तेल की कीमतें बढ़ने से रसोई से लेकर कारखाने तक सब जगह मंहगाई बढ़ेगी यह तय है। बल्कि सरकार के इस तरह के तर्क से और भी बहुत सारे फैसलों पर नज़र डालने की आवश्यकता हो जाती है। पिछले दिनों सरकार ने 1955 से आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करके अनाज और कई अन्य वस्तुओं को इस अधिनियम के दायरे से बाहर कर दिया है। इस संशोधन को दो अध्यादेश जारी करके लागू भी कर दिया है। इसके मुताबिक अब इन चीजों की कीमतों और उनके भण्डारण पर सरकार का कोई नियन्त्रण नही रहेगा। इस संशोधन के लिये तर्क तो यह दिया गया कि इससे किसान अपनी उपज को अपने मनचाहे दामों पर कहीं भी बेचने के लिये स्वतन्त्र है और किसी भी मात्रा में उसका भण्डारण कर सकता है। जो लोग इसका व्यवहारिक पक्ष समझतें हैं वह जानते हैं कि इससे किसान को एक तरह से आढ़ती के हाथ में गिरवी रख दिया गया है। क्योंकि यदि किसान को मनचाही कीमत नही मिल पायेगी तो उसके पास भण्डारण करने का साधन कोल्ड स्टोर अपना नही है। ऐसे में यदि किसान को यह उपज एक मण्डी से दूसरी मण्डी ले जानी पड़े तो उसका लागत मूल्य और बढ़ जायेगा। तब उसको वांच्छित कीमत मिलना और भी कठिन हो जायेगा। ऐसे में जब उसे मण्डी में खरीददार के लिये चार दिन इन्तजार करना पड़ेगा तो वह आढ़ती के आगे विवश हो जायेगा और उसी की शर्तों पर उसे यह उपज बेचनी पड़ेगी। इस संशोधन के खिलाफ पंजाब में रोष व्याप्त हो गया है और देश के अन्य भागों में भी शीघ्र ही इसका असर देखने को मिलेगा यह तय है।
अब जब डीज़ल की कीमत पैट्रोल से बढ़ गयी है तो स्वभाविक है कि खेत से लेकर बाज़ार और अन्तिम उपभोक्ता तक सब स्तरों पर कीमतें बढ़ाने का रास्ता सबको मिल गया है। आढ़ती किसान के कुछ बढ़े हुए दाम दे देगा और अन्त में उपभोक्ता से सब वसूल लेगा। सरकार किसान को खुला बाज़ार उपलब्ध करवाने के नाम पर सारी जिम्मेदारी से मुक्त हो जायेगी। क्योंकि जब आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन कर दिया गया है तब कानून की दृष्टि से किसान -बागवान और उपभोक्ता के बीच सरकार का कोई दखल नही रह जाता है। क्योंकि अब सरकार केवल युद्ध और प्राकृतिक आपदा के समय ही कीमतों और भण्डारण पर दखल दे सकती है। अधिनियम में संशोधन के बाद किसी भी उपज का समर्थन मूल्य तय करना शायद कानूनन संभव नही हो सकेगा। क्योंकि समर्थन मूल्य एक तरह से निम्नतम मूल्य होता है उपज का और इसलिये तय किया जाता है कि किसान बागवान का नुकसान न हो। इसी मकसद से सरकार स्वयं खरीद करती थी। लेकिन अब संशोधन के बाद भी क्या सरकार खरीद करती रहेगी? यदि समर्थन मूल्य और सरकारी खरीद दोनो रहते हैं तो उस स्थिति में किसान के लिये खुले बाज़ार और इस संशोधन का कोई अर्थ नही रह जाता है। केन्द्र सरकार ने इस संशोधन से पहले विपक्ष, राज्य सरकारों और किसान संघो से कोई विचार विमर्श नही किया है। लेकिन अब जब एपीएल परिवारों को सस्ते राशन की योजना से बाहर कर दिया गया है और साथ ही बीपीएल को भी गरीबी की रेखा से बाहर लाने की घोषणाएं की जा रही है। तब यह संकेत स्पष्ट हो जाते हैं कि आने वाले दिनों में मंहगाई अपना पूरा विकराल रूप लेकर सामने आने वाली है। आज आवश्यक वस्तु अधिनियम में हुए संशोधन और अब डीजल की कीमतों का पैट्रोल से आगे निकलना एक ही समय में घटने वाले कोई सहज संयोग नही है। बल्कि एक सुनियोजित योजना का हिस्सा है। इस पर कोरोना के डर के चलते कोई समझने और प्रतिक्रिया देने की स्थिति में नही है।