Friday, 19 September 2025
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घातक होगा बैंकिंग संशोधन

इस समय संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है। इस सबसे पहले ही दिन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का विधेयक पारित हो गया है। जब यह विधेयक लाया गया था तब भी इस पर संसद में कोई बहस नहीं हो पायी थी और अब वापसी के समय भी ऐसा ही हुआ है। इसी सत्र में क्रिप्टोकरंसी और बैंकिंग अधिनियम में संशोधन को लेकर भी विधेयक लाये जा रहे हैं। इन पर सदन में चर्चा हो पानी है या नहीं। इन्हें सिलेक्ट कमेटीयों को विस्तृत चर्चा के लिए भेजा जाना है या नहीं या सीधे पारित करवा लिया जाता है यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। लेकिन यह ऐसे विधेयक हैं जिनका हर आदमी पर असर पड़ेगा। इसलिए इस संदर्भ में कुछ सवाल सार्वजनिक चर्चा के लिए उठाना आवश्यक हो जाता है। इन पर सवाल उठाने से पहले यह याद रखना होगा कि 2016 की नोट बंदी के बाद आज देश के बैंकों का एनपीए बढ़कर 10 खरब करोड़ हो चुका है और इसकी रिकवरी के लिए सरकार को बैड बैंक बनाना पड़ा है। यह ध्यान में रखना होगा की जब देश के बैंकों का एनपीए 10 खरब करोड़ हो चुका है तो वहां बैंकों की व्यवहारिक स्थिति क्या रह गयी होगी। यहां यह भी ध्यान में रखना होगा की नोटबदी से लेकर कोरोना की तालाबंदी तक सरकार के जो भी आर्थिक पैकेज आये हैं उनमें सबसे ज्यादा प्रोत्साहन कर्ज लेने को लेकर दिया गया है। इसी दौरान 59 मिनट में एक करोड़ का कर्ज लेने की प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना भी आयी और शायद इसी सबका परिणाम है यह 10 ट्रिलियन करोड़़ का एनपीए।
इस पृष्ठभूमि में आ रहे इन विधेयकों को लाने की आवश्यकता क्यों अनुभव हुई और इससे किसको क्या लाभ मिलेगा यह विचारणीय सवाल हैं। बैंकिंग अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन पर बैंक कर्मचारी संगठनों ने तो ‘‘बैंक बचाओ देश बचाओ’’ के बैनर तले 1 दिन का प्रदर्शन करके यह कहा है कि इस संशोधन से सरकारी बैंकों को प्राइवेट सैक्टर को देने की योजना है। इससे बैंकिंग सेवाएं महंगी हो जाएंगी। यह भी जानकारी दी है कि अब तक 500 बैंक दिवालिया हो चुके हैं। जब बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था तब भी यही सबसे बड़ा कारण था कि उस समय भी कई बैंक डूब चुके थे। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कारण ही आज तक देश के बैंक सुरक्षित चल रहे थे और जनता का विश्वास इन पर बना हुआ था। अब जब यह बैंक प्राइवेट सैक्टर के पास चले जाएंगे तो आम आदमी इन में अपना पैसा रखते हुए डरेगा। वैसे ही जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली थी तब जून 2014 में बैंकों का एनपीए करीब अढ़ाई लाख करोड़ था जो आज बढ़कर सितंबर 2021 में 10 खरब करोड़ हो चुका है। इससे सरकार की नीतियों का पता चलता है।
इसी परिदृश्य में क्रिप्टोकरंसी को लेकर विधेयक लाया जा रहा है एक समय आर बी आई ने क्रिप्टोकरंसी पर प्रतिबंध लगाने की बात की थी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रतिबंध को यह कहकर रद्द कर दिया था कि जब इसको लेकर आपके पास कोई कानून ही नहीं है तो प्रतिबंध का अर्थ क्या है। अब वित्त मंत्री ने यह कहा है कि क्रिप्टो पर प्रतिबंध नहीं लगाकर इसको रैगुलेट किया जाएगा। और इस नियमन की जिम्मेदारी सैबी की होगी। इसी के साथ ही यह भी कहा है कि क्रिप्टो लीगल टेंडर नहीं होगा। यहीं से आशंकाएं उठनी शुरू हो जाती है क्योंकि करंसी विनिमय का माध्यम होता है। करंसी से वस्तुएं और सेवाएं खरीदी जा सकती हैं। करंसी पर सरकार का नियंत्रण और अधिकार रहता है। करंसी से आप बैंक में खाता खोल सकते हैं। बैंक इस खाते का लेजर रखता है परंतु क्रिप्टो का बैंक से कोई संबंध ही नहीं है। इसका सारा ऑपरेशन डिजिटल है जो उच्च क्षमता के कंप्यूटर से संचालित होगा । एक कोड से ऑपरेट होगा। इस समय करीब एक दर्जन क्रिप्टोकरंसी प्रचलन में हैं। लेकिन सरकार के पास कोई नियन्त्रण नहीं है। ऐसे में क्रिप्टो पर कोई भी रैगुलेशन लाने से पहले इसके बारे में जनता को जागरूक किया जाना चाहिये। क्योंकि यह एक डिजिटल कैश प्रणाली है। जो कंप्यूटर एल्गोरिदम पर बनी है। यह सिर्फ डिजीट के रूप में ही ऑनलाइन रहती है। इस पर किसी देश या सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। एक तरह से यह गुप्त रूप से पैसा रखने की विधा है। इसलिए इस संबंध में कोई भी रैगुलेशन लाने का औचित्य तब तक नहीं बनता जब तक इसे सामान्य लेन देन की प्रणाली के रूप में मान्यता नहीं दे दी जाती। इसके बिना यह काले धन और उसके विदेश में निवेश की संभावनाओं को बढ़ाने का ही माध्यम सिद्ध होगा। इसलिए आज जिन आर्थिक परिस्थितियों में देश चल रहा है उनमें बैंकों को प्राइवेट सैक्टर को सौंपने की योजना और क्रिप्टो को रैगुलेट करने के अधिनियम लाना कतई देश के हित में नहीं होगा। इससे आम आदमी भी बैंक बचाओ देश बचाओ में कूदने पर विवश हो जायेगा।

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