शिमला/शैल। नगर निगम शिमला में चुनाव प्रक्रिया चल रही है और इसके परिणाम स्वरूप निगम क्षेत्र में चुनाव आचार संहिता लागू है। इस संहिता के चलते नगर निगम प्रशासन और राज्य सरकार ऐसी कोई घोषणा नहीं कर सकते जिसका प्रभाव निगम क्षेत्र के निवासियों पर पड़ता हो। लेकिन सुक्खू सरकार ने 13 अप्रैल को हुई मंत्री परिषद की बैठक में यह फैसला ले कर सबको चौंका दिया कि सरकार एटिक फ्लोर को वाकायदा रहने लायक बनाने के लिये 2014 के टी.सी.पी. नियमों में संशोधन करने जा रही है। इसके लिए चार और 15A में संशोधन करके एटिक की ऊंचाई बढ़ाने का प्रावधान किया जायेगा। स्मरणीय है कि मकानों के नक्शे पास करवाने की आवश्यकता शहरी क्षेत्रों में ही आती है। जहां पर एन.ए.सी. नगरपालिका या नगर निगम है। इसमें भी सबसे ज्यादा समस्या नगर निगम शिमला क्षेत्र की है। जहां पर नौ बार कांग्रेस और भाजपा की सरकारें रिटैन्शन पॉलिसियां ला चुकी है। कई बार प्रदेश उच्च न्यायालय सरकारों के प्रयासों पर कड़ी टिप्पणियां करते हुये अंकुश लगा चुका है। क्योंकि शिमला भूकंप के मुहाने पर खड़ा है और राज्य सरकार अपनी ही रिपोर्टों में यह स्वीकार भी कर चुकी है।
1971 में किन्नौर में आये भूकंप के दौरान शिमला का लक्कड़ बाजार क्षेत्र और रिज जो प्रभावित हुआ था वह आज तक पूरी तरह संभल नहीं पाया है। शिमला की इस व्यवहारिक स्थिति और सरकार के अपने ही अध्ययनों का संज्ञान लेते हुये एन.जी.टी. ने 2016 में शिमला में अढ़ाई मंजिल से अधिक के निर्माणों पर रोक लगा दी थी और कोर क्षेत्र में तो नये निर्माणों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया था। शिमला से कार्यालयों को बाहर ले जाने की राय दी है। शिमला में अढाई मंजिल से अधिक के निर्माणों पर इसलिये प्रतिबन्ध लगाया गया है क्योंकि शिमला की और भार सहने की क्षमता नहीं रह गयी है। प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने पुराने भवन को गिराकर नया बनाने की अनुमति एन.जी.टी. से मांगी थी जो नहीं मिली और उच्च न्यायालय ने इस इन्कार को चुनौती नहीं दी है। सरकार ने एन.जी.टी. के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे रखी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के फैसले को स्टे नहीं किया है।
जयराम सरकार के समय में शिमला के लिये एन.जी.टी. के आदेशों के अनुसार एक स्थाई प्लान बनाने के निर्देश दिये थे। इन निर्देशों के तहत यह प्लान तैयार भी हुआ और इसमें भवन निर्माण के लिये कई राहतें दी गयी थी। जैसी अब एटिक फ्लोर के लिये दी गयी है। बड़ी धूमधाम से पत्रकार वार्ता में यह 250 पन्नों का प्लान जारी किया गया। लेकिन अन्त में अदालत ने इसे अपने निर्देशों की उल्लंघना करार देकर निरस्त कर दिया। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब एन.जी.टी. के निर्देशों की अवहेलना करके बनाये गये प्लान को रिजैक्ट कर दिया गया है तो अब एटिक की ऊंचाई 2.70 मीटर से 3.05 मीटर करके उसको नियमित करने के फैसले को कैसे अदालत अपनी स्वीकृति दे देगी फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और सरकार का फैसला वहां तक पहुंचेगा ही। ऐसे में यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि प्रशासन के सामने यह सारी स्थिति स्पष्ट थी तो क्या प्रशासन ने मंत्रिपरिषद को इससे अवगत नहीं कराया होगा? क्या प्रशासन की राय को नजरअंदाज करके राजनीतिक नेतृत्व ने वोट की राजनीति के लिये यह लुभावना फैसला ले लिया। कानून के जानकारों की राय में यह राहत एन.जी.टी. के फैसले की अवहेलना है और इसका लागू हो पाना संदिग्ध है। जबकि इसके बिना भी सरकार की स्थिति मजबूत थी।