यहां यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में चूक दूसरी बार हुई है। दिसंबर 2017 में प्रधानमंत्री को एक आयोजन में शामिल होने के लिए अमेठी विश्वविद्यालय के परिसर में जाना था यहां पर जाने के लिये प्रधानमंत्री का काफिला रास्ता भूल गया। यह रास्ता भूलना भटकना सुरक्षा के लिये गंभीर चूक थी। लेकिन तब इस चूक के लिये उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया। संबंधित एसपी ने इस चूक के लिये दो पुलिसकर्मियों को निलंबित करके मामले की जांच पूरी कर दी थी। उस समय यह सुरक्षा चूक अखबारों की खबर तक नहीं बनी। आज यदि पंजाब के प्रसंग को यह कहकर चर्चा का विषय न बनाया होता ‘‘ कि अपने मुख्यमंत्री को बता देना कि मैं सुरक्षित वापस आ गया हूं ’’ तो शायद यह पुराने प्रसंग सामने न आते। आज इस प्रकरण के बाद पूर्व प्रधानमंत्रियों पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह तक के सबके आचरण के वह प्रसंग सामने आ गये हैं कि अपने विरोधियों की बात को किस धैर्य के साथ वह सुनते थे और उनके विरोध के अधिकार की कितनी रक्षा करते थे। पंडित नेहरू का बिहार का सैयद शहाबुद्दीन प्रकरण आज अचानक चर्चा में आ गया है। बिहार में पंडित नेहरू को काले झंडे दिखाने वाले शहाबुद्दीन कैसे लोक सेवा आयोग के सेकंड टापर बने थे। डॉ. मनमोहन सिंह ने जेएनयू के छात्रों के विरोध का कैसे जवाब दिया और उन्हें दिये गये नोटिस कैसे वापस करवाये गये। किस तरह राजीव गोस्वामी के आत्मदाह प्रकरण में अस्पताल जाकर उनका हाल पूछा और विदेश तक उसका इलाज करवाने के निर्देश दिये। यह सब आज याद किया जाने लगा है। क्योंकि इन्होंने इस विरोध के लिये इनके खिलाफ देशद्रोह के मामले नहीं बनवाये।
आज मतभिन्नता के लिये भाजपा शासन में केंद्र से लेकर राज्यों तक कहीं कोई स्थान नहीं बचा है। भिन्न मत रखने वाले को व्यक्तिगत दुश्मन मानकर उसे हर तरह से कुचलने का प्रयास किया जाता है। अभी मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक और प्रधानमंत्री का किसानों की मौतों को लेकर जो संवाद सामने आया है उसमें 500 किसानों की मौत पर यह कहना कि यह लोग मेरे लिये या मेरे कारण नहीं मरे हैं। प्रधानमंत्री की संवेदनशीलता का इससे बड़ा नकारात्मक पक्ष और कुछ नहीं हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने से पहले ही जिस तरह से पंजाब सरकार को दोषी ठहराने का प्रयास किया जा रहा है उससे पुराने सारे प्रकरण अनचाहे की तुलना में आ गये हैं। आज जनता को किसी भी ऐसे प्रयास से गुमराह नहीं किया जा सकता। क्योंकि बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी ने हर आदमी को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि यह सरकार केवल कुछ बड़े पूंजीपतियों के हित की ही रक्षा कर रही है। आम आदमी को मंदिर मस्जिद और हिंदू मुस्लिम के नाम पर ही उलझाये रखना चाहती है।