Friday, 19 September 2025
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सरकार और संगठन का यह टकराव सरकार की सेहत के लिए घातक होगा

शिमला/शैल। साल पूरा होने जा रहा है इस अवसर पर सरकार धर्मशाला में एक कार्यक्रम का आयोजन करने जा रही है। इसके लिये मुख्यमंत्री केंद्रीय नेताओं को आमंत्रित भी कर आये हैं क्योंकि एक बड़ा आयोजन होने जा रहा है। लेकिन सरकार के इस आयोजन की कोई औपचारिक जानकारी पार्टी की प्रदेश अध्यक्षा सांसद प्रतिभा सिंह को नहीं दी गयी है। प्रतिभा सिंह ने सरकार द्वारा कोई जानकारी न दिये जाने की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकारी है। कांग्रेस संगठन की अपनी ही सरकार द्वारा इस तरह की नजरअन्दाजी प्रदेश के राजनीतिक हल्कों में गंभीर चर्चा का विषय बनी हुयी है। क्योंकि अभी-अभी तो कांग्रेस को तीन राज्यों में हार का झटका लगा है। ऐसे में प्रदेश सरकार और संगठन के इस टकराव को विश्लेषक अलग नजर से देख रहे हैं। सरकार संगठन की अनदेखी करती आ रही है इस आश्य की शिकायतें हाईकमान तक पहुंचती रही हैं। सरकार की कार्यशैली से क्षेत्रीय असंतुलन उस सीमा तक पहुंच गया है जहां उसे अब संतुलित कर पर पाना मुख्यमंत्री के लिये भी असंभव होता जा रहा है। क्योंकि यह असंतुलन मित्रों को स्थापित करने के कदमों का प्रतिफल है। जो सरकार कर्ज के आंकड़ों के दस्तावेजी प्रमाणों को भी झुठलाने का साहस करें उससे उसकी बजटीय समझ पर भी सवाल उठते हैं। आज एक वर्ष के अवसर पर यदि सरकार की उपलब्धियों की चर्चा की जाये तो सबसे बड़ी उपलब्धि लेने की ही आती है। जो गारंटीयां चुनावों में जनता को परोसी थी उनकी पूर्णता की ओर चरणबद्ध तरीके से पूरा करने के आश्वासन के अतिरिक्त और कुछ भी सरकार के पास कहने और देने को नहीं है। इस परिदृश्य में आने वाले लोकसभा चुनाव में शायद पार्टी को चारों सीटों के लिये प्रत्याशी तय करना भी आसान नहीं होगा। राजनीतिक पंडित जानते हैं कि विधानसभा चुनाव जीतने में स्व. वीरभद्र की विरासत का विशेष योगदान रहा है। इस विरासत की अनदेखी चुनावी राजनीति में महंगी पड़ेगी। क्योंकि सरकार का अपना कुछ भी उसके पक्ष में नहीं है। अभी सरकार के सिर पर मुख्य संसदीय सचिवों के मामले की तलवार लटकी हुई है। यदि कहीं इन लोगों को अदालत ने विधायकी से भी आयोग्य घोषित कर दिया तो सरकार का बना रह पाना कठिन हो जायेगा। हालात नये चुनावों तक पहुंच सकते हैं। क्योंकि भाजपा की राजनीतिक आवश्यकता होगी कि वह इस सरकार को अपने ही भार से गिरने के कगार पर लाकर खड़ा कर दे। जब कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर हो रही हो तो ऐसे समय में एक मुख्यमंत्री द्वारा अपने ही प्रदेश अध्यक्ष और संगठन की अनदेखी के प्रयासों को विश्लेषक राजनेताओं की नीयत से जोड़कर देखने को विवश हो जायेंगे। क्योंकि इस तरह के प्रयास किसी भी गणित से पार्टी हित नहीं माने जा सकते। यदि सरकार और संगठन का यह टकराव सरकार की बलि लेने के कगार पर पहुंच जाता है तो इसकी सीधी जिम्मेदार कांग्रेस हाई कमान की होगी।

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