Friday, 19 September 2025
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सरकार चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की ‘‘समर्थ को नहीं दोष गोसांई’’ बराबर लागू होता है

  • प्रवीण गुप्ता प्रकरण से उठी चर्चा
  • विभागीय सचिव से मुख्य सचिव तक कोई भी स्पष्ट निर्देश नहीं दे पाया
शिमला/शैल। सरकारी कर्मचारी/अधिकारी को जब भी सरकारी आवास आबंटित किया जाता है तो संबद्ध व्यक्ति से यह जानकारी मांगी जाती है कि उसके पास उसी स्थान पर जहां वह कार्यरत है और सरकारी आवास चाहता है वहां उसके नाम पर कोई अपना घर तो नहीं है। ऐसी जानकारी यदि गलत पायी जाती है तो ऐसे व्यक्ति को आबंटित सरकारी आवास का आबंटन तुरन्त प्रभाव से रद्द करके उससे तीन गुना फीस वसूल करने की कारवाई के साथ अनुशासनात्मक कारवाई अमल में लाये जाने का प्रावधान है। यह एक स्थापित प्रक्रिया है। लेकिन क्या समर्थ बड़े लोगों के खिलाफ यह कारवाई हो पाती है? इस समय सुक्खू सरकार एक ऐसे ही रोचक मामले में उलझी हुई है। बल्कि जिस विभाग के अधिकारी का ऐसा मामला सामने आया है उसका प्रभार भी स्वयं मुख्यमंत्री के पास ही है।
स्मरणीय है की जयराम सरकार के कार्यकाल में डॉ. रचना गुप्ता को सरकारी आवास आबंटित हुआ था। जिसे 1-8-2018 को उन्होंने आधिकारिक तौर पर ग्रहण कर लिया। यह आबंटन उन्हें बतौर सदस्य लोकसेवा आयोग हुआ था। इसके बाद फरवरी 2022 में यही आवास डॉ. रचना गुप्ता के पति पी.सी. गुप्ता को बतौर मुख्य अभियन्ता प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हो गया। जब यह आबंटन पी.सी. गुप्ता के नाम हुआ तब उनसे नियमानुसार अपना घर होने की जानकारी मांगी गई। इस पर पी.सी. गुप्ता ने सूचित किया कि उनके नाम पर शिमला में कोई घर नहीं है। लेकिन इस पर जब दिल्ली के नोएडा निवासी देवाशीष भट्टाचार्य ने शिकायत कर दी कि प्रवीण गुप्ता के नाम पर शिमला के पंथाघाटी में मकान है तो एकदम स्थितियां बदल गयी। एस्टेट विभाग ने प्रवीण गुप्ता से उसकी अपने नाम पर घर होने को लेकर पुनः जानकारी मांगी। इस पर गुप्ता ने सूचित किया कि पंथाघाटी में उनके नाम पर घर है जिसे उन्होंने 1-9-2021 से किराए पर दे रखा है जिससे 61040/- रुपए प्रति माह की आय हो रही है।
इस जानकारी और स्वीकारोक्ति के बाद गुप्ता के खिलाफ आवास आबंटन नियमों के तहत कारवाई करने की प्रक्रिया चल रही है जो अभी तक पूरी नहीं हो पायी है। इस मामले की फाइल जीएडी के मुख्य सचिव तक हो आयी है। लेकिन किसी भी स्तर पर बड़े अधिकारी इस मामले में नियमानुसार कारवाई करने की अनुशंसा ही कर पाये हैं। यही नहीं प्रवीण गुप्ता के नाम पर पंथाघाटी में जो मकान है उसमें फूड कमिश्न का कार्यालय था। जबकि इस मकान का नक्शा व्यवसायिक न होकर आवासीय पारित है। इस भवन की दो मंजिलें शायद पारित नक्शे से बाहर हैं जिसको लेकर नगर निगम में लम्बे अरसे से चल रही कारवाई अभी भी अंतिम निर्णय तक नहीं पहुंची है। सचिवालय के गलियारों में इस पूरे प्रकरण को लेकर यही चर्चा है कि ‘‘समर्थ को नहीं दोष गोसांई’’ चाहे सरकार जयराम ठाकुर का हो या ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू की हो। क्योंकि शायद प्रदूषण नियंत्रण ने भी जनवरी 2023 में एक मामला इन्हीं प्रवीण गुप्ता को लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय को भेजा था जो अब तक वापस नहीं आया है।

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