शिमला/शैल। हिमाचल की सुक्खु सरकार ने फैसला लिया है की प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में एक एक राजीव गांधी डे-बोर्डिंग स्कूल खोला जायेगा। भाजपा सरकार में अटल आदर्श विद्यालय खोले गये थे। इन विद्यालयों कि कोई व्यवहारिक रिपोर्ट आज तक नहीं आयी है कि प्रदेश में कितने अटल विद्यालय खुले और उनकी परफॉर्मेंस क्या रही। सरकार ने एक और फैसला लेते हुये 228 प्राइमरी और 56 मिडिल स्कूल बन्द करने का आदेश किया है। रोटी, कपड़ा और मकान के बाद शिक्षा तथा स्वास्थ्य भी बुनियादी आवश्यकताएं बन चुकी हैं। एक कल्याणकारी राज्य में बुनियादी सेवाएं नागरिकों को निःशुल्क मिलनी चाहिये ऐसी अपेक्षा रहती है सरकार से। लेकिन व्यवहार में आज शिक्षा और स्वास्थ्य सबसे बड़े बाजार बन गये हैं क्योंकि सरकारी संस्थानों की गुणवत्ता प्रश्नित रहती है। ऐसे में आज जब हिमाचल सरकार ने इतने स्कूलों को बच्चों की कमी के कारण बन्द करने का फैसला लिया है और मुख्य विपक्षी दल भाजपा जो पहले सरकार में था वह यह आरोप लगा रहा है कि सुक्खु सरकार अपने ही नेता स्व.वीरभद्र सिंह के आदर्शों के विपरीत काम कर रही है। स्व.वीरभद्र तो यह कहते थे कि एक बच्चे के लिये भी स्कूल खोलना पड़े तो वह खोलेंगे। लेकिन यह कहते हुये भाजपा यह भूल रही है कि स्व.वीरभद्र सिंह ने एक ही पंचायत में छः विश्वविद्यालय खोलने का चलन शुरू नहीं किया था।
प्रदेश वित्तीय संकट से गुजर रहा है यह हर रोज हर मंच से दोहराया जा रहा है और कोई भी इसका खण्डन करने की स्थिति में नहीं है। इस परिदृश्य में यह आवश्यक हो जाता है की कुछ आवश्यक सेवाओं के प्रबन्धन पर पुनर्विचार किया जाये और लाभार्थियों को भी प्रभावित न होने दिया जाये। शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जहां एक भी बच्चे को शिक्षा से किसी भी कारण से वंचित रखना अपराध ही नहीं वरन पाप की संज्ञा में भी आ जाता है। आज सरकार ने यह स्कूल बन्द करने का फैसला इसलिये लिया है क्योंकि यहां बच्चां की संख्या ही बहुत कम थी। कम संख्या के कारण पहले भी स्कूल बन्द होते रहे हैं। ऐसे में प्रदेश में स्कूली शिक्षा पर एक नजर डालना आवश्यक हो जाता है। इस समय प्रदेश में एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 18028 स्कूल हैं जिनमें से 15313 स्कूल सरकारी हैं। इन स्कूलों में 63690 कमरे उपलब्ध है। यू.डी.आई.एस.की रिपोर्ट के मुताबिक 5113 प्राईमरी और 993 मिडिल स्कूलों में 20 से कम बच्चे हैं। सरकार 15313 स्कूलों में 65973 अध्यापक हैं। इनमें 12 प्राईमरी स्कूल बिना अध्यापक के 2969 स्कूलों में एक अध्यापक 5533 स्कूलों में दो अध्यापक और 1779 स्कूलों में तीन अध्यापक हैं। इसी तरह 51 मिडिल स्कूल ने एक, 416 में दो और 773 स्कूलों में तीन तथा 701 में चार से छः अध्यापक हैं। रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि एक स्कैण्डरी स्कूल में दस क्लासों के लिए दो अध्यापक, दस स्कूलों में तीन, 212 में चार से छः और 710 में सात से दस अध्यापक हैं। बाईस वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों में चार से छः अध्यापक, 189 में सात से दस, 684 में ग्यारह से पन्द्रह और 981 स्कूलों में पन्द्रह से अधिक अध्यापक हैं।
सात प्राईमरी स्कूल बिना कमरे के, 338 एक कमरे में, 2495 दो कमरों में 4111 तीन कमरों में 3402 सात से दस कमरों में, तीन मिडिल स्कूल बिना कमरे के, 216 एक कमरे में, 241 दो कमरों में, 1111 तीन कमरों में और 352 चार से छः कमरों में चल रहे हैं। माध्यमिक स्कूलों जहां दस क्लासें हैं उनकी स्थिति भी बेहतर नहीं है। छः स्कूल एक कमरे में 25 दो कमरों में 117 तीन कमरों में 699 चार से छः कमरों और 74 स्कूल सात से दस कमरों में चल रहे हैं। वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों में एक स्कूल एक कमरे में सात दो कमरों सत्रह तीन कमरों, 254 चार से छः 947 सात से दस, 454 ग्यारह से पन्द्रह और केवल 205 पन्द्रह से अधिक कमरों में चल रहे हैं। स्कूलों, अध्यापकों, छात्रों और कमरों में इन आंकड़ों से पूरी स्कूली शिक्षा की तस्वीर सामने आ जाती है। इस तस्वीर से यह सवाल उभरता है कि क्या एक चुनाव क्षेत्र में एक राजीव गांधी डे बोर्डिंग या अटल आदर्श विद्यालय खोलकर ही शिक्षा जैसे क्षेत्र में सरकार की जिम्मेदारी पूरी हो जाती है। एक भी बच्चा शिक्षा के बिना न रहे इसके लिये शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित किया गया है। स्कूलों, छात्र, शिक्षक अनुपात क्या रहना चाहिये यह प्राईमरी से वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों के लिये तय है। बच्चे को उसके घर से 1.5 किलोमीटर के दायरे में स्कूल उपलब्ध होना चाहिए यह मानक तय किया गया है। लेकिन क्या पहाड़ी क्षेत्रों में इन मानकों को कभी पूरा किया जा सकता है। जो स्कूल बिना अध्यापक के चल रहे हैं एक या दो अध्यापकों के सहारे चल रहे हैं। बिना कमरे के या एक ही कमरे में कई क्लासे चलाई जा रही हैं क्या उन बच्चों के साथ अन्याय नहीं हो रहा है। बच्चों को स्कूल के प्रति आकर्षित करने और माता-पिता को बच्चा स्कूल में भेजने के लिये प्रेरित करने हेतु मीड डे मील और स्कूल वर्दीयां देने की योजनाएं लायी गयी थी। आज इन योजनाओं में परिवर्तन किया जा रहा है। वर्दी के बदले नगद पैसा दिया जाने का फैसला लिया गया है।
इस परिदृश्य में आज आवश्यक हो जाता है कि छात्रों, अध्यापकों और स्कूल कमरों के अनुसार एक मुश्त युक्तिकरण की नीति शिक्षा में लायी जाये। जिन स्कूलों में छात्र नहीं है जहां अध्यापक नहीं है जहां क्लासों के लिये पूरे कमरे नहीं है उन्हें तुरन्त प्रभाव से बन्द कर दिया जाये और निकट के स्कूल में बच्चों और स्टाफ शिफ्ट किया जाये। 1.5 किलोमीटर का दायरा इसलिये रखा गया था ताकि बच्चों को ज्यादा चलना न पड़े। आज प्रदेश का हर गांव प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत सड़क से जुड़ा हुआ है इसलिये बच्चों को बसों के माध्यम से निकट के स्कूल में पहुंचाना कठिन नहीं होगा। सिर्फ शिक्षा और परिवहन विभाग में तालमेल बिठाना होगा। इस युक्तिकरण से कोई भी स्कूल बिना बच्चों और अध्यापकों तथा कमरों के नही रहेगा। केवल इतना संकल्प लेना होगा कि सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता प्राईवेट स्कूलों से बेहतर बनानी है। इस युक्तिकरण में बच्चों को भी पूरी सुविधा मिलेगी और सरकार की बचत भी होगी। अभी सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा के एक मामले में फैसला दिया है कि कोई भी स्कूल बिना खेल के मैदान के नहीं हो सकता। आज अधिकांश सरकारी और प्राईवेट स्कूलों के पास प्रदेश में खेल मैदान नहीं है। इसलिये डे बोर्डिंग स्कूल खोलने के स्थान पर स्कूलों में खेल मैदान की व्यवस्था पर ध्यान दिया जाना चाहिये।