Friday, 19 September 2025
Blue Red Green
Home सम्पादकीय चुनाव आयोग की प्रसांगिता पर उठते सवाल

ShareThis for Joomla!

चुनाव आयोग की प्रसांगिता पर उठते सवाल

क्या चुनाव आयोग की प्रसांगिता प्रश्नित होती जा रही है? यह सवाल पांच राज्यों के लिये हो रहे विधानसभा चुनाव के परिदृश्य में एक बड़ा सवाल बनकर सामने आया है। क्योंकि इस चुनाव की पूर्व संध्या पर जिस तरह से प्रधानमंत्री का साक्षात्कार प्रसारित हुआ और चुनाव आयोग इस पर चुप रहा। इसी तरह योगी आदित्यनाथ का इंटरव्यू भी प्रसारित हुआ। चुनाव आयोग ने इसका भी कोई संज्ञान नहीं लिया। जबकि 2017 के चुनाव में इसी तरह के राहुल गांधी के एक इंटरव्यू पर चैनल के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करने और राहुल गांधी को नोटिस जारी करने की कारवाई की गयी थी। 2017 से 2022 तक आते-आते चुनाव आयोग यहां तक पहुंच गया उसके सरोकार बदल गये हैं। ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायतें हर चुनाव में आ रही है। इस बार भी उत्तर प्रदेश के हर चरण में यह शिकायतें आ रही हैं। देश के सारे विपक्षी दल ईवीएम की जगह मत पत्रों के माध्यम से चुनाव करवाने की मांग कर रहे हैं। ईवीएम के साथ वीवीपैट की पूरी गणना करने और ईवीएम के साथ मिलान करने की मांग को नहीं माना जा रहा है। क्या इस परिदृश्य में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठते सवालों को नजरअंदाज किया जा सकता है। चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन पर अभी तक आपराधिक मामला दर्ज करके चुनाव रोकने का प्रावधान नहीं हो पाया है। संसद और विधानसभाओं को अपराधियों से मुक्त करवाने तथा एक देश एक चुनाव के दावे सभी सिर्फ जनता का ध्यान बांटने के हथकण्डे होकर रह गये हैं।
इसी चुनाव में एक स्ट्रिंग ऑपरेशन के माध्यम से बसपा और भाजपा के दो बड़े नेताओं के बीच हुई बैठक का एक आडियो/वीडियो वायरल हुआ है जिसमें कथित रूप से यह कहा गया है कि बसपा की करीब 40 सीटें आयेंगी जिन्हें तीन सौ करोड़ लेकर भाजपा को सौंप दिया जायेगा। इस आडियो/ वीडियो का भाजपा और बसपा द्वारा कोई खण्डन नहीं किया गया है। इसी तरह पंजाब के चुनाव को लेकर हुई एक चैनल वार्ता में भाजपा के प्रतिनिधि ने यहां तक कह दिया कि यदि भाजपा की पच्चीस सीटें भी आ गयी तो सरकार वही बनायेंगे। इस दावे का सीधा अर्थ है कि धन और बाहुबल के सहारे ऐसा किया जायेगा। पंजाब के मतदान की तारीख चौदह फरवरी से बीस कर दी गयी और इसी दौरान बाबा राम रहीम को पांच बार पैरोल मिल गयी। यह संयोग कैसे घटा इसे हर आदमी समझ रहा है। इन सारे मुद्दों पर चुनाव आयोग खामोश रहा और इसी से सवाल उठ रहे हैं क्योंकि चुनाव को बड़े योजनाबद्ध तरीके से धन केंद्रित बनाया जा रहा है। आज भाजपा अपनी घोषित आय के मुताबिक देश का सबसे अमीर राजनीतिक दल बन गया है। इसके लिये जिस तरह के नियमों को बदला गया है उस पर नजर डालने से सारी स्थिति स्पष्ट हो जाती है।
2013 में दिल्ली उच्च न्यायालय में एफ सी आर ए को लेकर एक याचिका दायर हुई जिसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों को दोषी पाते हुए इनके खिलाफ छः माह के भीतर कारवाई करने के निर्देश चुनाव आयोग को दिये गये थे। लेकिन चुनाव आयोग के कुछ करने से पहले ही 2016 में सरकार ने विदेशी कंपनी की परिभाषा बदल दी और इसे 2010 से लागू कर दिया। इसके बाद फाइनेंस एक्ट की धारा 154 और कंपनी एक्ट की धारा 182 बदल दी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस बदलाव को अस्वीकार करते हुए फिर भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ आयोग को कारवाई के निर्देश दिये। लेकिन 2018 में सरकार ने एफ सी आर ए में 1976 से ही बदलाव करके विदेशी कंपनियों से लिये गये चन्दे को वैध करार दे दिया और चन्दा देने की सीमा बीस हजार से घटाकर दो हजार कर दी। अब इलेक्ट्रोरल बॉन्ड लाकर सारा परिदृश्य ही बदल दिया गया है। इस इलेक्ट्रोरल बॉन्ड के जरिये कोई भी किसी भी पार्टी को कितना भी चन्दा दे सकता है क्योंकि बॉन्ड एक वीयर्र चेक की तरह है जिस पर न खरीदने वाले का नाम होगा और न ही इसको भुनाने वाले दल का नाम होगा। पन्द्रह दिन के भीतर इसे कैश करना होता है। एक वर्ष में जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर में दस-दस दिनों के लिए बॉन्ड खरीद खोली जाती है। एस बी आई की 29 शाखाओं से यह खरीदे जा सकते हैं जो राज्यों के राजधानी नगरों में स्थित हैं। एक लाख से लेकर एक करोड़ तक का चन्दा इसके माध्यम से दिया जा सकता है। इन बॉन्डस को लेकर चुनाव आयोग लगातार मूकदर्शक की भूमिका में रहा है जबकि इन बॉन्डस के माध्यम से ब्लैक मनी का आदान-प्रदान हो रहा है। क्योंकि कोई भी पंजीकृत दल यह चन्दा लेने का अधिकारी है यदि उसे चुनावों में कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल हुये हैं। अभी पांच राज्यों के चुनावों से पहले जनवरी 2022 के दस दिनों ही चन्दा देने के लिये एस बी आई से 1213 करोड़ के यह बॉन्डस बिके हैं। 2018 से लेकरं अब तक 9207 करोड़ का चन्दा राजनीतिक दलों को इनके माध्यम ये मिला है। क्या इस तरह के चन्दे से चुनाव केवल पैसे के गिर्द ही केंद्रित होकर नहीं रह जायेंगे? क्या यह एक प्रभावी लोकतंत्र बनाने में सहायक हो पायेंगे? क्या चुनाव आयोग की स्वायत्तता का यही अर्थ है कि वह इस सब को देखकर अपनी आंखें और मुंह बन्द रखे?


Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search