Friday, 19 September 2025
Blue Red Green
Home सम्पादकीय कर्ज लेकर घी पीने का परिणाम है कीमतों का बढ़ना

ShareThis for Joomla!

कर्ज लेकर घी पीने का परिणाम है कीमतों का बढ़ना

अभी जयराम सरकार ने सस्ते राशन के तहत मिलने वाली दालों चने और माश की कीमतों में दो रुपए की बढ़ोतरी की घोषणा की है। इसका सीधा असर करीब 19 लाख लोगों पर पड़ेगा। इससे पहले खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ाई गयी थी। यह कीमतें उस समय बढ़ाई गयी हैं जब प्रदेश में उपचुनावों का चुनाव प्रचार पूरे जोरों से चल रहा है क्योंकि तीस अक्तूबर को मतदान होना है। महंगाई पहले ही चुनाव में केंद्रीय मुद्दा बन चुकी है इसके बावजूद इन कीमतों का बढ़ाया जाना यह प्रमाणित करता है कि ऐसा कुछ जरूर है जिसके ऊपर सरकार चाह कर भी नियंत्रण नहीं कर पा रही है। इन कीमतों का असर सस्ता राशन लेने वालों पर ही नही वर्ण प्रदेश की 72 लाख जनता पर पड़ेगा ही तय है। केंद्र सरकार को हर रोज पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाने पड़ रहे हैं इसलिए राज्य सरकारों को भी चीजों की कीमतें बढ़ानी पड़ेगी। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यह कीमतें क्यों बढ़ानी पड़ रही हैं पाठकों को याद होगा कि जब मैंने ‘बैड बैंक’ क्यों बनाना पढ़ा लिखा था तब यह आशंका जताई थी कि महंगाई और बेरोजगारी पर नियंत्रण करना असंभव हो जाएगा वह आशंका सही सिद्ध हो रही है। सरकार के कुछ मंत्रियों और अन्य लोगों ने कीमतें बढ़ने को कोरोना के लिए खरीदी गयी वैक्सीन को कारण बताया है क्योंकि वैक्सीन लोगों को मुफ्त लगाई गई है। यह भी तर्क दिया गया है कि कांग्रेस शासन में भी तो महंगाई हुई थी। उत्तर प्रदेश के एक मंत्री ने तो बढ़ोतरी की तुलना प्रति व्यक्ति आय में हुई वृद्धि के साथ करते हुए यहां तक कह दिया है चीजें महंगी नहीं सस्ती हुई जब सरकार के मंत्री अर्थशास्त्र के इतने ज्ञाता हो जाएंगे तो फिर जनता को और महंगाई के लिए तैयार रहना ही होगा।
इस संद्धर्भ में यदि जयराम सरकार की कुछ कारगुजारी पर नजर डालें तो यह मानना पड़ेगा कि या तो यह सरकार कर्ज लेकर घी पीने के मार्ग पर चल निकली है जिससे पीछे मुड़ना कठिन हो गया है या फिर इस सरकार के मित्र और अफसरशाही इसे बुरी तरह गुमराह कर रहे हैं। क्योंकि अभी उपचुनाव के दौरान ही पहले खाद्य तेलों और अब दालों के दाम बढ़ाये गये है। इस उपचुनाव के दौरान नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने मुख्यमंत्री पर यह आरोप लगाया कि उन्हें हवा में उड़ने की आदत हो गई है वह सड़क मार्ग से यात्रा ही नहीं करते। इसीलिए अपने चुनाव क्षेत्र में छः हेलीपैड बना लिए हैं। एक पंचायत से दूसरी पंचायत में हेलीकॉप्टर से ही जाते हैं। विधायक विक्रमादित्य ने इन हेलीपैडों की संख्या चौदह बताई है। सरकार इस संख्या का खंडन नहीं कर पायी है। जिन लोगों को यह जानकारी है कि मुख्यमंत्री ने अपने सरकारी दो मंजिला आवास ओक ओवर में भी आने जाने के लिए लिफ्ट का निर्माण करवा लिया है वह हेलीपैडों की संख्या पर अविश्वास नहीं कर पायेंगे। इस सरकारी आवास में पहले के सारे मुख्यमंत्री रह चुके हैं और वह सभी आयु में इनसे बड़े थे। यह लिफ्ट और इतने हेलीपैड बनवाने पर यह सवाल उठना स्वभाविक है कि कर्ज लेकर किए गए यह निर्माण किसी भी तर्क से विकास नहीं ठहराया जा सकता। फिर कल को इन हेलीपैडां की संभाल करने के लिए पैसा कहां से आ आयेगा। क्या आगे वाले मुख्यमंत्री सिराज को इतना समय दे पायेंगे कि हर हेलीपैड पर वह हेलीकॉप्टर लेकर पहुंच जायेंगे। मुख्यमंत्री के हर बजट में ऐसी कई-कई घोषणाएं हैं जो कर्ज लेकर ही पूरी की जा सकेंगी और उनसे राजस्व में कोई आय नहीं होगी।
इस समय देश ऐसे आर्थिक संकट से गुजर रहा है की जब बैंकों का एनपीए दस ट्रिलियन करोड़ हो गया तो सरकार को इसकी रिकवरी के लिए बैड बैंक बनाना पड़ा। लेकिन इस बैड बैंक को भी अभी तक 10 प्रतिश्त सफलता नहीं मिल पाई है। इसी कारण से सरकार को बैंकों में बीस हजार करोड़ डालना पड़ा है ताकि उनकी बैलेंस शीट में सुधार आ सके। आने वाले दिनों में बैंक की रिस्क मनी में और बढ़ौतरी होने की संभावना है। यह सब कूछ नोटबंदी के फैसले के बाद के परिणाम हैं। नोटबंदी के बाद ऑटोमोबाइल और रियल स्टेट सेक्टरों को जो आर्थिक पैकेज दिये गये थे उनसे कोई सुधार नहीं हुआ। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना में बिना गारंटी के कर्ज दिये गये। फिर कोरोना काल के सारे आर्थिक पैकेजों में कर्ज लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इन सारे फैसलों का परिणाम है बैड बैंक की स्थापना और अब इससे वेतन और पेंशन के प्रभावित होने की संभावना है। इस आर्थिक संकट के लिए पूर्व सरकारों को जिम्मेदार ठहराना कठिन हो जायेगा। क्योंकि इससे समर्थक और विरोधी सभी एक साथ और एक सम्मान प्रभावित होंगे।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search