Thursday, 18 September 2025
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रोजगार पर स्वतः विरोधी आंकड़ों में उलझी सरकार

शिमला/शैल। हिमाचल में सरकार ही सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता है। इसलिए हर राजनीतिक दल सत्ता में आने के लिये बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाने का आश्वासन देकर उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करता है। कांग्रेस ने भी विधानसभा चुनावों में युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिये प्रतिवर्ष एक लाख नौकरियां उपलब्ध करवाने की गारंटी दी थी। पांच वर्षों में पांच लाख नौकरियां दी जानी थी। यह गारंटी अपने में एक बहुत बड़ा वायदा था। जिसका चुनावी परिदृश्य पर असर होना स्वभाविक था और परिणामतः कांग्रेस की सरकार बन गयी। सरकार बनने के बाद इस दिशा में एक मंत्रियों की कमेटी बनायी गयी यह पता लगाने के लिये की सरकार में कुल कितने पद खाली हैं। इस मंत्री कमेटी के मुताबिक सरकार में 70000 रिक्त पद पाये गये। इससे यह उम्मीद बंधी की कम से कम यह 70000 पद तो तुरंत प्रभाव से भर ही लिये जाएंगे। दिसम्बर 2022 में कांग्रेस की सरकार बनी थी और 2024 में विधानसभा में एक प्रश्न के माध्यम से यह पूछा गया था कि अब तक कितने लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाया गया है। इस प्रश्न के उत्तर में यह कहा गया कि 34980 लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। लेकिन अभी 15 अगस्त के समारोह में मुख्यमंत्री ने 23191 लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाने का आंकड़ा परोस दिया। सतपाल सती और विपिन परमार के प्रश्न के उत्तर में बताया गया कि गत दो वर्षों में विभिन्न विभागों में विभिन्न श्रेणियों के कुल 5960 पद सृजित किये गये और 1780 पद समाप्त किये गये।
रोजगार पर आये इन आंकड़ों से यह प्रश्न उठना स्वभाविक है कि एक लाख रोजगार प्रतिवर्ष उपलब्ध करवाने की गारंटी देकर आयी सरकार की इस क्षेत्र में उपलब्धियां क्या हैं? इसी के साथ यह सवाल और खड़ा होता है कि 15 अगस्त के भाषण के लिये मुख्यमंत्री को सामग्री उपलब्ध करवाने वाले तंत्र ने भी इसका ख्याल नहीं रखा की रोजगार पर पहले विधानसभा में क्या आंकड़ा रखा गया है। सदन में रखी जा रही जानकारी की विश्वसनीयता पर तो कांग्रेस विधायक आर.एस.बाली ने भी गंभीर आक्षेप उनके बिजली बिल को लेकर रखे गये आंकड़े पर उठाया है। आंकड़ों की विश्वसनीयता पर ही तो भाजपा विधायक सुधीर शर्मा का विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव आया है। जबकि यह माना जाता है कि प्रशासन विधानसभा में जानकारियां उपलब्ध करवाने में विशेष सतर्कता बरतता है। क्योंकि जिस प्रश्न का उत्तर आसानी से न मिल रहा हो उसका जवाब देने के लिए सूचना एकत्रित की जा रही है का विकल्प अपना लिया जाता है।
इस परिदृश्य में यदि यह आकलन किया जाये कि अब तक के कार्यकाल में चुनावों के दौरान बांटी गयी गारंटीयों पर सरकार कहां खड़ी है तो इन्हीं आंकड़ों से सरकार की सारी कारगुजारी सामने आ जाती है। क्योंकि प्रदेश में बेरोजगारों का आंकड़ा दस लाख से ऊपर है। भारत सरकार के श्रम मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में बेरोजगारों का आंकड़ा 46% तक जा पहुंचा है। यह सामने आ चुका है कि इस सरकार ने आउटसोर्स पर पुराने लगे बहुत सारे युवाओं को हटाकर नई कंपनियों के माध्यम से नये लोगों को रोजगार देने का प्रयास किया है। आउटसोर्स का मामला अदालत तक भी पहुंच गया था। ऐसे में रोजगार के मामले में सरकार को बहुत ज्यादा चौकस रहना होगा। इस संबंध में स्वतः विरोधी आंकड़े सरकार द्वारा परोसे जाना विश्वसनीयता पर एक बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा कर देते हैं और रोजगार ही प्रदेश का मुख्य मुद्दा है। आंकड़ों के विरोधाभास पर तंत्र की भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। क्योंकि विपक्ष तो इस स्वतः विरोध को सरकार के खिलाफ एक बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल करेगा।

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