शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और पूर्व मुख्यमन्त्री एंवम् नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल के परिवारों में एक लम्बे अन्तराल के बाद फिर से वाक्युद्ध शुरू हो गया है। इस वाक्युद्ध में अन्तिम जीत किसको मिलती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इतना तय है कि अब यह युद्ध निर्णायक मोड़ पर पहुंचने वाला है। वीरभद्र ने इस शासनकाल के पहले ही दिन से धूमल परिवार और धूमल शासन के खिलाफ अपनी सारी ऐजैन्सीयां तैनात कर दी थी। एचपीसीए वीरभद्र की विजिलैन्स का एक मात्रा मुद्दा बन गया था। आधी रात को एचपीसीए की संपत्तियों के खिलाफ जांच अभियान छेडा गया। शिकायतकर्ता को धर्मशाला में ही सरकार ने उप महाधिवक्ता के पद से नवाजा। लेकिन आज तक वीरभद्र और उनकी विजिलैन्स को एक भी मामले में सफलता नही मिल पायी है। बल्कि ए.एन.शर्मा के मामले में सर्वोच्च न्यायालय तक हार का मुहं देखना पडा। अब योग गुरू बाबा रामदेव के मामले में तोे पूरा मन्त्रिमण्डल फजीहत के कगार तक पहुंच गया है।
वीरभद्र ने अवैध फोन टेपिंग प्रकरण में तो यंहा तक आरोप लगाया था कि उनका फोन टेप किया गया है। हर रोज फोन टेपिंग मामले में वीरभद्र दोषियों को सजा दिलाने के दावे करते रहे परन्तु यह सब दावे हवाई सिद्ध हुए। तत्कालीन डीजीपी मिन्हास को कब्र से खोद निकालने के दावे करते रहे लेकिन इन दावों का कोई परिणाम नही निकला। लेकिन इसी दौरान वीरभद्र के खिलाफ यूपीए शासन में ही शुरू हुए मामले को जब प्रशांत भूषण ने दिल्ली उच्च न्यायालय के माध्यम से सीबीआई और ईडी में मामले दर्ज होने के मुकाम पर पहुंचा दिया तो वीरभद्र ने इसे धूमल जेटली और अनुराग का षडयन्त्र करार दे दिया। इन लोगों के खिलाफ मानहानि के दावे तक दायर कर दिये। फिर जेटली के खिलाफ दायर करवाये मामले को खुद ही वापिस ले लिया। इस दौरान धूमल के छोटे बेटे अरूण धूमल ने वीरभद्र के पूरे मामले में अपने स्तर पर इसकी खोज करते हुए मीडिया में दस्तावेजी प्रमाण रखते हुए यह सुनिश्चत किया कि जांच ऐजैन्सीयां इसकी जांच में कोई ढील न अपनाये। आज वीरभद्र के मामले फैसले के कगार पर पहुंचे हुए हैं कभी भी फैसला आने की स्थिति बनी हुई है।
वीरभद्र इस स्थिति से पूरी तरह परिचित हैं। इसी कारण उन्होने एक बार फिर अपनी विजिलैन्स को धूमल के संपति मामले में तेजी लाने के निर्देश दिये हैं। विजिलैन्स ने भी इनकी अनुपालना करते हुए पंजाब सरकार से फिर धूमल संपतियो की सूची मांगी है। स्वाभाविक है कि पंजाब सरकार के संज्ञान में जो भी सपंतियों होंगी उनमें किसी भी तरह की नियमों/कानूनों की अवहेलना नहीं मिलेगी। हिमाचल में स्थित संपतियों को लेकर वीरभद्र का प्रशासन पहले ही विजिलैन्स को क्लीन चिट दे चुका है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि वीरभद्र की विजिलैन्स के पास आज की तारीख में धूमल के खिलाफ ऐसा कुछ भी नही है जिसके आधार पर कोई मामला दर्ज किया जा सके। राजनीतिक तौर धूमल ही वीरभद्र के लिये सबसे बड़ा संकट और चुनौती हैं इसी कारण वीरभद्र ने धूमल को लेकर ब्यान दिया है कि धूमल न तो मुख्यमन्त्री बनेंगे और न ही पार्टी के अध्यक्ष। वीरभद्र धूमल परिवार के खिलाफ जल्द से जल्द कोई भी मामला दर्ज करना चाहते हैं। उधर अरूण धूमल ने भी वीरभद्र की मंशा को भांपते हुए फिर से मोर्चा संभाल लिया है। हमीरपुर के बड़सर में एक युवा सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए अरूण धूमल ने वीरभद्र, प्रतिभा सिंह, विक्रमादित्य, आनन्द चैहान और वक्कामुल्ला को शीघ्र ही तिहाड़ जेले भिजवाने का संकल्प लिया है। अरूण धूमल के इस ब्यान से यह संकेत उभरता है कि अब वीरभद्र के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला कभी भी घोषित हो सकता है।
शिमला/शैल।
सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा के खिलाफ एसआईटी गठित करके जांच किये जाने के आदेश दिये हैं। सिन्हा के खिलाफ प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया था कि उन्होने कोल ब्लाक्स आंवटन के लाभर्थीयों के खिलाफ जांच को प्रभावित किया है। आरोप है कि कोल ब्लाक्स के लाभार्थी सिन्हा के घर पर उनसे मिलते रहे हैं। इस प्रसंग में सिन्हा के घर की विजिलैन्स डायरी भी अदालत में पेश हो चुकी है। अब सीबीआई के निदेशक के तहत ही यह एसआईटी गठित हुई है। कोल ब्लाक्स के आवंटन में यूपीए सरकार पर लाखों करोड़ का घपला होने का आरोप है। जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा था तब नवम्बर 2012 में सरकार ने यह आवंटन रद्द कर दिया था। सीबीआई ने इसमें हर मामले की जांच शुरू की थी। कुछ मामलों में लाभार्थी कंपनीयों के खिलाफ चालान अदालत तक भी पहंुच चुके हैं। लेकिन इन मामलों में कोई और बड़ी कारवाई सामने नही आयी है।
हिमाचल सरकार ने भी संयुक्त क्षेत्र में सितम्बर 2006 में एक थर्मल पावर प्लांट स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू की थी। इसके लिये इन्फ्रास्टक्चर विकास बोर्ड के माध्यम से निविदायें मांगी थी। इसमें छः पार्टीयों ने निविदायें भेजी लेकिन प्रस्तुति पांच ने ही दी और उनमें से दो को शार्ट लिस्ट किया गया। लेकिन अन्त में एम्टा के साथ ही ज्वाईंट वैंचर हस्ताक्षरित हुआ। क्योंकि एम्टा ने बंगाल और पंजाब में थर्मल प्लांट लगाने का दावा किया था। इसी आधार पर जनवरी 2007 में हिमाचल पावर कारपोरेशन और एम्टा के बीच एमओयू साईन हुआ। दोनों की 50ः50 की भागीदारी तय हुई और 48 महीनों में यह प्लांट लगाना तय हुआ। इसके तहत दो करोड़ की धरोहर राशी एम्टा को पावर कारपोरेशन में जमा करवानी थी।
एमओयूम साईन होने के बाद एम्टा ने जे एस डब्ल्यू स्टील के साथ सांझे में भारत सरकार से गौरांगढी में कोल ब्लाक हासिल कर लिया। यह कोल ब्लाक हासिल करने के लिये वीरभद्र ने एक ही दिन में विभिन्न मन्त्रालयों को पांच सिफारिशी पत्र भी लिखे थे जिनके कारण इन्हें यह कोल ब्लाक मिला था। एम्टा और जे एस डब्ल्यू स्टील में इसके लिये एक और सांझेदारी मई 2009 में साईन हुई। लेकिन जब नवम्बर 2012 में केन्द्र सरकार ने कोल ब्लाक्स का आवंटन रद्द कर दिया तो यह काम रूक गया। दिसम्बर 2012 में ही एम्टा के निदेशक मण्डल ने इसमें और निवेश न करने का फैसला ले लिया। 26 नवम्बर 2014 को एम्टा ने फिर फैसला लिया की जब तक विद्युत बोर्ड बिजली खरीदने का अनुबन्ध नही करता है तब तक इस पर आगे नही बढेंगे। मार्च 2015 में बोर्ड ने यह अनुबन्ध करने से इन्कार कर दिया।
लेकिन पावर कारपोरेशन ने 26 दिसम्बर 2012 को 40 लाख और 9-5-2013 को 20 लाख का निवेश भाग धन के रूप में कर दिया। इस पूरे प्रकरण में जो सवाल उभरते हंै उनके मुताबिक जब एम्टा के साथ जनवरी 2007 में एमओयू साईन हुआ और 48 माह में यह प्लांट लगना था तो फिर यह सुनिश्चित नही किया गया कि इसमें कितना काम धरातल पर हुआ है। जब नवम्बर 2012 में कोल ब्लाक्स का आवंटन ही रद्द हो गया और दिसम्बर 2012 में एम्टा ने स्वयं इसमें और निवेश न करने का फैसला ले लिया तो फिर उसके बाद पावर कारपोरेशन ने 26 दिसम्बर 2012 और 9-5-2013 को इसमें 60 लाख का निवेश क्यों कर दिया। 26 नवम्बर 2014 को एम्टा ने किस आधार पर पावर परचेज एग्रीमैन्ट करने का आग्रह किया। सीबीआई की जांच में एम्टा के सारे दावे गल्त पाये गये हैं। एम्टा के साथ एमओयू साईन होने से पहले उसके बारे में विस्तृत जानकारी क्यांे नही जुटायी गयी। बिना पूरी जानकारी के कोल ब्लाक्स के लिये एम्टा की सिफारिश क्यांे की गयी? पावर कारपोरशन और इन्फ्र्रास्ट्रक्चर बोर्ड ने एम्टा से दो करोड़ का भागधन क्यों नही लिया? माना जा रहा है कि इस मामले में अब नये सिरे से जांच खूल सकती है। ईडी में यह मामला अभी तक लंबित है चर्चा है। कि इस संद्धर्भ में हिमाचल के भी कुछ लोगों ने सिन्हां से उसकेे घर पर मुलाकात की है।
शिमला/बलदेव शर्मा
हिमाचल प्रदेश में जल विद्युत की अपार क्षमता है और इस क्षमता का दोहन भी किया जा रहा हैै। इसी क्षमता के आधार पर प्रदेश को विद्युत राज्य प्रचारित और प्रसारित किया गया। यही प्रचार-प्रसार उद्योगपतियों के आकर्षण का केन्द्र बना। विद्युत उत्पादन में भी निजि क्षेत्र ने हिमाचल का रूख किया और आज प्रदेश में कुल उत्पादित
विद्युत- में से राज्य के बिजली बोर्ड के पास केवल 487 मैगावाट ही है और शेष सारीे संयुक्त क्षेत्र या निजि क्षेत्र के पास है। प्रदेश में विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में 1990 में शान्ता के शासन काल में जेपी उद्योग समूह ने पैर रखा था। शांता सरकार ने जे पी को स्थापित करने के लिये बसपा- जिस पर बिजली बोर्ड काम कर रहा था, बोर्ड से लेकर जेपी को थमा दिया था। उस वक्त तक बोर्ड इस पर करीब 16 करोड़ खर्च कर चुका था। जे पी के साथ हुए अनुबन्ध में जेपी ने बोर्ड को यह पैसा ब्याज सहित वापिस करना था लेकिन जब जेपी ने यह पैसा नही लौटाया तो यह राहत दी गयी कि जब प्रौजैक्ट उत्पादन में आ जायेगा तब इस पैसे की वापसी होगी। 2003 से इसमें उत्पादन भी शुरू हो गया लेकिन जेपी से यह वसूली नही की गयी। इसके लिये तर्क दिया गया कि यदि यह वसूली की जायेगी तो इसका भार अन्ततः उपभोक्ता पर पडे़गा। इस तरह करीब 92 करोेड़ रूपया बट्टेे खाते में डाल दिया गया। कैग रिपोर्ट में इस पर गंभीर आपत्ति उठायी गयी है। लेकिन कोई भी सरकार जेपी से यह वसूली नहीं कर पायी है। इसी तरह जेपी ने कडछम बांगतू परियोजना में भी दो सौ मैगावाट की क्षमता अपनेे आप बढ़ा ली और सरकार को उस पर अपफ्रन्ट प्रिमियम नही मिला। कैग नेे इस पर भी सवाल उठायेे है लेकिन सरकार पर कोई असर नही हुआ है।
1990 में जब जेपी उद्योग नेे प्रदेश में विद्युत उत्पादन में पैर रखा था उस समय निजि क्षेत्र की परियोजनाओं से 12% विद्युत राॅयल्टी के रूप में फ्री लेने का फैसला शान्ता सरकार ने लिया था और इस फैसलेे की बहुत सराहना हुई थी बल्कि इसी के आधार पर यह दावे किये गये थे कि अब सरकारी खजाने मेें पैसे की कोई कमी नही रहेगी। लेकिन 12% फ्री राॅयल्टी के साथ यह भी फैसला हुआ कि शेेष बची 88% बिजली को भी बोर्ड ही खरीदेगा और उसके बाद निजि क्षेत्र की सारी परियोजनाओं के साथ विद्युत खरीद के समझौतेे साईन हुए। लेकिन यह पीपीए किस रेट पर साईन हुए है। इसको कभी सार्वजनिक नही किया गया है। इसी के साथ ट्रांसमिशन की जिम्मेदारी भी सरकार की है। ऐसेे मेें ट्रांसमिशन में हो रहे नुकसान की कीमत भी सरकार को चुकानी पड़ रही है। 12% मुफ्त रायल्टी के फैसले के साथ 88% केे लियेे पीपीए साईन करना और ट्रासमिशन की जिम्मेदारी लेना ऐसे पक्ष है जिनकेे कारण बोर्ड लगातार घाटे में चल रहा है। आज स्थिति यह हो गयी है। बोर्ड को इन परियोजनाओं से पीपीए के कारण मंहगी दरों पर बिजली खरीदनी पड़ रही है और आगे सस्ती दरों पर बेचनी पड़ रही है क्योंकि अब दूसरे राज्यों ने भी पावर प्रौजैक्टस स्थापित कर लिये है बल्कि इस कारण हर वर्ष बोर्ड की बहुत सारी बिजली बिकने के बिना रह रही है। इसका असर बोर्ड की अपनी परियोजनाओं पर भी रहा है बोर्ड के सारे प्रौजैक्टस में हर वर्ष हजारो घन्टो का शटडाऊन कई वर्षो से लगातार चलता है बोर्ड के सूत्रों के मुताबिक इस शटडाऊन से प्रतिदन करोड़ो का नुकासान हो रहा है लेकिन बोर्ड प्रबन्धन और सरकार इस शटडाऊन को लेकर संबधित अधिकारियों के खिलाफ कोई भी कारवाई नही कर पा रही है। जबकि निजि क्षेत्र की किसी भी परियोजना में इतने बडे स्तर पर कभी शटडाऊन सामने नही आया है। माना जा रहा है कि इस शटडाऊन के पीछे निजि क्षेत्र का दवाब है क्योंकि यदि बोर्ड के अपने प्रौजैक्टस में उत्पादन सुचारू रहता है तो प्रबन्धन को उस उत्पादन की बिक्री पहले सुनिश्चत करनी होगी जिसका असर निजि क्षेत्र पर भी पडेगा। इस सुनियोजित शटडाऊन को लेकर विजिलैन्स के पास भी पिछले करीब तीन वर्षो से शिकायत लंबित है। इस शिकायत पर सचिव पावर की ओर से जो जवाब विजिलैन्स को गया है उससे सरकार ने यह स्वीकार किया है कि इसमें लापरवाही हो रही है लेकिन इस पर न तो सरकार ओर न ही विजिलैन्स कोई कड़ी कारवाई कर पा रही है क्योंकि इसकी गहन जांच मे कई चैकाने वाले खुलासे सामने आने का डर है।
लेकिन आज इस स्थिति के कारण सरकार को बिजली से होने वाली आमदनी में हर वर्ष लगातार कमी होती जा रही है जबकि हर वर्ष सरकार बजट से पहले या बाद में बिजली के रेट बढ़ाती रही है। जबकि हर वर्ष सरकार बजट और नाॅन टैक्स के रूप के मे जो आय होे रही है। वह एक बडे खतरे का संकेत है। इस आय के आंकडे यह है।
Non Tax Revenue
वर्ष आय कुल राजस्व
का प्रतिपक्ष
12-13 637.15 46.281%
13-14 696.29 37.08 %
14-15 1121.15 54.01 %
15-16 650.00 43.13 %
16-17 700.00 41.95 %
Tax Revenue
वर्ष आय कुल राजस्व
का प्रतिपक्ष
12-13 262.62 5.68%
13-14 191.36 3.74%
14-15 332.82 5.60%
15-16 308.45 4.86%
16-17 339.30 4.54%
राज्य सरकार को अपने साधनों से टैक्स और नाॅन टैक्स के रूप मे जो राजस्व प्राप्त होता है उसमें विद्युत बड़ा स्त्रोत है इस स्त्रोत मे वर्ष 12-13 में कुल नाॅन टैक्स राजस्व का 46.28%विद्युत से मिला था जो कि 16-17 में घटाकर 41.95% रह गया है। इसी तरह का कुल टैक्स राजस्व सरकार ने समय रहते बिजली नीति में परिवर्तन न किया तो आने वाले समय में एक बड़ा संकट खड़ा हो जायेगा
शिमला/शैल
चैपाल के विधायक बलवीर वर्मा के खिलाफ नगर निगम शिमला द्वारा जारी किये प्रापर्टी टैक्स के नोटिस आने वाले विधानसभा चुनावों में एक बडा मुद्दा बन सकते है। स्मरणीय है कि बलवीर वर्मा 2012 में निर्दलीय रूप से चुनाव जीत कर आये थे और फिर कांग्रेस के सहायक सदस्य बन गये थे। इसके लिये उनके खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष के पास दल बदल कानून के तहत भाजपा की याचिका भी लंबित है। इसमें वर्मा के साथ कुछ और निर्दलीय विधायक भी शामिल है। इस याचिका पर फैसला कब आता है इसको लेकर भी राजनीतिक हल्कों में कई चर्चाएं है। लेंकिन वर्मा के मामले में सबसे गंभीर मुद्दा यह खड़ा हो गया है। कि नगर निगम शिमला 2015 से लगातार उन्हें प्रापर्टी टैक्स जमा करवाने के नोटिस भेज रहा है। बल्कि टैक्स न चुकाने पर धारा 124 के तहत संपत्ति अटैच करने की कारवाई अमल में लाने की बात कही गयी है। वर्मा से निगम ने 45 लाख की वसूली करनी है वर्मा की गिनती बडे बिल्डरों में की जाती है। वीरभद्र परिवार के साथ उनके रिश्ते राजनीतिक हल्कों में चर्चा का विषय भी बने हुए है। बल्कि यह माना जा रहा है कि नगर निगम भी इन्ही रिश्तो के कारण नोटिस देने से आगे नहीं बढ़ पा रहा है।
इसमें सबसे रोचक तो यह है कि वर्मा ने टैक्स अदायगी में निगम को करीब 20लाख के चार अलग-अलग चैक भी जारी किये थे लेकिन निगम के सूत्रों के मुताबिक यह चैक बाऊंस हो गये हैं परन्तु इसके बाद भी निगम अगली कारवाई करने का साहस नही कर पा रहा है। यह भुगतान न होने के कारण वर्मा की वित्तिय स्थिति और उनकी नीयत को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गये है। क्योंकि वर्मा ने 2016 में ही शिमला में 1.76 करोड़ में चार संपत्तियां बेची है। 11.5.2016 को रजि., संख्या 274 के तहत कुसुम्पटी कोठी में एक जीतेन्द्र पाल को 157.99 वर्ग मीटर संपत्ति 40 लाख में 17.5.2016 को रजि. संख्या 304 के तहत चंचलपाल को 33 लाख में 1.6.2016 को रजि. संख्या 352 के तहत गाजियाबाद की वन्दना सोनी को 33 लाख और 12.7.2016 को रजि. संख्या 463 के तहत रीना बन्याल को कुसुम्पटी में 70 लाख की संपत्तियां बेची है। संपत्तियों की इस बेच के बाद ही 5.11.2016 को नगर निगम ने विधायक को अन्तिम नोटिस भेजा है। लेकिन इस नोटिस के बाद भी टैक्स का भुगतान न हो पाने को लेकर कई तरह की चर्चाओं की उठना स्वाभाविक है।
स्मरणीय है कि इस बार भी वर्मा को चैपाल से सशक्त उम्मीदवार माना जा रहा है। मुख्यमन्त्राी का कांग्रेस टिकट के लिये उनकी ओर झुकाव माना जा रहा है। ऐसे में उनके राजनीतिक विरोधी उनकी स्थिति को उनके खिलाफ इस्तेमाल करने का पूरा - पूरा प्रयास करेंगे यह तय है। ऐसी स्थिति में वीरभद्र भी टिकट के लिये उनकी वकालत कैसे कर पाते है। इसको लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गये है।

शिमला/बलदेव शर्मा
1983 बैच के आई ए एस अधिकारी वी सी फारखा को प्रदेश का मुख्य सचिव बना दिये जाने पर उनसे वरिष्ठ 1982 के अधिकारियों में रोष पनपना और सरकार की कारवाई को अन्याय करार देना स्वभाविक हैं क्योंकि इन वरिष्ठ अधिकारियों को बड़ी पोस्ट के लिये न कवेल नजर अन्दाज ही किया गया बल्कि इन्हें अपने कनिष्ठ के अधीन ही काम करने के लिये बाध्य किया गया। मुख्य सचिव मुख्यमन्त्री का विश्वस्त ही होना चाहिए यह सही है लेकिन इसमे यह भी उतना ही
आवश्यक है
कि एक वरिष्ठ अधिकारी को अपने से कनिष्ठ के नियन्त्रण में काम करने की भी स्थिति न खड़ी कर दी जाये जिससे की उनके आत्म सम्मान को ठेस न पहुंचे। वैसे भी प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिये यह आवश्वयक भी है इससे पहले भी प्रदेश में मुख्य सचिव की तैनाती के मौके पर दो बार वरिष्ठो को नजरअन्दाज किया गया है। पहली बार रेणु साहनीधर और दूसरी बार ओपी यादव और सीपी सुजाया नजर अन्दाज हुए थे परन्तु उन्हे मुख्य सचिव के साथ ही उसके नियन्त्रण से बाहर भी कर दिया गया था और इसी कारण वह लोग अदालत तक नही गये थे। लेकिन इस बार ऐसा नही हुआ और मामला अदालत तक जा पहुंच है। अदालत ने इन अधिकारियों को अन्तरिम राहत देते हुए अपने कनिष्ठ के नियन्त्रण में काम करने की स्थिति से बाहर रखने के निर्देश देते हुए सरकार को पोस्टिंग देने के आदेश दिये थे। सरकार ने इन आदेशों पर अमल करते हुए इन्हे निर्देशित पोस्टिंग भी दे दी है। अभी इस मामले में सरकार ने विस्तृत जवाब दायर करना है और उसके बाद इसमें उठाये गये कानूनी और प्रशासनिक सवालों पर फैसला आयेगा। यह भी तय है कि फैसला आयेगा इसका प्रभाव दूरगामी होगा।
कैट में गयी इस याचिका में कहा गया है कि 31.5.2016 को फारखा को सिविल सर्विस बोर्ड की बैठक बुलाये बिना ही मुख्य सचिव बना दिया गया है। यह भी कहा गया है कि फारखा 4.3.2014 को स्क्रीनिंग कमेटी की सिफारिश के बिना ही मुख्य सचिव को वेतन मान दे दिया गया है। जबकि उस समय अतिरिक्त मुख्य सचिव के नियमित काडर के सदस्य नही थे और इस नाते मुख्य सचिव के चयन के दायरे में ही नही आते है। इसके लिये आई ए एस काडर रूल्ज 1954 और 1955 के रेगुलेशनज के प्रावधानों का हवाला दिया गया है। इसमें एक महत्वपूर्ण तथ्य यह दिया गया है। कि हिमाचल प्रदेश में एक मुख्य सचिव और एक अतिरिक्त मुख्यसचिव के पद काडर में स्वीकृत है और इनके समकक्ष दो ही पद अतिरिक्त मुख्यसचिव के एकक्ष काडर सृजित किये जा सकते है इस आश्य का आदेश 20.8.2007 का पारित हुआ है और इसके मुताबिक प्रदेश में चार ही अधिकारी उच्चतम वेतन मान के अधिकारी हैं लेकिन 26.5.2016 को कार्मिक विभाग ने मुख्यमन्त्री के सामने जो सूची रखी है इसमें 16 अधिकारियों को उच्चतम वेतनमान में दिखाया गया जबकि इनमें से केन्द्र की प्रति नियुक्ति में तैनात चार अधिकारी तो वास्तव में 67000-79000 के एच ए जी स्केल में हैं याचिका में रखे गये तथ्यों और तर्कोे से यह स्पष्ट हो जाता है कि जितने अधिकारियों को उच्चतम वेतन मान में रखा गया है। उन सबको मुख्य सचिव के चयन के दायरे में नही लाया जा सकता। इनके मुताबिक इस दायरे में केवल वरिष्ठतम चार ही अधिकारी आ सकते है।
प्रदेश सरकार ने इस याचिका में जो अन्तरिम जवाब दायर किया है उसमें कहा गया है कि 4.3.2014 के जिस आदेश को चुनौती दी गयी है। उसे एक वर्ष के भीतर ही चुनौती दी जा सकती थी अब नही। लेकिन यह नही कहा गया हैं कि 4.3.2014 को वह आदेश वैध था। इससे यह भी प्रमाणित हो जाता है। आगे चलकर अतिरिक्त मुख्य सचिवों के इतने पद सृजित करने में भी तय नियमों की अवेहलना हुई है। सरकार के अन्तरिम जवाब में यह भी कहा गया है कि दीपक सानन के जांच दर्ज होने और 19.5.2014 को उसकी सूचना प्रदेश सरकार को भी दिये जाने का भी जिक्र किया गया है सरकार ने चार्जशीट किया हुआ है। विनित चैधरी के खिलाफ 1.5.2014 को सीबीआई में प्रारम्भिक जांच दर्ज होने और 19.5.2014 का उसकी सूचना प्रदेश सरकार को दिये जाने का भी जिक्र किया गया है। इस जांच पर आगे क्या हुआ है। इस बारे में कुछ नही कहा गया है। लेकिन इस जांच को चैधरी के खिलाफ आधार बनाया गया है।
सरकार के अन्तरिम जबाव में उठाये गये इन सवालों का यह अधिकारी क्या जबाव देते है यह तो आने वाले समय में स्पष्ट हो पायेगा लेकिन याचिका में मुख्य सचिव के चयन के दायरे में केवल वरिष्टतम चार लोगों को ही रखने का जो पक्ष रखा गया है। उससे भविष्य के लिये एक लाईन तय हो जायेगी यह माना जा रहा हैं बहरहाल यह अंदेशा हैं कि प्रशासन के शीर्ष पर बैठे अधिकारियों में उभरा यह टकराव कंही व्यक्तिगत न हो जायेे।