शिमला/शैल। सरकार द्वारा 1 जुलाई 2017 का आऊटसोर्स कर्मचारियों को लेकर जारी की गयी नीति के अनुसार अब कोई भी विभाग सरकार की पूर्व अनुमति के बिना कोई भी सेवा आऊटसोर्स नही कर पायेगा। आऊट सोर्स कर्मचारियों के हितों को सुरक्षित करने के लिये वित विभाग द्वारा जारी 2009 के वित्तिय नियमों के तहत मिलने वाले लाभ इन्हे भी सुनिचित किये गये हैं। इसके मुताबिक इन्हें ईएसआई कन्ट्रीव्यूशन और ई.पी.एफ कन्ट्रीव्यूशन के लाभ मिलेंगे। आऊट सोर्स के तहत लगी महिला कर्मीयों को मातृत्व अवकाश की सुविधा भी प्राप्त होगी और यह खर्च संबधित विभाग उठायेगा। यदि आऊटसोर्से पर तैनात कर्मचारी को विभागीय कार्य के लिये तैनाती स्थान से बाहर प्रदेश में किसी स्थान पर भेजा जाता है तो इसके लियेे उसे 130 रू0 प्रतिदिन के हिसाब से यात्रा भत्ता भी मिलेगा। प्रदेश से बाहर जाने पर यह भत्ता 200रू0 प्रतिदिन के हिसाब से मिलेगा। सर्विस प्रोवाईडर इन्हे वेतन का भुगतान बैंक के माध्यम से करेंगे और हर माह की 7 तारीख को इन्हें यह भुगतान सुनिश्चित करेंगे। संबधित विभाग समय-समय पर यह सुनिश्चित करेंगे कि सर्विस प्रोवाईडर द्वारा कर्मचारी को यह लाभ दिये जा रहे हैं या नही।
स्मरणीय है कि इस समय प्रदेश में करीब 35,000 कर्मचारी आऊट सोर्स के माध्यम से विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यह कर्मचारी इन्हें सरकार में नियमित रूप से समायोजित किये जाने की मांग भी कर रहे हैं। क्योंकि जब इन्हें आऊट सोर्से के माध्यम से रखा गया था तब इन्हें यह पूरी जानकारी ही नही रही है कि यह लोग सरकार के कर्मचारी न होकर एक सर्विस प्रोवाईडर ठेकेदार के कर्मचारी हैं। सरकार यह तो सुनिश्चित कर सकती है कि ठेकेदार इनका शोेेषण न करे और इनको समय पर वेतन का भुगतान हो। लेकिन इन्हें सरकार का नियमित कर्मचारी नही बनाया जा सकता और न ही उसकी तर्ज पर अन्य वेतन वृद्धि आदि के लाभ दिये जा सकते हैं। इन कर्मचारियों को अनुबन्ध पर रखे गये कर्मचारियों की तर्ज भी नियमित होने का लाभ नही मिल सकता। लेकिन इसी के साथ यह भी अनिश्चित है कि सर्विस प्रोवाईडर कब तक इन्हें काम पर रख सकता है और इन्हें काम से हटाने के लिये क्या शर्ते होंगी। यह भी अनिश्चित है कि संबधित विभाग भी कब तक इनकी सेवाएं आऊटसोर्स के माध्यम से लेता रहेगा।
सरकार ने इन कर्मचारियों केे दवाब में इनके लिये यह पाॅलिसी तो घोषित कर दी हैे लेकिन इसमें यह स्पष्ट नही किया गया है किस तरह की सेवाएं आऊट सोर्स के तहत आयेंगी। आऊटसोर्स प्रोवाईडर पर भी कोई नियम कानून लागू होंगे और वह भी सरकार केेे किसी विभाग में पंजीकृत होगा इसका भी इस नीति में कोई जिक्र नही है क्योंकि सरकार में कर्मचारी भर्ती करने के लिये रोजगार कार्यालयों से लेकर विभिन्न चयन बोर्ड गठित हैं और इनके लिये विज्ञापनों के माध्यम से सार्वजनिक सूचना देकर आवेदन आमन्त्रिात करने की एक तय प्रक्रिया है। यहां तक कि सरकार में होने वाले निर्माण कार्यों के लिये भी टैण्डर आमन्त्रिात करने की प्रक्रिया तय है। यह सारे प्रावधान उपलब्ध होने के वाबजूद सरकार में आऊटसोर्स के माध्यम से ऐसे कर्मचारी भर्ती करने की आवश्यकता क्यों पड़ी इस पर कोई भी कुछ कहने केे लिये तैयार नही है।
आऊट सोर्स प्रोवाईडर को कितना कमीशन मिलेगा इस पर भी पाॅलिसी में कुछ स्पष्ट नही किया गया है। आऊटसोर्स कर्मचारी को कितना वेतन मिलेगा यह भी स्पष्ट नही है पाॅलिसी में सिर्फ यह कहा गया है कि The Government Department will consider increase in the contracted amount payable to the service providers /contractors to enable them to enhance emoluments of staff engaged by them , whenever the State Government increases minimum wages. सरकार द्वारा यह पाॅलिसी लाये जाने के वाबजूद भी आऊट सोर्स कर्मचारियों के सरकार में समायोजित होने की कोईे संभावना नही है। इससे केवल सर्विस प्रोवाईडर को बैठेे बिठाये एक भारी कमीशन पाने का साधन तो दे दिया गया है लेकिन अन्ततः यह इन कर्मचारियों का शुद्ध शोषण ही रह जाता है यह इस पाॅलिसी से भी स्पष्ट हो जाता है क्योंकि कब तक सर्विस प्रोवाईडीे और संबधित विभाग कर्मचारी को अपनी सेवा में रखेंगे यह स्पष्ट नही है। संभवतः सेवा चयन और पदोन्नति नियमों में इस तरह की सेवाओं का कोई प्रावधान ही नही है।



शिमला/शैल। इस बार होने वाले प्रदेश विधानसभा चुनावों में आधा दर्जन से अधिक नये राजनीतिक दल दस्तक देने जा रहे है। यह दस्तक उस माहौल में दी जा रही है जब केन्द्र में प्रचण्ड बहुमत के साथ सत्तारूढ़ हुई भाजपा ने प्रदेश में 60 सीटें जीतने का लक्ष्य घोषित कर रखा है और कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह को सातवीं बार मुख्यमन्त्री बनाने का दावा कर रखा है। हिमाचल की सत्ता आज तक कांगे्रस और भाजपा में ही केन्द्रित रही है। इस सत्ता को जब भी तीसरे दलों ने चुनौती देने का प्रयास किया और उसमें कुछ आंशिक सफलता भी लोक राज पार्टी, जनता दल और फिर हिमाचल विकास पार्टीे के नाम पर भले ही हासिल कर ली लेकिन आगे चलकर यह दल अपने-अपने अस्तित्व को भी बचा कर नही रख पाये यह यहां का एक कड़वा राजनीतिक सच है। ऐसा क्यों हुआ? इसके क्या कारण रहे और कौन लोग इसके लिये प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार रहे इसका एक लम्बा इतिहास है। लेकिन अन्तिम परिणाम यही रहा कि सत्ता कांग्रेस और भाजपा में ही केन्द्रित रही बल्कि इसी कारण से यहां तीसरे दलों को आने से पहले ही असफल मान लिया जाता है।
लेकिन इस बार जो दल सामने आ रहे हैं क्या उनका परिणाम भी पहले जैसा ही रहेगा? इस सवाल का आंकलन करने से पहले यह समझना और जानना आवश्यक है कि यह आने वाले तीसरे दल हैं कौन, और इनकी पृष्ठभूमि क्या है। अब तक जो दल अपना चुनाव आयोग में पंजीकरण करवाकर सामने आ चुके हैं उनमें राष्ट्रीय आज़ाद मंच (राम), नव भारत एकता दल, समाज अधिकार कल्याण पार्टी, राष्ट्रीय हिन्द सेना, जनविकास पार्टी, लोक गठनबन्धन पार्टी और नैशनल फ्रीडम पार्टीे प्रमुख है। राष्ट्रीय आज़ाद मंच का प्रदेश नेतृत्व सेवानिवृत जनरल पी एन हूण के हाथ है। जनरल हूण सेना का एक सम्मानित नाम रहा है। अभी थोड़े समय पहले तक वह गृहमन्त्री राजनाथ सिंह के मन्त्रालय के अधिकारिक सलाहकार रहे है। इसी तरह लोग गठबन्धन पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय शंकर पांडे कुछ समय पहले तक भारत सरकार में सचिव रहे है। उनका प्रदेश नेतृत्व भी भूतपूर्व सैनिक कर्नल कुलदीप सिंह अटवाल के हाथ है। इनके साथ ही नैशनल फ्रीडम पार्टी मैदान मे है। यह पार्टी स्वामी विवेकानन्द फाऊंडेशन मिशन द्वारा बनायी गयी है। इसके प्रदेश अध्यक्ष भाजपा में मन्त्री रहेे महेन्द्र सोफ्त है।
यह जितने भी नये दल अभी पंजीकृत होकर सामने आये है। इनकी पृष्ठभूमि से यह पता चलता है कि यह लोग कभी भाजपा/संघ के निकटस्थ रहे है। इस निकटता के नाते यह लोग भाजपा/संघ की कार्यप्रणाली और सोच से भी अच्छी तरह परिचित रहे हैं। आज राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के अन्दर ही मोदी सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को लेकर आलोचना होना शुरू हो गयी है। पूर्व मन्त्री यशवन्त सिन्हा ने जो मोर्चा अब खोल दिया है उसमें नये लोग जुड़ने शुरू हो गये हैं। आर्थिक फैसलो को लेकर जो हमला जेेटली पर हो रहा था उसमें अब यह जुड़ना शुरू हो गया है कि यह फैसले तो सीधे प्रधानमन्त्री कार्यालय द्वारा लिये जा रहे हैं और इनका सारा दोष जेटलीे पर डालना सही नही है।
इस परिदृष्य में आने वाले चुनावों में भाजपा को कांग्रेस के अतिरिक्त इन अपनो के हमलों का भी सामना करना पड़ेगा। दूसरी ओर प्रदेश में भाजपा नेतृत्व के प्रश्न पर पूरी तरह खामोश चल रही है। भाजपा में आज अनुशासन को उसके अपने ही लोगों से चुनौती मिलना शुरू हो गयी है। क्योंकि अब तक करीब एक दर्जन विधानसभा क्षेत्रों से सार्वजनिक रूप से टिकट के लिये अपनी-अपनी दोवदारी पेश कर दी है। कल को यदि इन लोगों को टिकट नही मिल पाता है तब क्या लोग पार्टी के लिये ईमानदारी से काम कर पायेंगे या नही यह सवाल बराबर बना हुआ है। बल्कि कुछ उच्चस्थ सूत्रों का यह दावा है कि भाजपा में जिन लोगों को टिकट नही मिल पायेगा वह कभी भी इन नये दलों का दामन थाम लेंगे। इसलिये यह माना जा रहा है कि यह तीसरे दल भाजपा और कांग्रेस दोनो के समीकरणों को बदल कर रख देंगे क्योंकि यही दल कांग्रेस के असन्तुष्टों के लिये भी स्वभाविक मंच सिद्ध होंगे और यही कांग्रेस/भाजपा के लिये खतरे की घन्टी होगा।
शिमला/शैल। उद्योग विभाग के संयुक्त निदेशक तिलक राज के रिश्वत प्रकरण में सीबीआई ने चण्डीगढ़ ट्रायल कोर्ट में चालान दायर कर दिया है। बल्कि यह चालान दायर होने के बाद ही तिलक राज को जमानत मिली और वह फिर से नौकरी पर आ गये हैं। लेकिन सीबीआई के इस चालान को आगे बढ़ाने के लिये इसमें सरकार की ओर से अभियोजन की अनुमति चाहिये जो कि अभी तक सरकार ने नहीं दी है। सेवा नियमों के मुताबिक किसी भी सरकारी कर्मचारी के विरूद्ध
अपराधिक मामला चलाने के लिये अभियोजन की अनुमति अपेक्षित रहती है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय कई मामलों में यह व्यवस्था दे चुका है कि जब सरकारी कर्मचारी उस पद से हट चुका हो जिस पद पर रहते उसके खिलाफ ऐसा मामला बना था तब ऐसे मामलों में सरकार की अनुमति की आवश्यकता नही रह जाती है। तिलक राज के खिलाफ जब यह मामला बना था तब वह बद्दी में संयुक्त निदेशक के पद पर कार्यरत थे लेकिन यह कांड घटने पर सीबीआई ने उन्हे गिरफ्तार कर लिया और जमानत मिलने के बाद विभाग ने उन्हे बद्दी से बदलकर शिमला मुख्यालय में तैनात कर दिया है। शिमला में उन्हे जो काम दिया गया है उसका उनके बद्दी में रहते किये गये काम से कोई संबंध नही है। काम की इस भिन्नता के चलते विभाग के अधिकारियों का एक बड़ा वर्ग अभियोजन की अनुमति दे दिये जाने के पक्ष में था लेकिन कुछ लोग अनुमति के नाम पर इस मामले को लम्बा लटकाने के पक्ष में हैं और इस नीयत से इस मामले को विधि विभाग की राय के लिये भेज दिया गया है। जबकि नियमों के अनुसार इसमें अन्तिम फैसला तो उद्योग मन्त्री के स्तर पर ही होता है।
उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक विधि विभाग को मामला भेजने के लिये जो आधार बनाया गया है कि जब तिलक राज पर छापा मारा गया था उस समय सीबीआई ने उसके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नही कर रखी थी। इसी के साथ यह भी कहा गया है कि पैसे की रिकवरी भी तिलक राज से न होकर अशोक राणा से हुई है जो कि सरकारी कर्मचारी नही है। लेकिन इस मामले में जो एफआईआर सीबीआई ने दर्ज कर रखी है उसके मुताबिक 29 मई को यह मामला विधिवत रूप से दर्ज हो गया था और तिलक राज से रिकवरी 30 मई को हुई थी। रिकवरी के बाद ही अगली कारवाई शुरू हुई थी। ऐसे में विभाग का यह तर्क है कि छापेमारी से पहले एफआईआर दर्ज नही थी कोई ज्यादा पुख्ता नही लगता। एफआईआर में दर्ज विवरण के मुताबिक इसमें बद्दी के ही एक फार्मा उद्योग के सीए चन्द्र शेखर इसके शिकायत कर्ता हैं। शिकायत के मुताबिक चन्द्र शेखर ने फार्मा उद्योग की 50 लाख सब्सिडी के लिये 28 मार्च को बद्दी में संयुक्त निदेशक तिलक राज के कार्यालय में दस्तावेज सौंपे थे। दस्तावेज सौंपने के बाद चन्द्र शेखर को एक अशोक राणा से संपर्क करने के लिये कहा जाता है, इसके बाद 22 मई को उसे इस संद्धर्भ में विभाग का नोटिस मिलता है और फिर वह अशोक राणा से मिलता है तथा इस दौरान हुई बातचीत रिकार्ड कर लेता है। चन्द्रशेखर की बातचीत अशोक राणा से 19 मई और 22 मई को होती है। इसमें उससे रिश्वत मांगी जाती है। चन्द्रशेखर यह रिश्वत मांगे जाने की शिकायत सीबीआई से 27 मई को करता है और प्रमाण के तौर पर यह रिकार्डिंग पेश करता है। सीबीआई अपने तौर पर 28 और 29 मई को स्वयं इस बातचीत और रिकार्डिंग की व्यवस्था करती है। जब 29 मई को इस तरह सीबीआई की वैरीफिकेशन पूरी हो जाती है तब उसी दिन 29 को यह एफआईआर दर्ज होती है। इसके बाद 30 को यह रिश्वत कांड घट जाता है, और सीबीआई तिलक राज को गिरफ्तार कर लेती है।
एफआईआर में दर्ज इस विवरण से विभाग द्वारा अब अभियोजन की अनुमति के लिये लिया गया स्टैण्ड मेल नही खाता है। तिलक राज की गिरफ्तारी के बाद उसके कांग्रेस सरकार और पूर्व की भाजपा सरकार में शीर्ष तक उसके घनिष्ठ संबंधों की चर्चा जगजाहिर हो चुकी है। क्योंकि एफआईआर के मुताबिक ही यह रिश्वत का पैसा मुख्यमन्त्री के दिल्ली स्थित ओएसडी रघुवंशी को जाना था। अब रघुवंशी भी इस मामले में सीबीआई के एक गवाह हैं। ऐसे में अब यह मामला एक ऐसे मोड़ पर है जहां सबकी नजरें इस ओर लगी है कि क्या उद्योग मन्त्री मुकेश अग्निहोत्री इसमें अभियोजन की अनुमति देते है या नही? क्या सीबीआई इसमें अनुमति के बिना ही इस मामले को अंजाम तक पंहुचा पायेगी या नही।
शिमला/शैल। वीरभद्र सरकार ने मन्त्रीमण्डल की पिछली बैठक में जुब्बड़हटी एयरपोर्ट के पास विधायकों की सोसायटी को 30 बीघे ज़मीन मकान बनाने के लिये दी है। सरकार का यह फैसला जैसे ही सार्वजनिक हुआ तभी से इस पर नकारात्मक प्रतिक्रियाएं आना शुरू हो गयी। यहां तक कि नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल का तो यहां तक ब्यान आ गया कि न ज़मीन लेंगे और न ही लेने देंगे। इस फैसले पर यह नकारात्मक प्रतिक्रियाएं संभवतः इसलिये आयी हैं क्योंकि इससे पहले भी शिमला में दो स्थानों मैहली और हीरा नगर में सरकार ने विधायकों को ज़मीन दे रखी है।
स्मरणीय है कि विधायकों की पहली सोसायटी का पंजीकरण 9-9-86 को हिम लैजिस्लेचर भवन निर्माण सोसायटी के नाम से गठन हुआ था। उस समय इसके 123 सदस्य थे। इस सोसायटी को मैहली मेें 8 बीघे और हीरा नगर में 12 बीघेे 16 बिस्वे ज़मीन मिली हुई है। इस सोसायटी के 31.3.15 तक हुए आडिट के मुताबिक इसके पास 8.50 लाख रूपया बचत खाते मेे और 9.50 लाख रूपया एफडीआर के रूप में पूंजी है। इसका कार्यालय प्रदेश विधानसभा है। लेकिन यह सोसायटी किस तरह के काम कर रही है और इसके कार्यालय मे कितने कर्मचारी है इसकी कोई जानकारी सार्वजनिक नही है, बल्कि इसका नियमित आडिट भी नहीं है। इसके अध्यक्ष विधान सभा के उपाध्यक्ष जगत सिंह नेगी है और यह 13.8.14 को चुने गये थे।
इस सोसायटी के बाद 17.12.2004 को न्यू लैजिस्लेचर भवन निर्माण सोसायटी के नाम से एक और पंजीकरण हुआ, इसके 21 सदस्य हैं। 2004 को पंजीकृत हुई इस सोसायटी की बैठक 5.3.2011 को हुई और इसमें सतपाल सत्ती इसके अध्यक्ष और सुधीर शर्मा इसके सचिव बने है। इसके पास पूंजी के नाम पर 2011 में 3.50 लाख रूपये बैंक में है। इसका कार्यालय भी विधानसभा ही दिखाया गया है, लेकिन इसके कार्यालय में कितने कर्मचारी हैं और इसकी क्या गतिविधियां इसकी कोई जानकरी सार्वजनिक नही है। इसी के साथ यह भी उल्लेखनीय है कि 2011 से लेकर आज तक इसका कोई आडिट भी नही हुआ है। सहकारिता नियमों के मुताबिक विधायको की इन दोनो सोसायटीयों में सहकारिता नियमों की कोई अनुपालना नही हो रही है। लेकिन सहकारिता विभाग इस संद्धर्भ में इनके खिलाफ कोई भी कारवाई नही कर पा रहा है।
इस नयी सोसायटी के इस समय भी 21 ही सदस्य है और अब सरकार ने इसी 21 सदस्यों की सोसायटी को 30 बीघे जमीन दी है लेकिन इससे पहले वाली सोसायटी के कितने सदस्यों ने उनकी मिली ज़मीन मकान बना रखे हैं। क्या इन मकानों को उपयोग आवास के लिये ही हो रहा है या इसका कोई वाणिज्यिक उपयोग भी हो रहा है। इसकी कोई जानकारी सार्वजनिक नही है। इसी के साथ यह भी एक सवाल चर्चा में चल रहा है कि 2004 में नयी सोसायटी के गठन की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या दोनों सोसायटीयों के सदस्यता आदि नियमों में कोई अन्तर है और फिर 2004 में पंजीकृत हुई इस सोसायटी को अब 2017 में जमीन मांगने की क्यों आवश्यकता पड़ी, यदि सूत्रों की माने तो जब यह ज़मीन देने का प्रस्ताव तैयार हुआ और इसे विधि विभाग के परामर्श के लिये भेजा गया तो विधि विभाग ने इस प्रस्ताव का अनुमोदन नही किया है। लेकिन विधि विभाग की राय को नजरअंदाज करके सरकार ने यह सौगात विधायकों को दे दी।
आज हमारे विधायकों को जहां सरकारी ज़मीन का तोहफा मिल गया वहीं पर यह लोग इस कार्यकाल में अपनी वेतन वृद्धि के मामलें में भी काफी सौभग्यशाली रहे हैं। क्योंकि 2015 तक इनका वेतन 20,000 रूपये मासिक था जो 6.2.15 को बढ़ाकर 30,000 रूपये हो गया। उसके बाद 10.5.16 को पुनः इनके वेतन में वृद्धि हुई और यह बढ़कर 55000 रूपये हो गया। इस समय हमारे विधायक सारे वेतन-भत्ते मिलाकर 2,10,000 रूपये प्रति माह प्राप्त कर रहे है। यही नही जिन निर्दलीय विधायकों ने जीतने के बाद कांग्रेस का दामन थाम लिया था और भाजपा ने इनके खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष के पास दल-बदल कानून के तहत कारवाई किये जाने की याचिका दायर की थी उसका फैसला अध्यक्ष की कृपा से इस कार्यकाल में अब तक नही आया है। भाजपा ने भी इस पर उस समय जोर देना छोड़ दिया जब इन लोगों ने भाजपा का दामन थामने के संकेत दे दिये। इस तरह भाजपा और विधानसभा अध्यक्ष की कृपा से इन निर्दलीयों का बड़ा नुकसान होने से बच गया। हमारे लोकतन्त्र की यही तो विशेषता है।
शिमला/शैल। भाजपा के संभावित चुनाव प्रत्याशीयो की सूची सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद पार्टी के अन्दर मचे घमासान को शांत करने के लिये प्रदेश पुलिस के साईबर सैल में पार्टी ने एक शिकायत भेजी है। शिकायत में कहा गया है कि किन्ही शरारती तत्वों ने उम्मीदवारो की फर्जी सूची तैयार करके सोशल मीडिया में जारी कर दी है। यह सूची जारी होने के बाद इस पर पार्टी के प्रदेश मुख्यालय से लेकर पंचकुला में हुई कोर कमेटी की बैठक तक मे इस वायरल सूची पर चर्चा हुई है। यह सूची सामने आने के बाद कई विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी के समीकरणों में कई फेरबदल चर्चा में है। इसी सूची का प्रभाव है कि शिमला के कुसुमप्टी विधानसभा क्षेत्रा से अखिल भारतीय विद्यार्थी
परिषद और आरएसएस से ताल्लुक रखने का दावा करने वाले एक एनडी शर्मा ने चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। रामपुर, सोलन, बिलासपुर में समीकरण बदलने की चर्चाएं सामने आ रही है। इस पार्टी द्वारा साईबर सैल का भेजी शिकायत और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
लेकिन इस शिकायत पर अब तक साईबर सैल में कोई एफआईआर दर्ज नही की गयी है और न ही भाजपा यह एफआईआर दर्ज करने की मांग ही कर रही है। क्योंकि जो सूची वायरल हुई है उसमें दिल्ली में केन्द्रिय चुनाव कमेटी की बैठक में इन नामों की चर्चा होने का जिक्र दर्ज है बैठक के बाद स्वास्थ्य मन्त्री नड्डा के ईमेल से यह सूची प्रदेश अध्यक्ष सत्ती को उनकी मेल पर भेजी गयी। ऐसे में साईबर जांच की थोड़ी सी समझ रखने वाला भी यह जानता है कि इसकी जांच की शुरूआत नड्डा और सत्ती की ईमेल खंगालने से शुरू होगी। इसी के साथ केन्द्रिय चुनाव कमेटी की बैठक की जानकारी लेनी होगी इस जानकरी के साथ ही इन नेताओं की फोन काल्ज़ तक रिकार्ड कब्जे में लेना आवश्यक होगा। परन्तु अभी तक जांच में ऐसा कोई कदम उठाये जाने की कोई सूचना नही आयी है। सूत्रों की माने तो भाजपा के शीर्ष नेता भी ऐसी जांच के पक्षधर नही है। और इस शिकायत को जल्दीबाजी में उठाया गया कदम मान रहे है।