Friday, 19 September 2025
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नागरिकता संशोधन पर कमजोर है सरकार का पक्ष

संशोधित नागरिकता अधिनियम लागू हो गया है। गृहमंत्री अमितशाह ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यह अधिनियम हर हालत में लागू होकर रहेगा। लेकिन इसको लेकर उभरा विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। इसी विरोध प्रदर्शन के दौरान जिस तरह से जेएनयू के छात्रों पर हमला हुआ है और इस हमले के दौरान रही दिल्ली पुलिस की भूमिका ने इस विरोध में आग में घी डालने का काम किया है। देश का बहुसंख्यक छात्र वर्ग इस विरोध में खुलकर सामने आ गया है। ऐसा लग रहा है कि एक बार पुनःजे.पी. और मण्डल बनाम मण्डल जैसे आन्दोलनों की पुनर्रावर्ती होने जा रही है। संशोधित नागरिकता अधिनियम ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है और  इसने विरोध के सारे स्वारों को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है। हर रोज़ हालात गंभीर होते जा रहे हैं क्योंकि सरकार इस पर विरोधीयों से टकराने के लिये तैयार बैठी है। उसके पास सरकारी तन्त्र की ताकत के साथ ही भाजपा संघ का काडर भी मौजूद है। यह इसी काडर का परिणाम है कि जेएनयू की हिंसा के लिये हिन्दु रक्षा दल ने खुलकर जिम्मेदारी ली लेकिन दिल्ली पुलिस ने उस पर कोई ध्यान ही नही दिया।
इस परिदृश्य में यदि सारी वस्तुस्थिति का आकलन किया जाये तो सबसे पहले यह सामने आता है कि सरकार इस संशोधन को लेकर यह तर्क दे रही है कि देश की जनता ने उसे इसके लिये अपना पूरा समर्थन दिया है क्योंकि उसने लोकसभा चुनावों के दौरान अपने घोषणा पत्रा में इसका स्पष्ट उल्लेख किया हुआ है। आज सत्ता में आने पर उसी घोषणा पत्रा को अमली शक्ल दी जा रही है। भाजपा का यह चुनाव घोषणा पत्र मतदान से कितने दिन पहले जारी हुआ था और इस पर कितनी सार्वजनिक बहस हो पायी थी यह सवाल हर पक्षधर को ईमानदारी से अपने आप से पूछना होगा। भाजपा को देश के कुल मतदाताओं के कितने प्रतिशत का समर्थन हासिल हुआ है यदि इसका गणित सामने रखा जाये तो बहुजन के समर्थन का दावा ज्यादा नही टिक पायेगा यह स्पष्ट है। इसी के साथ दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि लोकसभा चुनावों में भाजपा और जेडीयू ने इकट्ठे मिलकर चुनाव लड़ा। लेकिन आज नितिश कुमार ने कहा है कि वह इस विधयेक पर अपने राज्य में अमल नही करेंगें यही स्थिति शिवसेना की है। लोस चुनावों में भाजपा के साथ थी लेकिन आज अलग होकर अपनी सरकार बनाकर महाराष्ट्र में इस विधयेक को लागू न करने की घोषणा की है। आकाली दल भी खुलकर इस अधिनियम के पक्ष में नही आया है। आखिर क्यों भाजपा के सहयोगी रहे यह दल नागरिकता संशोधन का समर्थन नही कर रहे हैं।
गैर भाजपा शासित सभी राज्यों के मुख्यमन्त्रियों ने इस अधिनियम पर अपने-अपने राज्यों में अमल करने से मना कर दिया है। जब से इस संशोधन को लेकर विवाद, खड़ा हुआ है उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को सीधे समर्थन नही मिला है। हरियाणा में लोकसभा चुनावों में सभी सीटें जीतने के बाद विधानसभा में अपने दम पर सरकार बनाने लायक बहुमत हासिल नही कर पायी। झारखण्ड भी उसके हाथ से निकल गया है। इस समय देश के दस बड़े राज्यों के मुख्यमन्त्री खुलकर इस अधिनियम का विरोध कर रहे हैं। देश में ऐसा पहली बार हो रहा है कि केन्द्र और राज्यों में किसी मुद्दे पर टकराव की स्थिति उभरी है। सर्वोच्च न्यायालय में नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर पांच दर्जन याचिकाएं आ चुकी है। इसके अतिरिक्त कई उच्च न्यायालयों में भी ऐसी ही याचिकाएं आ चुकी हैं। केरल विधानसभा तो इस संबंध में एक प्रस्ताव भी पारित कर चुकी है। लेकिन इतना सब कुछ होने पर भी शीर्ष अदालत ने इन याचिकाओं पर तब तक सुनवाई करने से इन्कार कर  दिया है जब तक हिंसा थम नही जाती है। सर्वोच्च न्यायालय का पिछले अरसे से संवदेनशील मुद्दों पर तत्काल प्रभाव से सुनवाई न करने का रूख रहा है। कश्मीर मुद्दे पर लम्बे समय तक सुनवाई नही की गयी।ं जेएनयू हिंसा से लेकर छात्र हिंसा से जुडें सभी मुद्दों पर सुनवाई लंबित की गयी है। यदि इन मुद्दों पर तत्काल प्रभाव से सुनावाई हो जाती तो बहुत संभव था कि हालात इस हद तक नही पहुंचते। क्योंकि दोनांे पक्ष अदालत के फैसले से बंध जाते परन्तु ऐसा हो नही सका है।
आज विश्वविद्यालयों का छात्र इस आन्दोलन में मुख्य भूमिका में आ चुका है क्योंकि वह इन मुद्दों के सभी पक्षों पर गहन विचार करने की क्षमता रखता है। विश्वविद्यालय के छात्र की तुलना हाई स्कूल के छात्र से करना एकदम गलत है। विश्वविद्यालय के छात्र में मुद्दों पर सवाल पूछने और उठाने की क्षमता है। उसे सवाल पूछने से टुकड़े-टुकड़े गैंग संबोधित करके नही रोका जा सकता है। आज प्लस टू का छात्र मतदाता बन चुका है। ऐसे में जब प्लसटू से लेकर विश्वविद्यालय तक का हर छात्र मतदाता हो चुका है और सभी राजनतिक दलों ने अपनी-अपनी छात्र ईकाईयां तक बना रखी है। हर सरकार बनाने में इस युवा छात्र की भूमिका अग्रणी है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद देश का सबसे पुराना छात्र संगठन है और संघ परिवार की एक महत्वपूर्ण ईकाई है। इस परिप्रेक्ष में आज के विद्रोही छात्र के सवालों को लम्बे समय तक अनुतरित रखना घातक होगा। किसी भी विचारधारा का प्रचार-प्रसार गैर वौद्धिक तरीके से कर पाना संभव नही होगा। किसी भी वैचारिक मतभेद को राष्ट्रद्रोह की संज्ञा नही दी जा सकती है उसे आतंकी करार नही दिया जा सकता है। क्योंकि हर अपराध से निपटने के लिये कानून मे एक तय प्रक्रिया है उसका उल्लघंन शब्दों के माध्यम से करना कभी भी समाज के लिये हितकर नही हो सकता। नागरिकता संशोधन को इतने बड़े विरोध के बाद ताकत के बल पर लागू करना समाज के हित में नही हो सकता ।

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