इस बदले परिदृश्य में पूर्णेश मोदी पुनः उच्च न्यायालय चले गये और गुहार लगाई कि स्टे को वापस ले लिया जाये और ट्रायल कोर्ट अपनी अगली कारवाई शुरू करे। उच्च न्यायालय ने इस आग्रह को स्वीकार करते हुये स्टे हटा दिया। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश विपुल पांचोली के स्टे वापिस लेने के बाद मामला सी.जे.एम. की अदालत पहुंच गया। एक माह में सारी कारवाई की प्रक्रिया पूरी होकर फैसला आ गया। फैसले में राहुल गांधी को दो वर्ष की सजा सुना दी गयी और मामला चर्चा में आ गया। क्योंकि इस कानून के तहत अधिकतम सजा ही दो वर्ष की है और पंचायत से लेकर संसद तक किसी भी चुने हुए प्रतिनिधि की सदस्यता रद्द करने के लिए कम से कम दो वर्ष की चाहिए। यदि राहुल को दो वर्ष से कम की सजा होती तो इस पर इतना शोर ही न उठता। अब एक माह में सारा ट्रायल पूरा हो जाना और सजा भी दो वर्ष की होना जिसका सीधा प्रभाव सांसदी पर पड़ेगा। यह सब संयोगवश हो गया या कोई और कारण भी रहे होंगे यह सब भविष्य के गर्भ में छिपा है इस पर अभी कुछ कहना सही नहीं होगा।
लेकिन इस फैसले ने पूरे देश की सियासत को हिला कर रख दिया है। राहुल गांधी इस फैसले से जरा भी विचलित नहीं है यह उनकी पत्रकारवार्ता से स्पष्ट हो गया। क्योंकि राहुल गांधी के इस ब्यान पर यह मानहानि मामला हुआ उससे भी गंभीर आरोप मोदी उपनाम पर राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य खुशबू सुन्दर 2018 में लगा चुकी है बल्कि यह आरोप लगाने के बाद ही वह भाजपा में शामिल हुई है। उनके ब्यान से किसी मोदी की कोई मानहानि नहीं हुई है। कांग्रेस ने खुशबू के ब्यान को मुद्दा बना लिया है। बल्कि इस फैसले के बाद भाजपा के सारे नेताओं के ब्यान एकदम नये सिरे से चर्चा में आ गये हैं। हिमाचल से ताल्लुक रखने वाले केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर शाहीनबाग आन्दोलन के प्रसंग में दिया ब्यान तक चर्चा का केन्द्र बन गये हैं। राहुल को लेकर आया फैसला एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। भाजपा जब इसे ओ.बी.सी. के अपमान का मुद्दा बनाने का प्रयास कर रही है तब उनके अपने ही नेताओं के ब्यान उस पर भारी पड़ रहे हैं। भाजपा और अदाणी के रिश्ते एक राष्ट्रीय सवाल बनता जा रहा है। अदाणी की भ्रष्टता पर प्रहार को राष्ट्र का अपमान बताना भाजपा को भारी पड़ेगा यह स्पष्ट होता जा रहा है। राहुल गांधी को उच्च न्यायालय से राहत मिलेगी ही क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय लिली थॉमस लोक प्रहरी और सुब्रमण्यम स्वामी के मामलों में जिस तरह की स्थापनाएं कर चुका है उनके मानकों पर शायद यह मामला पूरा नहीं उतरता है। ऐसे में इस फैसले के बाद राष्ट्रीय प्रश्नों पर उठने वाली बहस भाजपा और प्रधानमंत्री पर भारी पड़ेगी। वैसे यह देखना रोचक होगा कि प्रदेशों में बैठा हुआ कांग्रेस नेतृत्व किस तरह से जनता के बीच जाता है।