहा है। हिमाचल को लेकर कांग्रेस के अपने सर्वे में ही यह आ चुका है कि यहां की चारों सीटों पर कांग्रेस कमजोर है। इस कमजोरी की जिम्मेदारी हाईकमान के नाम लगेगी क्योंकि कार्यकर्ताओं की नजर अन्दाजी और नाराजगी वहां तक पहुंचा दी गयी है।