इस चिंता और चिंतन में सबसे पहला ध्यान इस ओर जाता है कि 2014 के सत्ता परिवर्तन के समय जो आम आदमी को सपने दिखाये गये थे वह तो कहीं पूरे हुये नहीं बल्कि उस समय बदलाव की वकालत करने वाले सबसे बड़े चेहरे स्वामी रामदेव सेे जब आज उनके पुराने दावों/वायदों की याद दिलाकर वर्तमान पर सवाल पूछे गये तो वह जवाब देने के बजाय सवाल पूछने वाले पत्रकार से ही अभद्रता पर उतर आये हैं। उनके संवाद का वीडियो वायरल होकर हर आदमी के सामने हैं। यह स्थिति अकेले स्वामी रामदेव की ही नहीं है बल्कि हर उस आदमी की है जो अच्छे दिनों के नाम पर हर खाते में पन्द्रह-पन्द्रह लाख आने की आस लगाये बैठा था। बल्कि उस बदलाव के बड़े पैरोकारों का एक वर्ग तो आज की समस्याओं के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री स्व.पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह तक रहे हर प्रधानमंत्री को ही जिम्मेदार मानता है। उनकी नजर में तो यह मोदी ही है जिन्होंने देश को और बर्बाद होने से बचा लिया है। इस परिप्रेक्ष्य में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस समय आम आदमी के सामने इस सरकार के कुछ फैसलों पर सार्वजनिक रूप से एक बहस शुरू की जाये। क्योंकि इन चुनाव में मिली जीत के बाद यह दावा किया जा रहा है कि देश की जनता ने समर्थन देकर सरकार को ऐसे फैसले लेने के लिए अधिकृत किया है।
महंगाई, बेरोजगारी का मूल कारण कर्ज होता है। आईएमएफ के मुताबिक वर्ष 2022 में यह कर्ज जीडीपी का 90% हो जायेगा। आरबीआई के अनुसार 31-03-2015 को देश का कर्ज 3,23,464 करोड था जो 31-03-2018 को बढ़कर 10,36,187 करोड हो गया है। 2018-19 में कर्ज जीडीपी का 68.21% था। पिछले 10 वर्षों में सात लाख करोड़ से अधिक का बारह बैंकों का एनपीए राइट ऑफ किया गया है। मोदी सरकार ने संपत्ति कर्ज माफ कर दिया है। संपत्ति कर के साथ ही कॉरपोरेट घरानों पर लगने वाला कॉरपोरेट टैक्स भी कम किया है। गरीब और गांव से जुड़ी बहुत सारी सेवाओं के बजट में कटौती की गयी है। इसी दौरान करीब आठ लाख करोड़ बैंकों में हुये फ्रॉड में डूब गया है। इन आंकड़ों का जिक्र करना इसलिए आवश्यक हो जाता है कि जब देश का धन कुछ बड़े लोगों के लिये लुटता रहे और सरकार अपने खर्चे चलाने के लिये कर्ज लेती रहे तथा ईंधन की कीमतों में बढ़ौतरी करती रहे तो उसका अंतिम परिणाम तो महंगाई के रूप में ही सामने आयेगा। तेल और गैस पर समय-समय पर बढ़ाये गये करों से यह सरकार करीब 26 लाख करोड़ की कमाई कर चुकी है। जबकि सरकार द्वारा चलाई जा रही सारी कल्याणकारी योजनाओं पर इस कमाई का आधा भी खर्च नहीं हुआ है। ऐसे में आज आम आदमी को यह सोचना होगा कि जब एक को रसोई गैस का सिलेंडर किसी भी योजना के नाम पर मुफ्त में मिलेगा तो उसकी भरपाई गैस की कीमतें बढ़ाकर की जाती है और उसका असर सब पर पड़ता है। जब एक किसान को सम्मान निधि के नाम पर छः हजार नगद मिलते हैं तो उसकी वसूली इस महंगाई से होती है। जब मुफ्त और सस्ता राशन दिया जाता है तो उससे गांव में जमीनें बंजर होने के साथ ही इस खर्च को पूरा करने के लिए सब की जेब पर महंगाई के माध्यम से डाका डाला जाता है। इसलिए आज कुछ के लिए मुफ्त की बजाये सबके लिये सस्ते की वकालत और मांग की जानी चाहिये।