सुक्खू सरकार ने पदभार संभालते ही प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर अपनी चिन्ता जनता से साझा की थी। जनता के सामने यह आंकड़ा रखा था कि उनकी सरकार को विरासत में 75 हजार करोड़ का कर्ज और 11000 करोड़ की देनदारियों मिली हैं। यह आंकड़ा सामने रखते हुये प्रदेश के हालात श्रीलंका जैसे हो जाने की आशंका भी व्यक्त की थी। यह भी कहा था कि वह वित्तीय स्थिति पर बजट सत्र में श्वेत पत्र लायेंगे। बजट सत्र में तो यह श्वेत पत्र नहीं आ पाया लेकिन अब यह श्वेत पत्र तैयार करने के लिए उप-मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर दिया गया है। इसलिये यह उम्मीद है कि यह श्वेत पत्र अब तो आ ही जायेगा। जब किसी परिवार की वित्तीय स्थिति चिन्ताजनक हो जाती है तो सबसे पहले परिवार का मुखिया अनावश्यक खर्चों पर रोक लगाने की बात करता है और उसके बाद संसाधन बढ़ाने की ओर कदम उठाता है। परिवार की तर्ज पर ही प्रदेश और देश की आर्थिकी चलती है। जब प्रदेश पर इतने कर्ज भार की बात चर्चा में आयी है तब दो पुर्व मुख्य मंत्रियों शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल के ब्यान आये हैं। दोनों ने अपने-अपने समय की स्थितियां स्पष्ट की हैं। कांग्रेस के शासनकाल की स्थिति पर पक्ष रखने के लिये आज वीरभद्र हमारे बीच है नहीं और जयराम ने अपने काल को लेकर कोई बड़ी टिप्पणी की नहीं है। वित्तीय स्थिति को लेकर जितने सवाल राजनीतिक नेतृत्व पर उठते हैं उससे ज्यादा वित्त सचिवों पर उठते हैं। वित्तीय प्रबंधन के लिये प्रदेश में एफआरबीएम विधेयक पारित है और इसके मुताबिक सरकार उसी कार्य के लिये कर्ज ले सकती है जिसके निवेश से प्रदेश की आय बढ़े। इस परिपेक्ष में प्रदेश की जनता को यह जानने का हक है की इतना बड़ा कर्जदार कैसे खड़ा हो गया है? यह कर्ज लेने की आवश्यकता कब और क्यों पड़ी? यह कर्ज कहां-कहां निवेश हुआ है और उससे कब-कब कितनी आय बढी? इस समय कैग रिपोर्टों के मुताबिक कर्ज का ब्याज चुकाने के लिये भी कर्ज लेना पड़ रहा है। राज्य की समेकित निधि से अधिक खर्च किया जा रहा है जो कि संविधान की अवहेलना है। और कई कई वर्षों तक ऐसा खर्च नियमित नहीं हो पाता है। हर वर्ष की रिपोर्ट में इसका जिक्र रहता है। बजट दस्तावेजों में किसी समय राज्य की आकस्मिक निधि का आंकड़ा दर्ज रहता था जो अब गायब है। राज्य सरकार हर वर्ष बजट में राजस्व आय का आंकड़ा रखती है। राजस्व आय के साथ इतना बड़ा कर्जदार कैसे खड़ा हो गया आज जब वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र तैयार किया ही जा रहा है तो यह पूरी स्पष्टता के साथ की सरकार जनता को राहत देने के नाम पर कर्ज लेकर घी पीने को ही चरितार्थ तो नहीं करती रही है। क्योंकि बेरोजगारी में प्रदेश देश के पहले छः राज्यों में आ चुका है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों का आंकड़ा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। यह सब तब हो रहा है जब कुछ उद्योगपतियों के सहारे जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है। यह सब आंकड़े योजनाओं के अन्त विरोध के परिचायक होते हैं। इनके सहारे कुछ लोगों को कुछ समय के लिये ही बहकाया जा सकता है लेकिन स्थाई तौर पर नहीं। इसलिये श्वेत पत्र के सारे पक्ष सामने आने चाहिये ताकि लोग उस पर विश्वास कर सकें।