लेकिन इस परिदृश्य में महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री को यह कहने की बाध्यता क्यों आयी? क्या प्रधानमंत्री को केजरीवाल के मुफ्ती मॉडल की बढ़ती लोकप्रियता से डर लगने लगा है। जबकि मुफ्ती के सही मायनांे में जनक प्रधानमंत्री और उनकी भाजपा है। क्या प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना में बांटा गया 18.50 लाख करोड कर्ज रेवड़ी बांटना नहीं है? क्या सरकारी बैंकों का आठ लाख करोड़ का एन पी ए वहे खाते में डालना मुफ्ती नहीं है। किसान सम्मान निधि और उज्जवला योजनाएं मुफ्ती नहीं हैं। मुफ्त बिजली, पानी और बसों में महिलाओं को आधे किराये में छूट देना सब मुफ्ती में आता है। इस मुफ्ती की कीमत महंगाई बढ़ाकर और कर्ज लेेकर पूरी की जाती है। यह सारा कुछ 2014 में सत्ता पाने और उसके बाद सत्ता में बने रहने के लिये किया गया। जिसे अब केजरीवाल और अन्य ने भी सत्ता का मूल मन्त्र मान लिया है। इसलिये इसमें किसी एक को दोष देना संभव नहीं होगा।
सत्ता में बने रहने के लिये बांटी गयी इन रेवडी़यों का काला पक्ष अब सामने आने वाला है और इसी की चिन्ता में प्रधानमंत्री को यह चेतावनी देने पर बाध्य किया है। क्योंकि आर बी आई देश के तेरह राज्यों की सूची जारी कर चुका है जिनकी स्थिति कभी भी श्रीलंका जैसी हो सकती है। आर बी आई से पहले वरिष्ठ नौकर शाह प्रधानमंत्री के साथ एक बैठक में यही सब कुछ कह चुके हैं। इन लोगों ने जो कुछ कहा है वह सब आई एम एफ की अक्तूबर 2021 में आयी रिपोर्ट पर आधारित है। आई एम एफ की इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि सरकार द्वारा लिया गया कर्ज जी डी पी का 90.6 प्रतिशत हो गया है। इस कर्ज में जब सरकारी कंपनीयों द्वारा लिया गया कर्ज भी शामिल किया जायेगा तो इसका आंकड़ा 100 प्रतिशत से भी बढ़ जाता है। आई एम एफ की रिपोर्ट का ही असर है कि विदेशी निवेशकों ने शेयर बाजार से अपना निवेश निकालना शुरू कर दिया। इसी के कारण डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट आयी। खाद्य पदार्थों पर जी एस टी लगाना पड़ा है। देश का विदेशी मुद्रा भण्डार भी लगातार कम होता जा रहा है क्योंकि निर्यात के मुकाबले आयात बहुत ज्यादा है। अगले वित्त वर्ष में जब 265 अरब डॉलर का कर्ज वापिस करना पड़ेगा तब सारी वित्तीय व्यवस्था एकदम बिगड़ जायेगी यह तय है। तब जो महंगाई और बेरोजगारी सामने आयेगी तब उसमें समर्थक और विरोधी दोनों एक साथ और एक बराबर झेलेंगे।