शिमला/शैल। भाजपा कांग्रेस द्वारा विधानसभा चुनावों में दी गारंटीयों का पूरा करने में सुक्खू सरकार द्वारा अब तक कोई भी प्रभावी कदम न उठाये जाने को लेकर लगातार आक्रामक होती जा रही है। भाजपा जितना आक्रमक होती जा रही है उसी अनुपात में कांग्रेस का जवाब कमजोर होता जा रहा है। बल्कि सुक्खू सरकार पर क्षेत्रीय असन्तुलन का आरोप ज्यादा गंभीर होता जा रहा है। मंत्रिमण्डल में चले आ रहे तीनों खाली पदों को न भर पाना अब सुक्खू सरकार का नकारात्मक पक्ष गिना जाने लगा है। इस समय कांगड़ा से एक ही मंत्री का सरकार में होना शान्ता जैसे वरिष्ठतम नेता को यह कहने पर मजबूर कर गया है कि कांगड़ा को मंत्री नहीं मुख्यमंत्राी के लिये लड़ाई लड़नी चाहिए। क्योंकि प्रदेश में सरकार बनाने का फैसला सबसे बड़ा जिला होने के नाते कांगड़ा ही करता है। शान्ता के इस सुझाव का कांगड़ा के राजनेताओं पर कितना और क्या असर पड़ता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन शान्ता के इस उपदेश के बाद ही कांगड़ा से एकमात्र मंत्री चंद्र कुमार का मंत्रिमण्डल विस्तार को लेकर ब्यान आया है। इसी उपदेश के बाद ही मुख्यमंत्री का भी विस्तार को लेकर ब्यान आया है। इन ब्यानों से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह क्षेत्रीय असन्तुलन का आरोप लोकसभा चुनावों में अवश्य असर दिखायेगा।
क्षेत्रीय असन्तुलन तो मंत्रिमण्डल से बाहर हुई राजनीतिक ताजपोशीयों में भी पूरी नग्नता के साथ प्रदेश के सामने आ गया है। इस समय मुख्यमंत्री की सहायता के लिये सलाहकारों विशेष कार्यकारी अधिकारियों की नियुक्तियों में करीब 90% की हिस्सेदारी अकेले जिला शिमला की हो गयी है। इसी बड़ी हिस्सेदारी के कारण ही सुक्खू सरकार को कुछ विश्लेष्कों ने मित्रों की सरकार का उपनाम दे दिया है। इस उपनाम का व्यवहारिकता में जवाब देने का साहस किसी कार्यकर्ता में नहीं हो पा रहा है। बल्कि कुछ विश्लेष्क मुख्यमंत्री की कार्यशैली का इस तरह विश्लेष्ण कर रहे है कि सुक्खू अपनी पूरी राजनीतिक कुशलता के साथ मुख्यमंत्री बनने में सफल हो गये हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद शिमला नगर निगम के चुनाव आये और उसमें भी शिमला वासियों को कुछ वायदे करके जिनमें एटिक को रिहाईसी बनाना और बेसमैन्ट को खोलना आदि शामिल थे के सहारे यह चुनाव भी जीत गये। अब लोकसभा चुनावों की हार जीत में तो पार्टी की राष्ट्रीय नीतियों की ही भूमिका रहेगी। फिर लोकसभा चुनाव तो स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में भी हारे हैं। विधानसभा में कोई भी मुख्यमंत्री स्व.वीरभद्र सिंह से लेकर शान्ता, धूमल और जयराम तक कोई रिपीट नहीं कर पाया है। इसमें सुक्खू के नाम कोई दोष नहीं आयेगा। लेकिन इस दौरान जिन मित्रों को वह राजनीतिक लाभ दे पायेंगे वह पार्टी के अन्दर उनका एक प्रभावी तबका बन जायेगा। इसलिये सुक्खू को लेकर जो यह धारणा फैलाई जा रही है कि वह किसी की नहीं सुनते और अपनी ही मर्जी करते हैं इसके पीछे पार्टी के अन्दर आने वाले वक्त के लिये अपना एक स्थाई वर्ग खड़ा करना है।
इस समय कांग्रेस गारंटीयां पूरी नहीं कर पायी है इस आरोप का एक बड़ा हिस्सा पिछले दिनों आयी आपदा में छुप जाता है। जहां तक लोकसभा चुनावों का प्रश्न है उसके लिये सुक्खू की राजनीति को समझने वालों के मुताबिक वह कांगड़ा, हमीरपुर और शिमला से मंत्रियों या वरिष्ठ विधायकों को चुनावी उम्मीदवार बनवाने का प्रयास करेंगे। क्योंकि सुक्खू की अस्वस्थता के दौरान यही लोग महत्वपूर्ण भूमिकाओं में थे। ऐसे में लोकसभा चुनावों में क्षेत्रीय असन्तुलन और आर्थिक कठिनाइयों का यदि सरकार जवाब न दे पायी तो यह चुनाव जीत पाना कठिन हो जायेगा।