यह मसला आज भी उतना ही संवदेनशील है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिन पांच माननीय न्यायधीशों ने यह मामला 41 दिनों तक सुना और इस पर 1045 पन्नो का फैसला दिया है इस फैसले का लेखक कौन सा न्यायधीश है इसे गोपनीय रखा गया है जबकि आज तक यह प्रथा रही है कि जब भी कोई मामला किसी पीठ के समक्ष होता है तो उस पर फैसला लिखने की जिम्मेदारी कोई एक जज ही निभाता है। यही नहीं इसी फैसले में एक न्यायधीश ने सौ पन्नों का अनुबन्ध लिखा है लेकिन उस जज का नाम भी सार्वजनिक नहीं किया गया है। फैसला लिखने में ही इतनी गोपनीयता बरती जाना मामले की संवदेनशीलता को ही सामने लाता है। इस मामले में तीन पक्षकार थे रामलल्ला विराजमान, सुन्नी सैन्ट्रल वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा/ विवाद का विषय था कि विवादित स्थल 2.77 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक किसका है। इसमें निर्मोही अखाड़ा की याचिका को ‘‘तय समय के बाद आयी’’ कह कर खारिज कर दिया गया है। 2.77 एकड़ पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का भी मालिकाना हक नही माना गया है। विवादित स्थल पर रामलल्ला विराजमान के मालिकासना हक को मानते हुए शीर्ष अदालत ने केन्द्र सरकार को निर्देश दिये हैं कि वह तीन माह के भीतर यहां पर मन्दिर निर्माण के लिये एक व्यापक योजना तैयार करे। यह योजना 1993 के अयोध्या विशेष एरिया अधिग्रह अधिनियम की धारा 6 और 7 के प्रावधानों के अनुरूप तैयार की जायेगी और इसी में इस निर्माण और फिर उसके संचालन के लिये एक ट्रस्ट बनाने के निर्देश दिये गये हैं। इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़ा को भी उचित प्रतिनिधित्व देने के निर्देश है। शीर्ष अदालत ने संविधान की धारा 142 के तहत प्रदत ‘‘राजाज्ञा’’अधिकारों का प्रयोग करते हुए सरकार को निर्देश दिये हैं कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी मस्जिद बनाने के लिये पांच एकड़ भूमि किस प्रमुख स्थान पर उपलब्ध करवाये। इस तरह शीर्ष अदालत ने निर्मोही अखाड़ा को ट्रस्ट में शामिल करने और सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ भूमि दिये जाने के आदेश पारित करके इस मामले से जुड़े इन पक्षकारों के हितों की भी पूरी -पूरी रक्षा की है। पिछले 134 वर्षों से अदालतों के बीच फंसे रहे इस मामले का इससे अच्छा अदालती फैसला और कुछ नहीं हो सकता था यह सबको मानने से एतराज नही होना चाहिये।
इस समय जिस तरह की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियां देश की हैं उनमें शीर्ष अदालत ने केन्द्र सरकार को इस निर्माण के लिये ट्रस्ट बनाने की जिम्मेदारी देकर बहुत बड़ा और अच्छा काम किया है। क्योंकि इसी सरकार पर यह आरोप लग रहे हैं कि वह देश को हिन्दु राष्ट्र बनाना चाहती है। भारत एक बहुविद्य देश है और यह विविधता ही इसकी विशेषता है। इसी विविधता को ध्यान में रखकर संविधान निर्माताओं ने देश को धर्म निरपेक्ष रखा है। क्योंकि यहां पर कई धर्माें और जातियों के लोग रहते हैं इसीलिये सरकार किसी एक ही धर्म की पैरोकार होकर काम नहीं कर सकती। आज इस धर्मनिरपेक्ष सौहार्द को बनाये रखने की जिम्मेदारी सरकार की है। इस मन्दिर निर्माण के लिये ट्रस्ट बनाये जाने के निर्देश एक तरह से सरकार की परख की कसौटी सिद्ध होंगे। यह सरकार को ही सुनिश्चित करना होगा कि आने वाले दिनों में किसी और धार्मिक स्थल को लेकर इस तरह का कोई विवाद न उभरने पाये। क्योंकि इस तरह के विवादों का असर जब देश की आर्थिकी पर पड़ता है तब आम आदमी के लिये मन्दिर और मस्जिद बहुत गौण हो जाते हैं। उस समय उसके लिये रोज़ी-रोटी ही सबसे प्रमुख होते हैं और जो भी शासन व्यवस्था इस पर प्रश्नचिन्ह लगने की स्थितियां पैदा करती हैं लोग उसके खिलाफ बिना नेतृत्व के भी खड़े हो जाते हैं महाराष्ट्र और हरियाणा में जो भी घटित हुआ है वह इसी तरह की कार्यशैली का परिणाम है। इसलिये अब धर्म और मन्दिर की राजनीति पर विराम लग जाना चाहिये।