Friday, 19 September 2025
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क्या हिमाचल में भी महाराष्ट्र घट सकता है

  • कांग्रेसी से भाजपाई बने हर्ष महाजन की सक्रियता से उभरी आशंकाएं
  • विपिन परमार और त्रिलोक कपूर के ब्यानों से बढ़ी चिन्ताएं
  • मंत्री परिषद का विस्तार क्यों टाला जा रहा है
  • विभिन्न निगमों/बोर्ड़ों में कार्यकर्ताओं की ताजपोशीयां कब?

शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे और अब भाजपा की प्रदेश कोर कमेटी के सदस्य हर्ष महाजन कि पिछले दिनों दिल्ली में मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू तथा कुछ कांग्रेसी विधायकों से हुई मुलाकात और अब विपिन परमार तथा त्रिलोक कपूर के ब्यानों से महाराष्ट्र के परिदृश्य में हिमाचल में भी अटकलों का बाजार तेज होने लग गया है। सुक्खू और हर्ष महाजन के रिश्ते कांग्रेस में बहुत अच्छे रहे हैं यह सब जानते हैं। विधानसभा चुनावों से पहले भी कई कांग्रेस नेताओं के भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं उठती रही हैं। बल्कि सुक्खू और जयराम का एक फ्लाइट में संयोगवश इकट्ठे होना तथा उस फ्लाइट में और किसी यात्री का न होना भी कई चर्चाओं का विषय रहा है। इस परिदृश्य में बनी कांग्रेस सरकार में मंत्रियों से पहले मुख्य संसदीय सचिवों की शपथ हो जाना और बाद में उनकी नियुक्तियों को भाजपा नेताओं द्वारा ही उच्च न्यायालय में चुनौती दिया जाना और अब इन्हें अदालत के नोटिस तामील न हो पाना कुछ ऐसे संयोग हैं जिन्हें अगर एक साथ रखकर पढ़ने की कोशिश की जाये तो बहुत सारे ऐसे सवाल खड़े हो जाते हैं जिनका जवाब तलाशना कठिन हो जाता है।
सुक्खू सरकार में मंत्रियों के तीन पद खाली चले हुये हैं जो मंत्रिमण्डल में असन्तुलन का सीधा प्रमाण हैं और मंत्रिमण्डल का विस्तार लटकता जा रहा है। विभिन्न निगमों/बोर्डों में अभी तैनातीयां नहीं हो पायी हैं इससे वरिष्ठ कार्यकर्ता भी हताशा में आ गये हैं। जबकि पार्टी अध्यक्षा वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को सरकार में मान-सम्मान दिये जाने की मांग कर चुकी है। प्रशासनिक तौर पर अभी भी भाजपा शासन के दौरान लगाये अधिकारियों को ही प्रशासन के शीर्ष पदों पर तैनात रखा है। मुख्यमंत्री प्रशासन के माध्यम से प्रदेश में सरकार बदलने का संदेश नहीं दे पाये हैं। बल्कि व्यवस्था परिवर्तन का दावा प्रशासनिक अराजकता बनता जा रहा है। आम आदमी की शिकायत है कि मुख्यमंत्री को दिये जा रहे प्रार्थना पत्रों/प्रतिवेदनों का कोई अता पता ही नहीं चल रहा है। चर्चा है कि एक मंत्री अपने विभाग के सचिव की कार्यप्रणाली से खुश नहीं थे। उन्होंने मुख्यमंत्री से सचिव को बदलने का आग्रह किया। लेकिन मुख्यमंत्री ने सचिव को बदलने की बजाये मंत्री का ही विभाग बदलने की पेशकश कर दी। एक अन्य मंत्रा की सिफारिश पर मुख्यमंत्री ने तो फाइल पर अनुमोदन कर दिया लेकिन सचिव स्तर पर काम नहीं हुआ। पता चला कि मुख्यमंत्री ने ही सचिव को ऐसे निर्देश दिये थे। बहुत सारे ऐसे मामले चर्चा में हैं जहां मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बावजूद सचिव स्तर पर काम रुक रहे हैं। इससे प्रशासन में अनचाहे ही अराजकता का वातावरण बनता जा रहा है।
मंत्रा परिषद में असन्तुलन कार्यकर्ताओं में मोहभंग की स्थिति पैदा होना तथा प्रशासन में बढ़ती अराजकता अब ऐसे तथ्य बन गये हैं कि शायद हाईकमान के भी संज्ञान में आ चुके हैं। शायद इसी सबका परिणाम रहा है की चुनावी सर्वे में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद लोकसभा में एक भी सीट नहीं मिल पा रही है। इसी सर्वे के बाद हाईकमान ने निष्पक्ष रिपोर्ट के लिये पूर्व मंत्री कॉल सिंह को दिल्ली बुलाया था। चर्चा है कि कॉल सिंह की रिपोर्ट में 23 विधायकों और मंत्रियों के भी हस्ताक्षर हैं। जब से कॉल सिंह की रिपोर्ट और सर्वे के परिणाम चर्चा में आये हैं तब से स्थितियां और उलझती जा रही हैं। बल्कि अब तो यहां तक चर्चाएं चल रही हैं कि मुख्यमंत्री स्वस्थ्य लाभ के नाम पर चंडीगढ़ बैठकर पूरी स्थिति का आकलन करने का प्रयास कर रहे हैं।
दूसरी ओर यह माना जा रहा है की मुख्य संसदीय सचिवों को लेकर दायर हुई याचिका पर जल्द फैसले के हालात पैदा किये जायें। क्योंकि यह तय है की यह नियुक्तियां संविधान के प्रावधान के अनुरूप नहीं हैं इसलिए यह रद्द होंगी ही। उस समय राजनीतिक समीकरण नये सिरे से आकार लेंगे। प्रदेश पहले ही वित्तीय संकट से गुजर रहा है और जब इसके साथ राजनीतिक संकट के आसार बन जाएंगे तब केन्द्र सरकार और भाजपा को खेल खेलने का खुला अवसर मिल जायेगा। क्योंकि जिस तरह भाजपा कर्नाटक में प्रधानमंत्री मोदी के व्यापक चुनाव प्रचार के बाद भी हार गयी उससे अब गैर भाजपा सरकारों को अस्थिर करने वहां सत्ता पलटने के अतिरिक्त और कोई विकल्प शेष नहीं बचते हैं। फिर अभी केन्द्रीय मंत्री परिषद के संभावित फेरबदल में अनुराग ठाकुर को मंत्री पद से हटाकर संगठन में जिम्मेदारी दिये जाने की चर्चाओं से भी यही संकेत उभर रहे हैं कि भाजपा हिमाचल में कोई बड़ा खेल खेलने के लिये जमीन तैयार कर रही है। यदि कांग्रेस हाईकमान और प्रदेश सरकार समय रहते सचेत न हुई तो हिमाचल में कोई बड़ा नुकसान हो सकता है।

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